आम आदमी पार्टी अपने उसूलों की वजह से समाज में खड़ी हुई है, लेकिन आज उन उसूलों की असलियत कुछ और दिखाई दे रही है। पिछले कुछ दिनों से आम आदमी पार्टी के अंदर जो कुछ चल रहा है उसके बारे में सोचना, समझना और सही या गलत तय करना भी जरूरी है। अगर यह किसी दूसरी पार्टी के साथ होता शायद लोग ज्यादा परेशान नहीं होते, क्योंकि दूसरी पार्टी के विकल्प के तौर पर आम आदमी पार्टी आई थी।
इस पार्टी का जन्म जंतर-मंतर के उस मंच पर हुआ जहां रोज़ लोग अपने हक़ की लड़ाई लड़ते रहते हैं। सरकार बनने से पहले हर निर्णय इस मंच से लिया जा रहा था। पार्टी बनाना है या नहीं, चुनाव लड़ना है या नहीं, वगैरह वगैरह, लेकिन एक स्थिर सरकार बन जाने के बाद आज इस मंच की मर्यादा आम आदमी पार्टी के लिए कुछ और हो गई है। इसीलिए यह सवाल उठाया जा रहा है।
फिलहाल जिसकी उम्मीद नहीं थी वही हुआ, राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण को पीएसी से बाहर कर दिया गया। लेकिन यह निर्णय अपने पीछे बहुत सवाल छोड़ गया है, जिसका जवाब देना आम आदमी पार्टी के लिए मुश्किल हो जाएगा।
सवाल यह है कि दोनों को पीएसी से क्यों बाहर किया गया है। क्या पार्टी के अंदर सिर्फ योगेन्द्र और प्रशांत की अनुशासनहीनता थी। जितनी भी चिट्ठी लीक हुई है, क्या सिर्फ इसके पीछे इन दोनों का हाथ है, या इन्हें बलि का बकरा बनाया गया। पहले भी योगेन्द्र यादव और मनीष सिसोदिया के बीच अच्छे रिश्ते नहीं थे। दोनों एक-दूसरे को घेर चुके हैं।
चलिए हम यह मान लेते हैं कि योगेन्द्र ने चिट्ठी लीक की और इससे पार्टी को नुकसान पहुंचा, लेकिन आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता जिस ढंग से योगेन्द्र और प्रशांत को घेरने की कोशिश कर रहे थे क्या यह सही था? कोई भी वरिष्ठ प्रवक्ता कह सकता था कि यह पार्टी का मामला है और पार्टी सुलझा लेगी। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। हर चैनल में कोई न कोई प्रवक्ता दोनों को घेरने की कोशिश कर रहे थे।
ऐसा लग रहा था कि योगेन्द्र और प्रशांत किसी दूसरी पार्टी के सदस्य हैं। क्या इससे पार्टी को नुक्सान नहीं पहुंचा? अगर चिट्ठी लीक भी हुई तो क्या गलत हुआ? जो चीज पार्टी के अंदर हो रही है, उसके बारे में आम आदमी को जानने का अधिकार है। क्योंकि यह आम आदमी की पार्टी है। लोगों की मेहनत और चंदे से यह पार्टी खड़ी हुई है।
आज लोगों से क्यों नहीं पूछा गया कि योगेन्द्र या प्रशांत पार्टी में रखना चाहिए या नहीं? अगर प्रशांत ने पहले पार्टी को धमकाने की कोशिश की थी तो उन्हें उसी वक़्त क्यों नहीं निकाला गया। किस चीज का डर था आम आदमी पार्टी को?
आम आदमी पार्टी की तरफ से यह कहा गया कि अगर दोनों को बाहर कर दिया जाएगा तो मीडिया को इसके पुख्ता वजह बता दी जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद कोई बड़ी प्रेस कांफ्रेंस नहीं हुई। सिर्फ एक दो बाइट में लोगों के पास सन्देश पहुंचा दिया गया। यह भी बताया गया कि अगर कोई बैठक के बारे में बाहर बताएगा तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। जो मयंक गांधी कह रहे है। मयंक यह भी कह रहे हैं कि योगेन्द्र और प्रशांत दोनों ने पीएसी से इस्तीफा देने की पेशकश की थी, तो फिर वोटिंग क्यों हुई। क्या सिर्फ उन्हें अपनी औकात दिखाने के लिए ऐसा किया गया।
कहीं यह आम आदमी पार्टी खास आदमी पार्टी तो नहीं बनती जा रही है। कुछ लोगों के फायदे के लिए, कहीं यह पार्टी अपने उसूलों के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रही है। अगर ऐसा है तो होने दीजिये यह जनता है, सब जानती है। अगर ‘आप’ को राजनीति में राज करने का मौका दिया है तो गद्दी से दूर करने में भी ज्यादा समय नहीं लगेगा।