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This Article is From Jul 07, 2015

प्रियदर्शन की बात पते की : ख़तरों से घिरी ख़बरें

Priyadarshan
  • Blogs,
  • Updated:
    जुलाई 07, 2015 01:21 am IST
    • Published On जुलाई 07, 2015 01:17 am IST
    • Last Updated On जुलाई 07, 2015 01:21 am IST
मध्य प्रदेश के एक मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की हंसी देखें तो उनकी सारी सफ़ाइयों के बावजूद यह समझ में आता है कि पत्रकार अक्षय सिंह की मौत भी उन्हें विचलित नहीं कर पाई। लेकिन यह एक आदमी की नहीं, उस व्यवस्था की, उस विचारधारा की गड़बड़ी है जो ऐसा आदमी बनाती है। जो विचलित होते हैं वे हल्के से दुख से भी विचलित हो जाते हैं। जो नहीं होते, वे दो हज़ार मौतों से भी नहीं होते।

इसलिए एक तरह से यह कैलाश विजयवर्गीय या उनके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से हमारी अपेक्षा की ही गड़बड़ी है। हम क्यों उम्मीद करें कि जो लोग अपने राज्य के एक विराट घोटाले पर विचलित नहीं हैं, जिन पर ऐसे घोटाले से जुड़े लोगों को प्रश्रय देने का बहुत ठोस संदेह है, जिनपर आरोप लगाने वाले मारे जा रहे हैं, वे एक पत्रकार की मौत से विचलित होंगे। सच तो यह है कि शायद उसकी मौत से पत्रकारिता का संसार भी विचलित नहीं है।

ये हमारे समय में सबकी मोटी होती चमड़ी का कमाल है कि कोई भी दर्द ऐसा नहीं चुभता कि हम सब कुछ भूल जाएं। सब कुछ जैसे एक कारोबार से संचालित है। सबकुछ इस समझ से निकला है कि यह एक पेशा है जिसमें बाकी चीज़ों की तरह ख़बर भी एक धंधे का हिस्सा है।

लेकिन ख़बरों की दुनिया ख़तरों की दुनिया है, यह बात तब समझ में आती है, जब कोई नादान या जुनूनी पत्रकार आपसी हितों के अनकहे समझौते को तोड़कर कुछ ऐसा खोजने निकलता है जिसमें व्यवस्था की चूलें हिलती दिखें। ऐसे किसी मोड़ पर ज़्यादातर वह अकेला होता है, निरीह होता है और कभी-कभी किसी संदिग्ध मौत का शिकार भी हो जाता है। फिर कुछ लोग उसका गुणगान करते हैं, कुछ लोग उससे दूरी बरतते हैं और कुछ लोग चुपचाप सावधान हो जाते हैं- कि उस गली से नहीं गुज़रना है, जहां से वो गुज़रा है।

लेकिन कोई जादू होता है, कोई करिश्मा होता है, कुछ और नादान लोग निकल आते हैं जो इस पूरी समझदारी के भीतर की वह दरार खोज लेते हैं जहां से ख़बरों को दबाना नामुमकिन होता है। लोकतंत्र की ये न दिखने वाली आवाज़ें हमारी असली ताकत हैं- सारे पतन के बावजूद पत्रकारिता का वह गौरव, जिससे हंसने वाले डरते हैं, उसे मारना चाहते हैं लेकिन अंतत: अपनी ही गर्दन पर कस रहे फंदे को कुछ और मज़बूत कर डालते हैं।

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