महाराष्ट्र के सीएम और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने दो दिन पहले एक वीडियो संबोधन में पार्टी सांसदों और अन्य सदस्यों से कहा, 'शिवसेना नींद में भी असदुद्दीन ओवैसी नीत AIMIM से गठबंधन नहीं करेगी. ' ओवैसी की पार्टी पर 'वार' करते हुए उन्होंने कहा, 'हर कोई जानता है कि AIMIM, बीजेपी की 'बी टीम' है और बीजेपी ने हिंदुत्व को लेकर शिवसेना को बदनाम करने की साजिश रची है. '
ठाकरे ने सार्वजनिक रूप से जो कड़ी फटकार लगाई है उसका आशय यह साफ कर देना था कि वे बीजेपी को उन्हें हिंदुत्व पर कुछ नरम रुख़ अपनाने वाले नेता के रूप में पेश नहीं करने देंगे. बीजेपी को विभिन्न चुनावों में जो अतिरिक्त जीत मिली हैं उसमें कुछ हद तक इसके हिंदू एजेंडे का योगदान है. इसीलिए वह किसी भी प्रतिद्वंद्वी दक्षिणपंथी पार्टी को ऐसे प्रस्तुत करना चाहती है कि वह अपने रास्ते से भटक गई है. लेकिन 60 वर्षीय ठाकरे को यह बिलकुल स्वीकार नहीं है.
ओवैसी और बीजेपी के साथ अघोषित संपर्क के बारे में उनके आरोप सभी विपक्षी पार्टियों में प्रचलित हैं. ओवैसी जिनके पास दो लोकसभा सीटें हैं, बीजेपी के दूसरे डिवीजन के 'टैग' से अपने को बचा नहीं पा रहे. सर्वसम्मति से विपक्ष मानता है कि उन्हें मुस्लिम निर्वाचन क्षेत्रों के लिए 'वोट कटर' के रूप में तैनात किया गया है. चूंकि वह किसी के साथ गठबंधन नहीं करते, मुस्लिम वोटों के हिस्से को 'हजम' कर जाते है जिससे बीजेपी को बड़ा फायदा होता है. हाल में उत्तर प्रदेश चुनाव में उन्होंने 100 उम्मीदवार खड़े किए (राज्य में 403 विधानसभा सीटें हैं), इससे समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और कांग्रेस की प्रियंका गांधी की ओर से उन्हें वोट कटर का संबोधन मिला.

चुनाव आयोग के अनुसार, यूपी के चुनाव में AIMIM को 0.43% वोट शेयर मिला, ओवैसी कोई सीट नहीं जीत सके. ओवैसी के लिए यूपी में यह पहला कदम नहीं जिनका जनाधार मुख्य रूप से अपने गृह राज्य तेलंगाना में है. राज्य के पिछले चुनाव में उन्होंने 38 प्रत्याशी उन क्षेत्रों में उतारे थे जहां मुस्लिमों की अच्छी आबादी है, इसमें से 37 की जमानत जब्त हो गई थी.
हालांकि महाराष्ट्र में, वर्ष 2019 में उनके दो विधायक जीते थे, जो कि इस छोटी रीजनल पार्टी की बड़ी उपलब्धि थी. सूत्रों ने बताया कि औरंगाबाद से AIMIM सांसद इम्तियाज जलील ने महाराष्ट्र में एनसीपी कोटे से स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे को यह ऑफर दिया था. टोपे ने अपनी बीमार मां को देखने के लिए बुलाया था. ओवैसी की ओर से मंजूरी मिलने के बाद जलील ने MVA सरकार के साथ गठबंधन की पेशकश की थी.इसने महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल मचा दी. शिवसेना सांसद संजय राउत ने ANI से कहा, 10 दिन पहले, यूपी चुनावों में बीजेपी की मदद के लिए ओवैसी, भारत रत्न के हकदार थे. राउत ने जलील की पेशकश के बाद किसी भी तरह के गठबंधन को खारिज कर दिया. जहां ठाकरे एंड कंपनी की ओर से ओवैसी का 'अपमान' किया जा रहा है, सेना का मुख्य निशाना बीजेपी और खासतौर पर पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय मंत्री नारायण राणे हैं. राणे पहले शिवसेना और फिर कांग्रेस में भी रह चुके हैं.

ओवैसी की अहमियत बढ़ी है क्योंकि बृहन्नमुंबई म्युनिसिपल कार्पोरेशन के चुनाव होने वाले हैं. बीएमसी, देश का सबसे अमीर नगरीय निकाय है और इसका बजट करीब 40 हजार करोड़ रुपये है. सेना पिछले दो दशक से बीएमसी पर काबिज है, 2017 में इसने लगातार पांचवां कार्यकाल हासिल किया था.नवंबर 2019 में जब से ठाकरे ने बीजेपी के साथ 'युति' तोड़ी है और कांग्रेस और शरद पवार के साथ गठबंधन से जुड़े हैं, बीजेपी बदला लेने की फिराक में है. इसलिए सरकार बनाने में शामिल तीन पाटियों के शीर्ष मंत्रियों या नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामले दर्ज किए गए. कई के खिलाफ छापेमारी की गई. शरद पवार की पार्टी के नवाब मलिक और अनिल देशमुख तो मनी लांड्रिंग के आरोपों के तहत जेल में हैं. पवार के रिश्तेदारों के खिलाफ इसी तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं. विपक्षी नेताओं ने लगातार कहा है कि यह बीजेपी का गुस्सा है, जिसे खुली छूट दी जा रही है. ठाकरे ने तो बीजेपी की तुलना उस सांप से की है जिसे शिवसेना ने दूध पिलाया था. एक लंबे गठबंधन के संदर्भ में यह बात कही गई जिसे बाद में उन्होंने खत्म कर दिया.
विडंबना यह है कि महाराष्ट्र के सत्ताधारी गठबंधन (MVA)और बीजेपी के बीच की यह बड़ी लड़ाई, गठबंधन को एक साथ रखने वाली 'गोंद' का काम कर रही है. MVA के वरिष्ठ नेताओं ने मुझे बताया कि उन्हें उम्मीद थी कि यूपी में जीत के बाद बीजेपी, एमवीए सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलेगी और ओवैसी की ओर से 'जहरभरा ऑफर' ब्लॉक से पहला कदम था. उन्होंने कहा,, 'वे प्रस्ताव और धमकियां देने के लिए बहुत कुछ करेंगे लेकिन पवार साहब और उद्धव साहब, दोनों ही बीजेपी के असली मकसद से वाफिक हैं. अमित शाह के लिए ओवैसी, महज मुखौटा हैं.'
शिवसेना, फडणवीस और उनकी ओर से सरकार पर रोज के दबावों का मजाक बनाते हुए इसे ऐसे एक शख्स के कदम बताती है जो फिर से मुख्यमंत्री बनने की जल्दबाजी में है. सूत्र बताते हैं कि ठाकरे फिर कभी बीजेपी के साथ गठबंधन पर विचार नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें विश्वास है कि वे उनकी पार्टी में 'शामिल' होना चाहते हैं. इस तथ्य को नजरंदाज न करें कि ठाकरे कम महत्वपूर्ण लेकिन संवेदनशील नेता है जिन्होंने मोदी और शाह की बीजेपी द्वारा अपमानित महसूस किया है.
ऐसे में बीजेपी vs शिवसेना के बीच 10 गुना संघर्ष की उम्मीद करना अनुचित नहीं होगा. दोनों पक्ष इसके लिए तैयार हैं.
(स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.