कॉर्पोरेट की ओर से भी इनाम की घोषणा की जा चुकी है. अब यह दिखाने और जताने की कोशिश की जा रही है कि हमारी सरकारें और कॉर्पोरेट, खिलाड़ियों को लेकर कितने संजीदा हैं. देखना यह है कि एक पदक की कीमत कितनी होगी?
आगे तो और इनाम मिलेंगे. ओलिंपिक तक पहुंचना और अच्छा प्रदर्शन करना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है लेकिन हमारी सरकारें सिर्फ पदक जीतने वालों को इनाम दे रही हैं. इनाम देना कोई बुरी बात नहीं लेकिन दूसरे खिलाड़ियों के बारे मे भी सोचना चाहिए. कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद भी पदक जीतने से चूक गए. ललिता बाबर, दीपा कर्मकार और कई ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया है लेकिन उनको लेकर कोई ज्यादा हलचल नहीं है, न ही उन पर इनाम की बारिश हुई. आखिर ऐसा क्यों है?
दीपा और ललिता की तरह कई ऐसे खिलाड़ी है जिन्हें आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा है. ललिता महाराष्ट्र के एक किसान की बेटी है. जरा सोचिये, अगर ललिता और दीपा के ट्रेनिंग के लिए पैसा खर्च किया जाता और उन्हें अच्छी ट्रेनिंग दी जाती तो वह भी आज भारत के लिए पदक लाते. सिर्फ यह दोनों खिलाड़ी ही नहीं, कई और ऐसे खिलाड़ी हैं जो बेहतर प्रशिक्षण और सुविधाएं न मिलने की वजह से पीछे रह गए. इन सब मुद्दों पर हमारी सरकारें और कॉर्पोरेट गंभीर नहीं दिखाई देते है. लेकिन जब कोई पदक जीत जाता है तो इनाम के जरिये श्रेय लेने की पूरी कोशिश की जाती है.
कुछ साल पहले पुलेला गोपीचंद ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि जब उन्होंने बैडमिंटन खेलना शुरू किया था तो बैडमिंटन रैकेट खरीदने के लिए उनके पास पैसा नहीं थे. अपनी मां के गहने बेचकर उन्होंने रैकेट ख़रीदा था. हमारे देश में ऐसे कई बच्चे होंगे जो अच्छा खिलाड़ी बनना चाहते होंगे लेकिन गरीबी के वजह से उनका सपना टूट रहा है. गोपीचंद ने यह भी बताया था बैडमिंटन अकादमी बनाने के लिए उन्हें 10 करोड़ से भी ज्यादा रुपये की जरुरत थी लेकिन उन्हें मदद करने के लिए कोई आगे नहीं आया. राज्य सरकार ने सिर्फ ज़मीन दी थी. कॉर्पोरेट के पास भी वह गए थे लेकिन कोई मदद नहीं मिली. अकादमी बनाने के लिए उन्हें अपना घर गिरवी रखना पड़ा था. जब एक व्यापारी ने उनकी मदद की, तब जाकर उनका अकादमी बनाने का सपना साकार हुआ.
अगर आज गोपीचंद की अकादमी नहीं होती तो पीवी सिंधु पदक नहीं जीत पातीं. साइना नेहवाल के रूप में हमें एक शानदार खिलाड़ी नहीं मिलता. पीवी सिंधु के पिता पीवी रमन्ना कई बार मीडिया के सामने यह बता चुके हैं कि सिंधु के सफलता के पीछे सिर्फ गोपीचंद का मेहनत है. अगर गोपीचंद नहीं होते तो पीवी सिंधु इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाती. रियो में पदक जीतने वाली साक्षी मलिक के पिता डीटीसी में ड्राइवर के रूप में काम करते है. अपनी बेटी को इस मुकाम तक पहुंचाने में उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा. अगर साक्षी को सही ट्रेनिंग मिली होती तो शायद आज वह देश के लिए गोल्ड मेडल जीत पाती.
कुछ दिन पहले एनडीटीवी ने झारखंड से एक रिपोर्ट दिखाई थी. इस रिपोर्ट में यह दिखाया गया था कि कैसे झारखंड की राजधानी रांची में तैराकी के अभ्यास के लिए कोई स्विमिंग पूल नहीं है और बच्चों को अभ्यास के लिए राजधानी रांची से लगभग 10 किलोमीटर दूर एक बांध के पास जाना पड़ रहा है. इस बांध पर प्रैक्टिस करने वाले कई बच्चे ओलंपिक में पदक जीतना चाहते हैं लेकिन मेरा ख्याल है कि अगर बच्चे इस बांध पर सारी ज़िंदगी प्रक्टिस करें तो भी पदक नहीं जीत पाएंगे.
हाल ही में एक हिंदी समाचार पत्र ने छपी ख़बर में बताया गया कि कैसे दूसरे देश अपने खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देने में ज्यादा पैसा खर्च करते हैं. अमेरिका ने अपने एक खिलाड़ी को रियो में गोल्ड मेडल जीतने की लायक बनाने के लिए 74 करोड़ रुपया खर्च किया है जबकि गोल्ड मेडल जीत जाने के बाद एक खिलाड़ी को इनाम के रूप में सिर्फ 24 लाख रुपये दिए हैं यानी 35 हज़ार डॉलर के करीब.
वहीं, ब्रिटेन ने अपने एक खिलाड़ी की प्रतिभा निखारने के लिए 48 करोड़ रुपये खर्च किए हैं लेकिन मेडल जीतने के बाद कोई नगद राशि नहीं दी. इसी तरह चीन अपने एक खिलाड़ी के पीछे 47 करोड़ रुपये झोंके हैं और गोल्ड मेडल जीतने के बाद इनाम के रूप में 24 लाख रुपये दिए हैं. अगर भारत की बात किया तो रियो जाने वाले 119 खिलाड़ियों पर सरकार ने 160 करोड़ रुपये खर्च किए यानी एक खिलाड़ी पर 1.5 करोड़ के करीब लेकिन पदक जीतने के बाद जब इनाम की बात आती है तो रुपयों की बारिश होती है.
अगर हमारे देश में अच्छा अकादमी बनेंगी तो ज्यादा से ज्यादा अच्छे खिलाड़ी निकलेंगे, ज्यादा से ज्यादा पदक मिलेंगे लेकिन हमारी बदकिस्मत यही है कि हमारी सरकारें अकादमी बनाने से ज्यादा श्रेय खरीदने में विश्वास रखती हैं.
सुशील कुमार महापात्रा एनडीटीवी इंडिया के चीफ गेस्ट कॉर्डिनेटर हैं...
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