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This Article is From Mar 13, 2021

OTT प्लैटफॉर्म की आड़ में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर वार?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 08, 2021 10:19 am IST
    • Published On मार्च 13, 2021 00:43 am IST
    • Last Updated On अप्रैल 08, 2021 10:19 am IST

भारत सरकार ने 25 फरवरी को सूचना तकनीकी को लेकर नए नियमों को अधिसूचित किया है. इसका नाम The Information Technology (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) Rules, 2021, है. इन नियमों को लेकर आशंका जताई जा रही है कि इससे इंटरनेट पर चलने वाले मीडिया संस्थानों और स्वतंत्र पत्रकारों के लिए खतरा हो जाएगा. डिजिटल जगत में मीडिया की आज़ादी पहले से कम हो जाएगी. हम इस पर फोकस करेंगे. पहले देखेंगे कि सरकार ने डिजिटल प्लेफार्म के लिए नियम बनाते समय न्यूज़ चैनलों की नियामक संस्था NBA और प्रिंट मीडिया की नियामक संस्था भारतीय प्रेस परिषद का हवाला दिया है. क्या इन संस्थाओं के पास रेगुलेटर बनने की पर्याप्त शक्ति है, कहीं ऐसा तो नहीं कि इन दंतहीन संस्थाओं का हवाला देकर सरकार ने डिजिटल जगत के लिए दैत्याकार नियंत्रण बना दिया है. इन संस्थाओं के लिए दंतहीन शब्द का इस्तेमाल अदालतों में ही किए गए हैं. थोड़े बहुत उदाहरणों के साथ हम यह भी देखेंगे कि अफवाहों को लेकर चिन्तित सरकार तब कदम उठाती है जब गोदी मीडिया के संस्थान अफवाह और फेक न्यूज़ फैलाते हैं.

भारत सरकार ने ऑनलाइन प्लेटफार्म के लिए आचार संहिता बनाई है. नए नियम तय किए हैं. इंटरनेट पर मौजूद Over The top OTT प्लेटफार्म को भी नियमों का पालन करना होगा. नेटफ्लिक्स और एमेजॉन प्राइम को आप OTT प्लेटफार्म के रूप में जानते हैं. जिनके यहां के कार्यक्रमों की विविधता और व्यापकता इसलिए भी है कि वहां किसी तरह का सेंसर नहीं है. नए नियमों के अनुसार अब कटेंट का कई तरह से वर्गीकऱण किया गया है. विवादों के निपटारे के लिए तीन चरणों की व्यवस्था बनाने की बात कही गई है.

यह नियम केवल नेटफ्लिक्स, एमेज़ान प्राइम जैसे OTT प्लेटफार्म पर लागू नहीं होते बल्कि न्यूज़ वेबसाइट पर भी लागू होंगे. इन्हें बताना होगा कि कोई सामग्री कहां से प्रकाशित हुई है, किसने प्रकाशित की है. इन सभी को शिकायतों के निपटारे के लिए एक नियामक संस्था बनानी होगी जिसके प्रमुख रिटायर्ड जज हों. समाज के विशिष्ट व्यक्ति हों. आप जानते हैं कि मीडिया की स्वतंत्रता न तो इन नियामकों से तय होती है और न केवल इनके कारण मीडिया की स्वतंत्रता की रक्षा होती है. यह बात ध्यान में रखना ज़रूरी है. इन नियामकों के रहते ही भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की रैकिंग लगातार गिरती गई है.

सूचना प्रसारण मंत्री की बात ठीक है कि न्यूज़ चैनलों की बेशक एक नियामक संस्था है. लेकिन एक ही देश में कुछ चैनल इस नियामक संस्था के सदस्य हैं और बहुत से चैनल नहीं भी हैं. किसी चैनल के लिए नियामक संस्था का सदस्य होना अनिवार्य नहीं है. अगर आप रिपब्लिक चैनल हैं और अर्नब गोस्वामी हैं या दूसरे गोदी मीडिया के एंकर हैं या चैनल हैं तो अनुभव और तमाम साक्ष्यों से बताया जा सकता है कि उन पर किसी नियम की कोई बंदिश ही नहीं है. नैतिक बंदिश तो है ही नहीं.

मौजूदा नियामक संस्था का नाम News Broadcasting Standards Authority है. NBSA के 26 ब्रॉडकास्टर और उनके 77 चैनल सदस्य हैं. जबकि चैनलों की संख्या इससे कई सौ गुना ज़्यादा है. जुलाई 2019 में 50 चैनलों ने मिलकर एक संस्था बनाई नाम  News Broadcasters Federation रखा. दिसम्बर 2019 में 78 चैनलों की इस संस्था ने अर्नब को अपना प्रेसीडेंट भी चुना. न्यूज़ चैनलों की नियामक संस्था के अनुभव एक समान नहीं हैं. कई मामलों में संस्था ने सज़ा सुनाई तो चैनल ने सदस्यता ही छोड़ दी. कुछ मामलों में इस संस्था ने कॉमन ग्राउंड रूल तय करने में अच्छी भूमिका निभाई. लेकिन उनमें भी ऐसे मामले ज़्यादा होंगे जब सरकार या अदालत के निर्देशों को लागू कराने की बात हो. सुदर्शन न्यूज़ ने यूपीएससी जिहाद को लेकर कार्यक्रम बनाया था. यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था तब जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने NBA से कहा था कि आप टीवी भी देखते हैं? ऐसे न्यूज़ आइटम पर नियंत्रण क्यों नहीं किया. तब कोर्ट ने कहा था कि बताइये कि संगठन को कैसे मज़बूत किया जाए.

पिछले सात साल में न्यूज़ चैनलों पर फेक न्यूज़ के फैलाने के कई आरोप लगे, बकायदा लोगों ने सबूत पेश किया लेकिन कुछ खास नहीं हुआ. उन मामलों में नियामक संस्था ने क्या किया या चैनलों ने खुद से क्या किया या सरकार ने क्या किया यह सवाल पूछने की ज़रूरत नहीं है. आप जवाब जानते हैं. महीनों हफ्तों चैनलों पर एकतरफा सांप्रदायिक कार्यक्रम चले लेकिन उन पर रोक नहीं लगी. आल्ट न्यूज़ ने सैंकडों फेक न्यूज़ पकड़े हैं. अब तो सूचना मंत्रालय की इकाई PIB भी फेक न्यूज़ का लेवल देने लगा है. क्या जब आल्ट न्यूज़ फेक न्यूज़ पकड़ता है तो उस फेक न्यूज़ को PIB संज्ञान में लेता है, इस सवाल का जवाब आप खुद खोज सकते हैं.

जैसे आप इस खबर पर PIB के फेक न्यूज़ का लेवल नहीं देख सकेंगे जिसे आल्ट न्यूज़ ने उजागर किया है. आल्ट न्यू़ज़ ने दिखााया कि कैसे असम चुनाव से संबंधित एक फेक वीडिया में कांग्रेस की सहयोगी पार्टी AIUDF के नेता और सांसद मौलाना बदरूद्दीन अजमल को कहते दिखाया गया कि इसी भारत पर मुगलों ने आठ सौ साल राज किया है. इस देश को इस्लामिक राष्ट्र बनाएंगे. इस वीडियो को खूब वायरल कराया गया. इस वीडियो को विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने शेयर कर दिया. अजमल को जिहादी बताया. कहा कि AIUDF के चीफ ने भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने की बात कही. इस वीडियो को दूरदर्शन के पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने शेयर किया. एबीबी की और इंडिया टीवी की न्यूज़ एंकर ने शेयर किया. यही नहीं प्रधानमंत्री मोदी एक हैंडल को फॉलो करते हैं @soulefacts उसने भी इसे शेयर किया. आल्ट न्यूज़ की अनुराधा ने अपने शोध में पाया कि अजमल ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया था. जब पूरा वीडियो देखा गया तो अजमल ये कह रहे हैं कि “इसी भारत पर मुग़ल बादशाहों ने 800 साल राज किया. किसी ने ऐसा सपना नहीं देखा, किसी की इतनी हिम्मत नहीं हुई कि इस देश को इस्लामिक राष्ट्र बना दे.” इस रिपोर्ट का बाकी अंश आप आल्ट न्यूज़ की साइट पर पढ़ सकते हैं. हमने प्रतीक सिन्हा से पूछा कि जब वे फेक न्यूज़ पकड़ते हैं तब सरकार से लेकर चैनलों की नियामक संस्थाओं का क्या हाल होता है. आल्ट न्यूज़ सरकार और बीजेपी के खिलाफ फैलाए जा रहे फेक न्यूज़ को भी पकड़ता है. 

इसी साल 18 जनवरी को जब फर्ज़ी TRP का मामला आया तब NBA ने अर्नब के चैनल के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की थी. उस मांग का क्या हुआ? NBA खुद अर्नब के चैनल को लेकर फाइन नहीं कर सकती. यह बात प्रकाश जावड़ेकर ने नहीं बताई या बताने का मौका नहीं मिला. इसी की जगह कोई ऐसा चैनल होता जो सवाल करता रहा हो तो NBA और सरकार दोनों सक्रिय हो जाती. NBA ने यह भी कहा है कि रेटिंग एजेंसी बार्क को पहले भी शिकायत की गई थी मगर उस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. इससे साफ होता है कि रेटिंग एजेंसी भी NBA की बात नहीं मानती है. तो आपने देखा कि डिजिटल मीडिया के लिए सख्त नियम ला कर सरकार जिस नियामक संस्था का हवाला दे रही थी उसके पास कोई खास शक्ति नहीं है. तमाम चैनलों के पास आज़ादी है कि वे NBSA का सदस्य न बनें. क्या यही आज़ादी डिजिटल प्लेटफार्म के पास होगी? 

अब आते हैं भारतीय प्रेस परिषद या प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया पर. अगस्त 2019 में इस संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में बकायदा जम्मू कश्मीर में मीडिया पर अंकुश लगाए जाने का समर्थन किया था. अनुराधा भसीन के मामले में आप इंटरनेट से खबरें देख सकते हैं. जब आलोचना हुई तब राय बदली. क्या तब सरकार प्रेस की स्वतंत्रता के लिए आगे आई थी? 2018 में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि उसके पास प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया एक्ट के उल्लंघन करने पर किसी मीडिया संस्थान या व्यक्ति को दंडित करने की कोई शक्ति नहीं है.

तो आपने देखा कि प्रेस काउंसिल आफ इंडिया और News Broadcasters Association (NBA) दंतहीन संस्थाएं हैं. क्या इसी तरह की नियामक संस्था सरकार ने इंटरनेट के प्लेटफार्म के लिए बनाई है? जवाब है नहीं. अगर मकसद है अफवाहों को रोकना है तो फिर सरकार बताए कि तालीबान को लेकर जब तरह तरह की अफवाहें फैलाई जा रही थी तब वह क्या कर रही थी. बहरहाल सूचना प्रसारण मंत्री का एक और बयान देखिए. ये सब 25 फरवरी की प्रेस कांफ्रेंस का हिस्सा है.

जब दो हज़ार के नोट में नैनो चिप की अफवाह उड़ी थी तब क्या सरकार चिन्तित हुई थी? इसी तरह अनेक मामलों में सांप्रदायिक अफवाहें फैलाई गईं तब सरकार ने क्या किया? आप कई हाई कोर्ट की टिप्पणियां देख सकते हैं कि पिछले साल इसी वक्त न्यूज चैनलों ने कोरोना को तालिबान से जोड़ने में कितने झूठ फैलाए. अगर सरकार वाकई अफवाहों को लेकर सीरीयस है तो मैं गृहमंत्री अमित शाह का एक बयान सुनाना चाहता हूं. बयान 2018 का है जो राजस्थान के कोटा में बीजेपी के कार्यकर्ताओं के बीच दिया गया. आप पूरी बाइट भी सुन सकते हैं. लेकिन बहुत सावधानी से अच्छी और बुरी बात दोनों एक साथ कही गई है. जिसे सुविधा के हिसाब से आप कह सके कि हमने तो मना किया है और आप देख भी सकें कि बात चली गई.

कहीं ऐसा तो नहीं कि इन अफवाहों के नाम पर उन वेबसाइटों को कुचलने की तैयारी है जो सरकार से सवाल करते हैं. ऐसा कई लोग सवाल कर रहे हैं. आप जानते हैं कि हर टीवी में चाइल्ड लॉक होता है और नेटफ्लिक्स और एमेज़ॉन पर बच्चों के देखने की अलग कैटगरी होती है. अगर आप सब्सक्राइबर हैं तो आप जो भी देखेंगे आपके नाम के नीचे सारी जानकारी उस प्लेटफार्म पर पहले से होती है. घर में लोग जान सकते हैं कि किसने क्या देखा है. बच्चों के लिए भी अलग से मार्क किया होता है. एक अलग प्रोफाइल बच्चों के लिए बना सकते हैं जिसमें 12 की उम्र से ऊपर का कांटेंट नहीं दिखाया जाएगा. माता पिता जान सकते हैं कि बच्चे क्या देख रहे हैं. यह सब पहले से प्राइम और नेटफ्लिक्स में है. लेकिन पेरेंटल लॉ का सहारा लेकर नए नियमों का बचाव किया गया. नए आईटी नियमों को लेकर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने चिंता जताई है. गिल्ड ने अपने बयान में कहा है कि 'सूचना प्रोद्योगिकी एक्ट के तहत जो नियम बनाए गए हैं इससे इंटरनेट पर काम करने वाले प्रकाशकों के काम में बुनियादी बदलाव आ जाएगा. इससे भारत में मीडिया की स्वतंत्रता को गहरा धक्का लगेगा. इन नियमों से केंद्र सरकार को शक्ति मिलती है कि वह देश भर में कहीं भी प्रकाशित किसी समाचार को ब्लाक कर दे, डिलिट कर दे या उसमें बदलाव कर दे. बिना किसी न्यायिक हस्तक्षेप के. इन नियमों के कई प्रावधान डिजिटल न्यूज़ मीडिया और व्यापक रूप से मीडिया को अवांछित अंकुश लगा देते हैं.'

एडिटर्स गिल्ट को इस बात की चिन्ता है कि सरकार ने नियमों की अधिसूचना जारी करने से पहले किसी भी स्टेकहोल्डर से राय मशविरा नहीं किया. गिल्ड मांग करता है कि इन नियमों पर रोक लगा दी जाए और सभी पक्षों के साथ मानीख़ेज़ बातचीत हो.

सरकार इस बात को नोट करे कि सोशल मीडिया पर लगाम लगाने के नाम पर वह स्वतंत्र मीडिया को मिली संवैधानिक सुरक्षा को खत्म नहीं कर सकती है जो हमारे लोकतंत्र का आधारस्तंभ है.

इन नियमों के संदर्भ में कैरवान पत्रिका में हरतोष सिंह बल की एक रिपोर्ट काफी चर्चित हुई थी. उस रिपोर्ट को आप कैरवान की वेबसाइट पर पढ़ सकते हैं. इसमें बताया गया है कि सरकार के मंत्री इस बात को लेकर चिन्तित थे कि सरकार के खिलाफ छपने वाली खबरों, पत्रकारों और मीडिया संस्थानों पर कैसे अंकुश लगाएं. वह खबर अभी भी आपको कैरवान की साइट पर मिलेगी. उसमें तो पत्रकार ही राय दे रहे हैं कि पत्रकारों को कैसे गुलाम बनाया जाए. आज गांधी होते, दांडी मार्च नहीं मीडिया की आज़ादी के लिए मार्च कर रहे होते. न्यूज़ मिनट और द वायर ने दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी है. दि वायर ने अपनी याचिका में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने ही आईटी एक्ट के सेक्शन 66A को रद्द कर दिया था. दिल्ली हाई कोर्ट ने इस याचिका पर सरकार को नोटिस जारी किया है. नित्या रामाकृष्णनन वायर और न्यूज़ मिनट की तरफ से यह केस लड़ रही हैं. लाइव लॉ ने भी केरल हाई कोर्ट में इन नियमों को चुनौती दी है. केरल हाई कोर्ट ने भी केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है.

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