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This Article is From Apr 29, 2016

छात्रों के लिए वरदान या मुसीबत है यह NEET?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 29, 2016 22:31 pm IST
    • Published On अप्रैल 29, 2016 21:37 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 29, 2016 22:31 pm IST
इतना कहना सीखिये कि ये नहीं करना है और इतनी समझना सीखिये कि कोई ये नहीं करना चाहता है। आज कल लोग कहते भी हैं और बहुत से लोग समझते भी हैं। भारत जैसे विशाल देश में मेडिकल की प्रवेश परीक्षाओं की संख्या सिर्फ 90 थी, जिसे अब कम करके एक किया जा रहा है। बात तो ठीक लगती है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला तभी आया जब कई राज्यों में बच्चे प्रवेश परीक्षा दे चुके थे, कई राज्यों में पहली पारी की परीक्षा के नतीजे भी आ गए थे और कई राज्यों में परीक्षाएं होने वाली हैं।

इसी देश में हो सकता है कि आप घर से परीक्षा केंद्र के लिए निकल रहे हैं और पता चले कि प्रणाली ही बदल गई है। ज़ाहिर है छात्रों के बीच भ्रम की स्थिति पैदा हुई तो केंद्र सरकार को भी ख़्याल आया कि गुरुवार की राय से अलग शुक्रवार को कोर्ट में दूसरी बात करने लगी। शुक्रवार सुबह अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने अदालत से कहा कि गुरुवार के आदेश में कुछ संशोधन की ज़रूरत है, क्योंकि इससे लाखों छात्र भ्रमित हो गए हैं।
  • 1 मई की परीक्षा रद्द कर दी जाए और 24 जुलाई को ही सभी के बदले एक परीक्षा करा ली जाए।
  • बहुत से राज्यों में वहां की भाषा में परीक्षा होती है, जबकि सीबीएसई सिर्फ अंग्रेज़ी हिन्दी में इम्तहान लेती है।
  • 24 जुलाई को होने वाली परीक्षा हिन्दी अंग्रेज़ी के अलावा 6 अन्य भाषाओं में कराई जाए।
  • जिन राज्यों में परीक्षा हो चुकी है और जहां प्रस्तावित है उन्हें इस साल नई व्यवस्था से बाहर रखा जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला नहीं बदला है। 1 मई को नई व्यवस्था के तहत इम्तहान होंगे जिसे नीट फेज़ वन कहा गया है। 3 मई को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश नहीं दिया कि राज्य अपनी प्रवेश परीक्षा करा सकेंगे या नहीं। महाराष्ट्र सरकार ने कहा है कि वह 5 मई को ही कॉमन एंट्रेंस टेस्ट कराएगी। महाराष्ट्र में 2 लाख 83 हज़ार 319 छात्र कामन एंट्रेंस टेस्ट में हिस्सा ले रहे हैं। क्या यह समझा जाए कि बाकी राज्य भी अपनी प्रवेश परीक्षा आयोजित कर सकते हैं या जिन राज्यों में प्रवेश परीक्षाएं हो गईं हैं वह मान्य हैं। शुक्रवार को जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही थी, तब उसी वक्त आंध्र प्रदेश में प्रवेश परीक्षा चल रही थी।

आंध्र सरकार ने कोर्ट में कहा कि हम चलती हुई परीक्षा को कैसे रोक सकते हैं। इस परीक्षा में सिर्फ मेडिकल ही नहीं, बल्कि अन्य पेशेवर कोर्स भी शामिल हैं। बिहार कंबाइंड एंट्रेंस कंपटेटिव इंग्जामिनेशन बोर्ड ने 17 अप्रैल को फेज़ वन की परीक्षा ले ली थी। दूसरी परीक्षा 15 मई को होनी है। इसमें दूसरे चरण के लिए 7500 छात्र चुन भी लिए गए हैं।

गुरुवार के दिन ही नतीजा आया और उसी दिन सुप्रीम कोर्ट का आदेश कि देश में अब मेडिकल की एक ही प्रवेश परीक्षा होगी। लिहाज़ा छात्र पूछने लगे कि उनकी मेहनत तो बेकार चली गई और फॉर्म के 667 रुपये भी। सारा खर्चा मिलाकर 1000 रुपये के करीब लग ही जाता है। उसी तरह छत्तीसगढ़ के सरकारी मेडिकल कालेजों के लिए प्री मेडिकल टेस्ट 26 मई को होना है। छत्तीसगढ़ में फार्म की फीस हज़ार रुपये है। करीब 30-40 हज़ार छात्र शामिल होते हैं।

एआईपीएमटी और दूसरी परीक्षाओं के पैटर्न और तैयारी की रणनीति में भी अंतर होता है। जैसे छत्तीसगढ़ के एक छात्र ने बताया कि उनके यहां निगेटिव मार्किंग नहीं है। सौ नंबर का भौतिकी और रसायन शास्त्र और 100 नंबर का जीव और जंतु विज्ञान। एआईपीएमटी में 720 नंबर का इम्तहान होता है और निगेटिव मार्किंग होती है। किसी ने बताया कि बिहार में तीस प्रतिशत नंबर एनसीईआरटी से होता है, बाकी राज्य के सिलेबस से। जबकि एआईपीएमटी में 80 फीसदी एनसीईआरटी से होता है।

इतनी विविधता है प्रणालियों में। छत्तीसगढ़ से लड़के के पिता ने बताया कि एक मई की परीक्षा में वह शामिल नहीं हो सकेगा, क्योंकि उसकी सारी तैयारी रायपुर मेडिकल कॉलेज में जगह पाने को लेकर थी। इस तरह की घबराहट की ख़बरें कई जगहों से मिल रही हैं।

ऐसी घबराहट तो हमेशा रहेगी मगर इम्तहान के करीब परीक्षा प्रणाली में बदलाव पर एक बार विचार किया जा सकता है। जो भी है सुप्रीम कोर्ट ने आदेश नहीं बदला है। 1 मई को एआईपीएमटी की परीक्षा होगी, जिसमें देश भर के साढ़े छह लाख परीक्षार्थी हिस्सा लेंगे।

ऐसी ही एक समस्या है तमिलनाडू की जिसने अदालत में कहा कि उसके यहां 12वीं के नतीजे के आधार पर मेडिकल में प्रवेश देने की व्यवस्था है। ऐसे में उसके लाखों छात्र बाहर रह जाएंगे। तब सहायक अटॉर्नी जनरल ने कहा कि 15,000 छात्र तमिलनाडू से भी एआईपीएमटी में शामिल हो रहे हैं। गुरुवार को केंद्र सरकार एक परीक्षा की बात कर रही थी, शुक्रवार को इसमें इस साल के लिए संशोधन की मांग करने लगी।

सवाल यह होना चाहिए कि क्या एक भी छात्र इस अचानक आए बदलाव से छूट रहा है। अगर छूट रहा है तो राज्य को उसकी चिन्ता करनी चाहिए। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश में एक व्यवस्था लागू तो कर दी, जिससे प्रवेश परीक्षा से जुड़ी कई शिकायतों पर लगाम लगने की उम्मीद की जा रही है।

संकल्प चैरिटेबल ट्रस्ट बनाम भारत सरकार व अन्य केस में पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला दिया कि अब से देश में मेडिकल की एक ही प्रवेश परीक्षा होगी। जिसे नेशनल एलिजब्लिटी कम इंटरेंस टेस्ट (NEET) कहा जाएगा। चाहे सरकारी कॉलेज हों या अर्ध सरकारी या प्राइवेट। ज़्यादातर पक्ष इसके लिए तैयार हो गए। आप जानते हैं कि नीट की परीक्षा के लिए मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और डेंटल काउंसिल आफ इंडिया ने 21 दिसंबर 2010 को एक नोटिफिकेशन जारी किया था।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक अलग अलग राज्य या कॉलेज अपनी प्रवेश परीक्षा नहीं करा सकेंगे। जैसे कर्नाटक में प्राइवेट मेडिकल कॉलेज एसोसिएशन अपनी तरफ से परीक्षा आयोजित नहीं करा सकेगा। नीट की परीक्षा का आयोजन दो चरणों में होगा। जो छात्र 1 मई को देना चाहें वो दे सकते हैं। जिन छात्रों ने एआईपीएमटी के लिए आवेदन नहीं किया है वह नया आवेदन कर सकते हैं। और 24 जुलाई को होने वाली नीट फेज़ टू की परीक्षा में शामिल हो सकते हैं। 17 अगस्त को दोनों के नतीजे आएंगे और 30 सितंबर तक दाखिये की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।

सीबीएसई अखिल भारतीय रैंक बनाएगी और नामांकन करने वाली अथॉरिटी को भेज देगी। उसी के आधार पर काउंसलिंग होगी। प्राइवेट कॉलेजों ने इस साल नीट के तहत टेस्ट कराए जाने का विरोध किया है। संविधान पीठ के इस फैसले से देश भर के करीब 600 मेडिकल कॉलेज प्रभावित होंगे। कहा जा रहा है कि यह एक उचित व्यवस्था है, जिससे प्राइवेट कालेजों की मनमानी पर रोक लगेगी और व्यापमं जैसे सर्वव्यापी घोटाले नहीं होंगे।

साल 2013 में दिल्ली में छात्रों ने नीट के समर्थन में रैली भी की थी। कहा था कि प्राइवेट कॉलेजों की मनमानी से बचाने के लिए यही एक मुकम्मल रास्ता है। फिलहाल इस साल लागू होने से क्या दिक्कतें आ रही हैं हम इसी पर सवाल जवाब करेंगे।

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