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This Article is From Sep 25, 2020

मैं चाय-बिस्किट पत्रकार हूं

Sanket Upadhyay
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 01, 2020 10:23 am IST
    • Published On सितंबर 25, 2020 14:27 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 01, 2020 10:23 am IST

आपदा को अवसर में बदलने का नारा बड़ा रोचक है. अपने आप में जीवन का सार है. इसका जीता जागता उदाहरण हमारे देश की सरकार है और उसके मुखिया. जब उनको जलील करने की इच्छा से चायवाला बोला गया तो चाय पे चर्चा शुरू हो गई. जब चौकीदार चोर है का नारा लगा तो वे बोल उठे मैं भी चौकीदार. देखते ही देखते हर आपदा अवसर में बदल गई. हर गाली आभूषण की तरह गले में लपेट ली गई. हर चुनौती पर सफलतापूर्वक अप्रासंगिकता की वरक़ चढ़ा दी गई. हर बड़ी समस्या का निवारण एक और बड़ी समस्या बता कर कुछ और प्रस्तुत कर देना हो गया.

फ़ॉर्म्युला आज भी हिट है. आप लड़ते रहिए, बोलते रहिए जो बोलना चाहते हैं. कहते रहिए कि यह ध्यान भ्रमित किया जा रहा है. जनता पसंद कर रही है और आपदा अवसर में बन रहा है. अब इससे क्या सीख मिलती है? यही हमें भी करना चाहिए. हमें मतलब रिपोर्टरों को. आपदा है कि हमारी रिपोर्टरों की एक छोटी सी बिरादरी में कुछ सस्ते उत्पाती घुस आए हैं. उनकी घुसपैठ से हर ईमानदार रिपोर्टर दुखी है.

इन सस्ते कॉंट्रैक्ट पर आए सस्ते उत्पातियों का उद्देश्य सिर्फ़ तमाशबीन चैनल पर कॉंट्रैक्ट के तमाशाकर्ता बनना है. सम्भवतः अपनी छोटी सी नौटंकी की कुटीर उद्योग को चलाए रखना है जिससे कि आगे चलके नाम हो जाए. पत्रकार होने का एक तमग़ा लग जाए. साइड में 4 काम और मिल जाने के कॉंट्रैक्ट हो जाएँ.

बिल्डरों और बिज़नस घरानों का मीडिया में घुसने का उद्देश्य भी कुछ यही था, ताकि सरकारों में थोड़ा रुतबा हो जाए  लेकिन वो खेल बड़े लेवल का था. अब वही मॉडल काटिज इंडस्ट्री की तरह रिपोर्टिंग में भी आ गया है. ऐसे लोगों का पत्रकारिता से उतना ही वास्ता है जितना डीज़ल की गाड़ी का पेट्रोल से. अक्सर ऐसे लोगों का तर्क ये होता है कि हम लॉबी तोड़ने आए हैं. यथास्थिति को चुनौती देने आए हैं. सिस्टम को हिलाने आए हैं. पूरे घर को बदलने आए हैं.

ये ना दर्शकों पर उपकार कर रहे हैं, ना पत्रकारिता पर. ये सिर्फ़ इनकी वायरल हो जाने की ख्वाहिश है. इनको इज़्ज़त नहीं कमानी. तमाशा पसंद लोगों को बेहद ही सस्ता मनोरंजन 24 घंटे देना ही इनका बिज़नस मॉडल है.

ये वो लोग हैं जो अपने काम से अपनी रेखा लम्बी नहीं करते, पर दूसरों को नीचा दिखाके और दूसरे की रेखा छोटी करके अपनी रेखा लम्बी करना चाहते हैं. ऐसे लोग इसी तरीक़े से अपने लिए अवसर बनाते हैं. ये रिपोर्टरों की एक बेहद छोटी और एक बेहद सम्वेदनशील समुदाय के लिए एक आपदा है. पोर्टर यह चुनौती नज़रंदाज़ इसलिए नहीं कर पाते क्यूँकि यह उस हर लम्हे की बेज़्ज़ती है जब अपने चैनल के मालिकों या एडिटरों की प्रतिस्पर्धा से ऊपर उठ घंटों धूप में खड़े रिपोर्टर एक दूसरे के लिए पानी और खाने का इंतज़ाम खुद करते हैं.

जब किसी और के कैमरा से किसी और चैनल की PTC रिपोर्टर आपस में ही करा लेते हैं. खाना लाने गए रिपोर्टर का अगर इंटरव्यू मिस हो जाए तो तत्काल उसके ऑफिस में भी फ़ीड ट्रांसफ़र कर देते हैं. उस हर वक्त की बात जब झुंड बनाकर अपने एक रिपोर्टर साथी के लिए उसकी मुश्किलों में खड़े होते हैं. यहीं काम भी है, यहीं एक्सक्लूज़िव भी करना है, और यहीं एक दूसरे का साथ भी है. एक ऐसा अपनापन है जो बाहरी दुनिया आसानी से नहीं समझती.

रिपोर्टर फूट सोल्जर की श्रेणी में अपने आप को पाते हैं और फूट सोल्जर में ग़ज़ब की फ़ाइटिंग स्पिरिट होती है. आज अगर सस्ते उत्पाती कॉंट्रैक्ट पर उत्पात मचाने आए हैं तो हमें भी देश की सरकार की तरह इस आपदा को अवसर में बदलना चाहिए. हाथों की गालों के साथ गुस्ताखी करके नहीं. बस एक हाथ में चाय पकड़िए और दूसरे में बिस्किट, और अपने प्रोफ़ेशन का स्मरण करके बोलिए - मैं भी चाय बिस्किट पत्रकार.

संकेत उपाध्याय NDTV ग्रुप में सीनियर एडिटर (राजनीति) हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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