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This Article is From Jun 17, 2016

आपदा के 3 साल : तस्वीरों में देखिए केदारनाथ का बदला चेहरा, चुनौतियां अब भी कम नहीं

Hridayesh Joshi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 18, 2016 00:34 am IST
    • Published On जून 17, 2016 08:58 am IST
    • Last Updated On जून 18, 2016 00:34 am IST
केदारनाथ जाने वाले रास्ते का एक खूबसूरत पड़ाव सोनप्रयाग अब नई शक्ल ले रहा है। 3 साल पहले जून 2013 को जब केदारनाथ में भयानक बाढ़ आई तो सोनप्रयाग पूरी तरह तबाह हो गया था। यहां पर मौजूद दुकानें, लोगों के घर और गेस्ट हाउस सब बह गये। जो लोग उस त्रासदी के गवाह हैं वो बताते हैं कि तब यहां बाढ़ के साथ इतना मलबा आया कि सोनप्रयाग का भू-स्तर करीब 15 मीटर ऊपर उठ गया। यहां मौजूद लोग जिनमें बूढ़े, जवान और बच्चे शामिल थे सब उस मलबे में दफन हो गये।
 

केदारनाथ में 16 और 17 जून को प्रकृति ने अपना कहर बरपाया। मारे गये लोगों का सरकारी आंकड़ा पांच हज़ार से कम है लेकिन राहत कार्य में लगे लोग और स्थानीय लोग –जो पहले दिन से लोगों को बचाने के काम में लग गये थे- बताते हैं कि मारे गये लोगों की संख्या 10-12 हज़ार से कम नहीं रही होगी। आपदा के 3 साल बाद अब भी केदारनाथ की पहाड़ियों में लोगों के कंकाल और सड़े गले शव मिलना जारी है। हज़ारों लोग लापता हैं। या तो वह पहाड़ों के नीचे दफन हो गये या नदी का उफान उन्हें बहा ले गया।
 

फिर भी... ज़िंदगी चलते रहने का नाम है। केदारनाथ आपदा के कुछ महीनों बाद ही केदारनाथ को फिर से बसाने का काम शुरू हो गया। किसी ने सोचा नहीं था कि केदारनाथ यात्रा अगले साल (2014 में) शुरू हो पायेगी लेकिन ऐसा हुआ क्योंकि इसकी कई वजहें थीं।
 
पहली – केदारनाथ घाटी और उत्तराखंड में लोगों की ज़िंदगी यात्रा पर ही निर्भर है। साल में करीब 6-7 महीने तक चलने वाली यात्रा से होने वाली कमाई पर राज्य की बड़ी आबादी गुजारा करती है। इसलिये सरकार के लिये इस यात्रा को जल्दी से जल्दी शुरू करना बहुत ज़रूरी था ताकि टूटे और हताश हो चुके लोगों का हौसला बंधे।
 

दूसरा कारण राजनीतिक था। उत्तराखंड आपदा के बाद हरीश रावत राज्य के मुख्यमंत्री बने। पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की आपदा के वक्त हालात को संभालने में नाकामी के लिये बड़ी आलोचना हुई थी। यात्रा का सीजन करीब आ रहा था और नये मुख्यमंत्री हरीश रावत के सामने ये दिखाने की चुनौती थी कि उनकी सरकार ये काम करके दिखा सकती है। उसी वक्त लोकसभा चुनावों के लिये बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी देश भर में धुंआंधार प्रचार अभियान में लगे थे। रावत पर ऐसे हाल में कुछ कर दिखाने का दबाव बढ़ गया था।

इन परिस्थितियों में केदारनाथ के पुनर्निर्माण का काम शुरू हुआ। लेकिन 12 हज़ार फीट की ऊंचाई में ये कठिन काम कैसे होता क्योंकि ज़मीनी रास्ता तो पूरी तरह तबाह हो गया था। इतनी ऊंचाई में रात के वक्त तापमान शून्य से नीचे चला जाता। नया रास्ता बनाना पहाड़ को खिसकाने जितना कठिन काम था। ऐसे कठिन हाल में केदारनाथ को फिर से बसाने की ज़िम्मेदारी उत्तरकाशी स्थित नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (एनआईएम) के लोगों को दी गई। एनआईएम के स्वयंसेवी लड़के ही आपदा के वक्त सबसे पहले मदद करने के लिये आगे आने वाले लोगों में शामिल थे।
 

एनआईएम ने 11 मार्च 2014 में आधिकारिक रूप से जिम्मा अपने हाथ में लिया। रामबाड़ा और उससे ऊपर का निर्माण कार्य एनआईएम ने अपने हाथों में लिया। रामबाड़ा से नीचे का काम सरकारी एजेंसियों ने किया। एनआईएम के डायरेक्टर कर्नल अजय कोठियाल ने अपने 300 सबसे मेहनती और कुशल लोगों की टीम बनाई जिसने इस काम का बीड़ा उठाया।
केदारनाथ जाने वाले रास्ते में बाईं ओर पहाड़ पर बना रास्ता पूरी तरह तबाह हो गया था। इसलिये एनआईएम के लोगों ने तबाह हो चुके रामबाड़ा में मंदाकिनी नदी के ऊपर एक पुल बनाया और पहाड़ के दूसरी ओर (दाईं तरफ) नये सिरे से रास्ता बनाना शुरू किया।
 
लेंचोली – रामबाड़ा के बरबाद होने के बाद बना नया यात्री पड़ाव
 
जेसीबी मशीन, ट्रैक्टर और ऑल टैरेन वाहन ( किसी भी तरह की सतह पर चलने वाला वाहन) सबकी ज़रूरत थी। मशीनों और भारी भरकम सामान को ढोना कतई आसान नहीं था। इसलिये एनआईएम ने अप्रैल से अगस्त के बीच 8 छोटे बड़े पुल बनाये। इसी साल जुलाई में तीन हफ्तों से कम समय में दो कैंटीलीवर पुल नदी पर बनाये गये।

कई दिक्कतें सामने आईं। जाड़ों में केदारनाथ में बर्फ का स्तर 12 से 14 फुट तक ऊपर उठ जाता। हड्डियों को जमा देने वाली ठंड काम करना बेहद मुश्किल बना देती। गाड़ियों के इंजन में डीज़ल जम जाता और टैंक के नीचे जूट के बोरों में आग लगाकर उसे पिघलाना पड़ता।

ऐसे हाल में काम की रफ्तार बढ़ाने के लिये बड़ी और शक्तिशाली मशीनें चाहिये थी। छोटे हेलीकॉप्टरों से ये काम संभव नहीं था। एक बड़ा विशाल हेलीकॉप्टर चाहिये था जो भारतीय वायुसेना का सबसे बड़ा मालवाहक कैरियर है लेकिन केदारनाथ में इस विशालकाय हेलीकॉप्टर को उतारना बेहद कठिन काम था।  

लेकिन 6 जनवरी 2015 को इतिहास रचा गया जब भारतीय वायुसेना का सबसे बड़ा मालवाहक जहाज MI-26 एक विशेष रूप से तैयार किये गये हेलीपैड पर केदारनाथ में उतरा। ये हेलीपैड 450 फीट लंबा और 150 फीट चौड़ा था। अगले 12 दिनों में MI-26 ने 16 फेरे लगाये और 125 टन भार के बराबर मशीनें यहां पहुंचाईं।
 
 भारतीय वायुसेना का सबसे बड़ा मालवाहक विमान MI-26  जनवरी, 2015 को केदारनाथ में उतरा

आज केदारनाथ धाम जाने वाले 20 किलोमीटर लंबे रास्ते की शक्लो-सूरत ऐसी ही कोशिशों की वजह से बदल गई है। पुराने गायब हुये तो कई नये यात्री पड़ाव बन गये हैं। इनमें सबसे चर्चित पड़ाव बना है लेंचोली – केदारनाथ से बस 6 किलोमीटर पहले।

केदारनाथ में इस नवनिर्माण के साथ कुछ चिंताएं भी जुड़ी हैं। खासतौर से नदियों पर बने नये विशालकाय घाट जिन्हें पर्यावरण के जानकार गलत बता रहे हैं। उनका कहना है कि आने वाले दिनों में इस संवेदनशील इलाके में भारी भरकम निर्माण बरबादी कर सकता है।

[हृदयेश जोशी एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर हैं। वह केदारनाथ त्रासदी के बाद वहां पहुंचने वाले पहले पत्रकारों में थे। आपदा के तीन साल बाद उनकी नई किताब ‘रेज ऑफ द रिवर, द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ द केदारनाथ डिज़ास्टर’हाल में ही पेंग्विन इंडिया ने प्रकाशित की है]

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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