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This Article is From Sep 21, 2016

अजहर को आमंत्रण : कानूनी प्रक्रिया और स्‍वीकार्यता पर छिड़ी बहस..

Shailesh chaturvedi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 21, 2016 17:46 pm IST
    • Published On सितंबर 21, 2016 16:47 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 21, 2016 17:46 pm IST
30 अक्टूबर 1994 की बात है. जगह थी ग्रीनपार्क स्टेडियम कानपुर. भारत और वेस्टइंडीज के बीच वनडे मैच था. अजहरुद्दीन भारत के कप्तान थे और अजित वाडेकर कोच. विंडीज टीम ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 257 रन बनाए थे. मनोज प्रभाकर के छह ओवर में 50 रन बने थे. विकेट कीपर नयन मोंगिया एक मौके पर एंडरसन कमिंस को रन आउट करने का मौका चूक गए थे. वो रन आउट कर सकते थे, लेकिन उन्होंने गेंद दूसरे छोर पर फेंकी. हो जाता है. गलतियां, खराब गेंदबाजी या बल्लेबाजी सब खेल का हिस्सा है.

भारत की बल्लेबाजी के दौरान एक समय टीम को नौ ओवर में 63 रन बनाने की जरूरत थी. लेकिन उस वक्त मनोज प्रभाकर अपना शतक पूरा करने की कोशिश कर रहे थे....और नयन मोंगिया शायद ‘टेस्ट’ समझकर ड्रॉ कराने की कोशिश. आखिर भारत हार गया. मोंगिया ने 21 गेंद में 4 और प्रभाकर ने 154 गेंद में 102 रन बनाए. मैच रैफरी रमन सुब्बा राव ने भारत पर दो अंक का जुर्माना किया, जिस फैसले को आईसीसी ने बाद में बदल दिया. प्रभाकर और मोंगिया को निलंबित किया गया. बाद में प्रभाकर और मोंगिया, दोनों ने कहा कि उन्हें तेज रन बनाने के निर्देश ड्रेसिंग रूम से नहीं मिले थे. वैसे भी तीन देशों के टूर्नामेंट में भारत फाइनल में पहुंच चुका था. इस हार का कोई असर नहीं होना था. अजहर बार-बार कहते रहे हैं कि इंटरनेशनल क्रिकेटर को बताए जाने की जरूरत नहीं कि उसे क्या करना है.

आप सोच रहे होंगे कि 22 साल बाद यह किस्सा क्यों. इसके जवाब से पहले कुछ पंक्तियां और पढ़ लीजिए. मनोज प्रभाकर पर बाद में मैच फिक्सिंग के आरोप लगे. उन पर  पांच साल का बैन लगा. नयन मोंगिया को एक समय के बाद कभी टीम में नहीं लिया गया. बिना वजह बताए. सर्किल में सुगबुगाहट फिक्सिंग से जुड़ी हुई रही. लेकिन सुगबुगाहट की वजह से तो ऐसे फैसला नहीं होते. कप्तान अजहरुद्दीन पर आजीवन बैन लगा. सीबीआई की रिपोर्ट ने उन्हें मैच फिक्सर साबित किया, लेकिन आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने आरोप साबित न होने की बात करते हुए बैन हटा दिया. कुछ और लोगों के नाम भी सीबीआई रिपोर्ट में थे. कई मैचों का जिक्र इस रिपोर्ट में है, जो ‘फिक्स’ किए गए थे. आरोपियों में अजय शर्मा और अजय जडेजा भी शामिल थे. अजय शर्मा पर आजीवन प्रतिबंध लगाया गया. जडेजा पांच साल के लिए बैन किए गए. हालांकि जडेजा से भी सारे आरोप वापस ले लिए गए.

अदालत के फैसले के बाद भी बीसीसीआई ने अजहर को अपने किसी समारोह का हिस्सा नहीं बनाया. जगमोहन डालमिया से लेकर एन. श्रीनिवासन तक सभी मानते रहे कि कानून और खेल भावना या खेल परंपरा, दो अलग बातें हैं. ऐसे में उन्हें किसी पद से नहीं जोड़ा गया. अब 22 सितंबर को उसी कानपुर में एक टेस्ट शुरू होने वाला है. जो भारत का 500वां टेस्ट होगा. इसमें अजहर को आमंत्रित किया गया है. बीजेपी नेता और बोर्ड अध्यक्ष अनुराग ठाकुर इसे ‘क्रिकेटिंग मैटर’ बताते हैं. जिस कांग्रेस ने अजहर को सांसद बनवाया, उसके नेता और बोर्ड के प्रमुख सदस्य राजीव शुक्ल इसमें कुछ गलत नहीं मानते. ...तो तैयार हो जाइए, भारत रत्न सचिन तेंदुलकर और अजहरुद्दीन उस फंक्शन में साथ खड़े दिखाई दे सकते हैं.

सवाल यह है कि क्या खेल में सब कुछ कानूनी प्रक्रिया से होगा? अगर ऐसा है, तो अब तक भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने अजहर को किसी जगह शामिल क्यों नहीं किया था. आखिर अदालत के फैसले को कई साल हो गए. मुझे याद है, कुछ साल पहले भी एक फंक्शन में उनके शामिल होने की बात थी. तब बोर्ड के बड़े अधिकारी ने  ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ कहा था कि मेरे जीवित या बोर्ड में रहते तो ऐसा नहीं होगा. क्रिकेट अदालत का नहीं, जीवन से जुड़े होने का मामला है. जहां आपका महज कानूनी तौर पर बरी होना ही काफी नहीं है. उन्होंने कहा था कि अब हम उन पर कोई आरोप नहीं लगाएंगे. लेकिन उन्हें क्रिकेट से जुड़े मामलों में शामिल नहीं करेंगे.

जाहिर है, वे सदस्य अब नहीं हैं. शायद इसीलिए अज़हर हैं. बैन पूरा होने के बाद मनोज प्रभाकर रणजी टीम के कोच हैं. एक और क्रिकेटर हैं जैकब मार्टिन. उन पर कबूतरबाजी का केस है. जेल हो आए हैं, बेल पर हैं. उन्हें बड़ौदा का कोच बनाया गया है. इस पर भी बोर्ड का रुख यह है कि आरोप साबित कहां हुए हैं. जब तक साबित न हों, उन्हें दोषी कैसे माना जाए. सवाल यही है कि क्या वाकई खेल को महज कानूनी नजरिये से देखा जा सकता है? क्रिकेट बोर्ड से जुड़े एक वकील ने कुछ साल पहले कहा था कि अगर हैंसी क्रोनिए भारत में होते और अपना जुर्म स्वीकार नहीं करते, तो कब के बरी हो चुके होते. उनके शब्दों में क्रोनिए का बड़ा गुनाह यह था कि वे भारतीय नहीं थे.

इसीलिए सवाल सिर्फ अजहरुद्दीन या बाकी किसी भी आरोपी का नहीं है. सवाल उनकी स्वीकार्यता का है. दरअसल, हमारे समाज ने इन सबको स्वीकार कर लिया है और करता रहा है. वे सिर्फ खेलों में नहीं, समाज के हर हिस्से में है. ज़ाहिर है, राजनीति में भी, जहां से जुड़े लोग खेल फेडरेशनों में भी फैसले करते हैं. अनुराग ठाकुर के तर्क भी वे ही हैं, जो अपनी पार्टी के किसी आरोपी के बारे में पूछे गए सवालों पर होते हैं. सवाल यह है कि स्वीकार्यता किस हद तक जाएगी. इन्हीं अजहरुद्दीन को अब तक बोर्ड ने स्वीकार नहीं किया था. अब कर लिया है. अगला कदम क्या होगा? और वह कदम, कानूनी नजरिए से जितना भी ‘सही’ हो, सामाजिकता और नैतिकता के लिहाज से कहां है, यह फैसला समाज को करना होगा. हमको और आपको करना होगा कि आप उस फंक्शन या किसी भी फंक्शन में ऐसे लोगों के होने से कितने सहज हैं. अगर सहज हैं, तो आनंद लीजिए, आखिर भारतीय क्रिकेट के 500वें टेस्ट मैच का जश्न है.

शैलेश चतुर्वेदी वरिष्‍ठ खेल पत्रकार और स्तंभकार हैं...

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