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This Article is From Aug 20, 2016

सिंधु और साक्षी बनीं सफलता की प्रतीक, भारत के लिए एक बदलाव की शुरुआत

Sushil Kumar Mohapatra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 21, 2016 21:16 pm IST
    • Published On अगस्त 20, 2016 09:54 am IST
    • Last Updated On अगस्त 21, 2016 21:16 pm IST
वैसे तो ओलिंपिक के प्रति मेरी कोई खास दिलचस्पी नहीं है, जहां भारत के ज्यादा लोग क्रिकेट के दीवाने है तो मैं ओलिंपिक दीवाना कैसे हो सकता हूं. लेकिन कुछ दिनों से दफ्तर में दोस्तों के ओलिंपिक में भारत के खिलाड़ियों को मेडल जीतने के अरमान को देखते हुए, ओलंपिक के प्रति मेरा खुद का नज़रिया भी बदलने लगा है. डेस्क पर मौजूद मेरा हर साथी पदक की प्रतीक्षा कर रहा है. यही उम्मीद कर रहा है कि भारत को ज्यादा से ज्यादा पदक मिल जाए. जब कोई खिलाड़ी मैच जीत जाता है तब तालियां बजती हैं जो न्यूज़ रूम में कम देखने को मिलती हैं. और जब कोई हार जाता है तो यही सुनने को मिलता था- कोई बात नहीं ओलिंपिक में हिस्सा लेना बहुत बड़ी बात है.

साक्षी मालिक के पदक जीतने के बाद मनोरंजन भारती (बाबा) सब के लिए जलेबी मंगवा रहे थे. मेरे साथी रवीश कुमार की खेल के प्रति कोई रुचि न होने के बावजूद भी कभी कभी वह मैच देख लिया करते हैं और ब्लॉग लिख देते हैं. फिर सुशील बहुगुणा... जो अपने प्राइम-टाइम शो के लिए काफी गंभीर नज़र आते हैं, मैच के दौरान सब कुछ छोड़कर मैच देखने में लग जाते हैं.

किस-किस का नाम लूं, जिस मैच में भारत के खिलाड़ी खेलते हैं, न्यूज़ रूम की सभी कुर्सियां, एक जगह इकट्ठी हो जाती हैं, टीवी स्क्रीन पर सबकी नज़र होती थी वो भी डीडी स्पोर्ट्स पर, जो कि कम देखा जाता है. दूरदर्शन इसलिए सबका करीबी बन गया है क्योंकि इस चैनल में लाइव प्रसारण बिना किसी देरी से आता है. यह तो रही हमारे न्यूज़ रूम की कहानी, चलिए आप को बाहर की कहानी बताते हैं.

शुक्रवार को पीवी सिंधु का फाइनल मैच शुरू होने से पहले हम अपनी एंकर सिक्ता देव के साथ यही बात कर रहे थे कि दिल्ली का कौन सा ऐसा इलाक़ा ढूंढा जाए जहां ज्यादा से ज्यादा लोग एक साथ बैठकर मैच देखते हों और हम वहां से लाइव कर सकें, लोगों से बात कर सकें. फिर मेरे दफ्तर के एक साथी ने बताया कि कनॉट प्लेस के सेंट्रल पार्क में बड़ी स्क्रीन पर मैच देखने की व्यवस्था की गई है. फिर मैं दफ्तर से जल्दी इसीलिए निकल गया कि कहीं ट्रैफिक में न फंस जाऊं लेकिन यह क्या? रास्ता तो पूरी तरह से खाली था. फिर मुझे अहसास हुआ ट्रैफिक कम होने का वजह है पीवी सिंधु का मैच...

मैं कनॉट प्लेस के सेंट्रल पार्क में पहुंचा. जैसे ही गेट के पास पहुंचा तो मुझे लगा कि मैं कहीं गलत जगह आ गया हूं. ऐसा लगा कि जिस जगह की तलाश में हूं शायद यह वह यह जगह नहीं है लेकिन फिर भी मैं पार्क के थोड़ा अंदर चला गया और पार्क के अंदर का दृश्य देखकर स्तब्ध रह गया. मुझे ऐसा लगा कि कहीं मैं 'छोटे रियो' में तो नहीं आ गया हूं. पार्क के अंदर का दृश्य काफी शानदार था. पूरे पार्क को सजाया गया था. चारों तरफ झंडे लगे थे, भारत के तरफ से ओलिंपिक में भाग ले रहे मौजूदा और पूर्व खिलाड़ियों की तस्वीर लगी हुई थी और हर तस्वीर के नीचे उन खिलाड़ियों की उपलब्धियों के बारे में लिखा हुआ था. फिर मैं पार्क के बीच में पहुंच गया, तीन हज़ार के करीब लोग एक साथ बैठकर बड़ी स्क्रीन पर मैच देख रहे थे. ऐसा लग रहा था कि यह पार्क नहीं, कोई बैडमिंटन का कोर्ट है, जिसके चारों ओर लोग बैठे हैं. इसके चारों तरफ मीडिया के कैमरे भी लगे हुए थे.
 

(कनॉट प्लेस में लोगों का जमावड़ा, पीवी सिंधु का मैच देखने के लिए)

फिर वहां पर मौजूद युवाओं के भाव देखने लायक थे. सिंधु के हर पॉइंट पर वहां पर मौजूद युवा खुश होते, ताली बजाते, गले मिलते. सिंधु ने जब पहला सेट जीता, तब लोग एक-दूसरे के गले मिलते, डांस करते हुए दिखे. आखिरकार सिंधु मैच हार गईं फिर भी वहां पर मौजूद युवा खुश थे, सिंधु के लिए ताली बजा रहे थे, उसके जज़्बे को सलाम कर रहे थे. मैच ख़त्म होने के बाद मैं वहां पर मौजूद लोगों से बात करने लगा, यह जानने के कोशिश की कि वह कहां से आए हैं. जवाब से मैं थोड़ा हैरान हो गया. कोई गुरुग्राम से आया था तो कोई फ़रीदाबाद से, एक शख्स पटना से दिल्ली कुछ काम के सिलसिले में आए थे लेकिन फिर भी मैच देखने के लिए सेंट्रल पार्क पहुंच गए थे. जो लोग कनॉट प्लेस के आसपास थे वह सिंधु का मैच देखने के लिए पहुंच गए थे. जिन लोगों को यह लगा था कि घर पहुंचने में उन्‍हें देरी हो जाएगी, वह मैच देखने के लिए यहां पहुंच गए थे.
 
(पीवी सिंधु)

एक युवा ने तो बात करते-करते पीवी सिंधु को 'लेडी अमिताभ बच्चन' बता दिया, एक आदमी ने बताया कि वह अपने बच्चों को पीवी सिंधु और साक्षी मलिक जैसी बनाएगा, बैडमिंटन खेलने के लिए प्रोत्साहित करेगा. सिंधु फाइनल मैच ज़रूर हार गई थीं लेकिन लोगों का दिल वह जीत चुकी थीं. वहां पर मौजूद हर युवा ने सिंधु को अपने दिल में बैठा लिया था. वहां एक बदलाव दिखाई दे रहा था. सोच में बदलाव, क्रिकेट छोड़कर दूसरे खेलों के प्रति प्रेम में बदलाव...

इस बदलाव को देखकर मुझे बहुत खुशी हुई, अच्छा लगा कि सिर्फ क्रिकेट नहीं, दूसरे खेल के प्रति भी लोग दिलचस्पी रखने लगे हैं. लेकिन जाते-जाते इतना ही कहूंगा अपने बच्चों को सिर्फ पीवी सिंधु या साक्षी मलिक मत बनाएं, दीपा कर्मकार भी बनाइये, ललिता बब्बर भी बनाइये, दूसरे खेलों के खिलाड़ी जैसे भी बनाइए, ओलिंपिक को सिर्फ पदक के नज़रिये से मत देखिये. पदक को जरिया बनाकर अपना नज़रिया मत बदलिए बल्कि अपने बच्चों की रुचि पहचानने हुए उन्हें एक अच्छा खिलाड़ी बनाने की कोशिश कीजिए.

सुशील कुमार महापात्रा एनडीटीवी इंडिया के चीफ गेस्ट कॉर्डिनेटर हैं...

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