क्या सरकार सोशल मीडिया पर घेराबंदी की तैयारी कर रही है? यह सवाल इसलिए क्योंकि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अफ़वाहों और फर्जी खबरों को रोकने के लिए सरकार ने इन कंपनियों के साथ न सिर्फ विचार-विमर्श शुरू कर दिया है बल्कि पुराने नियमों को बदलने के लिए नए नियमों का खाका भी उनके साथ साझा किया है. सरकार ने इन दावों का पुरजोर खंडन किया है कि यह अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगाने की कोशिश है. सरकार का कहना है कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के गलत इस्तेमाल की घटनाएं भी सामने आई हैं. इसी साल की शुरुआत में व्हाट्सऐप पर बच्चा चोरी की अफ़वाहों के चलते मॉब लिचिंग की कई घटनाएं हुईं जिनमें भीड़ ने 30 से अधिक लोगों को पीट-पीट कर मार डाला. जांच एजेंसियों की यह भी शिकायत है कि आतंकवाद, अलगाववाद, हिंसा और नफरत फैलाने के लिए भी इन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया जा रहा है.
दरअसल, सन 2010 से लागू हुए इंफॉर्मेशन टेक्नालॉजी ऐक्ट में ई गवर्नेंस को सुगम बनाने और कंप्यूटर से शुरू होने वाले अपराधों को रोकने का प्रावधान है. इसी की धारा 79 में सोशल मीडिया कंपनियों को जवाबदेही से कुछ छूट दी गई है. जबकि 79(2)(सी) में उनसे दिशानिर्देश पालन करने की अपेक्षा की गई है. अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के गलत इस्तेमाल की बढ़ती घटनाओं के बाद सरकार नए दिशानिर्देश जारी करना चाहती है. इनमें प्रावधान होगा कि 50 लाख से अधिक यूजर वाले प्लेटफॉर्म सरकार के पूछने के 72 घंटों के भीतर संदेश का स्त्रोत बताएं. इसके लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और मैसेजिंग सर्विसेज जैसे गूगल, फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप, याहू आदि से बातचीत शुरू की गई है.
सरकार ने इंटरनेट सेवा देने वाली कंपनियों से भी बातचीत की है. इनसे सुझाव भी मांगे जा रहे हैं. सरकार की कोशिश 15 जनवरी तक यह प्रक्रिया पूरी कर लेने की है. सरकार का कहना है कि वह व्हाट्सऐप जैसे प्लेटफॉर्म पर एंड टू एंड एनक्रिप्शन को खत्म नहीं करना चाहती है. इसमें संदेश भेजने से लेकर संदेश पाने तक पूरी प्रक्रिया गुप्त होती है और इसमें कोई दखल नहीं हो सकता. यही व्हाट्सऐप की खासियत है जो उसे लोकप्रिय बनाती है. व्हाट्सऐप सरकार को बता चुकी है कि इसमें परिवर्तन करने का मतलब होगा इस प्लेटफॉर्म को पूरी तरह से खत्म करना. सरकार का कहना है कि वह व्हाट्सऐप पर चल रहे संदेशों को नहीं पढ़ना चाहती. लेकिन अगर कोई संदेश नफरत या अफवाह फैलाने वाला हो, तो उसके स्रोत की जानकारी जरूर मिलनी चाहिए.
व्हाट्सऐप का कहना है कि इसके लिए वह तकनीक पर काम कर रहा है. उसने भारत में एक अधिकारी भी नियुक्त किया है. फर्जी खबरों को रोकने के लिए अखबारों में विज्ञापन भी दिए. इस बीच, सरकार का कहना है कि इनसे जुड़े सभी पक्षों की राय मिलने के बाद ही पुरानी गाइडलाइंस को बदलने का फैसला होगा. उधर, यह भी याद दिलाया जा रहा है कि हाल ही में गृह मंत्रालय ने 10 एजेंसियों को कंप्यूटर के डेटा को निगरानी करने या उन्हें जब्त करने की इजाजत दी है. इसीलिए अब सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार की यह कोशिश अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है? या मौजूदा हालत में सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए सख्त दिशानिर्देशों की बेहद जरूरत है?
(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)
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