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This Article is From Dec 19, 2017

उन्माद फैलाने वाले को न्यायपालिका का भी डर नहीं ? रवीश कुमार के साथ प्राइम टाइम

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 19, 2017 21:31 pm IST
    • Published On दिसंबर 19, 2017 21:15 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 19, 2017 21:31 pm IST
यह तस्वीर 14 दिसंबर की है जिस दिन न्यूज़ चैनल एग्ज़िट पोल आने का इंतज़ार कर रहे थे, प्रधानमंत्री का रोड शो हुआ है और चुनाव आयोग ने राहुल गांधी को उनके इंटरव्यू के लिए नोटिस भेजा था. आप इन तस्वीरों को देखते हुए खुद भी तय कर सकते हैं कि राजस्थान के उदयपुर की अदालत के प्रवेश द्वार की छत पर धार्मिक ध्वज फहरा देने की यह तस्वीर उन तमाम ख़बरों की प्राथमिकता में सबसे ऊपर होनी चाहिए थी. एक तरह से अच्छा हुआ कि उस दिन मीडिया ने इस घटना को नज़रअंदाज़ कर दिया, क्या पता इससे माहौल ख़राब ही होता, मगर क्या इस घटना को हमेशा के लिए नज़रअंदाज़ किया जा सकता है. 

क्या इस घटना पर बात नहीं होनी चाहिए ताकि इस भीड़ में शामिल नौजवान जो किसी धार्मिक उन्माद या जायज़ गुस्से के सहारे ही सही, अदालत की तरफ दौड़े चले आए थे, इस तस्वीर को फिर से देखें और ठंडे मन से विचार करें कि वे क्या करने जा रहे थे. हिन्दू मुस्लिम के डिबेट और बात बात पर कानून की प्रक्रिया से बाहर मामले को निपटाने का साहस समाज के लिए घातक तो है ही, कानून व्यवस्था की संस्थाओं के लिए भी बड़ी चुनौती बन सकता है. 

राजस्थान के उदयपुर की अदालत के गेट की छत पर चढ़कर भगवा ध्वज लहराने की यह तस्वीर संविधान की बनाई तमाम मर्यादा से खिलवाड़ करती है. जब आप सुप्रीम कोर्ट के गुंबद पर राष्ट्रीय ध्वज को लहराते देखते हैं तो श्रद्धा उमड़ती है कि यह संस्था राष्ट्र ध्वज की छाया में सबके लिए न्याय के प्रति प्रतिबद्ध है. क्या आप यह सहन कर सकेंगे कि कोई सुप्रीम कोर्ट के ऊपर तिरंगे के अलावा कोई और ध्वज फहरा दे, क्या आप यह भी बर्दाश्त कर सकेंगे कि अदालत की कार्यवाही को प्रभावित करने के लिए बाहर बड़ी संख्या में लोग नारेबाज़ी करने जा रहे हो. हम इंसाफ़ के दरवाज़े पर जाकर रूक जाते हैं, उसकी तरफ निगाह किए रहते हैं कि फैसला आएगा और नियम कानून और सबूतों के आधार पर आएगा. 

पिछले तीन साल के दौरान तिरंगे के लेकर कितनी बहस हुई. यूनिवर्सिटी में छात्रों ने लोकतांत्रिक जुलूस निकाले तो कहा गया कि उनमें राष्ट्रवाद की कमी है, इसलिए वहां 207 की ऊंचाई पर तिरंगा फहराया जाएगा. 19 फरवरी 2016 के अखबारों और वेबसाइट चेक कीजिए. तब की मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के साथ सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलरों की बैठक हुई. इसमें फैसला हुआ कि सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय राष्ट्रीय ध्वज लगाएंगे. सबसे पहले जेएनयू में तिरंगा लहरेगा, जबकि वहां पहले से ही तिरंगा लहराता रहा है. अखबारों में छपा था कि उच्च शिक्षा संस्थानों के छात्रों में एकता और सौहार्द की भावना पैदा करने के लिए यह फैसला लिया गया है और इस कदम से मज़बूत भारत का संदेश जाएगा.

इस फैसले के संदर्भ में राजस्थान के उदयपुर की अदालत के प्रवेश द्वार की छत पर भगवा ध्वज लहराने की घटना को देखा जाना चाहिए. क्या इन लोगों में एकता और सौहार्द की भावना कम है, क्या राष्ट्रीय ध्वज के प्रति सम्मान की भावना कम है जो अपने संगठन का ध्वज लेकर छत पर चढ़ गए और फहरा आए. 14 दिसंबर के दिन यह नौजवान उदयपुर की अदालत की छत पर भगवा ध्वज लेकर चढ़ गया. नीचे उसके समर्थकों की भीड़ खड़ी थी. ध्वज पर जयश्री राम और राम जी की तस्वीर है. अभी तक इस नौजवान की पहचान नहीं हो पाई है. ये लोग किस संगठन से जुड़े हैं, इसकी भी पहचान नहीं हो पाई है. 

हमारे सहयोगी संजय व्यास का कहना है कि ज़्यादातर प्रदर्शनकारी शहर से बाहर के थे. 14 दिसंबर को पुलिस और इनके बीच कई बार झड़प हुई. पुलिस जितनी बार इन्हें हटाती, ये लोग दूसरी जगह जमा हो जाते थे. शाम होते होते उदयपुर अदालत परिसर के बाहर जमा हो गए और वहां भी माहौल उग्र हो गया. तभी कुछ नौजवान अदालत परिसर की छत पर चढ़ गए और भगवा ध्वज लहरा दिया. सोचिए, न संगठन का पता न पहचान का पता है और अदालत में इतने लोग आ भी जाते हैं और उसकी छत पर ध्वजा भी लहरा देते हैं. पुलिस ने उसदिन तत्परता से कार्रवाई न की होती तो माहौल और ख़राब हो सकता था. 

आपने कुछ दिन पहले एक वीडियो देखा होगा, जिसमें शंभुलाल रैगर बंगाल से आए मज़दूर अफ़राज़ुल की हत्या करता है और जला कर मार देता है और फिर वीडियो भी बनाता है. शंभुलाल राजसमंद का रहने वाला था जो उदयपुर से 70 किमी है. राजसमंद में अलग ज़िला अदालत है. उदयपुर में जो लोग जमा हुए थे वो मुस्लिम सभा के सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे थे. मुस्लिम सभा का कोई वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें आपत्तिजनक नारे लगाए जा रहे थे. पुलिस ने वायरल हुए वीडियो के मामले में 10 लोगों को गिरफ्तार किया था, चार अभी जेल में है और छह की ज़मानत हो गई है. पुलिस को इनसे भी सख्ती से पेश आना चाहिए और पूछा जाना चाहिए कि ऐसे नारों को लगाकर वो किसका भला कर रहे हैं. क्या वो किसी जवाबी भीड़ के लिए जानबूझ कर आग लगा रहे हैं. अफराजुल की हत्या हुई है, शर्मनाक है, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी कहा है कि घटना शर्मनाक है और पुलिस ने गिरफ्तारी में देरी नहीं की है, लेकिन मजमा लगाकर ऐसे नारे लगाने की हिम्मत कहां से आई. ऐसे लोगों पर भी पुलिस को लगातार नज़र रखनी चाहिए. 

सवाल है कि अगर हिन्दू संगठन की मांग सही भी थी तो भी क्या यह सही था कि वे प्रदर्शन करते हुए अदालत तक आते और छत पर चढ़कर भगवा ध्वज लहरा देते. क्या इन युवाओं के मन में संविधान के प्रति कोई सम्मान नहीं बचा था. गनीमत है कि प्रदर्शनकारियों ने उस जगह को नहीं छेड़ा जहां वाकई तिरंगा लहरा रहा होता है. आज भी उदयपुर की अदालत परिसर में आज भी तिरंगा महफूज़ है. राजस्थान के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया जी भी उदयपुर से ही आते हैं. क्या सरकार को इस घटना को लेकर विशेष सतर्कता नहीं बरतनी चाहिए. अगर इसी तरह भीड़ अपनी ताकत धार्मिक पहचान से हासिल करती रही तो हालात क्या हो सकते हैं. क्या हम दावे के साथ कह सकते हैं कि इस तरह की घटना अंतिम है. क्या हम कभी सोच सकते थे कि ऐसी तस्वीर देखने को मिलेगी, अदालत का परिसर होगा, बाहर भीड़ होगी और छत पर कोई भगवा लिए खड़ा होगा. 

पुलिस ने उदयपुर की घटना के मामले में उस दिन 200 लोगों को हिरासत में लिया था. कई ऐसे भी थे जो अपने अदालती काम से वहां गए थे. बाद में सभी को ज़मानत पर छोड़ दिया गया. तिरंगा की एक ग़लत तस्वीर दिख जाती है तो ट्विटर जगत सक्रिय हो जाता है. टीवी चैनलों में तूफान खड़ा हो जाता है. मीडिया और समाज के लिए उदयपुर की घटना को भुला देना क्या इतना सहज हो सकता है. संवैधानिक दायित्यों से लैस किसी भी राजनीतिक पहचान के नागरिकों को क्या इस तस्वीर से सतर्क नहीं हो जाना चाहिए. हम उदयपुर पुलिस के आईजी का बयान दिखाना चाहते हैं जो उन्होंने घटना के दिन मीडिया से बात करते हुए कहा था.

हालत यह है कि ट्वीट पर कुछ लोग मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की भी आलोचना करने लगे कि उन्होंने प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई क्यों होने दी. ऐसे तर्कों को भी जगह मिल रही है और आए दिन लोग ऐसी घटनाओं से सहज होते जा रहे हैं. कई लोगों ने इस घटना की निंदा भी की. इस घटना को भावुकता या आक्रोश से मत देखिये, ठंडे दिमाग से देखिए और सोचिए कि कहीं हमने संवाद के सारे मौके खो तो नहीं दिये हैं. क्या धार्मिक वजहों को लेकर कोई इस हद तक उग्र हो सकता है कि अदालत की इमारत के करीब पहुंच जाए. हमारे सहयोगी मुन्ने भारती ने प्रशांत भूषण से बात की, वही ऐसे मामलों में सबसे पहले बोलने का जोखिम भी उठाते हैं. 

हिन्दू और मुसलमान के बीच कई बार टकराव की नौबत आती है. ऐसी स्थिति का लाभ उठाकर भीड़ का निर्माण करना चाहिए, उसे हांक कर कोर्ट की तरफ ले जाना चाहिए, क्या करना चाहिए था, इस पर आप ही विचार करें. ऐसी किसी भी भीड़ जिसे अदालत और कानून का ख़ौफ़ न हो, हमारे समाज को कैसे बदल रही है. संविधानिक संस्थाओं के प्रति हमारे नज़रिए को कैसे बदलती है सबको समझना चाहिए. मैं शनिवार को गोवा में था. वहां एक दीवार पर एक पोस्टर देखा. यह पोस्टर हिन्दू जन जागृति समिति का है. इस पोस्टर में राष्ट्र ध्वज के सम्मान की बातें लिखी हैं. कहा गया है कि प्लास्टिक के ध्वज का इस्तमाल न करें, चेहरे और शरीर पर राष्ट्र ध्वज की आकृति न बनाएं. कहीं पर राष्ट्र ध्वज पड़ा मिले तो उसे सम्मान के साथ शासकीय कार्यालय में जमा कीजिए, लेकिन उदयपुर के ये नौजवान किसी अज्ञात हिन्दू संगठन के नाम पर जमा होकर अदालत परिसर तक आ गए और छत पर राम पताका लहरा दिया. क्या हिन्दू जागरण समिति के लिहाज़ से ऐसा करना राष्ट्र ध्वज का सम्मान होगा? हमारे सामने दो तरह के हिन्दू संगठनों का नज़रिया, फैसला आप कीजिए. 

हमारे सहयोगी सुशील कुमार महापात्रा ने रिटायर्ड जस्टिस सोढ़ी से बातचीत की. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका इस तरह से नहीं चल सकती है. हमारे सहयोगी हिमांशु शेखर मिश्रा ने राज्यसभा सदस्य और वकील केटीएस तुलसी से भी बात की. हमने राजस्थान के महाधिवक्ता को भी फोन किया मगर बात नहीं हुई. उम्मीद है देश के कानून मंत्री या सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस इस घटना का संज्ञान लेंगे. 

कैसी कैसी आवाज़ें आ रही हैं. मध्यप्रदेश के गुना से बीजेपी के विधायक पन्ना लाल शाक्य भाषण दे रहे हैं कि विराट कोहली और अनुष्का शर्मा ने देश के बाहर जाकर क्यों शादी की. विधायक जी कह रहे हैं कि इस देश में राम का विवाह हुआ है, कृष्ण का हुआ है, युधिष्ठिर का हुआ है, आप लोगों का भी हुआ है, मगर दोनों ने विदेश में शादी की. पैसा यहां से कमाया और रुपया ले गया विदेश में. आखिर ये सोच कहां से आ रही है. बात बात में धर्म का विरोधी करार दिया जाना, बात बात में देश का विरोधी करारा दिया जाना. विधायक जी जिस मंच से भाषण दे रहे थे, उस पर प्रधानमंत्री मोदी का ही पोस्टर नज़र आ रहा था. एक और तस्वीर आई इन दिनों. 

शनिवार को जोधपुर जेल से अदालत में पेशी के लिए आए आसाराम बापू के पांव एक पूर्व मुख्य न्यायधीश एसएन भार्गव ने जाकर छू लिया. आम तौर पर पुलिस किसी कैदी के करीब जाने से रोकती है मगर जस्टिस भार्गव ने उनके पांव छू लिए. क्या हाईकोर्ट के एक पूर्व मुख्य न्यायधीश को ऐसा करना चाहिए था, क्या न्याय के प्रति लोगों में अच्छा संदेश जाएगा. जस्टिस भार्गव सिक्किम के राज्यपाल भी रह चुके हैं. 

क्या हमने ग़लत को ग़लत कहने का साहस खो दिया है या अब बहुत से लोग ऐसी घटनाओं से सहमत होने लगे हैं, जिसमें मीडिया भी शामिल है. एक नज़रिया यह हो सकता है कि इन नौजवानों से सख़्ती से पेश आया जाए, यह होना चाहिए मगर मेरा नज़रिया कुछ और भी है. मुस्लिम सभा और उदयपुर की अदालत के प्रवेश द्वार पर भगवा फहराने वाले सभी नौजवानों से किसी को बात करना चाहिए. क्या वे नौकरी न मिलने से परेशान हैं, उनके भीतर धर्म को लेकर इतना गुस्सा कैसे आ जाता है, किसान आत्महत्या करते हैं, उसे लेकर उनके भीतर करूणा या सिस्टम के प्रति गुस्सा क्यों नहीं आता है. हमें इनसे आंख मिलाकर बात तो करनी होगी, पूछना तो होगा कि जानबूझ कर ये अपनी ज़िंदगी और दूसरों की ज़िंदगी दांव पर क्यों लगा रहे हैं, क्या किसी बड़े संगठन ने इनसे कुछ वादा किया है, कोई इन्हें बचा लेने का भरोसा दे रहा है, क्या बात है. बात करने से ही पता चलेगा.

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