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This Article is From Sep 20, 2016

#युद्धकेविरुद्ध : जो युद्ध आ रहा है...वो पहला नहीं होगा....

Anurag Dwary
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 25, 2016 14:30 pm IST
    • Published On सितंबर 20, 2016 00:25 am IST
    • Last Updated On सितंबर 25, 2016 14:30 pm IST
जो युद्ध आ रहा है
वो पहला नहीं होगा. और भी थे
जो इसके पहले आए थे.
जब पिछला वाला खत्म हुआ
तब विजेता थे और विजित थे.
विजितों में आम लोग भी थे
भुखमरे. विजेताओं में भी
आम लोग भुखमरी का शिकार हुए.


ब्रेख्त को याद करते हुए ... लगा ...
अजीब सा युद्धोन्माद है ... चलो पाकिस्तान को खत्म कर दें... मार डालें...
कोई 56 इंच पर सवाल उठा रहा है, कार्टून बन रहे हैं... कहीं वीर रस की कविताएं हैं
दुनिया के दो सबसे गरीब मुल्कों में रोटी-रोजगार नहीं, रोज बम-बंदूकों की बात होगी... लेकिन बातें नहीं होंगी, क्यों हों... किससे करोगे...
आपके नथुने फूल रहे होंगे... गाली देने का दिल कर रहा होगा... आप वो हैं जो इस देश में हर टैक्स वक्त से भरते हैं, एक रुपये की रसीदी टिकट लगाकर कभी देश को धोखा नहीं देते, सड़क पर सफाई रखते हैं, मां-बहनों को पूरा सम्मान देते हैं...
आपकी देशभक्ति पर कोई सवाल नहीं, आप भ्रष्टाचार नहीं करते... आपको सलाम...
पाकिस्तान को, मुसलमान को गाली देने में आप सबसे आगे रहते हैं, आपको सलाम

फिर ब्रेख्त को ही याद करूंगा

जब नेता शान्ति की बात करते हैं
तो जनता समझ जाती है
कि युद्ध आ रहा है.
जब नेता युद्ध को कोसते हैं
लामबंदी का आदेश पहले ही लिखा जा चुका होता है.
जो शीर्ष पर बैठे हैं कहते हैं : शान्ति और युद्ध
अलग पदार्थों से बने हैं.
पर उनकी शांति और उनके युद्ध
वैसे ही हैं जैसे आंधी और तूफान.
युद्ध उनकी शान्ति से ही उपजता है
जैसे बेटा अपनी मां से
उसकी शक्ल
अपनी मां की डरावनी शक्ल से मिलती है.
उनको युद्ध मार देता है
हर उस चीज को जिसे उनकी शांति ने
छोड़ दिया था.


चलो-चलो सबको मार डालें, भूखे नंगों पर परमाणु बम गिरा दें... और क्या...
पर जरा सोचो, लेकिन जरा ठंडे दिमाग से सोचना ब्रिगेड का हेडक्वॉर्टर था वह भी उरी में, पहली लेयर में पुलिस, दूसरी में बीएसएफ, तीसरी में सेना ... फिर भी 4-17 को शहीद कर गए ...
क्या इसे मुकम्मल तैयारी कहेंगे...
बार-बार 75, करगिल की याद, भाई युद्ध इतिहास में नहीं वर्तमान में लड़े जाते हैं...

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अब हबीब जालिब याद आ गए, लिखा तो उन्होंने जनरल जिया के लिए था ...

ये फसाना है पासबानों का, चाक-चौबंद नौजवानों का ...
सरहदों की ना पासबानी की... हमसे ही दाद ली जवानी की


किससे लड़ोगे, किसे मारोगे ...
हिन्दुस्तान सोचना दाना मांझी को, पाकिस्तान सोचना 20 साल के लड़के को जो लाख रुपये में सरहद पार चला आता है... मरने के लिए... न-न बरगलाना मत उसे गाजी या शहीद नहीं बनना था... सिर्फ परिवार का पेट भरना था...
सोचना ब्रेख्त को सोचते हुए सोचना... युद्ध क्या करता है...
देखना झांककर... हिरोशिमा-नागासाकी को.... सिहर जाना... आने वाली सदियां पूछेंगी... संगीनों से, अपने सायों से

सेनाधीश, तुम्हारा टैंक एक शक्तिशाली वाहन है
यह जंगलों को कुचल देता है और सैकड़ों लोगों को भी.
पर उसमें एक खोट है:
उसे एक चालक की जरूरत होती है.
सेनाधीश, तुम्हारा बमवर्षी बहुत ताकतवर है,
यह तूफान से भी तेज उड़ता है और एक हाथी से ज्यादा वजन ले जा सकता है.
पर उसमें एक खोट है:
उसे एक मेकैनिक की जरूरत होती है.
सेनाधीश, आदमी बड़े काम की चीज है.
वो उड़ सकता है और मार सकता है.
पर उसमें एक खोट है:
वो सोच सकता है.


(अनुराग द्वारा एनडीटीवी में एसोसिएट एडिटर हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।


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