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This Article is From Feb 15, 2022

रवीश कुमार का Prime Time: कहां है 23,000 करोड़ का फ्रॉड करने वाला ऋषि अग्रवाल...?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 15, 2022 10:23 am IST
    • Published On फ़रवरी 15, 2022 00:29 am IST
    • Last Updated On फ़रवरी 15, 2022 10:23 am IST

नमस्कार मैं रवीश कुमार, ऋषि कमलेश अग्रवाल कौन है. इस व्यक्ति पर आरोप है कि इसने 28 बैंकों के साथ करीब 23 हज़ार करोड़ रुपये का फ्राड किया है. इस व्यक्ति के बारे में आज तक विस्तार से जानकारी नहीं है. हमने ऋषि अग्रवाल की तलाश में इंटरनेट में मौजूद तमाम खबरों को सर्च किया. इन खबरों के ज़रिए आप इतना भर जान पाते हैं कि ऋषि अग्रवाल का प्रभाव क्या था, जहाजरानी सेक्टर से संबंधित कंपनी की ख़बरों का प्रधानमंत्री मोदी के सपनों से क्या संबंध था, इस सेक्टर को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की काफी दिलचस्पी रही है. उनके पसंदीदा सेक्टर में 23000 करोड़ का बैंक फ्राड होता है. हम आगे बढ़ने से पहले सावधान करना चाहते हैं कि हमें इस स्तर पर ठोस सबूत नहीं मिले लेकिन अगर आप योजना और उसकी राजनीति के हिसाब से देखेंगे कि तब आप जान सकेंगे कि 23000 करोड़ का घोटाला करने वाले ऋषि अग्रवाल को लेकर किस तरह से सटीक सवाल पूछे जाने चाहिए और CBI और सरकार को किस तरह का जवाब देना चाहिए. तीन दिन हो गए हैं FIR को लेकिन 23000 करोड़ का बैंक फ्राड करने वाले ऋषि अग्रवाल के बारे में काफी कम जानकारी है. मुमकिन है बिजनेस पत्रकार पड़ताल में लगे हों, लेकिन इंटरनेट पर मौजूद सूचनाओं को हमने, सूचक और शुभांगी डेढ़गवे ने जमा करना शुरू किया. यह देखने के लिए कि जहाजरानी सेक्टर में क्या हो रहा है और क्यों इस सेक्टर में बैंक के इतिहास का सबसे बड़ा फ्राड हुआ है.

रविवार के दिन कुछ अखबारों में जब इसकी रिपोर्ट छपी तो उनके आकार-प्रकार को देख रहा था. ज्यादातर में प्रेस रिलीज़ से अधिक जानकारी नहीं थी. मतलब अपनी जानकारी नहीं है. इंडियन एक्सप्रेस में यह ख़बर पेज नंबर 12 पर छपी थी. ठीक उसी साइज़ की जिस साइज़ की यह ख़बर अमर उजाला के पहले पन्ने पर छपी है. सूचनाएं सभी में एक समान ही हैं यानी जो प्रेस रिलीज़ में दी गई है. इसी तरह का कवरेज दूसरे अख़बारों में भी हुआ है. जितना बताया गया है उतना छाप दिया गया है. अगर संपादक नाम की संस्था का समापन नहीं हो गया होता तो कम से कम कोई संपादक पूछता कि इतना बड़ा फ्राड हुआ है, और हमारी अपनी जानकारी क्या है. 23000 करोड़ का फ्राड करने वाला ऋषि अग्रवाल कहां है. किस सरकार के समय इसे क्या फायदा मिला है, इस पर रिपोर्ट कहां है.

7 फरवरी को सीबीआई FIR करती है, जब विपक्ष आवाज़ उठाना शुरू करता है तब रविवार को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की तरफ से एक प्रेस रिलीज़ जारी की जाती है. उससे संदेह दूर होने के बजाए बढ़ जाते हैं. भारतीय स्टेट बैंक ही कह रहा है कि 2013 में ही पता चल गया था कि इस कंपनी का लोन NPA हो गया था मगर यह जानकारी नहीं है कि उस वक्त कंपनी पर कितने हज़ार करोड़ का लोन था. क्या 2013 के बाद भी सरकार ने उस कंपनी को जहाज़ बनाने के आर्डर दिए हैं?स्टेंट बैंक आफ इंडिया ने लिखा है कि नवंबर 2013 में कंपनी का लोन NPA हो जाने के बाद इस कंपनी को उबारने के कई प्रयास किए गए लेकिन सफलता नहीं मिली. पहले मार्च 2014 में इसके खाते को restructured किया गया लेकिन जहाजरानी सेक्टर में अब तक की सबसे भयंकर गिरावट आने के काऱण इसे उबारा नहीं जा सका. उसके बाद जुलाई 2016 में इसके खाते को फ़िर से NPA घोषित कर दिया गया.

दो साल बाद अप्रैल 2018 में अर्नस्ट एंड यंग नाम की एक एजेंसी नियुक्त की गई कि वह जांच कर रिपोर्ट दे. जनवरी 2019 में उस कंपनी ने अपनी रिपोर्ट दे दी.उस रिपोर्ट को 2019 में सभी देनदारों की फ्राड आइडेंटिफिकेशन कमेटी के सामने रखा गया.पाया गया कि इस कंपनी ने लोन को कहीं और खपा दिया है, फंड हड़प लिया है और विश्वास तोड़ा है. जो कि आपराधिक है. नवंबर 2019 में SBI ने पहली बार CBI से शिकायत की.यह टाइम लाइन स्टेट बैंक आफ इंडिया ने दी है. इससे पता चलता है कि बैंकों ने 2013 में ही पकड़ लिया था कि कंपनी ने जो लोन लिया है वह NPA हो गया है. क्या उस स्तर पर 28 बैंक को नहीं लगा कि लोन गलत दिया गया है, या लोन का पैसा लेकर कंपनी कहीं बाहर पैसा भेज रही है? 23000 करोड़ का लोन डूब रहा है और फ्राड होने का पता लगाने की कार्रवाई ये बैंक अप्रैल 2018 में शुरू करते हैं. रिपोर्ट आती है जनवरी 2019 में और सीबीआई के पास पहली शिकायत दर्ज कराई जाती है दिसंबर 2019 में. 11 महीने के बाद. SBI के जवाब से कुछ और सवाल पैदा होते हैं अगर सबसे अधिक लोन ICICI ने दिया है तो उसने CBI से क्यों नहीं शिकायत की,SBI  ने क्यों की? SBI ने कहा है कि सबसे अधिक लोन ICICI ने दिया, फिर IDBI ने और फिर SBI ने इस प्रेस रिलीज़ में क्यों नहीं बताया कि लोन की राशि क्या है,  यह भी साफ नहीं है कि यह पैसा भारत के बाहर भेजा गया है या भीतर ही है.

SBI की टाइम लाइन से संदेह गहरा होता है कि 23000 करोड़ का लोन NPA हो रहा है, फ्राड हो रहा होगा इसकी जांच के लिए 28 बैंकों को ध्यान आता है 2018 में? इसलिए जानना ज़रूरी है कि एबीजी शिपयार्ड कंपनी क्या है, इसके मालिक ऋषि अग्रवाल का किससे संबंध है, कंपनी का बिजनेस किन संस्थाओं से रहा है? कांग्रेस पार्टी ने 15 फरवरी 2018 को एक प्रेस कांफ्रेंस की थी. कांग्रेस की इस प्रेस रिलीज़ में लिखा है कि एबीजी शिपयार्ड का ऋषि अग्रवाल भारत से भाग गया है. इसमे लिखा है कि 26 जुलाई 2016 को PMO में इसकी शिकायत दर्ज कराई गई थी. लेकिन मोदी सरकार के तहत फ्राड पकड़ने का सिस्टम बंद कर दिया गया है. कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने कहा, ये देश का सबसे बड़ा घोटाला 22842 करोड़ हुआ ABG शिपयार्ड ने किया ABG पर 5 साल तक सरकार चुप रही. आफिस आफिस खेला गया 5 सालो तक. मोदी सरकार की स्कीम है एज ऑफ डूइंग फ्रॉड चल रहा है. 

अब इस कहानी में फरवरी का संयोग देखिए. कांग्रेस ने 15 फऱवरी  2018 में आरोप लगाया था कि एबीजी कंपनी ने 30 बैंकों के साथ फ्राड किया है और ऋषि अग्रवाल भारत से भाग गया है तब उसके बाद चार साल बाद फरवरी 2022 में FIR होती है. बीजेपी का आरोप है कि बैंकों ने लोन UPA के समय दिया गया. मोदी सरकार के समय पकड़ा गया लेकिन यह जवाब भी पूरा नहीं है. इस आरोप से इस सवाल का उत्तर नहीं मिलता कि 23000 करोड़ मामले के फ्रांड के केस में FIR होने में चार साल का वक्त क्यों लगा और ऋषि अग्रवाल कहां है? 

क्या बैंकों का फ्राड पकड़ने में 52- 56 महीने लगते हैं? वित्त मंत्री कह रही हैं कि इस बार कम समय लगा है?जून 2017 से इस कंपनी के NPA की जानकारी RBI के पास थी और FIR होती है फरवरी 2022 में.अगर आप जून 2017 से गिने तो 66 महीने हो जाते हैं21 मार्च 2019 के हिन्दू बिजनेस लाइन की खबर है कि यह कंपनी बैकरप्ट होने के कगार पर है.

लंदन की जिस लिबर्टी हाउस ने इसे उबारने का जो प्लान दिया है उसे लोन देने वाले बैंकों ने ठुकरा दिया है. हिन्दू बिजनेस लाइन ने लिखा है कि एबीजीपी उन 12 कंपनियों में से एक है जिसे भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैकरप्सी कोड के तहत दिवालिया घोषित करने या स्वामित्व बदलने की योजना बनाई थी. जून 2017 मेंवित्त मंत्री बता सकती हैं कि जब RBI ने जून 2017 में बैकरप्सी कोड में डालने की योजना बनाई तब भी क्या फ्राड की आशंका नहीं हुई थी? 23000 करोड़ के फ्राड के मामले में FIR के तीसरे दिन भी ऋषि अग्रवाल की गिरफ्तारी और मीडिया के सामने उसके हाज़िर होने की तस्वीरें नहीं हैं इसलिए हम ऋषि अग्रवाल, एबीजी कंपनी, और जहाजरानी सेक्टर से जुड़ी खबरों को सर्च करने लगे. इस वक्त हमारे पास सीधे तौर पर संबंध स्थापित करने के ठोस सबूत नहीं हैं लेकिन आप पहले की छपी हुई खबरों को ध्यान से देखेंगे तो बहुत कुछ दिख सकता है. SBI ने रविवार को एक प्रेस रिलीज जारी की है. उससे संदेह दूर होने के बजाए और गहरे हो जाते हैं और सवाल और बढ़ जाते हैं.

उसमें लिखा है कि इस कंपनी को बचाने का बहुत प्रयास किया गया लेकिन जहाजरानी सेक्टर के संकट के कारण नहीं उबारा जा सका. वह संकट क्या था, इस बारे में कोई स्पष्ट विवऱण नहीं है. क्या उस संकट के कारण यही एक कंपनी डूबती है या बाकी जहाजरानी कंपनियों का भी लोन NPA होता है?  6 साल पहले की यह खबर है ANI ने इस वीडियो को जारी किया है. सूरत से ANI के संवाददाता धर्मेश की रिपोर्ट है. इसमें बताया गया है कि ABG कंपनी ने भारतीय कोस्ट गार्ड को प्रदूषण कंट्रोल करने के लिए एक जहाज़ समुद्र पवक बना कर दिया है. यह तीसरा जहाज़ है जिसने एबीजी शिपयार्ड बनाकर दिया है.रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दक्षिण एशिया में इस तरह का यह पहला जहाज़ है और इसे एबीजी ने बना कर दिया है. समुद्री प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए कई उपकरण हैं. 9 दिसंबर 2015 को यह NDTV की वेबसाइट पर भी छपी है कि एबीजी शिपयार्ड ने भारतीय कोस्ट गार्ड को प्रदूषण नियंत्रक जहाज़ बनाकर दिया है जिसकी डिज़ाइन रोल्स रायस ने बनाई है. इस जहाज़ की लागत 120 करोड़ है.यह वीडियो दस साल पहले की है NDTV PROFIT की अर्चना शुक्ला की. इस रिपोर्ट के अनुसार एबीजी कंपनी को भारतीय नौ सेना 970 करोड़ का आर्डर मिला है. यानी UPA सरकार के समय ही करार हुआ था. इसे भारतीय नौ सेना के लिए दो ट्रेनिंग जहाज़ बनाकर देने थे. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि एबीजी शिपयार्ड के साथ साथ पीपावाव शिपयार्ड, भारती शिपयार्ड एल एंड टी शिपयार्ड को भी रक्षा सेक्टर से आर्डर मिले हैं.

जिस कंपनी का भारतीय नौ सेना के साथ लेन-देन हो और वह 23000 करोड़ का बैंक फ्राड करे यह मामला इतना साधारण नहीं है कि हिजाब के बहाने गोदी मीडिया इसे पीछे कर दे. क्या यह साधारण बात है कि जिस कंपनी को नौ सेना जहाज़ बनाने का आर्डर दे रही थी वह कंपनी दूसरी तरफ बैंकों से हज़ारों करोड़ का फ्राड कर रही थी?कहीं ऐसा तो नहीं कि सेना के नाम पर इस कंपनी ने बैंकों को प्रभावित किया? बैंकों ने 23000 करोड़ इस एक कंपनी को लोन क्यों दिया?SBI की प्रेस रिलीज़ से इन सवालों के संतोषजनक सवाल नहीं मिलते हैं.

इस कंपनी की आफिशियल वेबसाइट भी बंद है. abgindia.com. कब से बंद है पता नहीं लेकिन यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि क्या FIR दर्ज होने के बाद से यह वेबसाइट बंद है या पहले से ही बंद है ABG Shipyard Ltd का लिंक्ड इन पर प्रोफाइल है. जहां बताया गया है कि इस कंपनी ने 165 जहाज़ बनाए हैं. यूरोप, मध्य पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों को बेचा है. रक्षा मंत्रालय के अधीन रक्षा बेड़ों को बनाने में भी सक्षम है. 500 से 1000 कर्माचारी हैं. मनी कंट्रोल की साइट पर एबीजी के बारे में कुछ डिटेल में जानकारी मिली है. शायद यह जानकारी कंपनी की वेबसाइट से ली गई लगती है.कंपनी ने दावा किया है कि स्थापना के 15 साल के भीतर यह भारत की सबसे बड़ी शिपबिल्डिंग कंपनी बन जाती है. दुनिया भर में उसके ग्राहक बन जाते हैं. इसका दफ्तर सूरत में है.

कारपोरेट आफिस मुंबई में है. भारत में प्राइवेट सेक्टर की कंपनियां, नौ सेना, और अंडमान निकोबार प्रशासन अपनी ज़रूरत के हिसाब से अलग अलग आर्डर दे रहे हैं. दुनिया के कई देशों की कंपनियों के साथ जहाज़ बनाकर देने के करार की सूचना है. इन जानकारियों से लगता है कि कंपनी ने अपनी साख तो बनाई होगी तभी नौ सेना से लेकर तमाम कंपनियां उसे आर्डर दे रही हैं. लेकिन क्या यह बात हैरान नहीं करती है जिस व्यक्ति की कंपनी ने 28 बैंकों को चूना लगाया है उसके बारे में आप अभी तक कुछ नहीं जानते हैं. कहां है, किस हालत में है, पूछताछ कब होगी, हो रही है या नहीं, इसकी कोई जानकारी नहीं है. ऋषि अग्रवाल कहां है.सूत्रों के हवाले से खबर चली है कि कोई आरोपी भारत से बाहर नहीं है. तब फिर सीबीआई ऋषि अग्रवाल को हाज़िर क्यों नहीं कर देती है.ऋषि कमलेश अग्रवाल का संबंध एक बड़े उद्योगपति घराने से है. DNA अखबार की रिपोर्ट से मिली इस जानकारी का यह मतलब नहीं कि इस मामले में उक्त उद्योगपति की कोई भूमिका है. हम बस ऋषि कमलेश अग्रवाल के बारे में जानना चाहते हैं, इसलिए देख रहे हैं कि उनके बारे में किस तरह की खबरें छपी हैं.इस हिस्से में इससे ज्यादा हमारे पास कहने को कुछ नहीं है. 14 सितंबर 2017 के DNA में यह खबर सतीश जॉन के नाम से एडिट की गई है. पहली बार कब छपी है इसका पता नहीं चलता है.

इस खबर में बताया गया है कि एबीजी के ऋषि कमलेश अग्रवाल का संबंध उद्योपगति घराना रुईया बंधु से हैं.इनका शिपयार्ड एस्सार (Essar) ग्रुप के हज़ीरा स्थित प्लांट के पास है. एबीजी शिपयार्ड को साइप्रस स्थित एस्सार शिपिंग लॉजिस्टिक लिमिटेड की तरफ से 618 करोड़ का आर्डर मिला है. जहाज़ बनाने के लिए. 10 अप्रैल 2007 के इकोनमिक टाइम्स में भी इस बारे में खबर छपी है कि एबीजी शिपयार्ड मार्च 2011 तक जहाज़ बनाकर एस्सार कंपनी को सौंप देगी. यह सूचना एबीजी कंपनी ने बांबे स्टाक एक्सचेंज को दी है. जिस ऋषि कमलेश अग्रवाल की कंपनी एबीजी शिपयार्ड पर 23000 करोड़ के बैंक फ्राड का आरोप है उसके बारे में जानना पहाड़ को रास्ते से हटाने जैसा है. कायदे से अभी तक CBI को खुद ही इसे हाज़िर करना चाहिए था लेकिन अग्रवाल आर्यन खान नहीं हैं इसलिए उसके पीछे पांच सौ कैमरे भी नहीं लगे हैं.
अब हम पहुंचते हैं भारत सरकार की एक वेबसाइट पर. भारत सरकार की एक संस्था है India Brand Equity Foundation.

यह एक एजेंसी है जो निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए बनाई गई है ताकि दुनिया के बाज़ार में भारतीय उत्पादों की बिक्री बढ़े. यह संस्था 2003 में बनाई गई थी. इसकी वेबसाइट पर एक बुकलेट मिला है जिसमें एबीजी शिपयार्ड के बारे में ब्यौरा है. इसमें एबीजी शिपयार्ड के बारे में लिखा है कि यह प्राइवेट सेक्टर में जहाज़ बनाने की भारत की सबसे बड़ी कंपनी है. यह भी लिखा है कि इस कंपनी ने 99 जहाज़ बनाए हैं और बेचे हैं. (((( did not do vo , drop पहली बार इस कंपनी ने नार्वे को जहाज़ निर्यात किया था. यह कंपनी है और जहाज़ बनाती है तो इसकी जानकारी इसमें होगी ही. कोई खास बात नहीं है बस हम बता रहे हैं कि इस कंपनी के निशान सोशल मीडिया पर कहां कहां मिलते हैं जिसके बारे में अभी तक कोई खास जानकारी नहीं है.

अब यहां से आप देख सकेंगे कि किस तरह सरकार की योजनाओं, गुजरात के मुख्यमंत्री के समय से ही प्रधानमंत्री मोदी की इस सेक्टर को लेकर तरह तरह की घोषणाएं, इन घोषणाओं में शामिल खिलाड़ी यानी कंपनियां एक दूसरे के नज़दीक नज़र आती हैं. यह सेक्टर प्रधानमंत्री मोदी का ड्रीम सेक्टर कहा जाता रहा है. इसके ज़रिए उनकी छवि नए क्षेत्र में नए लक्ष्य तय करने वाले नेता की बनाई जाती है और उसी सेक्टर की एक कंपनी 23000 करोड़ का बैंक फ्राड करती है. जिसके बारे में कांग्रेस फरवरी 2018 में प्रेस कांफ्रेंस करती है और FIR होती है फरवरी 2022 में. PMO से भी शिकायत की गई थी, बेशक FIR हुई है लेकिन चार साल क्यों लगे.

2003 में मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने  कई कंपनियों से करार किया था कि वे राज्य में मेरिटाइम  इंस्टीट्यूट बनाएंगी.उनका क्या हुआ. 2003 के दस साल बाद, 26 फ़रवरी 2013 के बिजनेस स्टैंडर्ड के मौलिक पाठक की यह पुरानी रिपोर्ट छपी है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि तीन साल तक हवा में महल बनाने के बाद गुजरात सरकार शिपबिल्डिंग और मेरिटाइम इंस्टीट्यूट बनाने को लेकर गंभीर हो गई है. 2007 का वाइब्रेंट गुजरात करीब आने वाला है. राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने एबीजी शिपयार्ड, अदाणी ग्रुप और निरमा ग्रुप के साथ बैठक की है कि मेरिटाइम इंस्टीट्यूट की स्थापना कैसे करनी है. 2003 में निरमा और अदाणी ने गुजरात सरकार के साथ समझौता किया था कि मेरिटाइम इस्टीट्यूट बनाएंगे. लेकिन सूत्रों के अनुसार नीरमा को लगा है कि इस योजना का कोई फायदा नहीं है, इसलिए वह पीछे हट गई है. सूत्रो के अनुसार एबीजी शिपयार्ड ने 25 एकड़ ज़मीन की मांग की है जो उनके शिपयार्ड के करीब है.

अदाणी ग्रुप ने भी सात से आठ एकड़ की ज़मीन की मांग की है और राज्य सरकार ने एक कंपनी को ज़मीन देखने का काम दिया है ताकि इन दो कंपनियों को ज़मीन दी जा सके. इसके आगे की जानकारी हमारे पास नहीं है. इस बैठक में एबीजी शिपयार्ड के प्रबंध निदेशक ऋषि अग्रवाल भी मौजूद थे जिनका बयान बिजनेस स्टैंडर्ड के संवाददाता ने लिया है. ऋषि अग्रवाल ने मौलिक पाठक से कहा है कि हमने राज्य सरकार से बात की है और फैसला किया है कि संस्थान स्थापित करेंगे.लेकिन प्रोजेक्ट बहुत ही शुरूआती चरण में हैं. कांग्रेस ने भी इस बारे में सरकार पर आरोप लगाया है कि कम रेट पर कंपनी को ज़मीन दी गई है

पुणे, मुंबई, लोनावाला और देश के अन्य जगहों पर मेरिटाइम संस्थान हैं जहां इन सब चीज़ों की पढ़ाई होती है. सवाल है 2003 में इसके लिए करार होता है तो यह संस्थान क्यों नहीं बन सके, ऐसा क्या था इनके बनने में जो अदाणी से लेकर एबीजी ग्रुप से नहीं बना कांग्रेस का आरोप है कि इस करार का फायदा उठाकर एबीजी ग्रुप ने बैंकों को प्रभावित किया औऱ लोन लिया. पर यूनिवर्सिटी तो सौ करोड़ की है, यहां फ्राड 23000 करोड़ का है.

25 जुलाई 2014 को गुजरात विधानसभा में CAG की एक रिपोर्ट रखी गई थी. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मई और जुलाई 2006 के बीच गुजरात सरकार ने एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड कंपनी को तीस साल की लीज़ पर 2 लाख 68 हज़ार वर्ग मीटर से अधिक ज़मीन दी है. इसके लिए कंपनी को अडवांस किराया देना था. हर तीन साल के बाद किराया दस प्रतिशत बढ़ना था. मई 2013 में CAG ने पाया कि गुजरात मेरिटाइम बोर्ड ने 2012-13    के लिए 1 करोड़ 13 लाख का लीज रेंट नहीं  वसूला है. 2013-14 का भी लीज रेंट नहीं वसूला है. कंपनी ने दो करोड़ दस लाख का लीज रेंट नहीं दिया है. गुजरात मेरिटाइम बोर्ड ने बार बार नोटिस जारी किया है फिर भी एबीजी ने पैसे नहीं दिए हैं. लेकिन गुजरात मेरिटाइम बोर्ड ने  लीज रेंट नहीं देने के कारण एबीजीपी पर कोई कार्रवाई भी नहीं की है जबकि समझौता पत्र में ऐसी शर्तें थीं. यह बताता है कि एबीजी कंपनी और ऋषि अग्रवाल का रसूख कैसा रहा होगा कि गुजरात मेरिटाइम बोर्ड बार बार नोटिस देता है कि लीज रेंट दीजिए लेकिन जिस कंपनी को बैंक 23000 करोड़ तक का लोन दे रहे हैं वह कंपनी 2 करोड़ का लीज रेंट नहीं चुका रही है. इस कंपनी को ढाई लाख वर्ग मीटर से अधिक की ज़मीन दी जाती है.

बिज़नेस स्टैंडर्ड की इस रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि 
यह कंपनी साउथ गुजरात यूनिवर्सिटीके साथ करार करने की योजना बना रही है कि वहां जहाज़ निर्माण, समुद्रविज्ञान और naval architecture की पढ़ाई हो सके. सूत्रों के हवाले से लिखी इस खबर में कहा गया है कि 100 करोड़ का प्रोजेक्ट है.
हमने साउथ गुजरात यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर काफी कुछ सर्च किया लेकिन इस तरह के कोर्स की जानकारी नहीं मिल सकी.इतिहास में पहले भी हुआ है. लेकिन 8 नवंबर 2020 को प्रधानमंत्री का एक बयान मिला है उसमें वे गुजरात मेरिटाइम यूनिवर्सिटी की बात कर रहे हैं जो राज्य सरकार की है. इस बयान को PIB की तरफ से ट्विट किया जाता है.
दरअसल प्रधानमंत्री उस मेरिटाइम यूनिवर्सिटी की बात नहीं कर रहे जिसके लिए 2003 में निजी कंपनियों से करार किया था. उसकी बात कर रहे हैं जिसे गुजरात सरकार ने 2017 में बनाया. उनके बयान से ऐसा लगता है कि मेरिटाइम यूनिवर्सिटी से कोई बड़ा बदलाव आ गया है. लेकिन जब गुजरात मेरिटाइम यूनिवर्सिटी को चलाने के लिए एक गवर्निंग बॉडी बनाई जाती है तो तब अदाणी पोर्ट्स एंड SEZ Limited के सीईओ करण अदाणी को सदस्य बना दिया जाता है. इसके ब्राशर में गौतम अदाणी का संदेश भी छपा है. गवर्निंग बॉडी में राज्य सरकार के छह आई ए एस अफसर हैं. IIM बंगलुरु, IIT गांधीनगर  के निदेशक भी गवर्निंग बॉडी में हैं.इसका मकसद है इस सेक्टर में ग्लोबल सेंटर बन जाना.

इस प्राइम टाइम को आप यू ट्यूब में जाकर दोबारा से देखें. आपको पता चलेगा कि कैसे नई और शानदार लगने वाली योजनाओं का एलान तो हो जाता है लेकिन उनके पूरा होने को लेकर जब आप पता करते हैं तो आधी अधूरी ही जानकारी मिलती है. हेडलाइन छपने के बाद योजना लापता हो जाती है. अब अगर देश में प्रधानमंत्री हेडलाइन योजना चल रही हो तो उसकी जानकारी हमें नहीं हैं. जिसके तहत योजनाओं का एलान हेडलाइन के लिए होता है और अगले दिन हेडलाइन के बदलते ही योजनाएं भुला दी जाती हैं.आपने पिछले दो हफ्ते के प्राइम टाइम में ऐसे अनेक प्रसंग देखे होंगे.वाइब्रेंट गुजरात के दौरान किए गए मेमोरेंडम आफ अंडरस्टैंडिग पर जिस दिन श्वेत पत्र आएगा आपको पता चलेगा कि मैं इसके ज़रिए क्या कहना चाहता हूं. जो कंपनियां एक इंस्टीट्यूट नहीं बना सकीं वो वाइब्रेंट गुजरात के समय प्रस्तावों का एलान करती रहीं ताकि हेडलाइन छपती रहे. आप इस गेम को बीस साल भी नहीं समझ पाएंगे. 11 जनवरी 2013 के दिन मिंट और इकोनमिक टाइम्स में वाइब्रेंट गुजरात के छठे संस्करण को लेकर एक खबर छपी है. ईटी ने लिखा है कि छठे वाइब्रेंट गुजरात के पहले दिन एबीजी शिपयार्ड, एस्सार, जुबिलिएंट लाइफसाइंस, अदाणी ने गुजरात में 28000 करोड़ के निवेश का प्रस्ताव रखा है. एबीजी ग्रुप ने सात हज़ार करोड़ के निवेश का वादा किया है. मिंट की खबर में कहा गया है कि एबीजी शिपयार्ड गुजरात के तटीय इलाकों में पांच हज़ार करोड़ के निवेश से शिपयार्ड बनाएगी. कंपनी ने चल रहे वाइब्रेंट गुजरात के दौरान राज्य सरकार को प्रस्ताव दिया है. इससे 4500 लोगों को रोज़गार मिलेगा. इस कंपनी ने लिंक्ड इन पर लिखा है कि कर्मचारियों की संख्या 1000 है और यह वाइब्रेंट गुजरात में 4500 रोज़गार देेने का वादा कर रही थी. फ्राड की आदत लगता है शुरू से थी इसे.

आपने देखा कि किस तरह से एबीजी शिपयार्ड कंपनी वाइब्रेंट गुजरात के समय हज़ारों करोड़ के निवेश और रोज़गार का दावा करती है ताकि हेडलाइन छपे और देश में संदेश जाए कि कोई गुजरात मॉडल है. वाइब्रेंट गुजरात का संबंध आप जानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी से रहा है. इस सम्म्मेलन से उनकी छवि देश भर में बेहतर हुई है लेकिन आप देख रहे हैं कि वाइब्रेंट गुजरात में हज़ारों करोड़ के निवेश का दावा करने वाली कंपनी और उसका मालिक ऋषि अग्रवाल 23000 करोड़ का बैंक फ्राड करता है.

यह खबर टाइम्स आफ इंडिया की अश्लेषा खुराना की है जो अप्रैल 2010 में छपी है. इसके अनुसार एबीजी शिपयार्ड की हाईटेक मेरिटाइम इंस्टिट्यूट 2010 के साल के अंत में शुरु होने वाला है.जो छात्र इस क्षेत्र में करियर बनाना चाहते हैं उन्हें मौका मिलेगा. इसमें यह भी लिखा है कि गुजरात के मुख्यमंत्री ने कहा है कि पोर्ट इंफ्रासेक्टर में 20000 करोड़ के निवेश की उम्मीद है. गुजरात शिप बिल्डिंग हब बनेगा लेकिन यहां तो एक कंपनी से 23000 करोड़ का फ्राड हो गया है. खबरों के ज़रिए 2003 से यह यूनिवर्सिटी आज बन रही है तो कल बन रही है लेकिन जिस जगह पर इसे बनना था उसकी क्या हालत है हम दिखाते है. यह वीडिओ उस जगह की है जहां जहां पर एबीजी ग्रुप को मेरिटाइम इंस्टीट्यूट बनाना था. बोर्ड पर एबीजी मेरिटाइम इंस्टीट्यूट लिखा है. घिस गया है. इस योजना को लेकर जो हेडलाइन बन रही थी यहां इस हाल में पड़ी है. उसकी ऐसी हालत हो चुकी है.2003 के वाइब्रेंट गुजरात में जो सपना बेचा गया था वो इस तरह खंडहर पड़ा है इसी तरह के कई खंडहर आपको बीस साल बाद नज़र आएंगे और आप देख नहीं पाएंगे क्योंकि आप भी खंडहर हो चुके होंगे. फरवरी 2013 की बिजनेस स्टैंडर्ड की एक और ख़बर मिली है कि एबीजी शिपयार्ड मेरिटाइम म्यूज़ियम बनाएगी. उसका भी कहीं पता नहीं है. यह मामला इतना साधारण नहीं है.

जांच एजेंसी को इस आदमी के राजनीतिक संबंधों के बारे में खुलकर बताना चाहिए. इस कंपनी का गुजरात सरकार से क्या संबंध रहा है उसके बारे में भी और जानकारी सामने आनी चाहिए. 30 मार्च 2015 के लाइव मिंट की खबर है. एबीजी शिपयार्ड ने लिक्विफाइड नेचुरल गैस करियर बनाने के लिए फ्रांस की एक कंपनी से तकनीकि समझौता किया है. ऐसा करने वाली तीसरी भारतीय कंपनी है. चूंकि प्रधानमंत्री इस सेक्टर में दिलचस्पी रखते हैं इसलिए गेल को मेक इन इंडिया सफल बनाने के लिए टेंडर में बदलाव करने होंगे. खबर का आशय यह है कि एबीजी जो जहाज़ बनाएगी उसे गेल खरीदे या किराये पर चलाए. क्या इन खबरों के ज़रिए कंपनी अपने पक्ष में माहौल बना रही थी? वाइब्रेंट गुजरात से लेकर मेरिटाइम इस्टिट्यूट और म्यूज़ियम बनाने की खबरों में झांसे का ही तत्व ज्यादा नज़र आता है. एक तरफ इन हेडलाइनों से बैंकों का भरोसा लूटा जा रहा था तो दूसरी तरफ जनता की आंखों में धूल.

25 अक्तूबर 2017 को चुनाव आयोग ने गुजरात में चुनाव की तारीखों का एलान किया था. आचार संहिता लगने से पहले 22 अक्तूबर 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस फेरी सेवा पर हैं. उदघाटन कर रहे हैं. उस वक्त उन्होंने दक्षिण गुजरात के दहेज और सौराष्ट्र के घोघा के बीच मोटर बोट की सेवा का उदघाटन किया था ताकि दोनों के बीच की दूरी 370 किमी की दूरी घट कर 90 किमी की हो जाए. लेकिन चुनाव बीत जाने के कुछ हफ्ते बाद ही यह फेरी सेवा खटाई में पड़ जाती है. चुनाव के एक साल बाद 27 दिसंबर 2018 में बिजनेस स्टैंडर्ड की यह रिपोर्ट छपी है कि प्रधानमंत्री मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट मुश्किल में पड़ गया है. सितंबर 2019 में अहमदाबाद मिरर में भी खबर छपती है कि अक्तूबर 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका उदघाटन किया था. मगर गाद की सफाई न होने के कारण तीसरे महीने में इसकी सेवा बंद कर दी गई. अभी तक गुजरात मेरिटाइम बोर्ड ने तीन बार गाद की सफाई की है. लेकिन इसके बाद भी अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया गया. अहमदाबाद मिरर और बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में फेरी सेवा देने वाली कंपनी इंडीगो सी-वेज़ के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक चेतन कांट्रेक्टर का बयान छपा है कि फेरी सेवा नहीं चला सकते हैं.

पानी की गहराई होने से नाव फंस सकती है औऱ लोगों की जान को खतरा हो सकता है. आरोप लगाते है कि गुजरात मेरिटाइम बोर्ड इस जलमार्ग से गाद नहीं निकालता है. मीडिया रिपोर्ट में गुजरात मेरिटाइम बोर्ड के सीईओ मुकेश कुमार का बयान है. उन्होंने कहा है कि गाद की सफाई करने वाली मशीन अदाणी ग्रुप की है जो खराब है. यह मशीन छह सौ करोड़ की है. इस कारण गाद निकालने का काम रुका हुआ है.2 अक्तूबर 2019 को यह सेवा बंद कर दी गई, 30,000 टिकट कैंसल कर दिए गए थे. 3 जुलाई 2020 की इडियन एक्सप्रेस की खबर है कि जहाजरानी मंत्री मंसुख मंडाविया का बयान छपा है कि गाद की सफाई नहीं हो पाने के कारण 21 मार्च 2020 तक के लिए घोघा और दहेज के बीच की  रो-रो फेरी सेवा बंद कर दी गई है.इसी खबर में यह भी है किअदाणी की कंपनी को हज़ीरा पोर्ट पर रो-रो टर्मिनल बनाने  का टेंडर मिला है. सरकार को गाद की सफाई में काफी पैसा खर्च करना पड़ रहा है.

क्या केंद्र और गुजरात सरकार को नहीं पता होगा कि जिस जलमार्ग पर फेरी सेवा चलनी है वहां गाद भर जाने की समस्या रहती है, गाद निकालना महंगा काम है, क्या इन बातों को नज़र अंदाज़ कर टर्मिनल बनाए गए ताकि हेडलाइन छपे और राज्य के लोगों को नया सपना बेचा जा सके. ठीक उसी तरह से जैसे मतदान के एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अहमदाबाद में सी प्लेन से उतर जाते हैं. सुरक्षा की हिदायतों को नज़र अंदाज़ कर इसे एक स्टंट के रूप में पेश किया जाता है और मोदी की वाहवाही होती है कि विपक्ष जो नहीं सोच सकता, प्रधानमंत्री वो सोच लेते हैं लेकिन यह सेवा ठंडी पड़ गई. चली मगर चल कर रुक भी गई. वही हाल दहेज और घोघे के बीच की फेरी सेवा की है.हम जानना चाहते थे कि 23000 करोड़ का बैंक फ्राड करने वाला ऋषि अग्रवाल कौन है. उसे हाज़िर किया जाना चाहिए

तो  इस तरह इंटरनेट में मौजूद तमाम छपी हुई सूचनाओं के ज़रिए एबीजी ग्रुप के बारे में आप इतना तो जान पाते हैं कि इसका संबंध वाइब्रेंट गुजरात से है, उस दौरान किए जाने वाले ख्याली घोषणाओं से है, जिसका संबंध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है. हम नहीं कह रहे कि बैंक फ्राड का संबंध है या नहीं लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की प्रिय योजनाओं और अभियानों के बीच में यह कंपनी बार बार नज़र आती है. इसलिए उनकी भी जवाबदारी बनती है कि कुछ सवालों के जवाब ठोस तरीके से दिए जाएं कि जब जून 2017 में रिज़र्व बैंक ने इसे 12 कंपनियों की सूची में डाला था तब से लेकर अब तक यानी छह साल क्यों लगे इसके खिलाफ FIR करने में. 17 नवंबर 2021 के दिन CAG दिवस मनाया जाता है. इस दिन NPA को लेकर प्रधानमंत्री का एक बयान है जो इस संबंध में काम आ सकता है.

क्या वाकई सारे तथ्य देश के सामने रखे जा रहे हैं? अभी भी सरकार ऋषि कमलेश अग्रवाल के बारे में सारी जानकारी जनता के बीच रख सकती है. गुजरात मे जिस जहाजरानी सेक्टर को लेकर एक दशक तक सपना दिखाया गया वह अब देश के अलग अलग हिस्सों में पहुंच गया है.

उदाहरण के तौर पर आप बनारस में बने बंदरगाह को ले सकते हैं, 2015 से लेकर कई साल तक सपना दिखाया गया और बंदरगाह बना भी. सरकार ही दावा करती है कि राष्ट्रीय जलमार्ग एक यानी बनारस वाले जलमार्ग पर 2019-20 के दौरान करीब 92 लाख टन माल की ढुलाई हुई है. राष्ट्रपति के अभिभाषण में भी जहाजरानी और बंदरगाहों के विकास का ज़िक्र है. 31 जनवरी को संसद में राष्ट्रपति ने कहा है कि अभी तक 111 राष्ट्रीय जल मार्ग घोषित किए जा चुके हैं लेकिन इनमें से 23 ही माल ढुलाई के लिए viable यानी उपयोगी पाए गए हैं.इसके ठीक 40 दिन पहले 21 दिसंबर 2021 को जहाजरानी मंत्री सरबनानंद सोनवाल राज्यसभा में बता रहे हैं 2015 में राष्ट्रीय जलमार्ग कानून के बनने के बाद 13 जलमार्ग ही काम कर रहे हैं और 63 अनुपयोगी पाए गए हैं. फिर जलमार्गों की संख्या बार बार 111 क्यों बताई जाती है? जितने जलमार्ग उपयोग में आ रहे हैं उसकी संख्या क्यों नहीं बताई जाती है. 63 अनुपयोगी पाए गए हैं तो फिर उन्हें जोड़ कर संख्या 111 क्यों बताई जाती है. क्या जलमार्ग घोषित करना ही बड़ी खबर है या जितने मार्गों का उपयोग हो रहा है वो खबर है.

आज के शो में आपको मज़ा नहीं आया होगा, क्योंकी इसे देखने और समझने में आपके पसीन छूट गए होंगे. हमने बस इतना देखने की कोशिश की जहाजरानी सेक्टर की दुनिया में यह कंपनी कहां खड़ी थी, किस तरह के करार कर रही थी, किस तरह के वादे कर रही थी, वो वादे किसके राजनीतिक फायदे के करीब थे. घोटाला कैसे हुआ, किससे हज़ारों करोड़ में से हिस्सा मिला, इसके बारे में हमने कुछ नहीं कहा. 

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