मनी लॉन्ड्रिंग केस में नाम आने के बाद एनसीपी के मुखिया शरद पवार (79) ने करामात दिखाते हुए बीजेपी को मात दे दी है. पवार जो कि जो राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं जिन्होंने अनुभव और संपर्कों के दम पर खुद को मजबूत किया है.
अपने गृह राज्य महाराष्ट्र जहां चुनाव होने जा रहे हैं, पवार को चार दिन पहले ही प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी का नोटिस मिला. पवार को जो राज्य में बीजेपी के प्रमुख विरोधी नेताओं में से एक हैं. पवार को मिले नोटिस के खिलाफ एनसीपी के कार्यकर्ता मुंबई की सड़कों पर उतर आए. ( ट्विटर नहीं जिसे आजकल विपक्ष प्रदर्शन करने के लिए चुनता है)
इससे घबराए ईडी के अधिकारियों ने शरद पवार को एक ईमेल भेजा और कहा कि उसे उनसे मिलने की कोई जल्दबाजी नहीं है. लेकिन इसका पवार पर कोई असर नहीं पड़ा और उन्होंने कहा कि वह एजेंसी का सहयोग करना चाहते हैं और शुक्रवार को दोपहर के बाद ईडी के ऑफिस पहुंच जाएंगे. इसके बाद मुंबई पुलिस कमिश्नर के लॉ एंड ऑर्डर के नाम पर की गई सार्वजनिक अपील को देखते हुए पवार ने शालीनतापूर्वक ईडी ऑफिस जाने का कार्यक्रम कैंसिल कर दिया. हालांकि इस बीच बीजेपी की शिवसेना शरद पवार के समर्थन में आ गई है और ईडी के नोटिस के 'बदले की राजनीति' करार दे डाला. सेना ने कहा 'ईडी के नोटिस ने एक विपक्ष को महाराष्ट्र चुनाव से पहले एक बार फिर से संजीवनी दे दी है'
और कल शाम तक जो स्कोर था वह कुछ ऐसे था, पवार-1 और बीजेपी-0. अब तक पवार जिनको पीएम मोदी ने एक बार 'राजनीतिक गुरु' तक कहा था, उभरने सकें बीजेपी उन पलटवार कर देती थी.
शरद पवार के भतीजे और एनसीपी में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले अजीत पवार का नाम भी ईडी के केस में है. अजीत पवार ने विधायक के पद से इस्तीफा दे दिया है और इसके बाद से उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है. पांच बार विधायक रहे अजीत पवार ने अपने चाचा शरद पवार से भी बात करने से इनकार कर दिया है. ऐसा लग रहा है कि पवार परिवार में झगड़ाव बीजेपी के चलते अब खुले तौर पर सामने आ गया है. शरद पवार ने एक बहुत ही डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की और कहा कि उनके भतीजे और महाराष्ट्र के पूर्व उप मुख्यमंत्री ने अपने चाचा के खिलाफ बदले की राजनीति को दिल से ले लिया है इसलिए उन्होंने राजनीति को छोड़कर अब पुराने बिजनेस और खेती की ओर लौटने का फैसला किया है.
लेकिन ओर जहां शरद पवार एकता दिखाने की कोशिश कर रहे थे तो दूसरी ओर से अजीत पवार के बेटे पार्थ पवार ने ही उनकी इस बात का खंडन करते हुए रहा कि उनके पिता राजनीति नहीं छोड़ रहे हैं. पार्थ ने पूरे मामले में एक मोड़ देते हुए कहा कि उनके पिता उनको राजनीति में आने से पहले अगाह किया था कि यह एक 'गंदा धंधा' है.
'पवार बनाम पवार' के झगड़े बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता आगे बढ़ा रहे हैं जिनके संपर्क में इस समय अजीत पवार हैं. दरअसल वास्तविकता यह है कि पवार के भतीजे ने पार्टी में जारी उत्तराधिकार की लड़ाई को दिल से ले लिया है.
सूत्रों का कहना है कि चाचा और भतीजे के बीच पिछले 6 महीसे कोई बातचीत नहीं हुई है. अजीत पवार इसलिए भी नाराज हैं कि एनसीपी की ओर से शरद पवार को निष्कलंक नेता के तौर पर दिखाने की कोशिश कर रही है और उनको नाम गलत तरीके से ईडी के केस में डाला गया है जबकि उनके लिए ऐसा कोई अभियान नहीं चलाया जा रहा है.
एक ओर जहां शरद पवार गुरुवार एनसीपी के कोर ग्रुप के नेताओं से घिरे थे और खुद कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन की निगरानी कर रहे थे तो दूसरी ओर अजीत पवार की गैर-मौजूदगी सबका ध्यान खींच रही थी. इसके साथ ही शरद पवार ने कांग्रेस सहित विपक्ष के कई नेताओं से बात की. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने उनके समर्थन में ट्वीट भी किया. पवार ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से भी बात की. लेकिन इस पूरी कवायद में विपक्ष की नेताओं की ओर से अजीत पवार का नाम तक नहीं लिया गया.
शरद पवार ने सार्वजनिक रूप से कहा कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा. इससे पहले अजीत पवार ही शरद पवार के उत्तराधिकारी थे. लेकिन अजीत पवार के कई बेतुके बयानों ने उनके चाचा को नाराज कर दिया. इस दौरान शरद पवार की पुत्री सुप्रिया सुले राजनीति में अपना कद बढ़ाती रहीं. सार्वजनिक तौर परिवार में एकता की दिखाने की कोशिश होती रही लेकिन अंदर ही अंदर मतभेद गहरे हो रहे थे. शरद पवार के पोते रोहित पवार की राजनीति में प्रवेश ने अजीत पवार को एक बार फिर अपसेट कर दिया. शिवसेना के मुखपत्र सामना में भी रोहित पवार की ओर से अमित शाह पर किए गए हमले की तारीफ की गई.
जैसा कि महाराष्ट्र में चुनाव नजदीक हैं, राजनीति ने शुरू में ही पारिवारिक पेशे का रूप ले लिया है. एक ओर जहां शिवसेना ने बीजेपी के साथ इस शर्त पर गठबंधन किया है कि उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे को उप मुख्यमंत्री (सबसे पहले मैंने इस रिपोर्ट को एनडीटीवी को दिया था) बनाया जाएगा. हालांकि बीजेपी हमेशा की तरह पहले ही इसको लेकर चौकन्नी थी. शरद पवार की जैसी ही वापसी के संकेत मिले, अजीत पवार का इस्तीफा का तय हो गया था.
जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रहे शरद पवार पर अब सब कुछ निर्भर हो गया है. वह हमेशा डींगे हांकते थे कि उन्होंने खुद कोई चुनाव नहीं हारा है और यह पारिवारिक लड़ाई बहुत ही व्यक्तिगत है.ॉ
स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...
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