हम सभी शादियों में जाते हैं पर क्या कभी शादी के मंत्र किसी महिला पुजारी के मुंह से सुने हैं? हमने तो नहीं सुना। अब ज़रा आंख बंद कीजिए और मन में एक तस्वीर बनाइए, तबकी जब वर और वधु फेरे ले रहे हों। वहां आपको मंत्र पढ़ते हुए एक पुरुष पंडित जी दिख रहे होंगे पर क्या कभी आपने महिला पंडित देखी है, जो मंडप में शादियां करवा रही हों? शायद नहीं।
खैर चलिए राजस्थान में दो महिलाएं जहां आरा और फ़िरोज़ आलम क़ाज़ी बन गई हैं। लाज़मी है कि बाकी मौलवी और मौलाना कुरान का हवाला दे रहे हैं कि ऐसा संभव नहीं है। एक मौलाना साहब हमें बता रहे थे कि वे निकाह तो पढ़ा सकती हैं, लेकिन क़ाज़ी के जो दूसरे काम हैं वे नहीं करा सकती हैं। यह बड़ी अजीब बात है। आज 21वीं सदी में महिलाओं के धर्म से जुड़े मसलों पर उनको अधिकार देने की बात होती है, तो बड़े पेंच निकल आते हैं।
ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ मुसलमानों की बात है या फिर हिन्दुओं की बात है। कैथोलिक ईसाईयों में तो महिलाएं पादरी ही नहीं बन सकती हैं आप कोई भी मसला महिला अधिकारों से संबंधित धर्म से जोड़ के देख लीजिए, वो अपने आप ही जटिल हो जाता है। वैसे देश में एक तबका ऐसा भी है, जो महिलाओं के धर्म में समान अधिकारों के पक्ष में है। हमने हमारे घर के पुराने पंडित जी से बात की, जो शास्त्री हैं और बच्चों को कर्मकांड भी सिखाते हैं। उनसे पूछा कि क्या हमारे हिन्दू धर्म में महिलाएं शादियां करा सकती हैं? वह थोड़ी देर तो चुप रहे फिर बोले कि हां ज़रूर करा सकती है, पर महीने के कुछ दिनों में हमारी माताएं-बहनें अपवित्र रहती हैं, इस वजह से थोड़ी समस्या है।
हमने फिर उनसे एक सवाल पूछा कि फिर महीने की बाकी दिनों में तो वो कर्मकांड करा ही सकती हैं? वह बोले, हां पर ऐसा कम ही होता है। फिर हमने उनसे एक और सवाल पूछा कि आप बच्चों को जो कर्मकांड सिखाते हैं, उसमें कितनी लड़कियां हैं? वह खामोश रहे कुछ नहीं बोले। जवाब साफ था, एक भी नहीं।
भले एक बार को मान भी लें कि धर्म महिलाओं को शादियां या कर्मकांड करने की इजाज़त देता है, पर क्या हमारा समाज महिलाओं को इस विषय में बराबरी का माहौल देता है? क्यों पंडित जी का बेटा ही पंडित जी की कर्मकांड वाली विरासत संभालता है, उनकी बिटिया क्यों नहीं? क्यों धर्म से जुडी हुई सारी विरासतों पर बेटों का अधिकार है? क्यों सबरीमाला में जाने के लिए महिलाओं को कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है? क्यों शनि शिंगणापुर में शनिदेव को तेल चढ़ाने को लेकर महिलाओं को इतना विरोध झेलना पड़ता है? कब तक मज़ारों में जाने के लिए महिलाओं को लड़ना होगा?
देश का संविधान महिलाओं को बराबरी का अधिकार देता है पर समाज कब महिलाओं को समान माहौल दे पाएगा।
मैं गंगा किनारे का एक ब्राह्मण हूं और मेरी एक इच्छा है कि मेरी शादी एक महिला पंडित ही कराए।
(सौरभ शुक्ला एनडीटीवी इंडिया में प्रोग्राम कॉर्डिनेटर के पद पर कार्यरत हैं)
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This Article is From Feb 09, 2016
मेरी इच्छा है कि मेरी शादी एक महिला पंडित ही कराए...
Saurabh Shukla
- ब्लॉग,
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Updated:जुलाई 03, 2017 14:31 pm IST
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Published On फ़रवरी 09, 2016 21:42 pm IST
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Last Updated On जुलाई 03, 2017 14:31 pm IST
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