भारत में कार्यबल का 47 प्रतिशत कृषि से जुड़ा है. 2018-19 में कृषि, मत्स्य पालन, वनोपज की GVA(Gross Value Added) 2.7 हो गई है. 2017-18 में यह 5 प्रतिशत थी. एक साल में 46 प्रतिशत की यह कमी भयावह है. यह आंकड़े सेंट्रल स्टैटिस्टिक ऑफिस के हैं. खेती के मामले में इस साल की पिछले साल से तुलना करने में दिक्कत होती है क्योंकि 52 प्रतिशत खेती मानसून पर निर्भर रहती है. इसलिए पांच साल का औसत देखा जाता है. कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और रंजना रॉय ने इंडियन एक्सप्रेस में पांच साल के औसत के हिसाब से कृषि क्षेत्र की आय पर एक लंबा लेख लिखा है. दोनों अर्थशास्त्रियों ने 1998-2003-04 (वाजपेयी सरकार), 2004-05- से 2008-09( यूपीए-1), 2009-10 से 2013-14(यूपीए 2) और 2014-15 से 2018-19(मोदी सरकार) का तुलनात्मक अध्ययन किया है.
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खेती के मामले में मोदी सरकार का प्रदर्शन औसत है. इनका औसत प्रदर्शन 2.9 प्रतिशत है. नरसिम्हा राव सरकार का औसत प्रदर्शन 2.4 प्रतिशत था और वाजपेयी सरकार के समय 2.9 प्रतिशत. यूपीए-1 के समय 3.1 प्रतिशत और यूपीए-2 के समय 4.3 प्रतिशत था. खेती के मामले में लंबे समय का औसत इसलिए भी बेहतर तस्वीर पेश करता है क्योंकि कई उपायों का असर देखने का मौका मिलता है. मोदी सरकार 2022-23 तक किसानों की आमदनी दुगना करने का दावा करती है, उस आलोक में भी ये आंकड़े बताते हैं कि उनकी सरकार का कृषि क्षेत्र में कितना औसत प्रदर्शन रहा है.
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नाबार्ड ने 2015-16 के लिए भारत के प्रमुख राज्यों में कृषि परिवारों की मासिक आय का हिसाब निकाला है. पंजाब में कृषि परिवार (agriculture household) की आमदनी सबसे अधिक 23,133 रुपये है और यूपी में 6,668 रुपये है. उत्तर प्रदेश में सबसे कम है. 2015-16 के लिए अखिल भारतीय स्तर पर औसत मासिक आमदनी 8,931 रुपये है. एक किसान परिवार मात्र इतना कमाता है.
2002-03 और 2015-16 में वास्तविक आय का कंपाउंड एनुअल ग्रोथ अखिल भारतीय स्तर पर 3.7 ही होता है. 2022-23 तक किसानों की आमदनी दुगनी करने के लिए एक्सपर्ट कमेटी बनी है. उसके प्रमुख अशोक दलवाई का अनुमान है कि इसे हासिल करने के लिए कृषि क्षेत्र में 10.4 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करनी होगी. 2015-16 से तीन साल तक 10.4 प्रतिशत की दर से प्रगति करने पर ही हम कृषि क्षेत्र में दुगनी आमदनी के लक्ष्य को पा सकता है. इस वक्त 2.9 प्रतिशत है. मतलब साफ है लक्ष्य तो छोड़िए, लक्षण भी नज़र नहीं आ रहे हैं. अब भी अगर हासिल करना होगा तो बाकी के चार साल में 15 प्रतिशत की विकास दर हासिल करनी होगी जो कि मौजूदा लक्षण के हिसाब से असंभव है.
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अशोक गुलाटी और रंजना रॉय ने लिखा है कि किसानों को 6000 सालाना देने की नीति क भी कोई ठोस नतीजा नहीं निकलता दिख रहा है. सपना देखना अच्छा है बशर्ते कोई पूरा करने के लिए संसाधनों को इकट्ठा करे. पूरी ताकत से उसमें झोंक दे. मोदी सरकार के लिए समय जा चुका है. खेती में आमदनी दुगनी करने का नारा झांसा ही रहेगा. मोदी कहते हैं कि 2024 तक वही प्रधानमंत्री होंगे. होंगे तो उनके कार्यकाल के दूसरे हिस्से में भी खेती की असफलता मुंह बाये खड़ी रहेगी. किसान हाहाकार कर रहे होंगे. उन्हें भटकाने के लिए युद्ध का उन्माद रचा जा रहा होगा या सांप्रदायिकता का ऊबाल पैदा किया जा रहा होगा. तब किसान दस साल के व्हाट्स एप मेसेज पलट कर देख रहे होंगे कि उन्होंने अपने जीवन का एक दशक किन बातों में निकाल दिया. रैली और धरना करेंगे तो मीडिया उन्हें देशद्रोही घोषित कर देगा और पुलिस लाठियों से उनका हौसला तोड़ चुकी होगी. बात मोदी या किसी और सरकार की नहीं है, खेती की यह हालत देश में जो अस्थिरता पैदा करेगा, उसकी है. क्या किसानों को इस धोखे का पता भी है?
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