बोफोर्स घोटाले की आंच में झुलस रहे तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का आभामंडल तार-तार हुआ जा रहा था. 'मिस्टर क्लीन' की छवि वाले राजीव जब प्रधानमंत्री बने, उस समय 401 लोकसभा सदस्य साथ थे, लेकिन अब हालात बदल चुके थे. उनके विश्वस्त सहयोगी विश्वनाथ प्रताप सिंह अपने पद से इस्तीफा देकर जनता दल में शामिल हो गए थे. ऐसे ही समय में राजीव गांधी ने अक्टूबर, 1989 में फैज़ाबाद से अपने चुनावी अभियान की शुरुआत की. उन्होंने अपने भाषण में 'रामराज्य' का जिक्र किया और इस मामले को नया मोड़ दे दिया. बोफोर्स घोटाले की आंच से बचने के लिए राजीव को जनसमर्थन की दरकार थी, सो, ऐसे में उन्हें उम्मीद थी कि 'रामराज्य' उनके लिए संजीवनी का काम करेगा. राजीव गांधी के इस एक ज़िक्र ने भारतीय राजनीति में कई दरवाज़े खोल दिए. उन्हें अंदाज़ा भी नहीं था कि इन्हीं दरवाज़ों से एक ऐसी पार्टी को राजनीति में मजबूती मिलेगी, जो कांग्रेस की सियासी विरासत को हिलाकर रख देगी. इस घटना के बाद राजनीति में कुछ ऐसे बड़े बदलाव हुए, जिन्होंने देश का राजनीतिक ताना-बाना ही नहीं, उसके सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने को भी बदलकर रख दिया.
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मंदिर मुद्दे ने BJP को दिया जीवन : भारतीय जनता पार्टी के पास खोने को कुछ नहीं था. लोकसभा में उसके सिर्फ दो सांसद थे. इन दो सीटों पर भी BJP के बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी या लालकृष्ण आडवाणी नहीं जीते थे. इनमें से एक सीट गुजरात के मेहसाणा की थी, जिस पर BJP नेता एके पटेल ने जीत दर्ज की थी, और दूसरी सीट आंध्र प्रदेश के हनामकोंडा की थी, जिस पर चंदूपाटला जग्गा रेड्डी ने कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को पटखनी दी थी. बोफोर्स घोटाले की ख़बर ने विपक्षी पार्टियों को एकजुट होने का मौका दे दिया था. कांग्रेस के कद्दावर नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह इस्तीफा देकर जनता दल के साथ हो लिए थे. देश में तेजी से जनता का मिजाज़ बदल रहा था.
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इसी बदलाव के बीच विश्व हिन्दू परिषद ने 10 नवंबर, 1989 को अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवादित परिसर में शिलान्यास की घोषणा की. इससे पहले जून, 1989 में BJP ने VHP को मंदिर मुद्दे पर औपचारिक समर्थन देने की घोषणा कर दी थी. उधर अक्टूबर, 1989 में राजीव गांधी ने अपने चुनावी दौरे की शुरुआत फैज़ाबाद से की, जहां उन्होंने 'रामराज्य' का ज़िक्र किया, और फिर 9 नवंबर, 1989 को शिलान्यास की अनुमति दी और इस तरह पहली बार मंदिर मुद्दा भारतीय राजनीति में शामिल हो गया, जिसका काफी दूरगामी प्रभाव हुआ. इस मुद्दे ने BJP के लिए संजीवनी का काम किया. 1989 के चुनाव के बाद दो सदस्यों वाली पार्टी देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी हो गई. उस समय लोकसभा में BJP के 85 सदस्य चुनकर आ गए थे.
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लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा ने बदली केंद्र की राजनीति : चुनाव के बाद देश में जनता दल की सरकार बनी और वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली. मंदिर मुद्दे के ज़रिये BJP की पहुंच काफी बढ़ गई थी. देश का खास तबका इस पक्ष में था कि अयोध्या में मंदिर बने. BJP इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा रही थी. अगस्त, 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने मंडल कमीशन की कुछ सिफारिशों को लागू कर दिया, जिनका उद्देश्य समाज के निचले तबके को लाभ पहुंचाना था. हालांकि राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि इसका मुख्य उद्देश्य गोलबंद हो रहे हिन्दुओं में से निचले तबके को अपने साथ लाना था, ताकि BJP कमज़ोर हो. मंदिर मुद्दे से मिले फायदे का स्वाद BJP चख चुकी थी, लेकिन मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू होने के बाद देश में अगड़ी-पिछड़ी जाति का एक नया मुद्दा आ गया था, जिससे हिन्दू वोट बैंक में सेंध लगने की गुंजाइश बढ़ गई थी.
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इसी बीच, BJP के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या के बीच रथयात्रा निकालने की घोषणा कर दी. देश में तनाव बढ़ रहा था. VHP ने पहले ही मंदिर निर्माण के लिए कारसेवकों को अयोध्या पहुंचने का आह्वान कर दिया था. 25 सितंबर, 1990 को लालकृष्ण आडवाणी सोमनाथ मंदिर (इस मंदिर का निर्माण कांग्रेस सरकार ने वर्ष 1950 में पूरा करवाया था और देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इसे राष्ट्र के नाम समर्पित किया था) से रथ लेकर अयोध्या के लिए निकले. 23 अक्टूबर, 1990 को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालूप्रसाद यादव ने उन्हें समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया. और इस गिरफ्तारी के साथ ही केंद्रीय राजनीति में भूचाल आ गया. देश में कई बदलाव होने वाले थे. BJP ने केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया. उधर, उत्तर प्रदेश में कारसेवकों का जमावड़ा बढ़ता जा रहा था.
एक गिरफ्तारी और बदल गई सरकार : लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था, ''1990 में मुझे गिरफ़्तार करके लालू प्रसाद ने BJP को सत्ता में लाने की कृपा की और उस समय की विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार का ख़ात्मा कर दिया...'' यही सच्चाई थी, जिसे लालकृष्ण आडवाणी ने इस घटना के वर्षों बाद स्वीकार किया था. 23 अक्टूबर, 1990 को हुई गिरफ्तारी के साथ ही BJP ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. केंद्र में अल्पमत की सरकार काम कर रही थी. वीपी सिंह ने साफ कर दिया था कि यह समय सरकार नहीं, देश बचाने का है.
उधर, अयोध्या के आसपास कारसेवकों का जमावड़ा बढ़ता जा रहा था. UP के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने घोषणा की थी कि विवादित परिसर के आसपास परिंदा भी पर नहीं मार सकता. बीच-बीच में कारसेवकों की गिरफ्तारी की सूचनाएं आ रही थी. हालात बिगड़ते जा रहे थे. इसी बीच 2 नवंबर, 1990 को हुए संघर्ष में सुरक्षाबलों की गोलियों से 16 कारसेवकों की मौत हो गई. (इसी घटना पर पिछले दिनों समाजवादी पार्टी नेता मुलायम सिंह ने एक कार्यक्रम के दौरान 1990 में निहत्थे कारसेवकों पर गोली चलाने के दिए गए आदेश पर सार्वजनिक रूप से दु:ख व्यक्त किया था). वीपी सिंह बहुमत खो चुके थे. 2 दिसंबर, 1989 से 10 नवंबर, 1990 तक वह इस पद पर रहे, लेकिन अब देश में सरकार बदल चुकी थी, और कांग्रेस के सहयोग से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बन चुके थे.
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विवादित ढांचे के गिरने ने गिरा दी BJP की सरकार : 6 दिसंबर, 1992. देश में कांग्रेस की सरकार थी. पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे. उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत वाली BJP की सरकार थी और कल्याण सिंह उसके मुखिया थे. मंदिर मुद्दा शांत नहीं था. 1990 की घटना को अभी ज़्यादा समय नहीं बीता था. उस समय मुलायम सिंह यादव ने बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को बचा लिया था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो सका. 6 दिसंबर, 1992 की शाम तक अयोध्या में खड़ा विवादित ढांचा ध्वस्त हो चुका था. इसके साथ ही कल्याण सिंह की सरकार भी चली गई थी. बाबरी विध्वंस के बाद 1993 में हुए तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में BJP सरकार नहीं बना सकी, जिनमें उत्तर प्रदेश भी शामिल था.
मंदिर वहीं बनाएंगे, लेकिन कब... : अयोध्या में मंदिर बनेगा या नहीं, अब भी मामला कोर्ट में है. पिछले 25 सालों से मंदिर के लिए पत्थर तराशे जा रहे हैं, और इन्हीं 25 वर्षों में BJP सत्ता में पूर्ण बहुमत के साथ काबिज हो चुकी है. राज्य में भी पूर्ण बहुमत के साथ उन्हीं की सरकार है. मंदिर-मस्जिद विवाद पर कोर्ट में सुनवाई चल रही है. पक्ष और विपक्ष बातें कर रहे हैं. 'रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे' जैसे नारों से सत्ता की राह बनाने वाले संगठन भी अब इस उम्मीद में BJP को निहार रहे हैं, जैसे यह सब आने वाले चुनाव से पहले हो जाएगा.
सुरेश कुमार ndtv.in के संपादक हैं.
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This Article is From Dec 06, 2017
अयोध्या रामजन्मभूमि विवाद : 25 साल, एक सवाल...
Suresh Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:दिसंबर 06, 2017 19:26 pm IST
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Published On दिसंबर 06, 2017 17:08 pm IST
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Last Updated On दिसंबर 06, 2017 19:26 pm IST
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