ख़बरों के ज़रिए पाठक और किसी संस्थान के साथ क्या खेल होता है, इसे समझने के लिए आपको पिछले कुछ महीनों में BSNL और MTNL पर छपी ख़बरों को पढ़ना चाहिए. किस तरह दोनों संस्थानों के कर्मचारी झांसे में आते हैं. कायदे से सरकार सीधे कह सकती थी कि हम इन दो कंपनियों को बंद कर रहे हैं लेकिन चुनाव के कारण प्रस्तावों के ज़रिए सपने दिखाने लगी. साथ में केक पर पुलवामा हमले का जवाब भी टॉप अप के रूप में था. सो इन दो कंपनियों की ख़ुशी से झूम उठी. बाकी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को लगा कि उनके साथ भी कुछ नहीं होगा.
11 अप्रैल 2019 के बिजनेस स्टैंडर्ड में ख़बर छपती है कि टेलिकॉम मंत्रालय ने बीएसएनल को 4 जी स्पेक्ट्रम देने का प्रस्ताव बनाया है. उम्मीद पैदा हो गई.
हुआ क्या? 5 सितंबर 2019 को इकोनॉमिक टाइम्स को दिए इंटरव्यू में बीएसएनल के चेयरमैन कहते हैं कि सरकार के सभी स्तरों से बातचीत कर ऐसा लगता है कि वे बीएसएनएल की चिन्ताओं को समझते हैं. चेयरमैन 4जी को लेकर पूछे गए सवाल का जवाब देते हैं. अप्रैल से सितंबर आ गया और सरकार अभी तक चिन्ताएं ही समझ रही है. ज़ाहिर है अप्रैल में चुनाव था.
BSNL में 1 लाख 65 हज़ार कर्मचारी काम करते हैं. अगस्त की सैलरी लेट से आई. अब इनमें से 70 से 80 हज़ार को रिटायर कराया जाएगा. चेयरमैन ने इंटरव्यू में कहा है कि अब काम आउटसोर्सिंग और कांट्रेक्ट से होंगे. यह भी उम्मीद वाला बयान है. काम ही नहीं होगा तो आउटसोर्स क्या होगा.
जुलाई 2019 में टाइम्स ऑफ इंडिया सहित कई अख़बारों में ख़बरें छपती है कि सरकार बीएसएनल और एमटीएनल को बचाने के लिए 74,000 करोड़ के पैकेज लाएगी.
5 सितंबर 2019 को इकोनॉमिक्स टाइम्स में बीएसएनल के चेयरमैन का इंटरव्यू छपता है. वे बताते हैं कि ज़मीन किराये या लीज़ पर देकर राजस्व जुटाया जा रहा है. बीएसएनल के टावरों को किराये पर देने की योजना है.
सितंबर के आख़िरी हफ्ते में फाइनेंशियल एक्सप्रेस सहित कई अख़बारों में ख़बरें छपती हैं कि वित्त मंत्रालय ने BSNL और MTNL को बचाने के लिए 74000 करोड़ के पैकेज का प्रस्ताव ठुकरा दिया है. इनमें से 30-40 हज़ार करोड़ रियाटरमेंट पर ख़र्च होने वाले थे और बाकी से 4जी आता. अभी तक 4जी नहीं दिया गया है. अब तो बाज़ार में 5जी आने वाला है. ज़ाहिर है BSNL और MTNL को हवा में लटका कर रखा जाएगा और एक दिन बंद कर दिया जाएगा. तब इन संस्थानों के पौने दो लाख कर्मचारी गोदी मीडिया पर पाकिस्तान को लेकर डिबेट देख सकते हैं. वहां से उम्मीदें पाल सकते हैं कि कुछ तो हो रहा है.
सवाल सिम्पल है. जो सरकार 1 लाख करोड़ जुटाने के लिए दूसरी कंपनियां बेच रही है, वह BSNL और MTNL को बचाने के लिए 74,000 करोड़ का पैकेज क्यों देगी? BSNL को 4जी न देने से किन प्राइवेट कंपनियों को फायदा हुआ, इस पर बहस करने से लाभ नहीं. जब बहस करने का वक्त था, इसके कर्मचारी कुछ और कर रहे थे.
BPCL, SCI, CONCOR, NEEPCO, THDC जैसी सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों को ह्यूस्टन की रैली देखकर लग रहा होगा कि भारत का नाम हो रहा होगा. उन्होंने यह ख़बर ही नहीं पढ़ी होगी कि मोदी और ट्रंप के बीच जो बातचीत हुई है उसका नतीजा क्या रहा. उसी तरह उन्हें पता नहीं है कि उनका भविष्य क्या होगा. सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में काम करने के हालात बेहतर थे, इसलिए लोग प्राइवेट नौकरी छोड़ कर यहां काम करने आते थे. अब यहां से उन्हें भगाने के लिए नए नए नाम वाले दरवाज़े खोले जाएंगे जिन्हें कभी वीआरएस तो कभी पैकेज तो कभी प्लान कहा जाएगा.
आज के अखबारों में ख़बर है कि सरकार अपना वित्तीय घाटा पूरा करने के लिए पांच कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेच कर 60,000 करोड़ जुटाने जा रही है. BPCL, SCI, CONCOR, NEEPCO, THDC की हिस्सेदारी बेची जाएगी. सरकार को विनिवेश के ज़रिए एक लाख करोड़ चाहिए. बिजनेस स्टैंडर्ड लिखता है कि हो सकता है कि सरकार सभी पांच कंपनियों को प्राइवेट हाथों में न बेचे. वो सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के हाथों भी बेच सकती है. इससे होगा यह कि बेचने का आरोप नहीं लगेगा और कर्मचारी चलता कर दिए जाएंगे. फिर अगले चरण में प्राइवेट कंपनियों को भी बेचा जा सकता है. किसने रोका है.
सरकार का ख़ज़ाना ख़ाली है. इस वित्त वर्ष में लक्ष्य था कि टैक्स वसूली में 17.4 प्रतिशत की वृद्धि होगी. लेकिन 5-6 प्रतिशत की ही हो रही है. जीएसटी से भी शानदार वसूली नहीं हो रही है.
तो अब क्या होगा? कुछ नहीं होगा. सरकार जो करना चाहेगी उसे कोई नहीं रोक सकेगा. सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी मीडिया के पास जाएंगे. मीडिया कवर नहीं करेगा. जबकि वे खुद इतने दिनों से गोदी मीडिया के ग्राहक बने रहे हैं जिस पर लोगों की आवाज़ आती ही नहीं है. तो अब उस मीडिया से उम्मीद करना खुद को धोखा देना होगा जैसे वो ख़ुद को हिन्दू मुस्लिम डिबेट देखते हुए धोखा दे रहे थे. जिस विपक्ष पर थूकने लगे थे उस विपक्ष को गाली देंगे कि विपक्ष भी चुप है. जब वो बोलता है तो हंसने का या थूकने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं.
उन्हें जुलूस निकालने की हिम्मत नहीं होगी. निकालेंगे भी तो दो तीन दिनों में थक जाएंगे. मज़दूर संघ भी जानते हैं. इसलिए जनवरी 2020 में हड़ताल की बात कर रहे हैं. तब तक सरकार सारा विनिवेश कर चुकी होगी.
इन ख़बरों को पढ़ कर चिन्ता न करें. हिन्दू मुस्लिम डिबेट के सुनहरे पलों को याद करें और रिलैक्स रहें. अब काफी देर हो चुकी है. सबसे अच्छी बात होगी कि वे सरकार के इन फैसलों का स्वागत करें. तनाव कम होगा. उन्हें अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं करना चाहिए. न तो किसी मीडिया के पास जाना चाहिए और न ही किसी विपक्ष को याद करना चाहिए. वैसे ही चुप रहें जैसे सभी चिन्मयानंद के मामले में चुप हैं. प्रज्ञा ठाकुर पर चुप हैं. गांधी की हत्या को सही ठहराने वाले बयानों पर चुप हैं.
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