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This Article is From May 22, 2016

यात्रा वृतांत : बहार-ए-अरब के बाद

Nagma Sehar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 22, 2016 18:53 pm IST
    • Published On मई 22, 2016 15:46 pm IST
    • Last Updated On मई 22, 2016 18:53 pm IST
मिस्त्र की राजधानी काहिरा का सबसे पुराना बाजार खान ए खलीली..। यह वह अकेली जगह होगी जो घटते टूरिज्म के दौर में भी खचाखच लोगों से भरी है। यहां वक्त आज और बीते कल में लिपटा है, शीशे के धुंए में घुलता सा जो मिस्त्र में सबसे आम मंजर है।
 

हम मिस्त्र के आज के दौर के सबसे जाने माने लेखक नजीब महफूज की नॉवेल कायरो ट्रायलजी से मशहूर हुए कैफे अल फिशावी की तरफ बढ़ रहे हैं। अल फिशावी बहुत पुराना है। यहां के माहौल  और मूड के लिए आते हैं लोग। रह रह कर इधर उधर से आवाज आती है, इंडिया.. इंडिया। जी हां हम इंडिया से हैं... ओ अमिताभ बच्चन... शाहरुख खान..। मुझे इस बात का अंदाजा तो था कि अमिताभ बच्चन सदी के महानायक हैं, बेइंतहा मशहूर हैं, लेकिन यह अंदाजा नहीं था कि इजिप्ट में भी वे ही हमारी पहचान होंगे।
 

पुराने कायरो में हम पत्रकारों के ग्रुप को देखकर एक बच्ची भागती हुई आई। हांफती हुए पूछा - इंडिया?.. मुझसे दोस्ती करोगे..। और गाने लगी, तुझे देखा तो ये जाना सनम..शाहरुख खान कमाल है बॉलीवुड का। सलमान खान के फैंस का बनाया हुआ एक सलमानियाक ग्रुप भी है यहां। इजिप्ट बॉलिवुड को बेइंतहा चाहता है। फिल्मों के पर्दे से जो रिश्ता जुड़ा है, जिससे इजिप्ट के लोग इतने मानूस हैं, हिंदुस्तानियों से उसे आज के दौर में नए सिरे से आगे बढ़ाने की एक कोशिश है। इंडिया बाई द नाइल..यानी नाइल नदी के किनारे भारत।
 

मिस्त्र की नई संसद को बने 100 दिन से कुछ ज्यादा हुए हैं। नया संविधान है। मिस्त्र नए लोकतंत्र की आदत डाल रहा है। कुछ हिचक भी है। डालिया यूसुफ नीली साड़ी और चूड़ियां पहने हैं। उन्हें काहिरा में भारतीय एंबेसी ने वुमन ऑफ सब्सटेंस से सम्मानित किया है। वे उन 89 महिलाओं में से हैं जो मिस्त्र की नई संसद में चुनी गई हैं। यह एक रिकॉर्ड है, जी हां मिस्त्र की नई संसद में 89 औरते हैं। और डालिया इसे मिस्त्री औरतों के लिए एक सुनहरा दौर मानती हैं।
 

डालिया की सोच सबकी सोच नहीं है। थिएटर और कला से जुड़ी रीम को भी वुमन ऑफ सब्सटेंस का सम्मान मिला है। वे यह तो नहीं कहतीं कि यह एक सुनहरा दौर है, लेकिन यह मानती हैं कि मुल्क उम्मीदों से भरा है। चरमराई अर्थव्यवस्था के बीच उम्मीद की खुशबू है। विदेशी मुद्रा की कमी है, फिस्कल डेफिसिट बहुत ज्यादा है और इकानॉमी की बुरी हालत की एक बड़ी वजह टूरिज्म में कमी है। गीजा के पिरामिड  छुट्टियों के दिन भी खाली पड़े हैं। दुकानों के सामने गर्द ओ गुबार से भरे बेली डांस के कॉस्ट्यूम और इजिप्ट का परंपरागत पहनावा गलआबेया टंगा है। दुकानें टूरिस्टों के लिए सजी हैं, जो इक्के-दुक्के ही नजर आते हैं। तभी कायरो के नैश्नल म्युजियम में बादशाह तुतनखामन के साथ हम जितना चाहें उतना वक्त गुजार सकते हैं।
 

इजिप्ट में 2010 में जीडीपी का 12 फीसदी हिस्सा टूरिज्म से आता था, 13 बिलियन डॉलर। यह अब घटकर आधा हो गया है 6 बिलियन डॉलर। सियासी टकराव, इटालियन स्टूटेंड गीलियो रेजेनी की हत्या, सिनाई पेनिनसुएला में रूसी प्लेन क्रैश, टूरिस्ट के इजिप्ट न आने में इन सबका हाथ रहा है। रूसी और अमेरिकी टूरिस्ट इजिप्ट से गायब हैं लेकिन इजिप्ट पस्त नहीं है। वह बल्गेरिया, लैटिन अमेरिका, भारत, चीन और दूसरे एशियन मुल्कों की तरफ देख रहा है।

इंटरनेशनल टूरिज्म डिपार्टमेंट के डायरेक्टर आदेल अल मासरी  के मुताबिक भारत से आने वाले टूरिस्टों में वे 30 -35 फीसदी की ग्रोथ चाहते हैं। 2014-15 में मिस्त्र की इकानॉमी पिछले साल से दोगुनी हुई है। शायद इसलिए दुकानदारों से लेकर टैक्सी ड्राइवर सभी राष्ट्रपति अब्दल फतह अल सीसी पर भरोसा कर रहे हैं। वे सैनिक शासक तो हैं लेकिन 2011 और 2013 की बगावत के बाद अमन लेकर आए हैं।

अप्रैल के महीने में सिनाई की इजरायल से आजादी का जश्न मनता है। इसी दौरान मैं वहां थी। तिरान और सनाफिर इन दो दीपों को सीसी ने सऊदी अरब को लौटा दिया। इसे लेकर विरोध की सुगबुगाहट थी। इसलिए हमने देखा कि  एहतियातन पत्रकारों और विरोधियों को गिरफ्तार कर लिया गया। कुछ घबराहट है सरकार में कि टूटा फूटा विपक्ष फिर कोई मिलनिया मार्च न अंजाम दे दे। स्थायित्व.. स्टेबिलिटी जादुई मंत्र है।
 

हम चंद भारतीय पत्रकार एक खुशगवार शाम तहरीर स्कवायर गए। बिल्कुल वैसी शाम थी जैसी इंडिया गेट पर होती है। औरतें, बच्चे, गुब्बारे वाले, कहवा पीते लोग... लेकिन हम शूट करते और लोगों से बातें करते देख लिए गए थे। अचानक सादा कपड़ों में आकर कुछ लोग सवाल जवाब करने लगे कि हम क्यों लोगों से बात कर रहे हैं। पुलिस वाले आ गए और हमें सीनियर अफसरों के पास ले जाया गया। सरकारी बुलावे का कार्ड दिखाने के बाद हमें जाने दिया गया हालांकि उस पूरी शाम पुलिस की परछांई हमारे पीछे रही।

हसनैन महमूद इतिहास के छात्र और गाइड हैं। बताते हैं कि लोग मुस्लिम ब्रदरहुड को एक मौका देना चाहते थे लेकिन वे जन्नत की बात करते रहे। मिस्त्र के लोग एक ऐसी सरकार चाहते हैं जो हमारी आज की जरूरतें पूरी करे। हसनैन कहते हैं कि मजहब हमारे और खुदा के बीच की बात है, सरकार को फैक्ट्री नौकरियों की फिक्र होनी चाहिए, मजहब की नहीं। यह आवाज उस इजिप्ट में आज भी आबाद है जहां बड़ी तादाद में सलाफी हैं, जहां 1928 में मुस्लिम ब्रदरहुड पैदा हुआ, जिसने कई और कट्टर मुस्लिम संगठनों को जन्म दिया। तारीफ के काबिल है वह मिस्त्र जिसने कट्टर ताकतों को नकारा, जहां फंडामेंटल ग्रुप हमेशा दबे छुपे रहने को मजबूर रहे हैं।
 

इजिप्ट ने इसी साल तलाक के मामले में औरतों को मर्दों के बराबर हक दिया है। 2014 के नए संविधान में औरत-मर्द को बराबर का दर्जा है, जिसमें पहल शरिया की शर्त थी। मिस्त्र को अपनी पुरानी उदार तारीख पर फख्र है। उस तहजीब उस सभ्यता पर फख्र है जहां फराओन हुए तुतनखमन जैसे, नेफरतीती और क्लियोपैट्रा ने जहां राज किया, वह तहजीब जिसने दुनिया को लिखने की कला दी।

आज के मिस्त्र में लड़कियां जीन्स पहने नजर आती हैं। नील के किनारे नौजवान जोड़ों का रोमांस भी नजर आता है जैसे टेम्स या सीन का किनारा हो। और देर रात तक  भीड़ भाड़ वाले कॉफी हाउस में शीशा पीते, हर फिक्र को धुएं में उड़ाते औरत और मर्द नजर आते हैं। अल काहिरा... वह कभी न हारने वाला शहर जिंदा है।

( नगमा सहर एनडीटीवी में सीनियर एडिटर और सीनियर एंकर हैं )

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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