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This Article is From Jun 28, 2019

कश्मीर की कश्मकश...

Richa Jain Kalra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 28, 2019 17:39 pm IST
    • Published On जून 28, 2019 17:38 pm IST
    • Last Updated On जून 28, 2019 17:39 pm IST

हाल में ही जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने एक नया शिगूफा छेड़ा कि हुर्रियत कांफ्रेस सरकार से बातचीत के लिए तैयार है. उन्होंने ये भी दावा किया कि घाटी में पिछले एक साल में हालात संभले हैं. इसके बाद हुर्रियत कांफ्रेस के चैयरमेन मीरवाइज़ उमर फारूख़ ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि वो बातचीत का स्वागत का करते हैं और हुर्रियत हमेशा कश्मीर समस्या सुलझाने के लिए इसका समर्थन करती है. लेकिन इस पर केंद्र सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं हुई है. बयान का स्वागत तो दूर की बात केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कश्मीर दौरे में इसका ज़िक्र तक नहीं हुआ. शाह ने समाज के कई तबकों से बातचीत की लेकिन राजनैतिक मुद्दों, सियासी दलों और अलगाववादियों से दूरी बनाए रखी.

तो क्या हुर्रियत की बातचीत पर सहमति से जुड़ा राज्यपाल का बयान अपनी पीठ थपथपाने से ज्यादा कुछ है? इस निष्कर्ष का कारण भारत सरकार की आंतकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते की भारतीय नीति में कोई बदलाव न होना है. इसे गृह मंत्री अमित शाह के दौरे से पहले क्या अपनी रिपोर्ट कार्ड के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहे थे राज्यपाल मलिक? इस संदर्भ में गौर करने वाली बात ये है कि राज्यपाल ने दावा किया कि बीते एक साल में कश्मीर घाटी में हालात सुधरे हैं. लेकिन ज़मीनी हकीकत के आईने में तस्वीर इतनी उजली नहीं दिखती!

जून के शुरूआती 25 दिनों में अब तक 11 से ज्यादा मुठभेड़ हो चुकी हैं. इनमें 21 आतंकी मारे गए हैं जिनमें से अधिकांश स्थानीय लड़के हैं. आतंकवादी संगठनों ने पिछले कुछ समय में स्थानीय लड़कों को दहशत की राह से जोड़ने में कामयाबी दर्ज की है. एक अनुमान के मुताबिक इस साल कम से कम 60 स्थानीय युवा साल 2019 में अभी तक हथियार उठा चुके हैं. जून में ही अभी तक 12 लड़के आतंक का दामन थाम चुके हैं. जिनमें से एक उत्तरी कश्मीर के बारामूला से है जो कि इसी साल जनवरी में आतंक मुक्त ज़िला घोषित किया गया था. अगर आतंकी नई खेप बोने और काटने में सफल हो रहे हैं तो फिर आतंक मुक्त घोषित करने की नीति पर एक बड़ा सवालिया निशान है.

बीते 6 महीनों में 100 से ज्यादा आतंकवादी ढेर किए जा चुके हैं. भारतीय सेना ने भी कुछ दिन पहले मेजर रैंक के अधिकारी समेत कई जवानों को आतंकी हमलों में खोया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने पहले कश्मीर दौरे में भी आंतकवाद के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस अपनाने को कहा. उनका दावा है कि आज़ादी के बाद पहली बार किसी सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ ये नीति अपनाई है. राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई समझौता न करने का संदेश दिया जा रहा है. आतंक को सींचने वाले साधनों पर वार हो रहा है. टेरर फंडिंग पर जारी जांच एजेंसियों की कार्रवाई में हुर्रियत के कई नेताओं के खिलाफ शिकंजा कसा है.

आतंक के खिलाफ भारतीय जांच एजेंसियां कई मोर्चों पर सक्रिय हैं. राष्ट्रीय जांच एजेंसी और प्रवर्तन निदेशालय ने आतंक विरोधी अभियानों को तेज़ किया है. भारत का मानना है कि पाकिस्तान आतंक फैलाने के लिए हुर्रियत नेताओं को कई कारोबारियों के ज़रिए हवाला का पैसा भेजता है. इसी महीने तीन अलगाववादियों को आतंक भड़काने के लिए पैसे लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. शब्बीर शाह, मसरत आलम और असिया अंद्राबी को भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप में जेल में डाला गया है. इसके अलावा अलगाववादियों की संपत्ति पर भी सरकार की टेढ़ी नज़र है. सैयद अली शाह गिलानी के दामाद ज़हूर अहमद शाह के घर को दिल्ली के नज़दीक गुड़गांव में ज़ब्त किया गया. मीरावाइज़ उमर फारूख, सैयद अली शाह गिलानी और जेकेएलएफ के अध्यक्ष यासीन मलिक को दी गई सुरक्षा सरकार ने वापस ले ली. शुक्रवार को खुद गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में माना कि सरकार ने 919 ऐसे लोगों की सुरक्षा वापस ली है जिन पर कोई खतरा नहीं है. इनमें ज्यादातर अलगाववादी और पाकिस्तान के हमदर्द हैं.

ऐसे में जिन अलगाववादियों को मोदी सरकार पाकिस्तान का पिट्ठू मानती है उनसे बातचीत का दरवाज़ा अमित शाह खोलेगें, इसकी संभावना कम नज़र आती है. हुर्रियत अगर बातचीत के लिए लचीला रवैया दिखा रही है तो कहीं न कहीं ये उन पर पड़ रही सरकारी एजेंसियों की जांच की आंच का नतीजा हो सकती है. गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि कश्मीरियत खून बहाने में नहीं है. भारत के विरोध में नहीं है. क्या कश्मीरीयत की बात करने वाले यहां के बाशिंदों के दिल में झांकने की ज़हमत उठाएगें या फिर बंदूक और आक्रामक तेवरों से ही जवाब देंगे. आतंक की फसल जितनी कटती है उससे ज्यादा रोप दी जाती है. ये सिलसिला कब और कैसे थमेगा, इसे तय करने की ज़िम्मेदारी हमारी हुक्मरानों की थी, है और रहेगी. इंतज़ार सरकार की ओर से सकारात्मक पहल का है. इंतज़ार इसलिए लंबा खिंच सकता है क्योंकि देश के गृह मंत्री कश्मीर को खास अधिकार देने वाली धारा 370 हटाने के हक में हैं. अगर ये कभी हुआ तो ये कश्मीर के इतिहास में एक बड़ा अध्याय होगा और उसके अंजाम भुगतने के लिए हमें तैयार रहना होगा.

(ऋचा जैन कालरा NDTV इंडिया में प्रिंसिपल एंकर और एसोसिएट एडिटर हैं.)

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