मेट्रो विहार, नाम से तो यह इलाका रईस लगता है, लेकिन हकीकत में यह मज़दूरों का इलाका है. इस इलाके की किस्मत वे मजदूर बनाने की कोशिश रह रहे हैं जो अपनी किस्मत नहीं बना पाए. लाखों की संख्या में मजदूर मेट्रो विहार की झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं. शनिवार की सुबह मेट्रो विहार में ऐसी ही हलचल थी जैसे रोज़ होती है. सुबह-सुबह लोग हाथ में झोला लेकर फैक्टरी की ओर निकल पड़े थे.
जब एक साथ,एक दूसरे से बात करते हुए हज़ार हज़ार संख्या में मजदूर काम पर निकलते हैं तब ऐसा लगता है जैसे यही असली भारत है,यही ही देश चलाते है.
कई मज़दूरों को मैंने रोकने की कोशिश की. बात करना चाहा लेकिन ऐसे बहुत कम थे जो रुके क्योंकि उन्हें समय पर फैक्टरी पहुंचना था, काम करना था. यह सोच सिर्फ एक मजदूर की ही हो सकती है, जो हमेशा अपने मालिक की भलाई सोचता है. लेकिन बहुत मजदूर ऐसे ही मिल गए जो फैक्टरी नहीं जा रहे थे. कुछ लोगों की फैक्टरी नोटबंदी की वजह से बंद हो गई है तो कुछेक की शनिवार होने की वजह से बंद थी.
जैसे ही इन मजदूरों को पता चला कि हम मीडिया से हैं तो चारों तरफ से घेर लिया. अपनी समस्या बताने लगे. ऐसे भी आजकल अपने आस-पास ज्यादा लोग देखने के बाद डर लगने लगा है. पता नहीं कौन कहां से आ जाए धमका के चला जाए. जेजे कॉलोनी में रहने वाले एक ऑटो ड्राइवर ने बताया कि जब से यह कॉलोनी बनी है तब से यह पहली बार हुआ है जब कोई मीडिया वाला यहां आया हो. हो सकता है यह सच हो या फिर यह ऑटो वाला हमारा दिल जीतने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन जो भी हो आजकल मीडिया वालों के पास मजदूरों के लिए समय कहां है.
मज़दूरों की भीड़ से कुछ महिलाओं की आवाज़ सुनाई दी. कुछ महिला अपनी समस्या लेकर हमारे पास पहुंच गईं. एक महिला ने बताया कि 10 दिन से फैक्टरी बंद है जहां वे काम करती हैं. मालिक ने छुट्टी दी दी है. बताने लगी काम पर नहीं जाएंगे तो खाएंगे क्या. परिवार कैसे चलाएंगे. एक महिला चिल्लाते हुए बोली कि मालिक पुराना नोट बदलने के लिए बैंक जाने के लिए बोलता है. फिर एक और महिला भाग-भागकर पास आई, बताने लगी कि उसकी बेटी के किडनी में इन्फेक्शन है, दवाई के लिए घूम रही है, लेकिन पुराना नोट होने की वजह से कोई दवाई नहीं दे रहा है.
एक आदमी ने बताया कि चार दिन से पुराने एक हज़ार का नोट खुला करने के लिए घूम रहा है लेकिन खुला नहीं हो पाया. सब मजदूरों का यही कहना था कि मालिक पुराना नोट देता है. जब लोग पुराना नोट लेकर दुकानदार के पास जाते हैं तो वह कहता है पूरे पैसे का सामान लो नहीं तो खुला करने के लिए 20 प्रतिसत काट लेता है. यानी कोई हज़ार रुपया का खुला देता है तो 200 रुपया काटकर 800 रुपया देता है.
नोटबंदी के बाद आजकल यह धंधा भी काफी जोर-शोर से चल रहा है. चिक मैट बनाने वाली राजकुमारी ने बताया कि कई सालों से वह मैट बना रही है, लेकिन नोटबंदी की वजह से उसे परेशानी हो रही है. खुला न होने की वजह से लोग मैट नहीं खरीद रहे हैं. यह बताने लगी कि एक हज़ार का पुराना नोट लेकर सब्जी खरीदने गई थी, लेकिन सब्जी वाला ने सब्जी देने से मना कर दिया. कई लोग ऐसे भी मिले जो बोले कि घर में शादी है लेकिन पैसा नहीं है. कुछ लोग सरकार के इस निर्णय की तारीफ करते हुए भी नज़र आए, मोदी मोदी का नारा भी लगाने लगे.
लेकिन, जिस बात पर सबने सरकार की आलोचना की वह है आटा के बढ़ते दाम. सभी का कहना था आटा महंगा हो गया है, जो कुछ लोग नोटबंदी की तारीफ कर रहे थे वे भी आटा की बढ़ी कीमतों को लेकर सरकार की आलोचना कर रहे थे. जितने लोग सामने आए वह नोटबंदी के बाद आटा के बढ़े दाम पर बात कर रहे थे. कुछ लोगों को नोट बंदी से ज्यादा महंगाई और आटा के बढ़े दाम से परेशानी हो रही है. ऐसा लग रहा है कि नोटबंदी के बाद किसी दूसरे मामले पर सरकार चारों तरफ से घिरने जा रही है तो वह है आटा का दाम.
सुशील कुमार महापात्र NDTV इंडिया के चीफ गेस्ट को-ऑर्डिनेटर हैं...
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This Article is From Nov 20, 2016
मेट्रो विहार के इन मज़दूरों को कौन परेशान कर रहा है...
Sushil Kumar Mohapatra
- ब्लॉग,
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Updated:नवंबर 20, 2016 13:08 pm IST
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Published On नवंबर 20, 2016 09:03 am IST
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Last Updated On नवंबर 20, 2016 13:08 pm IST
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