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This Article is From Sep 30, 2020

हाथरस त्रासदी: योगी के खिलाफ सिर्फ सपना देखने वाले विपक्षी

Swati Chaturvedi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 30, 2020 19:41 pm IST
    • Published On सितंबर 30, 2020 17:59 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 30, 2020 19:41 pm IST

हाथरस की दलित किशोरी के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था. उसकी जीभ काट दी गई थी, रीढ़ की हड़्डी भी तोड़ दी गई थी. उसे लकवा मार गया था.

उसकी जिंदगी की डोर टूट चुकी थी, लेकिन वह यहीं खत्म नहीं हुआ. उसके परिवार को उसके दाह संस्कार में भी शामिल होने की अनुमति नहीं दी गई. एक दर्दनाक और गंभीर घटनाक्रम के तहत पुलिसकर्मियों ने उसके घर की बैरिकेडिंग कर दी फिर वहीं से उसकी अंत्येष्टि के लिए आगे बढ़े.

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इस विचित्र हमले और मौत ने जातीय संघर्ष में नई कड़ी जोड़ दी है. मामले में चारों आरोपी ऊंची जाति के हैं. इस मामले में पुलिस की निष्क्रियता यह संकेत देती है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शासनकाल में 'ठाकुर राज' बेलगाम है. फिर भी कोई भी राजनीतिक दल अब तक कोई पर्याप्त और मजबूत स्टैंड लेती नहीं दिख रही है, शायद उन्हें एक खास समूह के मतदाताओं के नाराज होने का खतरा हो सकता है.

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अगर आपको लगता है कि इस सामूहिक बलात्कार और उसके परिणामस्वरूप, मायावती (उत्तर प्रदेश की पहली महिला दलित मुख्यमंत्री) अपने राजनीतिक सुसुप्तावस्था को समाप्त कर देंगी, तो आप गलत हैं. मायावती और उनके पूर्व सहयोगी रहे अखिलेश यादव ने अपनी नाराजगी और घटना की निंदा सिर्फ सोशल मीडिया पर ट्वीट कर दिखाई है. कितने बहुजन और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), जो उनके समर्थक और वोट बैंक हैं, सोशल मीडिया पर ऐक्टिव हैं?

मायावती और अखिलेश यादव क्यों मौन हैं? इसलिए कि मोदी सरकार और इन दोनों के बीच एक मौन सहमति है कि कोई भी बीजेपी के खिलाफ कोई सियासी चाल नहीं चलेगा. हाल ही में विवादास्पद किसान बिल संसद से हंगामें के बीच ध्वनिमत से पारित हुआ लेकिन न तो मायावती और न ही अखिलेश यादव ने उसका कोई खास विरोध किया. जब कभी कोई नेता राजनीतिक विरोध में केंद्र के खिलाफ आवाज उठाता है, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति/भ्रष्टाचार के मामलों की जांच शुरू कर देती है. सीबीआई मोदी सरकार की सबसे विश्वसनीय सहयोगी है.

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योगी आदित्यनाथ के लिए ये दोनों क्षेत्रीय दिग्गज सपनों के विपक्षी साबित हो रहे हैं.

तीसरी विपक्षी पार्टी कांग्रेस है, जो प्रियंका गांधी वाड्रा- जिन्होंने यूपी के महासचिव के रूप में एक शानदार राजनीतिक शुरुआत की है- के नेतृत्व में खुद को यूपी के अखाड़े में उतार रही है. वह अगड़ी और दलित जातियों का गठजोड़ (यह कभी कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक हुआ करता था जो अब बीजेपी और दूसरी पार्टियों की पिछलग्गू हो चुकी है) बनाने के काम में जुटी हुई हैं.

गांधी अभी भी लखनऊ में बिना आधार वाली एक हेलीकॉप्टर राजनेता हैं, वो खुद और कांग्रेस दावा करती रही है कि ये बदलाव होगा लेकिन अभी तक ऐसा होता नहीं दिख रहा है. कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद यूपी में योगी के 'ठाकुर राज' के खिलाफ ब्राह्मणों को लुभाने की फिराक में लगे हुए हैं. प्रसाद ने इसी मकसद से 2017 में ब्राह्मण चेतना परिषद लॉन्च किया था और बस्ती, प्रतापगढ़, अमेठी और प्रयागराज में योगी राज में मारे गए ब्राह्मणों के घरों का दौरा कर चुके हैं.

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कांग्रेस ने पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के रहनेवाले राजेश मिश्रा को भी अपनी नई चुनाव समिति में जगह दी है. इनसे पहले यूपी के एकमात्र नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय कमलापति त्रिपाठी को ही कांग्रेस इस अहम कमेटी में शामिल कर सकी थी. सियासतदां कहते हैं कि मिश्रा की नियुक्ति राज्य के पूर्वी हिस्से के ब्राह्मणों को लुभाने की कोशिश में सीधा संदेश है.

यूपी में 10 फीसदी के आसपास ब्राह्मण वोट बैंक है जो एक दर्जन से ज्यादा लोकसभा सीटों और 50 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर अपना प्रभाव रखता है.

मायावती ने भी अपने पूर्वावतार में ब्राह्मण-दलित (जाटव) गठजोड़ का एक सतरंगी सियासी इंद्रधनुष बनाया था, ताकि सत्ता पा सकें और 2007 में वो कामयाब भी हुई थीं.

साल 2014 में बीजेपी ने इस सियासी गठजोड़ की हवा निकाल दी और सवर्ण समुदाय की सभी जातियों का वोट अपने हिस्से में कर लिया. इसके अलावा कई ओबीसी जातियों और गैर जाटव दलित जातियों का भी वोट खींचकर राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से 64 पर 2019 में भी कब्जा कर लिया. मायावती और अखिलेश के गठबंधन को मात्र 15 सीटें ही मिल सकीं.

विपक्ष जिस चीज को उजागर करने में विफल हो रहा है, वह यह है कि योगी के नेतृत्व में जातिगत हिंसा में थोक वृद्धि हुई है, इनके पीछे लोग ठाकुरों को जिम्मेदार ठहराते हैं.

हाथरस केस में यूपी पुलिस को एक एफआईआर लिखने में 10 दिन लग गए. यह उन्नाव बलात्कार मामले जैसा ही है, जिसमें जून 2017 में एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था. ढाई साल बाद भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिसंबर 2019 में बलात्कार का दोषी ठहराया गया था. सेंगर को पीड़िता के पिता की हत्या का भी दोषी पाया गया था.

यूपी के अमेठी से सांसद और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी चुप हैं. दिल्ली में हाथरस गैंगरेप कांड के विरोध में हुए कांग्रेस के विरोध-प्रदर्शन में भी न तो किसी गांधी ने हिस्सा लिया और न ही उनकी पार्टी का कोई बड़ा नेता शामिल हुआ.

इसलिए उत्तर प्रदेश के मतदाताओं के पास बहुत कम विकल्प बचे हैं- यह पूरी तरह से विपक्ष के पास है.

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...

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