'संपर्क फॉर समर्थन'- 2019 के आम चुनाव से पहले एक लाख विशिष्ट जनों से मिलने की अपनी मुहिम को भारतीय जनता पार्टी ने यही नाम दिया है. अंग्रेज़ी-हिंदी शब्दों का यह साझा इन दिनों 'फैशन' में है. 'जब वी मेट' और 'टाइगर ज़िंदा है' इन दिनों फिल्मों के नाम होते हैं. मीडिया की पूरी भाषा इस खिचड़ी संस्कार से बदल रही है. इसलिए बीजेपी अगर 'संपर्क फॉर समर्थन' जैसा नाम अपनी मुहिम के लिए चुनती है तो इसे उसकी 'कूल' होने की कोशिश ही कहा जा सकता है- भाषा या व्याकरण के साथ किसी क़िस्म का अनाचार नहीं. इसके अलावा हमारी मौजूदा राजनीतिक संस्कृति अपने मुद्दों, अपनी मुहिमों में जितनी संकरी और सतही हो चुकी है, उसे देखते हुए बीजेपी से यह उम्मीद भी एक अन्याय मालूम पड़ती है कि वह भाषा के प्रश्न पर इतनी संवेदनशील होगी कि हिंदी और अंग्रेज़ी के इस अजीब से घालमेल में निहित अपसंस्कृति के कुछ रूपों को पहचान पाएगी.
लेकिन यह नाम ही बताता है कि हमारी पूरी राजनीति किस वैचारिक दीवालिएपन से गुज़र रही है. कभी भाषा राजनीति का अहम मुद्दा हुआ करती थी. जनसंघ ने हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान का नारा दिया था. हालांकि यह नारा भी उसकी संकीर्ण राजनीतिक दृष्टि से निकला था. राम मनोहर लोहिया ने भाषा पर कई लेख लिखे. समाजवादी नेताओं के लिए भाषा का सवाल संघर्ष का सवाल रहा. मुलायम सिंह यादव जब संयुक्त मोर्चा सरकार में रक्षा मंत्री बनाए गए थे तो उन्होंने सारा कामकाज हिंदी में करने का निर्देश दिया था. अब यह सारी बातें हास्यास्पद लगती हैं. राजनीति या तो विकास और जीडीपी के सतही सवाल पर टिकी हुई है या फिर हिंदू-मुस्लिम, अगड़ा-पिछड़ा-दलित पहचान पर. शिक्षा और संस्कृति, साहित्य और इतिहास के प्रश्न अब स्थगित हैं- या इतने भर उपयोगी हैं कि उनसे किसी विचारधारा की राजनीति सधती हो. पढ़ाई-लिखाई को करिअर बनाने की चीज़ मान लिया गया है, संस्कृति के नाम पर बस बॉलीवुड है, कविता के नाम पर मंचीय फूहड़ता, मनोरंजन के नाम पर क्रिकेट और टीवी का शोर है. सारे सांस्कृतिक-साहित्यिक संस्थान 'अपने-अपने' लोगों को भरने की जगहों में बदल चुके हैं.
ऐसे में एक ऐसी राजनीति की कल्पना करना जो भाषा के सवाल पर सूक्ष्मता से विचार करेगी और सोचेगी कि हर शब्द का अपना एक मतलब होता है- किसी अपराध से कम नहीं. यह अपराध बस इसलिए करना पड़ता है कि यह स्वप्नजीवी उम्मीद कायम रहे कि कभी हमारी राजनीति उन सूक्ष्मताओं को भी समझेगी जो सपाट नारों से कहीं ज़्यादा बड़ी और ज़रूरी होती हैं. 'संपर्क फॉर समर्थन' जैसे वाक्यांश में गड़बड़ी कुछ नहीं है- सिवा इसके कि यह न कोई स्मृति जगाता है न कोई संवेदना और न ही कोई संभावना. यह बस मोटे तौर पर बताता है कि बीजेपी को संपर्क और समर्थन से मतलब है. बीच में टंगा हुआ अंग्रेजी का 'फॉर' बताता है कि उसे भाषिक शुद्धता से भी मतलब नहीं है- बस उन अंग्रेजी मानसपुत्रों को अपने साथ लेना है जिनका काम 'फॉर', 'ऑफ', 'सी', 'बट' के बिना नहीं चलता.
लेकिन क्या हमारी पूरी राजनीति ही यही नहीं हो गई है? बीजेपी को छोड़ दें, क्या कांग्रेस या दूसरी पार्टियां भाषा और संस्कृति के मसलों पर संवेदनशील दिखती हैं? शायद नहीं. लेफ्ट फ्रंट में बेशक कुछ लोग हैं जिनके भीतर अपनी तरह की सांस्कृतिक समझ है, लेकिन वह उनकी मौजूदा राजनीति में परिलक्षित नहीं होती.
दुर्भाग्य यह है कि यह भाषिक असंवेदनशीलता ऐसे समय में दिख रही है जब हम पा रहे हैं कि सिर्फ भाषा ने हिंदुस्तान को दो हिस्सों में बांट दिया है- एक तरफ अंग्रेज़ी बोलने वाला या जल्दी-जल्दी अंग्रेज़ी सीख रहा खाता-पीता, अघाया इंडिया है तो दूसरी तरफ भारतीय भाषाओं में अपने अंधकार से जूझ रहा विराट भारत. समर्थ भारत इस भाषिक फ़ासले को पाटने का एक ही तरीक़ा बताता है- कि सब अंग्रेज़ी सीख लें. अनायास सारे स्कूलों में नर्सरी से अंग्रेजी की पढ़ाई शुरू कर दी गई है. भारतीय भाषाओं में पढ़ाई धीरे-धीरे ख़त्म होती जा रही है, सारे स्कूल अंग्रेजी़ स्कूलों में बदलते जा रहे हैं. चुपचाप घटित हो रही इस भाषिक क्रांति से जुड़े कुछ और संकट भी हैं. पढ़ाई का सरोकार न अपने समाज से रह गया है न अपने इतिहास या अपनी संस्कृति से- पढ़ाई बस फटाफट नौकरी पाने की दौड़ हो गई है. फिर अंग्रेज़ी में बोलना-जीना सीख रही यह पीढ़ी अपनी जड़ों से बिल्कुल कटी रह जाती है और इस शून्य को वह नकली किस्म के राष्ट्रवाद या धार्मिक उन्माद से भरने की कोशिश करती है.
संपर्क और समर्थन के बीच अंग्रेज़ी का 'फॉर' जोड़कर बीजेपी इसी वर्ग तक पहुंचना चाहती है- जबकि ज़रूरत इस वर्ग को किसी और तरह से संबोधित करने की, उसकी प्राथमिकताओं को समझने की है. लेकिन सफलता नाम की किसी मृगतृष्णा के पीछे चल रही दौड़ को शॉर्ट कट समझने वाला समाज या उसका मीडिया या उसकी राजनीति इस बात को कैसे समझे. यह टिप्पणी बीजेपी पर ही नहीं, पूरे भारत की राजनीतिक संस्कृति पर है.
प्रियदर्शन NDTV इंडिया में सीनियर एडिटर हैं...
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This Article is From May 30, 2018
बीजेपी के 'संपर्क फॉर समर्थन' की राजनीतिक भाषा
Priyadarshan
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Updated:मई 30, 2018 18:58 pm IST
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Published On मई 30, 2018 18:58 pm IST
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Last Updated On मई 30, 2018 18:58 pm IST
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