CBI के अधिकारी ने एनएसए अजीत डोभाल पर लगाए सनसनीखेज़ आरोप

सीबीआई के डीआईजी एम के सिन्हा ने अपनी याचिका में लिखा है कि सीबीआई का मतलब सेंटर फॉर बोगस इंवेस्टिगेशन हो गया है.

CBI के अधिकारी ने एनएसए अजीत डोभाल पर लगाए सनसनीखेज़ आरोप

सीबीआई अधिकारी मनीष कुमार सिन्‍हा (फाइल फोटो)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्री पर कई करोड़ के रिश्वत लेने का आरोप लगा है. यह आरोप किसी राह चलते ने नहीं बल्कि सीबीआई के डीआईजी ने बाक़ायदा लिखकर सुप्रीम कोर्ट में जमाकर लगाया है. सीबीआई के डीआईजी एम के सिन्हा ने अपनी याचिका में लिखा है कि सीबीआई का मतलब सेंटर फॉर बोगस इंवेस्टिगेशन हो गया है. यहां फिरौती और वसूली का धंधा चलता है. एक अफसर की याचिका के बाद भी दिल्ली में इतनी शांति है कि लगता है कि आज न्यूज़ चैनलों में होली की छुट्टी है. गोदी मीडिया ही अब असली इंडिया है. क्या कर सकते हैं. डीआईजी मनीष सिन्हा ने अपनी याचिका में मोदी सरकार के जिस कोयला व खनन मंत्री पर रिश्वत लेने के आरोप लगाए, सारा ब्यौरा दिया है, उनका नाम है हरिभाई पार्थी भाई चौधरी. 2014 में मंत्री बने थे, पहले गृह राज्य मंत्री बने फिर लघु व मध्यम उद्योग मंत्रालय में राज्य मंत्री बने और फिर कोयला व खनन राज्य मंत्री बने. हरि भाई पार्थी भाई गुजरात के बनासकांठा से कई बार लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं. 2014 में लोकसभा में ही विवादित बयान दिया था कि जिस राज्य में ज़्यादा मुस्लिम रहते हैं उस राज्य में ज़्यादा क़ैदी होते हैं. तब वे गृह राज्य मंत्री थे. हरिभाई पार्थी भाई चौधरी की चर्चा सुबह से हो रही है मगर उन्होंने इस बारे में अभी तक कोई बयान नहीं दिया है. अभी तक का मतलब जब मैं प्राइम टाइम में आपको बता रहा हूं तब तक को नहीं दिया है. मनीष कुमार सिन्हा ने अपनी याचिका में लिखा है कि अस्थाना केस के शिकायतकर्ता सतीश सना ने बताया था कि राज्य मंत्री को कई करोड़ की रिश्वत दी गई है. 20 अक्तूबर की दोपहर अहमदाबाद के विपुल के मार्फत यह पैसा दिया गया है. डीआईजी सिन्हा ने लिखा है कि सतीश सना ने ये सारी बातें बताई थीं जो उन्होंने आलोक वर्मा और सहायक निदेशक ए के शर्मा को बता दी थी.

मनीष कुमार सिन्हा, सीबीआई में कई महत्वपूर्ण केस देख रहे थे. अनुभवी अफसर हैं. सीबीआई में डीआईजी हैं और हाल ही में 23 अक्तूबर की रात इनका भी दिल्ली से नागपुर तबादला कर दिया था. मनीष कुमार सिन्हा ने 19 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर ये सारे आरोप लगाए हैं. एक आईपीएस अफसर ने मोदी सरकार के मंत्री पर कई करोड़ की रिश्वत लेने का आरोप लगाया है. जून 2018 के पहले 15 दिनों में कभी यह पैसा मोदी सरकार के मंत्री हरिभाई पार्थी भाई चौधरी को दिया गया है. इससे जुड़ा आरोप तो और भी ख़तरनाक है. यह रिश्वत मोइन कुरैशी केस में जांच कर रहे अधिकारी वसूली का रैकेट चला रहे थे, उसी के सिलसिले में पैसा दिया गया है. जल्दी से हम आपको मोइन कुरैशी केस के बारे में बता देते हैं.

मांस व्यापारी हैं मोइन अख़्तर कुरैशी. इनका मामला 7 साल से चल रहा है, तीन निदेशक इस दौरान आए मगर यह मामला अंजाम तक नहीं पहुंचा. 2011 में यूपीए की सरकार में जांच शुरू हुई थी, चली गई, मोदी सरकार आ गई और मामला वहीं का वहीं है बल्कि इस मामले को लेकर उनके ही राज्य मंत्री ज़द में आ गए हैं. इस दौरान सीबीआई के तीन-तीन निदेशक आ कर चले गए मगर मोइन अख़्तर कुरैशी का मामला अंजाम पर नहीं पहुंचा. राहत फतेह अली ख़ान मोइन कुरैशी की बेटी की शादी में आए थे, लौटते वक्त एयरपोर्ट पर 56 लाख कैश के साथ पकड़े गए. इस मामले को लेकर लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस पर आरोप भी लगाए. उनकी सरकार आने के तीन साल बाद सीबीआई ने केस दर्ज किया. मगर इसकी जांच ने सीबीआई को भीतर से उलट दिया. सीबीआई के दो-दो निदेशकों के नाम जांच के दौरान आ गए. और अब इसी केस के सिलसिले में आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना आमने सामने हैं. निदेशक ए पी सिंह सीबीआई से रिटायर होकर यूपीएससी के मेंबर बन गए थे जहां से इन्हें हटाना पड़ा था. सतीश सना मोइन कुरैशी का ही दोस्त था और कुरैशी मामले में भी आरोपी है. सना अस्थाना को रिश्वत देने के मामले में आरोपी है. सना ने ही आरोप लगाया था कि उसने टीडीपी के सांसद सीएम रमेश के ज़रिए सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को 2 करोड़ दिया था. राकेश अस्थाना सना को हिरासत में लेकर पूछताछ करना चाहते थे जिसकी अनुमति आलोक वर्मा ने नहीं दी, यह आरोप है. मगर जब सना ने अपना बयान दर्ज कराया तो कहा कि उसने दिसंबर 2017 में राकेश अस्थाना को 3 करोड़ दिया है. दुबई के व्यापारी मनोज प्रसाद और उसके भाई सोमेश प्रसाद के ज़रिए. इसी बयान के आधार पर अस्थाना के खिलाफ एफआईआर हुई. मनोज प्रसाद को दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया गया.

आईपीएस अफसर मनीष कुमार सिन्हा ने प्रधानमंत्री मोदी के मंत्री पर कई करोड़ रिश्वत के आरोप इसी केस के सिलसिले में लगाए हैं. यह सामान्य नहीं है कि सीबीआई के डीआईजी ने न सिर्फ कोयला व खनन राज्य मंत्री श्री हरिभाई पार्थी भाई चौधरी पर रिश्वत लेने के आरोप लगाए बल्कि इसी मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल पर भी बकायदा लिखित रूप में अपनी याचिका में आरोप लगाए हैं. इस केस में दखल देने और प्रभावित करने के लिए. मनीष सिन्हा ने कहा है कि जिस अस्थाना केस को वो देख रहे थे, उससे हटाकर उनका तबादला नागपुर इसलिए किया गया क्योंकि पीएमओ के इशारे पर शक्तिशाली लोगों को बचाया जा रहा था. सबूतों से छेडछाड़ हो सके. मनीष सिन्हा नीरव मोदी और मेहुल चौकसी का भी केस देख रहे थे.

क्या राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने अस्थाना की जांच में दखल दी है, क्या उन्हें बचाने के लिए अस्थाना के यहां छापेमारी से लेकर फोन ज़ब्त करने से रोका है? मनीष कुमार सिन्हा ने अपनी याचिका में लिखा है कि अस्थाना के खिलाफ जांच में कई स्तरों पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने गतिरोध पैदा किया. इस केस में शामिल दो मिडिलमैन अजित डोभाल के करीबी थे. दुबई के मिडिल मैन मनोज के ज़रिए ही अस्थाना को पैसे देने का आरोप लगा था, गिरफ्तारी के बाद मनोज ने हैरानी जताई थी कि उसे कैसे सीबीआई पकड़ सकती है जबकि वो अजित डोभाल का करीबी है. उसके भाई सोमेश और रॉ के अधिकारी सामंत गोयल ने एक पर्सनल केस में अजित डोभाल की मदद की थी. अस्थाना के खिलाफ जांच से लेकर एफआईआर के स्तर पर अजित डोभाल दिलचस्पी ले रहे थे.

याचिका में लिखा है कि 5 अक्तूबर को अस्थाना के खिलाफ एफआईआर हुई थी जिसकी सूचना आलोक वर्मा ने अजित डोभाल को 17 अक्तूबर को दी. सवाल है कि आलोक वर्मा अजित डोभाल को क्यों बता रहे थे कि अस्थाना के खिलाफ एफआईआर हुई है और अजित डोभाल अस्थाना को क्यों बता रहे थे कि तुम्हारे खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है. क्या अस्थाना ने अजित डोभाल से गुज़ारिश की थी कि उनकी गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए और अजित डोभाल ने अस्थाना को गिरफ्तार होने से बचा लिया, यह सब याचिका में लिखा गया है, खंडन से तो बात नहीं बनेगी, यह मामला अब जांच से भी आगे का हो गया है. याचिका में लिखा है कि अजित डोभाल के दबाव में अस्थाना के घर सर्च करने की अनुमति नहीं मिली और उनके मोबाइल फोन को ज़ब्त नहीं किया गया. जांच अधिकारी ए के बस्सी ने आरोप लगाए हैं, एम के सिन्हा ने अपनी याचिका में यह सब लिखा है कि आलोक वर्मा ने पूछने पर कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने सेल फोन ज़ब्त करने की अनुमति नहीं दी. 22 अक्तूबर को आलोक वर्मा से औपचारिक दरख्वास्त किया गया मगर फिर अनुमति नहीं मिली. पूछने पर बताया कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने अनुमति नहीं दी. यही नहीं याचिका में सिन्हा ने आरोप लगाया है कि जब 20 अक्तूबर को डिप्टी एस पी देवेंद्र कुमार के घर सर्च चल रही थी तब सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा की तरफ से सर्च रोकने का निर्देश आया. पूछने पर जवाब मिला कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने ऐसा करने को कहा है.

आखिर यह केस क्या है, इसके तार कहां तक जाते हैं कि इस सिलसिले में सीबीआई के चार-चार आईपीएस अफसरों का करियर दांव पर लगा है, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का नाम आ रहा है, उनका सीबीआई से क्या लेना देना है, वो क्यों दखल दे रहे हैं, केंद्रीय राज्य मंत्री का नाम आ रहा है, अभी विधि सचिव और कैबिनेट सचिव का भी नाम आएगा. अपनी याचिका में एम के सिन्हा ने आरोप लगाया है कि रॉ के अफसर सामंत गोयल का फोन टैप किया गया तो एक रिकॉर्डिंग में सामंत कह रहा है कि इस केस को पीएमओ यानी प्रधानमंत्री कार्यालय मैनेज कर रहा है. जिस दिन की यह बातचीत है, याचिकाकर्ता के अनुसार उसी रात अस्थाना के केस से जुड़े सभी जांच अधिकारियों का तबादला कर दिया गया. सीबीआई के डीआईजी एम के सिन्हा ने लिखा है कि अस्थाना केस के शिकायतकर्ता सना सतीश बाबू ने मोइन कुरैशी केस में सीवीसी चीफ के वी चौधरी से मुलाकात की थी. 11 नवंबर को विधि सचिव सुरेश चंदरा ने भी सतीश सना से संपर्क किया था और वे उस समय केस को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे थे जब सुप्रीम कोर्ट ने सीवीसी को इस मामले की जांच के आदेश दिए थे. आपको याद होगा कि अस्थाना मामले में दुबई के व्यापारी मनोज प्रसाद को जब अरेस्ट किया गया तब बस्सी को स्पेशल सेल के डीसीपी से फोन आता है, बस्सी फोन नहीं उठाते हैं. बाद में एक अन्य इंस्पेक्टर का फोन आया है जो मनोज की गिरफ्तारी के बारे में पूछता है और कहता है कि कैबिनेट सचिव ने पूछने के लिए कहा था.

केवी चौधरी सीवीसी, सुरेश चंदरा विधि सचिव और पी के सिन्हा कैबिनेट सचिव, ये लोग किसकी तरफ से पूछताछ कर रहे थे, जब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की नज़र में सब कुछ हो ही रहा था तब. क्या अजित डोभाल से भी अलग कोई इस केस में दिलचस्पी ले रहा था, क्या उसका भरोसा अजित डोभाल पर नहीं था, कौन है वो, एक राज्य मंत्री के लिए तो यह सब नहीं हो सकता है. आप थोड़ा और सोचिए. हमें पता है कि यह सब आरोप हैं मगर इतने ताकतवर लोगों के खिलाफ ज्वाइंट डायरेक्टर मनीष कुमार सिन्हा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी है ऐसा कब हुआ है. देश के सबसे ताकतवर शख्स प्रधानमंत्री मोदी के कार्यालय और उनके मंत्री, सुरक्षा सलाहकार, कैबिनेट सचिव, कौन है जो अब बचा हुआ है. आखिर ये खेल है क्या. क्या अब भी हम बेवकूफ बनाए जा रहे हैं या कोई संस्था बची ही नहीं है जो अब इस सच को सामने ला सके. कानून सचिव सुरेश चंदा ने अपनी प्रतिक्रिया दी है, कहा है कि 'यह पूरी तरह से झूठ है. मैं कभी लंदन नहीं गया. मैं सतीश सना को नहीं जानता और न ही रेखा रानी को. यह पूरी तरह से मनगढ़ंत है.'

क्या वाकई कानून सचिव सुरेश चंदरा रेखा रानी को नहीं जानते हैं, जो कि एक आईएएस अफसर हैं. रेखा रानी ने ही सतीश सना को फोन किया था कि विधि सचिव बात करना चाहते हैं. उनका लंदन का नंबर दिया. उसी बातचीत में कानून सचिव ने सना को बताया कि कैबिनेट सचिव पी के सिन्हा का मेसेज है कि सरकार तुम्हें बचाएगी लेकिन 13 नवंबर को बदलाव होगा. विधि सचिव सना से मिलना चाहते थे. विधि सचिव ने इससे इंकार किया है और कहा है कि वे लंदन नहीं गए थे. मगर आरोप इतना भी कमज़ोर नहीं हैं. सीबीआई के डीआईजी ने याचिका में लिखा है कि 13 नवंबर को विधि सचिव ने सना को फिर फोन किया और रेखा रानी के ज़रिए संपर्क किया था. अभी तक राज्य मंत्री का कोई बयान नहीं आया है और न ही इस पर बीजेपी ने कोई प्रेस कांफ्रेंस की है. कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला ने इस याचिका के संदर्भ में सवाल उठाए हैं.

आप इस याचिका को पढ़ेंगे तो दिमाग चक्कर खा जाएगा. जिस मंत्री पर कई करोड़ रिश्वत लेने के आरोप हैं उन पर यह भी आरोप है कि वे कार्मिक मंत्रालय के ज़रिए सीबीआई के अफसरों के मामले में दखल देते हैं. कार्मिक मंत्रालय में उनके ज़रिए ये सब हो रहा है जिन्हें सीबीआई के निदेशक रिपोर्ट करते हैं. अब आप जब यह पता करेंगे कि कार्मिक मंत्रालय जिसके मंत्री जितेंद्र सिंह हैं, वहां आलोक वर्मा किसे रिपोर्ट करते हैं तो आप चकरा जाएंगे. आप जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के वी चौधरी को राकेश अस्थाना और आलोक वर्मा के मामले में जांच की बात कही थी. वैसे सीवीसी को खुद ही इस मामले को अंजाम तक ले जाना था मगर ख़ैर. सीबीआई के संयुक्त निदेशक एम के सिन्हा की याचिका में सीवीसी की भूमिका पर भी सवाल उठाए गए हैं.

अस्थाना मामले में शिकायतकर्ता सतीश सना ने सीवीसी के वी चौधरी से मुलाकात की थी. उस समय के वी चौधरी के रिश्तेदार के साथ मिलने गया था जिनका हैदराबाद में डीपीएस स्कूल है. यह मुलाकात दिल्ली में हुई थी. चौधरी ने अस्थाना से पूछा था कि सतीश सना के खिलाफ क्या क्या सबूत हैं. अस्थाना ने कहा कि सना के खिलाफ बहुत सबूत नहीं हैं.

सवाल है अगर सीवीसी की भूमिका भी संदिग्ध हो जाए तो कैसे कोई भरोसा करे कि अस्थाना और आलोक वर्मा में जांच किसी हस्तक्षेप से प्रभावित नहीं हुई होगी. अगर सीवीसी ने अपने रिश्तेदार के साथ दिल्ली में कहीं सतीश सना से मुलाकात की थी तो यह बेहद गंभीर आरोप है. इस याचिका में एक और एंगल आ गया है. नितिन संदेसरा. दुबई के व्यापारी मनोज प्रसाद को अस्थाना मामले में गिरफ्तार किया है. उस मनोज प्रसाद ने बताया कि लंदन में स्टर्लिंग बायोटेक के नितिन संदेसरा से मुलाकात की है. नितिन संदेसरा भी गुजरात का एक हीरा व्यापारी है.

नितिन संदेसरा पर 5300 करोड़ रुपये के बैंक फ्रॉड का आरोप है. गुजरात के वडोदरा में इसकी एक कंपनी है. अगस्त में ही संदेसरा सऊदी भाग गया था. 24 सिंतबर 2018 के टाइम्स आफ इंडिया ने खबर लिखी थी कि उसने नाइजीरिया की नागरिकता ले ली है जिसके साथ भारत का प्रत्यर्पण का करार नहीं है. 25 सितंबर को यही खबर इंडियन एक्सप्रेस में छपी है. आप अपने हिन्दी अखबार पलट कर देंखें, वहां ये सब कुछ खबर नहीं मिलेगी.

इसलिए डीआईजी एम के सिन्हा की याचिका को यूं ही खारिज नहीं किया जा सकता है. नितिन संदेसरा पूरे खानदान के साथ भागा था. भाई भाभी सब नाइजीरिया चले गए. इस मामले में आंध्र बैंक के पूर्व निदेशक अनूप गर्ग के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज है. संदेसरा पर आरोप है इसने 300 शेल कंपनियां बनाई हैं. इनके ज़रिए 5000 करोड़ की हेराफेरी की है. अब देखिए बैंकों का लाखों करोड़ किस किस ने कर्ज़ लेकर नहीं लौटाया इसका नाम बताने में किसी को क्या दिक्कत है. आज केंद्रीय सूचना आयुक्त ने रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया और प्रधानमंत्री कार्यालय की खिंचाई की है, पहले भी खिंचाई कर चुका है. मगर किसी को फर्क ही नहीं पड़ रहा है.

अब आते हैं मीडिया टेस्ट टूल किट पर. एक ही दिन के अखबार में आप इस टूल किट को आज़मा सकते हैं. आप मंगलवार यानी 20 नवंबर के सारे हिन्दी अखबार देखिएगा. हमने आपको मीडिया टेस्ट टूल-किट बताया था. आपको तीन चीज़ें देखनी हैं. इस खबर को पहले पन्ने पर जगह दी गई है या नहीं, हेडिंग में सामान्य बातें हैं या राज्य मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की भूमिका को भी प्रमुखता से छापा गया है. क्या इस खबर को एक दो कॉलम में निपटा दिया गया है या मंत्री ने किससे पैसे लिए, कैबिनेट सचिव ने किसने के लिए फोन कर पूछा, विधि सचिव ने किसे फोन किया, किसके कहने पर आलोक वर्मा ने किसकी गिरफ्तारी रोकी. किस पन्ने पर खबर छपी है इससे पता चलेगा कि अखबार में कितनी हिम्मत बची है, हेडिंग से प्राथमिकता का पता चलेगा और डिटेल से केस के बारे में. हिन्दी अखबार बहुत सी ऐसी खबरों को नहीं छाप रहे हैं. छापते भी हैं तो बस रूटीन टाइप, डिटेल नहीं बताते हैं इसलिए उनकी समीक्षा बहुत ज़रूरी है जैसे आप हम टीवी वालों की करते हैं.

बल्कि टीवी चैनलों को भी देखिए कि क्या इस याचिका में कही गई बातों को आप तक पहुंचाया गया है. सुप्रीम कोर्ट में 20 नवंबर को भी इस मामले की सुनवाई है. कोर्ट ने डीआईजी एम के सिन्हा को भी हाज़िर होने को कहा है.


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