अमूमन एक राजनीतिक पार्टी के दफ्तर में दिए गए किसी बयान पर दूसरी राजनीतिक पार्टी की प्रतिक्रिया लेने के लिए उस पार्टी के दफ्तर की तरफ हम में से कई पत्रकार भागते हैं। लेकिन, गुरुवार को कांग्रेस दफ्तर का आलम ऐसा था कि हम ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटि के मुख्यालय के प्रेस ब्रीफिंग हॉल में दिए गए बयान पर प्रतिक्रिया लेने इसी मुख्यालय के दूसरे कमरे की तरफ भाग रहे थे। अजय माकन की ब्रीफिंग अभी चल ही रही थी कि सुगबुगाहट हुई, जनार्दन द्विवेदी अपने कमरे में आने वाले
हैं। माकन तब तक जनार्दन द्विवेदी के मोदी पर दिए गए बयान की मज़म्मत कर चुके थे। अनुशासनात्मक कार्रवाई की संभावना पर पूछे गए सवाल का भी जवाब दे चुके थे कि लीडरशिप जल्द ही इस पर कोई फैसला करेगा। वे इंदिरा गांधी से लेकर जवाहर लाल नेहरू तक, टैगोर से लेकर और नानक-कबीर तक सबको उद्धृत करते हुए भारतीयता का मतलब समझा चुके थे। इसलिए कई पत्रकारों की दिलचस्पी अब इस पीसी के बाद जनार्दन द्विवेदी की प्रतिक्रिया जानने की हो रही थी।
एक एक कर सब ब्रीफिंग रूम से निकल द्विवेदी के कमरे के बाहर जमा होने लगे। कांग्रेस की इस अंदरूनी लड़ाई को कवर करने पहुंचे
तीन दर्जन से ज़्यादा कैमरों का रुख भी द्विवेदी के कमरे की तरफ हो चुका था।
इस बीच ब्रीफिंग हॉल से निकल कर माकन अपने कमरे में बैठ कर पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत कर रहे थे। ये सुनना भी ज़रूरी होता है कि जानकारी का कोई ऐसा धागा न छूट जाए जिससे ख़बर की हमारी माला गूंथने में कमी रह जाए। क्या करें इधर सुनें या द्विवेदी के कमरे के बाहर ही डटे रहें।
दुविधा ये थी। तीसरा रास्ता था कि यहां की सुनता रहूं और बीच बीच में द्विवेदी के कमरे के बाहर भी चक्कर लगा आऊं। मुश्किल से 10 सेकेंड का फासला है दोनों कमरों के बीच।
कुछ भी मिनटों में जनार्दन द्विवेदी पहुंचे। फोन पर बात करते हुए कार से उतरे और प्रतिक्रिया लेने को आतुर पत्रकारों को ये बोलते हुए कमरे में चले गए कि डेढ़ बजे वो अपनी बात रखेंगे। लेकिन पत्रकारों की बेसब्री कम नहीं हुई। तमाम कैमरापर्सन बेहतर पोज़ीशन लेने के लिए आपस में रेलमपेल कर रहे थे। कोई पोडियम उठा कर ला रहा था ताकि गनमाइक उस पर रखे जा सकें। तभी द्विवेदी के कमरे में ही आने का बुलावा आ गया। तमाम पत्रकार घुसने को टूट पड़े। नज़ारा कुछ ऐसा था मानों छठ के मौक़े
पर बिहार जाने वाली ट्रेन की जेनरल बोगी में एक साथ दर्जनों मुसाफिर घुसना चाह रहे हों। हमने दूसरे दरवाज़े का रुख़ किया। वो अंदर से बंद था। हमें लगा कि हम तो बाहर ही रह गए। लेकिन किसी मित्र ने अंदर से चिटकनी खोल दी।
जनार्दन द्विवेदी अपनी कुर्सी पर शांत भाव से बैठे पत्रकारों के कोलाहल को शांत होने का इंतज़ार कर रहे थे। इसमें अच्छा खासा 4-5 मिनट का वक्त लगा। फिर द्विवेदी ने पूरे दम से अपनी बात रखी। ब्रीफिंग हॉल से आए माकन के बयान पर सीधे तौर पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया। लेकिन भारतीयता क्या है इसका ज्ञान किसी से भी लेने से मना कर दिया। मीडिया की समझ और नीयत पर सवाल उठाते हुए उन्होंने उन कांग्रेसी नेताओं की समझ और नीयत पर भी सवाल उठा दिया जिन्होंने वेबसाइट पर छपे
को द्विवेदी के कहे से ज़्यादा भरोसा किया। कहा तरस आती है। अनुशासनात्मक कार्रवाई की आशंका से लेकर सोनिया या राहुल गांधी की नाराज़गी तक के सवाल का जवाब देने से विनम्रता से मना कर दिया।
एक ही पार्टी के भीतर के दो पक्षों की बाइट हो चुकी थी। कल की ख़बर कुछ और आगे बढ़ चुकी थी। कांग्रेस की पुरानी और अपेक्षाकृत नई पीढ़ी के बीच की राजनीतिक विज्ञान और भाषा विज्ञान की समझ की दरार साफ़ साफ़ दिख चुकी थी। संवाद का नियम कहता है कि आप किस अर्थ में क्या बोलना चाहते
हैं ये मतलब नहीं रखता, आपके कहे का क्या मतलब निकाला जाता है ये मायने रखता है। पूरे प्रकरण में एक बात तो सीधे तौर पर समझ में आती है। संवाद में कमी रह गई। चाहे द्विवेदी ने जो वेबसाइट से संवाद किया उसमें हो या फिर पार्टी के भीतर इस मुद्दे पर आपसी संवाद में हो।
This Article is From Jan 22, 2015
उमाशंकर की कलम से : कांग्रेस मुख्यालय के दो कमरे और दर्जनों कैमरे
Umashankar Singh, Rajeev Mishra
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Updated:जनवरी 23, 2015 00:57 am IST
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Published On जनवरी 22, 2015 23:05 pm IST
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Last Updated On जनवरी 23, 2015 00:57 am IST
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