कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर चुप क्यों रहे प्रधानमंत्री?

प्रधानमंत्री ने विपक्ष के बारे में भी कहा कि उनकी तरफ से आशंकाएं नहीं बताई गईं. क्या किसानों ने 10-10 दौर की बातचीत में सरकार से एक भी काम की बात नहीं की?

राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलने के बाद बुधवार को प्रधानमंत्री ने लोकसभा में भाषण दिया. किसानों के साथ सरकार की दस दस दौर की बात चली. क्या उस बातचीत में किसानों ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जिसका जवाब प्रधानमंत्री सदन में दे सकते थे? लोकसभा में प्रधानमंत्री जब इस बिन्दु पर बोल रहे थे तब विपक्ष की तरफ से विरोध हुआ और काले कानून को वापस लेने की बात कही गई. प्रधानमंत्री ने विपक्ष के बारे में भी कहा कि उनकी तरफ से आशंकाएं नहीं बताई गईं. क्या किसानों ने 10-10 दौर की बातचीत में सरकार से एक भी काम की बात नहीं की?

कृषि कानून की मांग किसने की थी इस सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री बोल गए कि दहेज खत्म करने, बाल विवाह खत्म करने, शिक्षा के अधिकार से लेकर तीन तलाक के कानून की मांग किसी ने की थी क्या. दहेज प्रथा, तीन तलाक को खत्म करने, बाल विवाह को खत्म करने के पीछे लंबा आंदोलन चला है. तीन तलाक को लेकर ही गुजरात और महाराष्ट्र से भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने आवाज़ उठाई थी. 2007 में गुजरात में भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन का एक अधिवेषण हुआ था जिसमें तीन तलाक को खत्म करने की मांग की गई थी. इसे मुख्य मुद्दा बनाया था.

उसी तरह दहेज के खिलाफ कानून से पहले भी आंदोलन चले थे. कई संगठनों ने आवाज़ उठाई थी. बाल विवाह की कुप्रथा को खत्म करने के लिए लंबा आंदोलन चला. राममोहन राय से लेकर ईश्वरचंद विद्यासागर, पंडिता रमाबाई, सावित्रीबाई फूले, ज्योतिबा फूले से लेकर न जाने कितने महिला संगठनों की इसमें भागीदारी रही है. हरबिलास शारदा का नाम कैसे कोई भूल सकता है.

प्रधानमंत्री को लग गया होगा कि यह चूक हो गई है तभी आगे उन्होंने जोड़ दिया कि राजा राममोहन राय, ज्योतिबा फूले, डॉ अंबेडकर, ईश्वरचंद विद्यासागर जैसे महापुरुषों ने समाज के सामने उल्टे प्रवाह में खड़े होकर समाज सुधार का बेड़ा उठाया. बहरहाल प्रधानमंत्री कृषि कानूनों का बचाव करते रहे. प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि बाज़ार का विकल्प दिया जा रहा है. किसानों पर कोई ज़बरदस्ती नहीं है. लेकिन किसानों का कहना है कि नए विकल्प के नाम पर पुराने को खत्म किया जा रहा है. प्रधानमंत्री ने किसानों से कहा कि आइये टेबल पर बैठकर चर्चा करें.

आंदोलनजीवी का ज़िक्र लोकसभा में भी आया. प्रधानमंत्री ने साफ किया कि किसान आंदोलन पवित्र है लेकिन मोबाइल के टावर को गिराना, टोल प्लाज़ा को रोकना आंदोलन की पवित्रता को भंग करना है, ये आंदोलनजीवी हैं.

लोकसभा का भाषण राज्यसभा से अलग था. राज्यसभा की तुलना में लोकसभा में कृषि को ज़्यादा विस्तार मिला. प्रधानमंत्री ने अनेक प्रसंग गिना दिए, अन्य फायदों को गिना दिए, जिन पर अलग से चर्चा हो सकती थी, मगर तमाम तरह के ऐसे प्रेरक प्रसंगों में ऐसी योजनाएं भी सफलता में गिन ली गईं जिनके तथ्य दावों से अलग हैं. राज्यसभा और लोकसभा में प्रधानमंत्री कांट्रेक्ट फार्मिंग पर एक शब्द नहीं बोले जिससे संबंधित एक पूरा कानून है. प्रधानमंत्री एसडीएम को दिए जाने वाले अधिकार पर एक शब्द नहीं बोले जिसे लेकर सवाल उठाए जा रहे थे. भंडारण के कानून को लेकर भी बोला जा सकता था कि इससे छोटे किसानों को लाभ होगा या बड़े उद्योगपतियों को लाभ होगा. राज्यसभा और लोकसभा में प्रधानमंत्री ने नए कानूनों को छोटे किसानों की आज़ादी से कृषि कानूनों को जोड़ दिया. 

राज्यसभा में प्रधानमंत्री ने कहा था कि 12 करोड़ छोटे व सीमांत किसान हैं. प्रधानमंत्री ने 12 करोड़ किसानों के विकास के लिए कई योजनाएं गिना दी. उन योजनाओं की अलग से जांच हो सकती है कि इससे वाकई किसे फायदा हुआ? MSP की गारंटी की मांग पर कहा जाने लगा कि अमीर किसानों को मिलता है. वही मांग रहे हैं. बाकी को तो मिलता ही नहीं है. ऋतिका खेड़ा, प्रांकुर गुप्ता और सुधा नारायण ने एक अपने रिसर्च से बताया है कि MSP पाने वाले 99 प्रतिशत धान के किसान छोटे और सीमांत किसान हैं. MSP पाने वाले 97 प्रतिशत गेहूं के किसान छोटे और सीमांत किसान हैं.

ज़ाहिर है MSP की गारंटी मांगने वाले किसान भी छोटे और सीमांत किसान हैं. कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने एक ट्वीट किया है कि 2011 में मुख्यमंत्री रहते हुए खुद प्रधानमंत्री मोदी ने MSP की गारंटी का सुझाव केंद्र सरकार को दिया था. जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी कृषि बाज़ारों के समर्थन में मनमोहन सिंह के बयानों का हवाला देते हैं. लोकसभा में इस तरह के अनेक उदाहरण प्रधानमंत्री ने भी दिए. 

साफ है छोटे और सीमांत किसानों का तबका भी कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहा है. अगर बड़े किसानों का आंदोलन होता तो गांव गांव में महापंचायतों में इतनी भीड़ नहीं उमड़ती.

बुलंदशहर के फिरोज़पुर गांव में महापंचायत हुई. किसानों के ट्रैक्टर अब इन महापंचायतों की तरफ दौड़ने लगे हैं. हमारे सहयोगी मनीष ने बताया कि फिरोज़पुर की महापंचायत के लिए दूर दूर के गांव के लोग उमड़ पड़े थे. राष्ट्रीय लोकदल पश्चिम यूपी में महापंचायतों का आयोजन कर रहा है. गौर करने वाली बात है कि इस दल का तो यूपी की विधानसभा में और न ही संसद में कोई प्रतिनिधि है. यानी इन इलाकों में एक भी सीट इसके पास नहीं है. क्या राष्ट्रीय लोक दल अपने बूते इतनी बड़ी महापंचायत करा सकता है? ज़ाहिर है किसान कृषि कानूनों को प्रधानमंत्री के भाषण और दलीलों से अलग देख रहे हैं. आज की तारीख में यूपी में ऐसी सभाएं कराने की क्षमता बीजेपी में है. आपको याद होगा, नागरिकता कानून के विरोध की सभाओं के विरोध में बीजेपी देश भर में रैलियां करने लगी थी लेकिन इस बार किसानों की महापंचायतों के विरोध में रैलियां नहीं हो रही हैं. जबकि मानव संसाधन के मामले में बीजेपी का मुकाबला राष्ट्रीय लोकदल कर ही नहीं सकता है. यह भी एलान हुआ है कि जल्द ही बुलंदशहर में 36 बिरादरी की महापंचायत का आह्वान किया जाएगा.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी बुधवार को सहारनपुर की एक महापंचायत में शामिल हुई. बुलंदशहर और सहारनपुर में बहुत दूरी नहीं है लेकिन एक ही इलाके की दो महापंचायतों में किसानों की मौजूदगी बता रही है कि छोटे व सीमांत किसानों के बगैर ये महापंचायतें सफल नहीं हो सकती हैं. इस महापंचायत में आ रहे लोगों की संख्या से किसी एक दल के प्रति उभार के रूप में नहीं देखा जा सकता है. आलम यह है कि कहीं भी महापंचायत का एलान हो रहा है किसान ट्रैक्टर लेकर पहुंच जा रहे हैं. बेशक इन महापंचायतों में अब कांग्रेस नेता पहुंचने लगे हैं. प्रियंका गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री के लिए दो हवाई जहाज़ 16 हज़ार करोड़ रुपय में ख़रीदे गए हैं. जिससे वे दुनिया भर में घूम सकते हैं. 20 हज़ार करोड़ का संसद का सौंदरीकरण हो रहा है. 56 इंच के सीने में एक छोटा सा दिल है जो सिर्फ़ अरबपति दोस्तों के लिए धड़कता है.

सहारनपुर में प्रियंका गांधी निजीकरण को लेकर सरकार पर निशाना साध रही थीं वहीं थोड़ी देर बाद लोकसभा में प्रधानमंत्री निजीकरण के फ़ैसले का बचाव कर रहे थे. प्रधानमंत्री ने कहा, 'वेल्थ क्रिएटर होंगे तभी तो रोज़गार होगा, आईएएस तो सब नहीं हो सकते. देश में सब आईएएस नहीं होंगे, बाबू भी तो देश के हैं तो देश के जवान भी तो देस के हैं.' 

पब्लिक सेक्टर के निजीकरण की यह दलील सुनने में अच्छी लग सकती है लेकिन इसकी जगह अगर ये आंकड़े रखे जाते कि इन सेक्टरों के निजीकरण से कितनों को रोजगार मिला है? पहले काम कर रहे लोग निकाले गए या ज़्यादा लोगों को काम मिला. विशाखापट्टन में राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड के निजिकरण के खिलाफ आंदोन चल रहा है. यहां पर 35000 कर्मचारी काम कर रहे हैं. इसमें से 17000 अस्थायी हैं. CITU, AITUC, भारतीय मजदूर यूनियन विरोध कर रहे हैं. 4 फरवरी से आंदोलन चल रहा है. यूनियन को आशंका है कि निजीकरण से लोगों को नौकरी से निकाल दिया जाएगा. इस स्टील प्लांट के लिए लोगों ने ज़मीन दान दी थी. उन्हें ज़मीन के बदले नौकरी देने की वादा किया गया था. कुछ लोगों को नौकरी मिली है, अभी भी ज़मीन देने वाले 8000 परिवारों को नौकरी नहीं मिली है. यूनियन का आरोप है कि सरकार सस्ते में यह स्टील प्लांट बेच रही है. अभी तक यह स्टील प्लांट डिविडेंड के रूप में 4200 करोड़ केंद्र और राज्य सरकार को दे चुका है.

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

प्रधानमंत्री ने एक बात साफ कर दी है कि वे पीछे हटने वाले नहीं हैं. निजीकरण के खिलाफ होने वाले विरोध से भी पीछे नहीं हटने वाले हैं. प्रधानमंत्री ने बहुत से तथ्य रखे जिनकी अलग से समीक्षा की जा सकती है. जो आगे हम करते भी रहेंगे.