राहुल गांधी के लिए क्या दक्षिण भारत ही बन चुका है नई सिद्धि का केंद्र?

किसी भी राजनीतिक दल की तरह, कांग्रेस में भी इस बात को लेकर चौकसी बरती जाती रही है कि पार्टी पदाधिकारियों के बीच एक क्षेत्रीय या जातिय असंतुलन न हो, लेकिन मौजूदा दौर में पार्टी पदाधिकारियों की लिस्ट में दक्षिण के नेताओं का भारी जुटान है, यह उत्तर भारत के कुछ नेताओं को परेशान कर रहा है.

राहुल गांधी के लिए क्या दक्षिण भारत ही बन चुका है नई सिद्धि का केंद्र?

क्या कांग्रेस ने राहुल गांधी के नेतृत्व में दक्षिण भारत में कांग्रेस को प्रथम पार्टी के रूप में पुनर्स्थापित करने और अपनी पूरी राजनीतिक पूंजी निवेश करने के लिए उत्तर भारत को छोड़ दिया है? मैं तर्क दूंगी कि ऐसा ही है.

देश भर में अपनी पदचाप रखने और 20 प्रतिशत वोट शेयर रखने वाली देश की सबसे पुरानी पार्टी, कांग्रेस एकमात्र अखिल भारतीय राष्ट्रीय विपक्षी पार्टी है, जो नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में फल-फूल रही भाजपा का जोरदार मुकाबला कर सकती है. आप निम्न तथ्यों पर गौर कीजिए:

  • कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक से हैं.
  • पार्टी में अपना प्रभाव रखने वाले राहुल गांधी केरल के वायनाड से सांसद हैं.
  • वर्तमान में राहुल गांधी पर सबसे अधिक प्रभावकारी पार्टी अधिकारी, के सी वेणुगोपाल, केरल से हैं.
  • पार्टी अध्यक्ष का चुनाव हारने वाले उम्मीदवार शशि थरूर तिरुवनंतपुरम से सांसद के रूप में अपना तीसरा कार्यकाल पूरा कर रहे हैं.
  • राहुल गांधी, अपने राजनीतिक ब्रांडिंग के लिए इन दिनों नए आविष्कार के रूप में शुरू किए गए 'भारत जोड़ो यात्रा' पर हैं. इसका वॉकथॉन केरल से शुरू हुआ, राज्य में लंबा समय बिताया और वर्तमान में वह कर्नाटक में है. राहुल गांधी चुनावी राज्यों गुजरात और हिमाचल प्रदेश से बड़ी सावधानी से बच रहे हैं.
  • अगर खड़गे अपने नए पद (कांग्रेस अध्यक्ष) के साथ राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में भी बने रहते हैं, तो संसद के दोनों सदनों में कांग्रेस के नेता उत्तर भारत से नहीं होंगे. लोकसभा में कांग्रेस के नेता सदन अधीर रंजन चौधरी पश्चिम बंगाल से हैं. 
  • इसके अलावा सभी महत्वपूर्ण संचार विभाग के प्रभारी नवनियुक्त महासचिव जयराम रमेश कर्नाटक से हैं.

इस कॉलम के लिए मैंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और तमिलनाडु से आने वाले पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम से बात की. उन्होंने दो बातें बताईं: पदयात्रा दक्षिणी राज्यों में 50-55 दिन बिताएगी. बाकी, 100 दिनों की यात्रा में बचा समय उत्तरी राज्यों में बीतेगा. मैंने उनसे पूछा कि क्या कांग्रेस पार्टी ने दक्षिणी राज्यों में ध्यान केंद्रित करने के लिए कमोबेश उत्तर से ध्यान हटा लिया है. चिदंबरम ने इस पर स्पष्ट रूप से असहमति जताई और कहा कि पार्टी के कुछ ही पदाधिकारी दक्षिण से आते हैं.

मौजूदा समय में कांग्रेस की सरकारें सिर्फ दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही सीमित है. इनके अलावा बिहार और झारखंड की सरकार में कांग्रेस साझीदार है. उत्तर भारत में पार्टी पूरी तरह से सिमट चुकी है. 80 लोकसभा सांसदों का चुनाव करने वाले सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य में इसके वोट शेयर घटकर दो प्रतिशत तक रह गए हैं. इसी साल मार्च में हुए यूपी चुनाव में, जिसे प्रियंका गांधी ने लीड किया था, कांग्रेस का सफाया हो गया. 2019 के आम चुनाव में राहुल गांधी भी पारिवारिक गढ़ अमेठी से चुनाव हार गए और वर्तमान में, कांग्रेस के पास यूपी से सिर्फ एक सांसद रायबरेली से सोनिया गांधी हैं. पिछली बार 2009 के आम चुनावों में कांग्रेस का यूपी में अच्छा खासा दबदबा था, जब पार्टी ने 80 में से 21 सीटों पर जीत हासिल की थी. उसके बाद वहां के मतदाताओं ने गांधी परिवार को ठुकरा दिया. राहुल और प्रियंका गांधी ने भी अलग-अलग क्षेत्रीय दलों के साथ  गठबंधन करके और बिना गठबंधन के भी किस्मत आजमाई, लेकिन निराशा ही हाथ लगी.

किसी भी राजनीतिक दल की तरह, कांग्रेस में भी इस बात को लेकर चौकसी बरती जाती रही है कि पार्टी पदाधिकारियों के बीच एक क्षेत्रीय या जातिय असंतुलन न हो, लेकिन मौजूदा दौर में पार्टी पदाधिकारियों की लिस्ट में  दक्षिण के नेताओं का भारी जुटान है, यह उत्तर भारत के कुछ नेताओं को परेशान कर रहा है. (पार्टी में इन पदों की लालसा रखने वालों की लंबी लिस्ट है, जो फिलहाल इससे वंचित हैं.) कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "सोनिया गांधी के समय, यहां तक ​​कि राजीव गांधी के कार्यकाल में भी कभी ऐसा नहीं हुआ." उन्होंने कहा, "वे प्रतिस्पर्धी क्षेत्रों और जातियों को संतुलित करने में बेहद सावधान थे. अगर राहुल और प्रियंका को यह नहीं पता है, तो उनके प्रबंधकों को उन्हें यह संदेश देना चाहिए कि आप उत्तर में मतदाताओं को यह संदेश भेज रहे हैं कि आपके संगठन में उनका प्रतिनिधित्व करने वाला कोई नहीं है और आप उनके हितों या उनके हितों  और महत्वपूर्ण वोट की विशेष रूप से परवाह नहीं करते हैं. खड़गे को अब उत्तर भारत से एक नेता को लोकसभा में विपक्ष का नेता बनने देना चाहिए." पार्टी में चल रही चर्चा के मुताबिक, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को, संतुलन बनाने की कवायद में ऐसा ही पद दिया जा सकता है. वह राज्यसभा के सांसद हैं. 

ऐसा लगता है कि उत्तर भारत में, विशेषकर उत्तर प्रदेश में भाजपा के अति-प्रभुत्व ने ही कांग्रेस को दक्षिण में अपनी नब्ज टटोलने की कोशिश करने के लिए उकसाया है लेकिन यह उलटा असर कर सकता है. यूपी में 80, महाराष्ट्र में 48 और बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं. कांग्रेस ने महाराष्ट्र और बिहार में खुद को जूनियर पार्टनर बना लिया है. जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, यूपी से फिलहाल कांग्रेस समाप्त हो चुकी है. तमिलनाडु में, कांग्रेस के पास कुल 39 सीटों में से सिर्फ 8 सीटें हैं, जो इसे मुख्यमंत्री एम के स्टालिन का कनिष्ठ सहयोगी बनाती है. पी चिदंबरम ने कहा कि एम के स्टालिन के साथ पार्टी के समीकरण अच्छे और सौहार्दपूर्ण हैं और वह 2024 में भी कांग्रेस के साथ गठबंधन करेंगे.

लेकिन क्या आप केंद्र में जूनियर पार्टनर के रूप में काम कर सकते हैं? कांग्रेस को इसका जवाब तलाशने की जरूरत है. पार्टी आम आदमी पार्टी (आप) पर उन राज्यों में वोट शेयर बढ़ाने का आरोप लगाती रही है, जहां उसका सीधा मुकाबला बीजेपी से है, लेकिन यह कांग्रेस की खुद की गिरती साख है, जिसने उसे सभी सहयोगी क्षेत्रीय दलों के लिए उसे एक जूनियर पार्टनर बना दिया है. गुजरात और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में, जहां जल्द ही मतदान होनेवाले हैं, वहां पार्टी भाजपा से लड़ने की कोशिश भी करती नहीं दिख रही है. आम आदमी पार्टी (AAP) कांग्रेस की इसी अनुपस्थिति से बने शून्य में कदम रख रही है.

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...

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