सुजाता सिंह को विदेश सचिव के पद से हटा दिया गया और एस जयशंकर को नया विदेश सचिव बनाया गया था। सुजाता सिंह से पहले एपी वेंकटेश्वरन को 28 साल पहले 1987 में राजीव गांधी ने हटाया था। सुजाता सिंह का कार्यकाल अभी 8 महीने बाकी था।
प्रधानमंत्री कार्यालय सुजाता सिंह को दिसंबर में ही हटाना चाहता था, मगर विदेशमंत्री के दखल पर मामला टल गया। पिछले छह महीने में विदेश मंत्रालय ने जितने भी राजदूतों की नियुक्ति की सिफारिश की, प्रधानमंत्री कार्यालय ने उसे हरी झंडी नहीं दी, मतलब साफ है कि प्रधानमंत्री विदेश सचिव को हटाने का मन बना चुके थे। सुजाता सिंह की नियुक्ति मनमोहन सिंह सरकार के समय हुई थी। उस वक्त भी मनमोहन सिंह जयशंकर को ही विदेश सचिव बनाना चाहते थे, मगर सुजाता सिंह के पिता पीवी राजेश्वर गांधी परिवार के काफी करीबी रहे हैं। वह इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रमुख भी रहे और बाद में उन्हें यूपीए सरकार ने उत्तर प्रदेश का राज्यपाल भी बनाया था। वहीं एस जयशंकर के पिता के सुब्रह्मण्यम तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के काफी करीबी थे, रक्षा मामलों के बड़े जानकार भी और न्यूक्लियर डील की शुरुआत के मध्यस्थ भी रहे।
अमेरिकी राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमंत्री की हैदराबाद हाउस में हुई साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पहला सवाल दोनों नेताओं से पूछा गया था। पहले जवाब ओबामा को देना था, और जब वह जवाब दे रहे थे, उस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इशारा करके जयशंकर को अपने पास बुलाया, और कुछ पूछा, जबकि विदेश सचिव सुजाता सिंह सामने ही बैठी थीं। यह सब टीवी पर नज़र नहीं आया, लेकिन वहां मौजूद सभी पत्रकारों को इसका आभास हो गया कि विदेश मंत्रालय में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है।
सबसे बड़ी बात यह है कि एस जयशंकर 31 जनवरी को रिटायर्ड हो रहे थे इसलिए भी यह फैसला लिया गया। जयशंकर फर्राटे से रूसी भाषा बोलते हैं और चीन के मामलों के भी जानकार हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय को लगता है कि ओबामा प्रशासन को 26 जनवरी की यात्रा के लिए राजी करने में एस जयशंकर भी अहम रोल है। सबसे बड़ा सवाल है कि अब सुजाता सिंह का क्या होगा? उनके पास एक ही विकल्प है कि वह त्यागपत्र दे दें या फिर जैसा की चर्चा है राजदूत बन कर पेरिस चली जाएं...आखिरकार सुजाता सिंह पर यूपीए सरकार का ठप्पा भारी पर गया।