हाल के दिनों में छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग का दंतेवाड़ा जिला राष्ट्रीयस्तर पर एक और बार सुर्खियों में रहा. महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर भारत के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में गिने जाने वाले इस आदिवासी जिले के एक पोलियोग्रस्त बालक में क्रिकेट को लेकर ललक देखकर हैरान थे. दिव्यांग बालक मड्डाराम के वीडियो को शेयर करते हुए सचिन ने लिखा – '2020 की शुरुआत इस प्रेरणादायक वीडियो से कीजिए.'
कभी नक्सल हिंसा ग्रस्त रहा दंतेवाड़ा जिला भी मड्डाराम की तरह अपने हौसले से उपलब्धियां हासिल कर रहा है. उपलब्धियां यह कि जिले में नक्सल घटनाओं में भारी कमी आई है. कुपोषण का स्तर लगातर कम हो रहा है. यहां की महिलाएं सेनेटरी नैपकिन उत्पादन जैसे अपारंपरिक उद्यम से हजारों की तादाद में जुड़ रही हैं. जैविक उत्पादों के मामले में दंतेवाड़ा एक ब्रांड बन चुका है.
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते हैं- “यदि हमने हाथों को हल नहीं दिए तो वे बंदूक थाम लेंगे. नक्सलवाद के खात्मे का यही एकमात्र उपाय है' वे कहते हैं- कुपोषण और मलेरिया जैसी समस्याओं का जड़ से खात्मा करना पहली जरूरत है, क्योंकि ये नक्सलवाद से भी ज्यादा खतरनाक हैं. सीएम बघेल की इसी सोच को दंतेवाड़ा में परिणामों के रूप में परिणित होते देखा जा सकता है.
यह महज संयोग नहीं है कि सीएम बघेल छत्तीसगढ़ के लिए अपनी हर महत्वपूर्ण योजनाओं की शुरुआत दंतेवाड़ा जिले से करते हैं. छत्तीसगढ़ को कुपोषण से मुक्त करने के अभियान की शुरुआत वहीं से हुई, बस्तर संभाग को मलेरिया से मुक्त करने की मुहिम का आगाज भी वहीं से हुआ और अब छत्तीसगढ़ के पिछड़े क्षेत्रों को गरीबी के दंश से मुक्त करने के लिए इसी जिले को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चुना गया है. दंतेवाड़ा में – पूना दंतेवाड़ा माड़ाकाल- अभियान की शुरुआत हो चुकी है. “पूना दंतेवाड़ा माड़ाकाल” स्थानीय गोंडी भाषा का वाक्य है, जिसका अर्थ है- “नया दंतेवाड़ा गढ़ेंगे”.
दंतेवाड़ा जिले में गरीबी का प्रतिशत 70 है, जो कि राष्ट्रीय औसत 22 प्रतिशत से बहुत ज्यादा है. छत्तीसगढ़ शासन ने इस जिले को देश के अति पिछड़े जिलों की श्रेणी से मुक्त करते हुए विकसित जिले की श्रेणी में ला खड़ा करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. नयी कार्ययोजना में वनोपजों की सही कीमत और पर्याप्त आय दिलाना उच्च प्राथमिकता में है. इस वर्ष सरकार ने 22 लघु वनोपजों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने का निर्णय लिया है. खरीदी की ठोस व्यवस्था होने से अब 30 करोड़ रुपए के वनोपज की उचित दर प्राप्त होगी.
बालूद ग्राम पंचायत में 100 करोड़ रुपए की लागत से वनोपज प्रसंस्करण हब की स्थापना की जा रही है. इस पूरी योजना से 5000 परिवारों को प्रति परिवार 25 हजार रुपए की सालाना आय प्राप्त होने की संभावना है.
जिले में 9 हजार 534 लोगों को वन अधिकार पट्टा प्राप्त है. यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि इन लोगों की भूमि का विकास करके मसाला, कोसा, मुनगा, कॉफी और वनौषधियों का उत्पादन किया जाए. इन प्रयासों से प्रति परिवार 30 हजार रुपए की सालाना आमदनी होने की उम्मीद है.
बांस के विदोहन और प्रसंस्करण से 28 गांवों के लगभग 1500 परिवारों के लिए 30 से 35 हजार रुपए की सालाना आमदनी सुनिश्चित की जा रही है. जैव विविधता पंजी के निर्माण के लिए 143 ग्राम पंचायतों के 10वीं पास युवक-युवतियों को प्रशिक्षण देकर 6 हजार 500 रुपए प्रति माह प्रदान करने की व्यवस्था की जा रही है. सब्जी और फलोत्पादन से 387 किसान परिवारों को 40 हजार रुपए की सालाना आमदनी प्राप्त हो रही है. स्व सहायता समूहों की महिलाएं अमचूर और आचार का निर्माण कर आय प्राप्त कर रही हैं. 50 परिवार दो डेयरी यूनिटों के माध्यम से 30 हजार रुपए की सालाना आय प्राप्त कर रहे हैं. 4 और यूनिटें प्रक्रियाधीन है. जिले की 2002 स्व सहायता समूहों में लगभग 20 हजार 857 महिलाएं कार्यरत हैं. इनमें से 262 स्व सहायता समूह सुपोषण अभियान के तहत कुपोषित महिलाओं और बच्चों के लिए गर्म भोजन की व्यवस्था करती हैं. 8 महिला स्व सहायता समूहों द्वारा सेनेटरी नैपकीन का उत्पादन कर अब तक 11 लाख 93 हजार रुपए की आमदनी प्राप्त की जा चुकी है.
...लंबी फेहरिस्त है. यह उपलब्धियों की शुरुआत भर है, क्योंकि नया दंतेवाड़ा गढ़ने का काम अभी-अभी तो शुरु हुआ है. काम कितने जोर-शोर से हो रहा है उसके लिए सुपोषण अभियान का यह आंकड़ा देखना चाहिए- मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान प्रारंभ होने के बाद जनवरी 2020 में जून 2019 के वजन के आधार पर जिले में कुपोषण में 4.52 प्रतिशत की कमी आई है.
मड्डाराम की तरह दंतेवाड़ा भी अपने जज्बे के साथ अपने सुघर भविष्य को गढ़ने के लिए उठकर खड़ा हो चुका है. हौसलों के पांवों पर दौड़ रहा है, रन बना रहा है.
(तारन प्रकाश सिन्हा, छत्तीसगढ़ सवर्ग के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं. वर्तमान में आयुक्त जनसंपर्क छत्तीसगढ़ हैं.)
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