क्या देशी कोचों पर लगा विफलता का धब्बा धो पाएंगे 'जम्बो' अनिल कुंबले...?

क्या देशी कोचों पर लगा विफलता का धब्बा धो पाएंगे 'जम्बो' अनिल कुंबले...?

अनिल कुंबले (फाइल फोटो)

यह पहली बार है, जब टीम इंडिया के कोच को लेकर इतनी चर्चा, इतना विचार-विमर्श देखने-सुनने को मिल रहा है। इससे पहले टीम इंडिया के कोच को लेकर इतनी चर्चा कभी नहीं हुई। इसके पीछे कई वजह हो सकती हैं... कई साल बाद कोई भारतीय टीम इंडिया का कोच बन पाएगा या नहीं, इस पर क्रिकेट प्रेमियों की नज़र थी। कुछ दिनों से बीसीसीआई में पारदर्शिता को लेकर सवाल उठाए जा रहे थे, सो, कोच के चुनाव में पारदर्शिता है या नहीं, यह भी देखना था। और फिर जब अनिल कुंबले और रवि शास्त्री के बीच कोच का चुनाव सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण कर रहे थे, तो यह तो चर्चा का मुद्दा होना ही था... अब अनिल कुंबले कोच के रूप में सफल हो पाएंगे या नहीं, यह तो भविष्य ही बताएगा, लेकिन कुंबले के नाम पर मुहर लगना भारतीय क्रिकेट के लिए शुभ संकेत है।

यूं तो कोच के बिना भी इंडिया ने जीता है वर्ल्डकप 
वर्ष 1983 में टीम इंडिया जब वर्ल्डकप जीती थी, तब कोई कोच नहीं था। उस वक्त पीआर मानसिंह टीम इंडिया के मैनेजर के रूप में साथ गए थे, और बिना कोच के टीम इंडिया ने पहली बार वर्ल्डकप जीतकर पूरी दुनिया को हैरान करते हुए नया इतिहास रचा था। टीम के साथ मैनेजर रखने का सिलसिला कई साल तक चला, लेकिन वर्ष 1992 में अजित वाडेकर की टीम इंडिया के कोच के रूप में नियुक्ति के बाद से कोच का सिलसिला जारी है।

पहले आठ साल में पांच भारतीय खिलाड़ी कोच बने 
वर्ष 1992 से लेकर 2000 टीम इंडिया का कोच भारतीय ही रहा। अजित वाडेकर 1992 से लेकर 1996 तक टीम इंडिया के कोच रहे और उनके बाद संदीप पाटिल को कुछ दिन के लिए कोच बनाया गया। फिर मदन लाल को कोच नियुक्त किया गया। फिर कुछ सालों के लिए अंशुमन गायकवाड़ को भी मौका मिला, और वर्ष 1999 में भारत के महानतम खिलाड़ियों में शुमार किए जाने वाले कपिल देव को कोच पद पर बिठाया गया। आठ साल में पांच बार कोच बदलना कई सवाल भी खड़े करता है, लेकिन इसके पीछे सबसे बड़ी वजह थी भारतीय कोचों की विफलता और बीसीसीआई का दबदबा।

कोच के रूप में विफल हुए कपिल देव 
जब कपिल को कोच बनाया गया था, उम्मीद की जा रही थी कि वह भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा देंगे, और अपने अनुभव से टीम इंडिया की काफी मदद करेंगे, लेकिन कपिल देव फेल हो गए। सचिन तेंदुलकर जैसे कप्तान के साथ भी वह विफल रहे। सचिन ने खुद अपनी किताब में लिखा है कि कोच के रूप में कपिल देव ने उन्हें निराश किया था। सचिन ने लिखा कि ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर कपिल को उन्होंने कभी टीम रणनीति का हिस्सा बनते नहीं देखा था। इसके अलावा भारत के पूर्व खिलाड़ी मनोज प्रभाकर ने कपिल देव पर मैच फिक्सिंग का आरोप भी लगाया, जिसके दवाब में कपिल देव को इस्तीफा देना पड़ा था। हालांकि प्रभाकर द्वारा लगाया गया यह आरोप जांच के बाद गलत साबित हुआ था।

कुछ अच्छे खिलाड़ी कोच बनना ही नहीं चाहते थे 
कोच के रूप में जब कपिल देव विफल हुए, तब बीसीसीआई विदेशी कोचों पर ज्यादा भरोसा करने लगा। 2000 से लेकर 2015 तक टीम इंडिया का कोच विदेशी ही रहा। भारत में अच्छे खिलाड़ी होने की बावजूद उन्हें कोच नहीं बनाया गया और सच यह भी है कि कुछ अच्छे खिलाड़ी टीम इंडिया के कोच बनना ही नहीं चाहते थे। उनमें से कुछ ऐसे खिलाड़ी थे, जो कमेंट्री के द्वारा ज्यादा पैसा कमाना चाहते थे। उन्हें लगता था कि कोचिंग से बेहतर है कमेंट्री करना, जहां काम कम है और कमाई ज्यादा।

क्या कुंबले टीम इंडिया के लिए सही कोच साबित होंगे 
कुंबले अपनी निष्ठा के लिए जाने जाते हैं। कई बार जख़्मी होने के बावजूद वह खिलाड़ी के रूप में टीम इंडिया को जीत दिलाने की भरपूर कोशिश करते नज़र आए हैं। आज तक टीम इंडिया को जितने भी कोच मिले हैं, अनिल कुंबले बेहतरीन नज़र आ रहे हैं। एक खिलाड़ी के रूप में भी कुंबले का रिकॉर्ड काफी अच्छा है। वह अब अपने अनुभव का भरपूर इस्तेमाल कर सकते हैं। सो, अब अगर उनकी किस्मत ने साथ दिया तो वह टीम इंडिया को नई ऊंचाई तक पहुंचा सकते हैं, और देशी कोचों पर लगे विफलता के दाग को धो सकते हैं...

सुशील कुमार महापात्र NDTV इंडिया के चीफ गेस्ट कॉर्डिनेटर हैं...

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