नई दिल्ली:
2015 क्रिकेट वर्ल्ड के सेमीफाइनल में भारत पहुंच चुका है। अब 26 मार्च को सिडनी के मैदान पर भारत का मुक़ाबला ऑस्ट्रेलिया से होगा। ऐसे तो भारतीय होने के नाते मेरा मन कहता है कि भारत-ऑस्ट्रेलिया को हराएगा, लेकिन जब दिल से पूछता हूं तो घबरा जाता हूं, क्योंकि आंकड़े दिल की धड़कन को रोक देते हैं। दिल धीरे से कहता है, क्या ऑस्ट्रेलिया जैसी शानदार टीम को हराना भारत के लिए मुमकिन होगा?
ऑस्ट्रेलिया अपने घरेलू मैदान पर खेल रहा है और इसका फायदा भी ऑस्ट्रेलिया को मिलेगा, जैसे 2011 के वर्ल्डकप में भारत को मिला था। लेकिन फिर मन मुझे महसूस कराता है कि नहीं भारत भी जीत सकता है। इस बार भारत की टीम काफी मजबूत नज़र आ रही है। वर्ल्डकप के इतिहास में यह पहली बार हुआ कि भारत अपने सभी मैच जीत कर सेमीफाइनल तक पहुंचा है। आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि भारत अपने सभी मैचों में जीत हासिल कर सेमीफाइनल में पहुंचा हो।
अगर इतिहास के नजरिए से देखा जाए तो भारत को वर्ल्डकप के सेमीफाइनल में पहुचने का मौका पहली बार 1983 में मिला था और इस मौके का फायदा उठाते हुए इंग्लैंड को हराकर भारत ने फाइनल में अपनी जगह पक्की की थी। फाइनल मैच में वेस्ट इंडीज जैसी शानदार टीम को जो लगातार दो बार वर्ल्डकप जीत चुकी थी, उसे मात देकर भारत ने वर्ल्डकप जीतने का इतिहास रचा था।
भारत के लिए दोबारा सेमीफाइनल में पहुंचने का मौका 1987 में आया, लेकिन 5 नवंबर 1987 को मुंबई के वानखेड़े मैदान पर हुए इस सेमीफाइनल मैच में भारत इंग्लैंड से 35 रन से हार गया था और इंग्लैंड ने भारत से फाइनल में पहुंचने का मौका छीन लिया था। इस मैच में इंग्लैंड ने भारत के सामने 251 रन का लक्ष्य रखा था, लेकिन भारत की टीम 219 रन पर ऑल आउट हो गई थी। इस जीत के साथ 1983 वर्ल्ड कप की सेमीफाइनल मैच में हुई हार का बदला इंग्लैंड ने लिया था।
1992 के वर्ल्ड कप में भारत का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा और भारत लगातार तीसरी बार सेमीफाइनल में पहुंचने से चूक गया था। 1992 वर्ल्ड कप में भारत अपने सात मैचों में से सिर्फ दो मैच में जीत हासिल किया और चार मैच में भारत की हार हुई, जबकि एक मैच का कोई नतीजा नहीं आया था।
फिर तीसरी बार 1996 विल्स वर्ल्ड में मौके ने भारत के दरवाजे पर दस्तक दी। मोहम्मद अजहरुद्दीन की कप्तानी में भारत सेमीफाइनल तक का रास्ता सफर किया। 13 मार्च 1996 को ईडन गार्डन के शानदार मैदान पर हुए सेमीफाइनल मैच में श्रीलंका ने भारत से मौका छीन लिया था। पहले बल्लेबाजी करते हुए श्रीलंका भारत के सामने 252 रन की लक्ष्य रखा था। अच्छा शुरुआत मिलने के बाबजूद भारत की टीम 34 ओवर में 120 रन पर आठ विकेट गवा दिया था और जब भारत एक बड़ी हार की तरफ बढ़ रहा था, तब दर्शकों के हंगामे की वजह से यह मैच पूरा नहीं हो सका था और श्रीलंका को विजय घोषित किया गया था।
1999 वर्ल्डकप में भारत सेमीफाइनल तक पहुंच नहीं पाई थी। लेकिन 2003 की वर्ल्डकप में एक बार फिर सेमीफाइनल में पहुंचने का मौका भारत को मिला सौरभ गांगुली की कप्तानी 20, मार्च 2003 को कीनिया खिलाफ हुई यह मैच में भारत कीनिया को 91 रन से हराया था। भारत की कप्तान सौरभ गांगुली शानदार 111 रन बनाये थे। 23 मार्च 2003 को जोहान्सबर्ग में खेल गया फाइनल मैच में ऑस्ट्रेलिया ने भारत को 125 रन से हराया था। ऑस्ट्रेलिया के तरफ से कप्तान रिक्की पोंटिंग ने शतकीय पारी खेलते हुए 140 पर नाबाद थे।
फिर 2006/07 की वर्ल्ड कप में राहुल द्रविड़ की कप्तानी में भारत अपने तीन लीग मैच हारकर वर्ल्ड कप से बाहर हो गया था, लेकिन 2011 की वर्ल्डकप में यह मौका फिर आया। धोनी की कप्तानी में क्वार्टर फाइनल मैच में ऑस्ट्रेलिया को हराकर भारत सेमी-फाइनल में पहुंचा और सेमी-फाइनल में पाकिस्तान को मात देकर श्रीलंका के खिलाफ फाइनल मैच खेल था। महेंद्र सिंह धोनी ने यह मौका अपने हाथ से जाने नहीं दिया। 2, अप्रैल 2011 को मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम खेल गया फाइनल मैच मैं भारत ने श्रीलंका को 6 विकेट से हराया और दूसरी बार वर्ल्डकप जीतने का इतिहास रचा।
मौका, मौका, अब फिर एक बार 2015 की वर्ल्डकप में आया है मौका। देखना बाकी है क्या माही इस मौके को मुट्ठी से जाने नहीं देंगे और मौके का फायदा उठाते हुए तीसरी बार वर्ल्ड कप जीतने का इतिहास रचेंगे और साबित करेंगे कि मेरा दिल नहीं मन ही सही था?