स्मृति ईरानी, कुछ साल पहले तक यह नाम सिर्फ टेलीविज़न सीरियल तक सीमित था... वर्ष 2000 में सैटेलाइट चैनल 'स्टार प्लस' पर शुरू हुए 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' धारावाहिक (यानी सीरियल) में स्मृति ईरानी ने एक आदर्श बहू का किरदार निभाया था... सीरियल में स्मृति ने बेहद शानदार एक्टिंग की थी... यह सीरियल टीवी की दुनिया पर लगभग आठ साल तक राज करता रहा, बेहिसाब टीआरपी बटोरता रहा, और इसी के साथ टेलीविज़न की दुनिया में स्मृति की अलग पहचान बन गई...
शायद उस वक्त तो स्मृति ईरानी ने खुद भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन वह राजनीति में आएंगी, और देश की शिक्षामंत्री बन जाएंगी... लेकिन ऐसा हुआ... स्मृति ईरानी एक एक्टर के रूप में नाम कमा लेने के बाद वर्ष 2003 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं, लेकिन शुरुआती दौर में कुछ ख़ास नहीं कर पाईं... वर्ष 2004 में दिल्ली की चांदनी चौक लोकसभा सीट से वह बीजेपी की उम्मीदवार थीं, लेकिन कांग्रेस के कपिल सिब्बल से हार गईं... वर्ष 2011 में उन्हें राज्यसभा के लिए चुना गया, लेकिन 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें अमेठी सीट पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के सामने खड़ा कर दिया गया, और वह यहां भी हार गईं...
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की शानदार जीत के बाद स्मृति ईरानी के राजनैतिक जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आया, जब चुनाव हार जाने के बावजूद उन्हें मानव संसाधन एवं विकास मंत्री बना दिया गया... इतना बड़ा विभाग स्मृति को दिए जाने के इस निर्णय से कई लोग हैरान थे, लेकिन फिर भी उम्मीद की जा रही थी एक्ट्रेस के रूप में कामयाब रहने वाली स्मृति मंत्री के रूप में भी कामयाब रहेंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, और शुरुआत से ही स्मृति ईरानी विवादों में घिरी रहीं... उन्होंने कई ऐसे निर्णय भी लिए, जिनकी वजह से उनकी घोर आलोचना हुई...
उनकी डिग्री को लेकर कई सवाल उठाए गए, और जेएनयू मामले में भी स्मृति ईरानी की काफी आलोचना हुई... उनके खिलाफ कई धरने दिए गए, और छात्रों से लेकर टीचर तक स्मृति के खिलाफ खड़े नज़र आए... रोहित वेमुला सुसाइड केस में अपने बयान के वजह से स्मृति ईरानी चारों तरफ से घिरी हुई नज़र आईं... बीजेपी के कई दलित नेता भी स्मृति के बयान से खुश नहीं थे... स्मृति ईरानी को लेकर यह सवाल भी उठाया गया कि वह आईआईटी डायरेक्टर की नियुक्ति में हस्तक्षेप कर रही हैं... केंद्रीय विद्यालय में जर्मनी की जगह संस्कृत को तीसरी भाषा के रूप में रखने के प्रस्ताव को लेकर भी उनकी काफी आलोचना हुई थी...
बीजेपी भी स्मृति ईरानी को बचाने की हरमुमकिन कोशिश कर रही थी, लेकिन स्मृति एक के बाद एक विवादों में घिरती जा रही थीं... बीजेपी कई बार बैकफुट पर भी नज़र आई... यह भी कहा जा रहा था कि आरएसएस भी स्मृति ईरानी से खुश नहीं है... अब स्मृति ईरानी को कुछ ऐसा करना था, जिससे वह साबित कर सकें कि वह गलत नहीं हैं, यानी स्मृति को अपनी छवि सुधारनी थी... इसी साल फरवरी में स्मृति ने संसद में काफी भावनात्मक भाषण दिया... करीब 50 मिनट की इस स्पीच में स्मृति अपने आपको बचाती हुई नज़र आ रही थीं... स्मृति की स्पीच के सामने विपक्ष बिल्कुल चुप बैठा नज़र आ रहा था... स्मृति की यह स्पीच इतनी शानदार थी कि कुछ ही घंटों में यूट्यूब पर इसे कई लाख लोग देख चुके थे...
कल जब मंत्रिमंडल विस्तार की बात हो रही थी, किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि स्मृति ईरानी को HRD मिनिस्ट्री से हटा दिया जाएगा... उनके नाम की चर्चा कहीं नहीं थी, और नए HRD मंत्री बने प्रकाश जावड़ेकर की भी चर्चा कहीं नहीं थी, लेकिन जब यह ख़बर आई कि स्मृति को हटाकर HRD मिनिस्ट्री प्रकाश जावड़ेकर को दे दी गई है, तो यह चर्चा का विषय बन गया... चाहे जो भी हो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्मृति ईरानी को हटाकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि जो भी अच्छा काम नहीं करेगा, उसे हटा दिया जायेगा... हो सकता है, बीजेपी आगे चलकर स्मृति ईरानी को कोई बड़ा इनाम दे, जैसे, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें चेहरा बनाकर पेश करे, लेकिन जो भी हो, मौजूदा माहौल देखते हुए सरकार ने एक बड़ा निर्णय लिया है और लोगों का दिल जीतने की कोशिश की है...
सुशील कुमार महापात्र NDTV इंडिया के चीफ गेस्ट को-ऑर्डिनेटर हैं...
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This Article is From Jul 06, 2016
...क्योंकि स्मृति ईरानी भी कभी शिक्षा मंत्री थीं...
Sushil Kumar Mohapatra
- ब्लॉग,
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Updated:जुलाई 06, 2016 12:13 pm IST
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Published On जुलाई 06, 2016 12:13 pm IST
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Last Updated On जुलाई 06, 2016 12:13 pm IST
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