उपराज्यपाल अनिल बैजल से मिलते अरविंद केजरीवाल (फाइल फोटो)
अफसरों के ट्रांसफर और पोस्टिंग पर हक हासिल करने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना का मामला दर्ज करवाने की धमकी दी जा रही है. फैसले के अनुसार यदि नियमों की व्याख्या की जाए, तो यह स्पष्ट है कि दिल्ली सरकार के पास ही अधिकारियों के तबादलों का अधिकार है, परन्तु सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले से मई, 2015 की नोटिफिकेशन रद्द तो हुई नहीं, फिर अवमानना की कारवाई कैसे होगी...?
दिल्ली में लोकसेवा आयोग न होने का कुतर्क : संविधान की अनुसूची-7 में केंद्र, राज्य और समवर्ती (कुल तीन) सूचियों के माध्यम से संघीय व्यवस्था में सरकारों के बीच अधिकारों का वितरण किया गया है. राज्य सूची की एन्ट्री-41 में लोकसेवा आयोग (PSC) और केंद्र की लिस्ट-1 की एन्ट्री-70 में संघ लोकसेवा आयोग (UPSC) का विवरण है. हाईकोर्ट ने अगस्त, 2016 के अपने आदेश के पैरा-158 में कहा था कि दिल्ली में PSC नहीं होने से सेवाओं या सर्विसेज पर एन्ट्री-70 के तहत केंद्र सरकार का अधिकार है. दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह स्पष्ट तौर पर कहा है कि भूमि, पुलिस और कानून एवं व्यवस्था के अलावा सभी मामलों पर दिल्ली सरकार को अधिकार हैं. एन्ट्री-41 के तहत लोकसेवा आयोग के गठन के विधायी अधिकार का इस्तेमाल नहीं करने से, दिल्ली सरकार के प्रशासनिक अधिकारों में कटौती कैसे की जा सकती है...?
संविधान और ट्रांज़ैक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स की गलत व्याख्या : सुप्रीम कोर्ट के फैसले से दो बातें स्पष्ट हैं. पहला, केंद्र सरकार की तीन विषयों पर सर्वोच्चता. दूसरा, उपराज्यपाल (LG) सिर्फ सलाह पर काम कर सकते हैं और मतभेद होने पर राष्ट्रपति द्वारा अंतिम फैसला लिया जा सकता है. इसके बावजूद संविधान और ट्रांज़ैक्शन ऑफ बिज़नेस रूल के नियम-46 की दुहाई क्यों दी जा रही है...? सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उपराज्यपाल को केंद्र सरकार या राज्य सरकार की सलाह पर काम करना होगा. UT या DANICS कैडर के अधिकारियों की नियुक्ति केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा दिल्ली में की जाती है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दिल्ली राज्य सरकार की अनुशंसा पर अधिकारियों की नियुक्ति उपराज्यपाल द्वारा अब की जानी चाहिए. संविधान में संशोधन या संसद के माध्यम से नया नियम बनाए बगैर दिल्ली में अधिकारियों के तबादलों पर केंद्र सरकार की मनमर्ज़ी नहीं चल सकती. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शीला दीक्षित सरकार के दौर की स्थिति बहाल हो गई है, तो फिर केजरीवाल को भी अराजक और अधिनायकवादी रवैये से बचना होगा.
IAS के UT कैडर के लिए केंद्र और राज्य के अधिकार निर्धारित हैं : संविधान के अनुच्छेद-309-312 में अखिल भारतीय सेवाओं का विवरण है, जिसके अनुसार IAS, IPS और IFS नौकरियों के तीन कैडर बनाए गए हैं. दिल्ली समेत सात केंद्रशासित राज्यों और तीन अन्य राज्यों के लिए IAS और IPS के सम्मिलित कैडर का नियंत्रण केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा किया जाता है. दिल्ली में पुलिस का अधिकार केंद्र सरकार को है, इसलिए IPS अधिकारियों के तबादलों पर कोई विवाद नहीं है. अरुणाचल प्रदेश, गोवा और मिजोरम में लोकसेवा आयोग होने के बावजूद UT कैडर के IAS अधिकारियों की नियुक्ति होती है, परन्तु तबादलों का अधिकार राज्य सरकार के पास ही रहता है. नियमों के अनुसार IAS अधिकारियों की नियुक्ति, प्रमोशन और बर्खास्तगी के बारे में केंद्रीय गृह मंत्रालय समेत UPSC के पास ही अधिकार हैं. इसके अनुसार IAS अधिकारियों को 10 राज्यों में केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन दिल्ली राज्य के भीतर उनके ट्रांसफर और आन्तरिक पोस्टिंग का अधिकार तो राज्य सरकार के पास ही है.
DANICS और अन्य अधिकारियों के तबादलों पर राज्य सरकार का अधिकार : केंद्र सरकार ने मई, 2015 में नोटिफिकेशन जारी कर IAS और DANICS सेवाओं के अधिकारियों के तबादलों पर भी अधिकार कर लिया था. दिल्ली और अन्य केंद्रशासित राज्यों में प्रांतीय सेवाओं के लिए UPSC द्वारा DANICS अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है. पुदुच्चेरी में PSC होने के बावजूद राज्य सेवा के अधिकारियों की नियुक्ति UPSC के माध्यम से होती है. DANICS अधिकारियों को एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरित करने का अधिकार केंद्रीय गृह मंत्रालय को है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह स्पष्ट है कि DANICS अधिकारियों के तबादलों पर दिल्ली राज्य सरकार का अधिकार है.
ACB पर केंद्र सरकार का फैसला जारी रहेगा : केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 2015 में नोटिफिकेशन जारी करके नवंबर, 1993 और सितंबर, 1998 में जारी पूर्ववर्ती आदेशों में संशोधन करते हुए, एन्टी करप्शन ब्यूरो (ACB) के क्षेत्राधिकार पर अंकुश लगा दिया था. संविधान के अनुच्छेद 239AA के तहत जारी नोटिफिकेशन के अनुसार ACB को NCT के दायरे में अब सिर्फ दिल्ली राज्य सरकार के अधिकारियों के विरुद्ध कारवाई का अधिकार रहेगा. संविधान पीठ के फैसले के बाद मामले की सुनवाई अब सुप्रीम कोर्ट की रेगुलर बेंच द्वारा होगी, जहां ACB पर केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश को मान्यता मिल सकती है.
केंद्र और राज्य के पास क्या हैं विकल्प : सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से संघीय ढांचे का सम्मान करने की अपील की है, तो फिर केंद्र सरकार द्वारा मई, 2015 की नोटिफिकेशन में जल्द संशोधन क्यों नहीं किया जाना चाहिए...? दिल्ली के चीफ सेक्रेट्ररी के साथ मार-पीट और अफसरशाही की सांकेतिक हड़ताल को कानून एवं व्यवस्था का मामला बताकर केंद्र सरकार तबादलों पर संसद के माध्यम से नियम बनाकर अपनी सर्वोच्चता फिर स्थापित कर सकती है. संविधान पीठ के फैसले के बाद अब मुख्य मामलों पर जल्द सुनवाई और फैसले के माध्यम से ही अरविंद केजरीवाल सरकार तबादलों पर दोबारा अधिकार हासिल कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक बिन्दुओं पर फैसला करने पर दो साल का समय लिया है. सवाल यह है कि तबादलों पर गतिरोध को सुप्रीम कोर्ट की रेगुलर बेंच, क्या अगले आम चुनाव से पहले खत्म कर पाएगी...?
विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...
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