भले सीबीआई के इतिहास में एक निदेशक आलोक वर्मा और अतिरिक्त निदेशक राकेश अस्थाना के बीच जारी वर्चस्व की लड़ाई में पूरे देश के नेता और पुलिस अधिकारी हर दिन के घटनाक्रम पर नज़र लगाए बैठे हैं लेकिन बिहार में ये एक मुद्दा बनता जा रहा है. इसका कारण है इस विवाद के केंद्र में सीबीआई अधिकारी राकेश अस्थाना हैं. चारा घोटाले के दौरान अस्थाना का कार्यकाल था. अभी भी ये मामला अंतिम परिणीति तक नहीं पहुंचा है. इसके अलावा लालू परिवार के लिए नई परेशानी का कारण आईआरसीटीसी मामला बना हुआ है.
फिलहाल अस्थाना जितने विवाद में फंसेंगे, वर्तमान में रांची के अस्पताल में न्यायिक हिरासत में इलाज करा रहे राजद अध्यक्ष लालू यादव और उनके परिवार के लिए यह उतनी ही राहत की खबर होगी. लालू जो चारा घोटाले के चार मामलों में अब तक दोषी करार दिए जा चुके हैं, उन्होंने जनता में हमेशा यही बचाव किया है कि उन्हें फंसाया गया. यह भी सच है कि अस्थाना और जावेद अहमद जैसे एसपी अगर उस समय के सीबीआई के संयुक्त निदेशक उपेन विश्वास के नहीं साथ होते तो लालू यादव के ख़िलाफ़ इतना मज़बूत मामला नहीं होता. उस समय लालू यादव को समर्थन था और उनकी पार्टी की सरकार थी.
इसलिए इस मामले के मीडिया में प्रकाश में आने के बाद राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने बिना किसी देरी के आक्रामक होते हुए कहा कि छीछालेदार हो रही है सीबीआई की. शिवानंद के अनुसार अस्थाना बदनाम पुलिस पदाधिकारी रहे हैं. गुजरात में नरेंद्र मोदी की कृपा से बराबर इनको मलाईदार पोस्टिंग मिलती रही है. गोधरा में 2002 में ट्रेन के डब्बे में जो आग लगी थी उसकी जांच के लिए गठित विशेष टीम के अस्थाना भी सदस्य थे. उस टीम ने 2002 के गुजरात दंगे में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को दोषी नहीं माना था. मोदी ही इनको सीबीआई में लाए. अस्थाना को स्पेशल डायरेक्टर बनाने के लिए पहले वाले बदलकर सरकार ने गृह मंत्रालय में भेज दिया था. सीबीआई की बदनामी कम नहीं हो रही है. चारा घोटाले में भी अस्थाना के पैसा कमाने की चर्चा हुई थी. उस समय यूएन विश्वास और अस्थाना सहित अन्य पदाधिकारियों का उन लोगों से नियमित संपर्क था जो लालू को चारा घोटाले के जरिए राजनीतिक रूप से समाप्त करना चाहते थे. सीबीआई क्या-क्या फरेब करती है यह सब अब सामने आ रहा है.
हालांकि इस पूरे मामले का एक पहलू यह भी है कि कुछ महीने पहले सर्वोच्च न्यायालय में वर्तमान सीबीआई निदेशक के ख़िलाफ़ एक मामला दर्ज हुआ था जिसके याचिकाकर्ता बंकटेश शर्मा के बारे में आलोक वर्मा ने लिखित दिया था कि ये अस्थाना के करीब हैं. बिहार के सत्तारूढ़ गठबंधन के कुछ लोगों के इशारे पर उनके ख़िलाफ़ मामला दर्ज कराया गया है. हालांकि शर्मा भाजपा के टिकट ओर विधान परिषद का चुनाव लड़े और हारे भी. लेकिन माना जाता है कि अगर अस्थाना कमज़ोर हुए तो सीबीआई में उनके विरोधी अधिकारी सृजन और अन्य घोटाले की जांच के बहाने राज्य सरकार की मुश्किल बढ़ा सकते हैं.
मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...
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This Article is From Oct 23, 2018
सीबीआई में चल रही उठापटक पर बिहार के नेताओं की निगाहें क्यों टिकीं?
Manish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:अक्टूबर 23, 2018 20:21 pm IST
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Published On अक्टूबर 23, 2018 20:21 pm IST
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Last Updated On अक्टूबर 23, 2018 20:21 pm IST
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