मुंबई आतंकी हमले के कथित मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा को आखिरकार भारत लाया गया. एक लंबी यात्रा के बाद राणा को एक विशेष विमान से अमेरिका के शिकागो से दिल्ली लाया गया. दिल्ली एयरपोर्ट पर ही उसे गिरफ्तार किया गया, फिर उसकी मेडिकल जांच की गई. इस सब में करीब तीन घंटे का वक्त लगा. राणा को शाम साढ़े छह बजे दिल्ली लाया गया, मगर उसे पटियाला कोर्ट में दस बज कर सत्ताइस मिनट पर पेश किया गया. कवरेज के लिए मैं भी पटियाला हाउस कोर्ट में था, क्योंकि हमारे सभी सहयोगी सुबह से ही इस कवरेज पर लगे हुए थे. ऑफिस में इस बात की चर्चा हो रही थी कि किसे भेजा जाए तो मैंने कहा कि मैं ही चला जाता हूं.
🔴#BREAKING : पटियाला हाउस कोर्ट पहुंचा तहव्वुर राणा#TahawwurRana | @BabaManoranjan pic.twitter.com/GKNkrxS8dc
— NDTV India (@ndtvindia) April 10, 2025
आतंकी हमले की 50 घंटे की कवरेज की याद हुई ताजा
मेरे मन में यह था कि चूंकि मैंने मुंबई पर हुए आतंकी हमले की लगातार 50 घंटे तक कवरेज की थी तो अब जब तहव्वुर राणा को अदालत में पेश किया जा रहा है तो मुझे वहां होना चाहिए. मैं जब पटियाला हाउस कोर्ट पहुंचा और वहां सभी संवाददाताओं को देख रहा था तो मुझे सीनियर सिटीजन होने का अहसास हुआ. मगर मैं भी मन में ठान चुका था कि आज इन सब को दिखाता हूं कि अनुभव क्या होता है और किसी घटना की रिर्पोटिंग कैसे की जाती है.
एयरपोर्ट से कोर्ट और एनआईए मुख्यालय तक टीम तैयार
मेरे पास वक्त काफी था क्योंकि राणा के तुरंत आने की कोई सूचना नहीं थी. दिल्ली एयरपोर्ट के टेक्निकल एरिया में हमारे दो सहयोगी मुकेश और पल्लव मौजूद थे. पल्लव को तहव्वुर के काफिले का पीछा करना था. जैसे ही उसका काफिला निकलता हमें तुरंत खबर आ जाती.

मैं शाम के सात बजे पटियाला हाउस पहुंच गया था. दिल्ली का मौसम भी तब तक हमारा साथ दे रहा था. मौसम बदल गया था दिल्ली में कही-कही बारिश की बूदें भी पड़ी थी और हवा से गरमी की लहर गायब हो गई थी. आप कह सकते हैं कि मौसम थोड़ा-थोड़ा सुहाना लग रहा था.
करने को कुछ था नहीं तो मैं वहां जान-पहचान के चेहरे को ढूढ़ने लगा. उसी दौरान कुछ वो पुलिसकर्मी दिखे जो हमारे सिटी रिपोर्टिंग के दौरान भी होते थे, कुछ की ड्यूटी संसद भवन के आस-पास भी होती थी, उन सब से भी दुआ सलाम हुई. सबसे मिल कर अच्छा लगा.
रात चढ़ती गई और रिपोर्टरों की बेचैनी भी बढ़ती गई
धीरे-धीरे रात होने लगी और उसके साथ ही पटियाला हाउस के बाहर खड़े रिपोर्टरों में भी बेचैनी बढ़ने लगी. सब यही पता करने में लगे थे कि आखिर कैसे तहव्वुर राणा को यहां लाया जाएगा. कुछ ने कहा इतना हाई प्रोफाइल केस है कही वीडियो कॉफ्रेसिंग से ही पेशी तो नहीं हो जाएगी.
क्योंकि अक्सर काफी संवेदनशील मुकदमों में ऐसा होता आया है मगर कुछ का कहना था कि नहीं आज महावीर जयंती की छुट्टी है कोर्ट परिसर एकदम खाली है जज साहब और वकील लोग भी आ चुके हैं पेशी तो यहीं होगी, हां बंद कमरे में सुनवाई होगी क्योंकि किसी को भी पटियाला हाउस के अंदर जाने की अनुमति नहीं थी.
तहव्वुर के आने का इंतजार बढ़ता ही गया
किसी भी रिपोर्टर को अंदर जाने नहीं दिया गया. तहव्वुर के आने का इंतजार लंबा होता जा रहा था, दस बजने को आए उसका कोई अता-पता नहीं था. मगर तभी मुकेश और पल्लव ने बताया कि राणा का काफिला निकल चुका है और भले ही दिल्ली पुलिस ने इसे ग्रीन कोरिडोर नहीं दिया है मगर इस काफिला के लिए सिग्नल हरी रखी जाएगी.

यानि एयरपोर्ट से पटियाला हाउस आने में इस काफिले को 20 मिनट तक लगेंगे. राणा का काफिला धौला कुआं, मदर टेरेसा क्रेसेंट, अकबर रोड होते हुए इंडिया गेट का थोड़ा सा चक्कर काट कर पटियाला हाउस पहुंचना था. हुआ भी यही जैसे ही राणा का काफिला इंडिया गेट पर पहुंचा पुलिस ने बेरिकेडिंग करनी शुरू कर दी.
ट्रैफिक सामान्य की तरह चल रहा था. किसी को रोका नहीं गया. एक पुलिसकर्मी ने धीरे से मुझे इशारे में बता दिया कि अब राणा का काफिला पहुंचने ही वाला है. मैं इसी पल के इंतजार में था मैंने अपने कैमरा सहयोगी को कहा कि मेरे पीछे भागो.
रिपोर्टर की चीख और कैमरे में कैद वो तस्वीर
वो भी मेरे पीछे दौड़ पड़ा. मैं चिल्ला रहा था कि कि आइए आपको दिखाते हैं तहव्वुर राणा का काफिला और चंद पलों में पूरा मंजर मेरे कैमरे में कैद था. मेरी चीख शायद इतने घंटों के इंतजार के कारण भी हो सकती है या फिर दिल में अभी भी एक रिपोर्टर जिंदा है जो खबर को लेकर बहुत ही जुनूनी है, भावुक है, उत्साही है और उस पल को जीना चाहता है.. दफ्तर वालों ने बाद में बताया कि एनडीटीवी पर वो तस्वीर सबसे पहले चली..टेलीविजन में यही मायने रखता है.
एक लाइन के लिए घंटों का इंतजार
तहव्वुर राणा को पटियाला कोर्ट के अंदर ले जाया गया और फिर शुरू हुआ एक और लंबा इंतजार करीब चार घंटे के बाद खबर आई कि एनआईए को राणा की 18 दिनों की रिमांड मिल गई है. मगर इस एक लाइन के खबर के लिए रिर्पोटर को घंटों इंतजार करना पड़ता है, स्पॉट पर रहना पड़ता है टेलीविजन रिर्पोटिंग का यही नियम है.

अहमदाबाद से लौटे और फिर रिपोर्टिंग में जुटे
खाने के लिए मूलचंद से पराठे भी मंगवा लिए थे. जो हम सबने मिल बांट कर खाया. अंत तक मैं और हमारे एक और सहयोगी प्रशांत डटे थे. प्रशांत अहमदाबाद से दिल्ली लौटे थे. कांग्रेस का अधिवेशन कवर करके और सीधे राणा के कवरेज में जुट गए थे.
18 घंटे लगातार काम, फिर भी सुकून
बाकी सहयोगी जो सुबह से लगे थे, करीब 18 घंटे काम करके जा चुके थे. मैं पटियाला हाउस पर था और प्रशांत एनआईए के दफ्तर पर और हम तब तक डटे रहे. जब तक कि तहव्वुर राणा को एनआईए के दफ्तर तक नहीं ले जाया गया. और जब 3 बजे रात को मैं वापस घर लौट रहा था तो मुझे एक सुकून सा महसूस हो रहा था.
अब न्याय कितना लंबा खींचता है
एक मुक्ति का भी अहसास था क्योंकि मैंने 26 नवंबर 2008 की उस घटना को भी कवर किया था जब मुंबई के साथ साथ पूरा देश दहला था. मैं लौटते वक्त सोच रहा था कि उस आतंकी हिंसा में जान गंवाने वाले लोगों के परिवार वालों को अब शायद उम्मीद बधेंगी कि अब उनको न्याय मिलेगा. देखना है यह न्याय कितना लंबा खींचता है.
मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.