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This Article is From Aug 10, 2015

एफटीआईआई चेयरमैन गजेन्द्र चौहान के नाम सुशील कुमार महापात्रा का खुला खत

Reported by Sushil kumar Mahapatra
  • Blogs,
  • Updated:
    अगस्त 10, 2015 19:24 pm IST
    • Published On अगस्त 10, 2015 19:14 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 10, 2015 19:24 pm IST
प्रिय गजेन्द्र जी,

आपको मैं  तब  से जानता हूं, जब से आपने महाभारत में युधिष्ठिर का किरदार अदा किया। तब महाभारत देखने के लिए बेसब्री से इंतज़ार करता था। आपके किरदार ने मुझे काफी प्रभावित किया था। धर्म और सत्य पर आधारित आपके इस किरदार से युवाओं को काफी कुछ सीखने को भी मिला। लेकिन महाभारत खत्म होने के बाद आप कहीं किसी फिल्म या सीरियल में किसी बड़ी भूमिका में दिखाई नहीं दिए। हो सकता है फिल्म के प्रति मेरी रुचि कम होने के वजह से मैं आपका कोई अच्छा किरदार देख न पाया हो। आजकल आप जानते हैं कि आप सुर्खिया में क्यों हैं ? आपके एफटीआईआई का चेयरमैन बन जाने के बाद तो जैसे एक और 'महाभारत' शुरू हो गया है। आपकी संस्था के छात्र नहीं चाहते कि आप चेयरमैन बने रहें। कुछ दिन पहले आपकी संस्था के छात्र जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने के लिए पहुंचे थे। आप खुद समझ सकते हैं कि बात कितनी  बढ़  गई  है। सिर्फ छात्र ही क्यों आपके साथी कलाकार भी आपके साथ नहीं हैं। कई बड़े कलाकार भी आपको इस पद से हट जानने के लिए कह चुके हैं।     

कई बार आप यह बयान दे चुके हैं कि यह प्रोटेस्ट राजनीति से प्रेरित है और कुछ राजनेता इस प्रोटेस्ट के पीछे हैं। मैं भी मानता हूं कि कुछ राजनेता इस आंदोलन के जरिए अपनी  दुकान चलाने चाहते हैं। जंतर-मंतर पर जब मैं आपकी संस्था के छात्रों से बात कर रहा था तो उनका कहना था कि वह प्रोटेस्ट इसीलिए नहीं कर रहे हैं कि आप बीजेपी से जुड़े हुए हैं, उनका सवाल आपके कैलिबर को लेकर है। छात्रों का यह भी कहना था कि बीजेपी से ही जुड़े लोग जैसे अनुपम खेर या परेश रावल चेयरमैन बनें तो वह खुश होंगे। आपको यह भी मानना होगा की प्रोटेस्ट छात्रों के द्वारा ही शुरू किया गया था। जब इसका कोई फायदा नहीं हुआ तब राजनेता इस आंदोलन में कूद पड़े। अगर आपने छात्रों की बात मान ली होती तो आज राजनेता इसका फायदा न उठा पाते।

मैं आपको बता दूं कि यह पहली बार नहीं है जब कोई राजनेता  एफटीआईआई का चेयरमैन बन रहा है, हां यह जरूर पहली बार है कि किसी नेता के चेयरमैन बनने पर उसके खिलाफ इतना जोरदार आंदोलन हो रहा है। सन 2001 में जब विनोद खन्ना एफटीआईआई के अध्यक्ष बने थे तब भी वह बीजेपी के सांसद थे और केंद्र में बीजेपी की सरकार थी। सिर्फ विनोद खन्ना क्यों, यू आर अनंतमूर्ति, जो 2005 में एफटीआईआई के अध्यक्ष  बने थे, वह भी कहीं न कहीं राजनीति से जुड़े थे। वे बीजेपी के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े थे और जनता दल सेक्युलर ने उनको समर्थन दिया था।

चलिए हम मान ही लेते हैं कि आप इस पद के लिए सही उमीदवार हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर आप इतने दिन तक अपने छात्रों को समझा नहीं पाए तो फिर आगे क्या करेंगे ? आपको लगता नहीं यह आपकी विफलता है। मैं यह नहीं कहता कि आप एफटीआईआई के चेयरमैन बनने के काबिल नहीं हैं। मैं भी मानता हूं कि आपको एक मौका मिलना चाहिए,  लेकिन यह मौका अगर छात्रों के मन को मुग्ध नहीं कर पाया तो आपको महानता का परिचय देते हुए इस मौके को अपने मुट्ठी से मुक्त कर देना चाहिए। वैसे भी आप महाभारत में युधिष्ठिर का किरदार निभा चुके हैं। वह युधिष्ठिर जो धर्म और न्याय का रास्ता अपनाता था। उसने तो अपने कौरव भाइयों के लिए हस्तिनापुर छोड़ दिया था तो क्या इन छात्रों के लिए आप एफटीआईआई के चेयरमैन का पद छोड़ नहीं सकते। आपके पास एक मौका है फिर युधिष्ठिर बनकर छात्रों का मन जीतने का। मुझे पूरा भरोसा है कि आप ऐसा ही करेंगे।

जाते-जाते महाभारत की एक पंक्ति है जो आपको याद करा देता हूँ "समय के बहाव के रास्ते में न किसी  दुःख की रुकावट है, न किसी सुख की, लेकिन भाग्य की रेखाएं समय को भी उलझा देती हैं। "  इस पंक्ति को आप कैसे देखते हैं, यह आप पर ही निर्भर करता है।


आपका

सुशील कुमार महापात्रा

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