गोदी मीडिया और हाफ गोदी मीडिया को समझने का एक तरीका बताना चाहता हूं. आप देखें या न देखें, गोदी मीडिया ऐसी हरकत कर ही देता है कि उसकी करतूत आपके पास और दुनिया भर में पहुंच जाती है. हाफ-गोदी मीडिया की करतूत को बहुत ध्यान से देख कर भी कई लोग पकड़ नहीं पाते हैं. हाफ-गोदी मीडिया अपना काम शालीन भाषा और विद्वता की आड़ में करता है.वह आपको मूल सवालों से भटका कर दूसरे सवालों की गली में ले आता है.
मेरी इस बात को आप यूट्यूब में कम से कम चार बार सुनिए, तभी आप हाफ गोदी मीडिया के कार्यक्रमों और वीडियो को समझेंगे कि किस तरह मूल सवाल से ध्यान हटाकर रणनीतिक साझीदरी और समझौतों का ब्यौरा दिया जाने लगता है. खाड़ी के देशों में कितने भारतीय काम करते हैं, वहां से कितना पैसा भारत आता है, ये सब बताते हुए आपको वहां ले जाएगा, जैसे लगेगा कि प्रधानमंत्री के किसी विदेश दौरे को लेकर शानदार विश्लेषण हो रहा है. ऐसा नहीं है कि उससे आपको जानकारी नहीं मिलती, मिलती है, मगर उसकी आड़ में आपको वह मुद्दे से हटा ले जाता है. इस तरह से गोदी मीडिया की तुलना में हाफ गोदी मीडिया सरकार की कहीं ज़्यादा बेहतर खिदमत कर देता है.
एक और उदाहरण से समझिए. चांदनी चौक देखने आए लोगों को बब्लू गाइड दिन भर पराठे वाली गली में उलझाए रहता है, ताकि आपकी नज़र चांदनी चौक की अव्यवस्था पर न जाए. आपको लगेगा कि चांदनी चौक में अगर सबसे महत्वपूर्ण है तो पराठे वाली गली है. बड़े-बड़े बब्लू पत्रकारों की तरह बब्लू गाइड बेहतरीन अंग्रेज़ी में चालू हो जाता है. इस तरह पत्रकार अंग्रेज़ी में पराठे वाली गली की स्ट्रेटजिक व्याख्या करने लग जाते हैं.आपका ध्यान भटक जाता है.
इस समय मूल प्रश्न है हेट स्पीच और भारत में उसकी राजनीतिक मान्यता का. क्या सरकार की तरफ से अनेक मौकों पर हेट स्पीच को मान्यता नहीं दी गई? ठीक है कि इस समय सारा फोकस गोदी मीडिया के डिबेट में आने वाले प्रवक्ताओं पर हैं लेकिन बहुत से नफरती भाषण ऐसे हैं जो डिबेट के बाहर दिए गए हैं. सांसदों ने दिए हैं, मंत्रियों ने दिए हैं, समर्थकों ने दिए हैं. यह सवाल थोड़ा टफ है इसलिए हाफ गोदी मीडिया के पत्रकार विश्लेषण के नाम पर स्ट्रेटजिक और जियो-पोलिटिकल वाली गली में आपको दिल्ली दिखा रहे हैं.
जनवरी 2020 में छपी कुछ हेडलाइन आपके सामने हाज़िर है. द प्रिंट की हेडलाइन है. Days before Budget, minister Anurag Thakur chants ‘desh ke gaddaron ko, goli maaro saalon ko' इंडियन एक्सप्रेस की हेडलाइन है Minister Anurag Thakur chants desh ke gaddaron ko, poll rally crowd completes goli maaro..हिन्दी में मतलब हुआ मंत्री अनुराग ठाकुर ने देश के गद्दारों के नारे लगाए तो भीड़ ने उसे गोली मारो डैश डैश के नारे से पूरा किया. दैनिक भास्कर की हेडलाइन देखिए, Delhi Election: 'देश के गद्दारों को, गोली मारो...को' नारे पर मुश्किल में अनुराग ठाकुर, ईसी ने मांगी रिपोर्ट. क्या ये हेट-स्पीच है या नहीं, यही तय करने का समय है, क्या इस तरह के नारों के खिलाफ प्रधानमंत्री ने कभी कुछ बोला है, यह पता करने का समय है. यह जानने का समय है कि इस नारे के बाद भी अनुराग ठाकुर राज्य मंत्री से कैबिनेट मंत्री बने. सूचना प्रसारण मंत्री. अनुराग ठाकुर का यही जवाब है कि उन्होंने केवल देश के गद्दारों के नारे लगाए थे. गोली मारने के नहीं. यह व्याख्या शानदार है. जब आप नारे लगाने के लिए बोलते हैं तो पता होता कि जनता उधर से क्या बोलने वाली है. क्या यह सफाई काफी है?
बिस्वा- समझ गए? एक बाइट ब्रीद होगा अनुराग ठाकुर का नारा लगाते हुए और दूसरी बाइट होगी सफाई देते हुए कि हमने केवल नारे लगे, दूसरा हिस्सा नहीं बोला. दूसरी वाली ANI पर थी. 1 मार्च 2020 की है, वायर की कॉपी देखो.
हेट स्पीच का दायरा बहुत बड़ा है. हेट-स्पीच अब मेनस्ट्रीम है. आज की राजनीति की मुख्यधारा की भाषा. अनगिनत चुनावी भाषण दिखा सकता हूं. इन्हें फ्रिंज कहना ही ग़लत होगा. यही नहीं राजनीतिक रुप से भी वैचारिक और धार्मिक ख़ेमे के लोग अलग-अलग मंचों से एक ही थीम पर नफरती भाषण दे रहे हैं, जिसे मैं एंटी मुस्लिम नेशनल सिलेबस कहता हूं. हैसियत के हिसाब से इन वक्ताओं में फर्क करने का कोई मतलब नहीं रह जाता है.
हेट-स्पीच का एक राजनीतिक समाज बन चुका है, जिसमें रिटायर्ड अंकिल, हाउसिंग सोसायटी के सदस्य से लेकर स्कूल कालेजों के पूर्व छात्रों का समूह भी शामिल है. हेट-स्पीच के दायरे में गोदी मीडिया के चैनलों के स्क्रीन पर लिखे जाने वाले इस तरह की हेडलाइन भी आती हैं.डिबेट के भड़काऊ सवाल भी आते हैं.ऐसे डिबेट में केवल बीजेपी के प्रवक्ता नहीं आते,उनके साथ संघ विचारक होते हैं,किसी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर होते हैं, धर्म गुरु होते हैं, किसी मठ के महंत होते हैं, मौलाना होते हैं, इस्लामिक विद्वान होते हैं. विपक्षी दलों के प्रवक्ता होते हैं. ये सब मिलकर हेट-डिबेट को मान्यता देते हैं और नफरती बातों को उकसाने का अवसर उपलब्ध कराते हैं. जहां केवल नफरती बातों का ही शोर सुनाई देता है.
अब ऐसे लोगों के खिलाफ सरकार कभी सख़्त कार्रवाई नहीं करती या करती है तो वह ख़ानापूर्ति ज़्यादा होती है. इनके खिलाफ कार्रवाई का मतलब है अपने राजनीतिक और धार्मिक अभियानों को बंद कर देना, ये काम नहीं होगा वर्ना राजनीति की दुकान ही बंद हो जाएगी. इसलिए इस समय यह सवाल उठते रहना चाहिए कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के भाषणों के कुछ अंश नफरती भाषण के दायरे में आएंगे या नहीं, उन्हें कब तक चुप रहना चाहिए? याद रहे हेट-स्पीच साफ-साफ बोली जाती है तो इशारों में भी बोली जाती है. दोनों ही शैली में एक ही समुदाय को टारगेट किया जाता है. आप कैसे भी किसी समुदाय को टारगेट करें, वह हेट स्पीच ही है. बीजेपी के नूपुर और नवीन नामक दो प्रवक्ताओं के बयान से भारत शर्मिंदा हो रहा है तो इस तरह के बयान का मैदान इन दोनों प्रवक्ताओं ने अकेले तैयार नहीं किया हैं. क्या कपड़े से पहचानने वाले बयान को हेट-स्पीच नहीं माना जाएगा? क्या नफरती भाषणों को सभी ने हर स्तर पर मान्यता नहीं दी, मौका मिला तो खुद नहीं बोला, तो आज ऐसी खबरों के छपने का क्या मतलब कि सीनियर लीडर चिंतित हैं कि इससे पार्टी को नुकसान हो रहा है,पहले क्या फायदा हो रहा था? आग लगाने वालों का कपड़ों से पता चल जाता है.
खाड़ी के देशों में कितने भारतीय काम करते हैं, वहां से कितना डॉलर आता है, सच पूछिए तो इन सब पर असर नहीं पड़ने वाला है. ऐसी नौबत नहीं आएगी न इसके आगे भारत के संबंध बिगड़ेंगे.आज सवाल है कि जिन बयानों से भारत को शर्मिंदा होना पड़ा है,उसकी नौबत क्यों आई, क्या उसके दोषी केवल दो प्रवक्ता ही हैंं, क्या बाकी नेताओं के बयानों में इससे कुछ कम अति और अत्याचार नज़र आया है? अगर सारा फोकस इसी पर रहेगा कि नफरती भाषण या हेट-स्पीच की लाइन कहां ख़त्म होनी चाहिए तब हेट-स्पीच के लिए इससे बड़ी जीत नहीं हो सकती. नफरती भाषण या विचार जहां से शुरू होता है, वहीं पर अंतिम लाइन खींचने की ज़रूरत है. ऐसे विचार शुरू होने के बिन्दु से ही समाज को ज़हरीला बनाने लगते हैं.अगर यह सवाल माइनॉरिटी की सुरक्षा का है तो मेजोरिटी का भी है. माइनारिटी को निशाना बनाने के लिए मेजोरिटी के बेटों में नफरत भरी जा रही है ताकि उनके बेटे डाक्टर बनने के बजाए,दंगाई बन जाएं. सावधान रहिएगा.
बीजेपी के प्रवक्ताओं के खिलाफ कार्रवाई कर देने के बाद भी नाराज़गी ज़ाहिर करने वाले देशों की संख्या बढ़ती रही. सोमवार रात तक ऐसे देशों की संख्या 15 हो गई. क़तर, कुवैत, ओमान, बाहरीन, ईरान,सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, अफगानिस्तान, जॉर्डन, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, इराक़, मालदीव, लीबिया, तुर्की. सभी देशों ने अपने स्तर पर भारत से नाराज़गी ज़ाहिर की… कुछ ने भारतीय राजदूतों को बुलाकर नाराज़गी का पत्र थमाया है. क्या भारत ने इन देशों को अलग-अलग फटकारा ? नहीं फटकारा. इन देशों की नाराज़गी के चंद घंटों के भीतर बीजेपी ने अपने दो प्रवक्ताओं के खिलाफ कार्रवाई कर दी और सरकार ने भी इनसे दूरी बना ली.
अब आज छपी हेडलाइन को ठीक से समझिए. बड़ा-बड़ा छपा है कि भारत ने पाकिस्तान को फटकार लगाई. लेकिन यह नहीं पूछा गया कि हर देश ने अलग अलग वही बात कही है तो केवल पाकिस्तान को फटकार क्यों पड़ी, बाकियों को क्यों नहीं? अब आते हैं ओआईसी पर जिसे भारत सरकार ने फटकारा है. ओआईसी एक धर्म के आधार पर बना हुआ सांप्रदायिक संगठन है.आर्गेनाइज़ेशन आफ इस्लामिक कोआपरेशन ओआईसी के 57 सदस्य हैं. सारे सदस्यों ने तो बयान नहीं दिए हैं लेकिन जिन 15 देशों ने नाराज़गी ज़ाहिर की है, वे सभी इसके भी मेंबर हैं. भारत सरकार ने ओआईसी के बयान पर फटकार लगाई है तो क्या मान लिया जाए कि भारत सरकार ने सभी 15 देशों को जवाब दिया है?क्या सरकार ने क़तर को जवाब दिया है कि हम सार्वजनिक माफी नहीं मांगेंगे? फिर बीजेपी ने एक्शन क्यों लिया,इसीलिए न ताकि भारत के राजदूत इन देशों को तुरंत बता सकें कि कार्रवाई हो चुकी है? अगर ओआईसी के बयान से भारत को सांप्रदायिकता की बू आती है तो फिर 15 देशों के इसी तरह के बयान से सांप्रदायिकता की बू नहीं आती है?
ओआईसी एक विवादित संगठन रहा है लेकिन यह विवाद उसके मंच से बाद में उठा, इसके सदस्य देशों ने पहले अलग-अलग नाराज़गी ज़ाहिर करनी शुरू कर दी. उन देशों के जवाब में और ओआईसी के दिए जवाब में काफी अंतर है. सोमवार को भारत का विदेश मंत्रालय दो प्रेस रिलीज़ जारी करता है. एक में पाकिस्तान को फटकार लगाता है, एक में ओआईसी को. बाकी देशों को फटकार लगाने की जानकारी दोनों प्रेस रिलीज़ में नहीं है. आज संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंतोनियो गुतेरेस ने भी कह दिया कि हम यह बात मज़बूती से कहना चाहते हैं कि सभी धर्मों का सम्मान होना चाहिए. विपक्ष के नेता बीजेपी की प्रवक्ता की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं.
विपक्ष के नेता नूपुर शर्मा की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं, लेकिन बीजेपी लगता है निलंबन को ही सख्त कार्रवाई मान कर चल रही है. नूपुर के समर्थन को भी हेट-स्पीच के सपोर्ट के रूप में समझा जाना चाहिए जो मांग कर रहे हैं कि नूपुर को फिर से बीजेपी में लिया जाए. नूपुर शर्मा के समर्थन में ट्विटर पर ट्रेंड चल रहा है. केवल नूपुर शर्मा के लिए एक लाख अस्सी हज़ार से अधिक ट्विट हुए हैं.नूपुर शर्मा के समर्थन में कई हैशटैग चल रहे हैं. नूपुर के समर्थन वाले कई ट्विट में उन्हीं नफरती बातों को लिखा जा रहा है, जिसके कारण नूपुर को बीजेपी ने निलंबित किया है. नूपुर के सपोर्टर कतर के आगे झुक जाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना कर रहे हैं.दिल्ली पुलिस ने नूपुर शर्मा को एहतियातन सुरक्षा दे दी है.नूपुर और नवीन के थाने में शिकायत दर्ज कराई है कि उन्हें जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं.
पुलिस को जान से मारने की धमकी देने वालों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए. साफ दिखता है कि नफरती बयान देने वालों के प्रति नरमी बरती जाती है. एक तरफ आरोप भर से किसी का घर बुलडोज़र से ढहा दिया जाता है, उस पर तालियां बजती है तो दूसरी तरफ जिनके बयान से भारत को शर्मिंदा होना पड़ा है, उनके खिलाफ FIR तक नहीं होती है.न सरकार एक्शन लेती है और न उस न्यूज़ चैनल पर फर्क पड़ता है जहां ऐसे कार्यक्रम होते हैं और ऐसे वक्ता बुलाए जाते हैं.हेट स्पीच के मामले में कार्रवाई करनी होती तो कई हफ्तों से सुप्रीम कोर्ट में कार्रवाई की मांग को लेकर सुनवाई नहीं चल रही होती.
हरिद्वार में 17 से 19 दिसंबर को धर्म संसद का आयोजन हुआ. यहां जिस तरह के नफरती भाषण दिए गए उनमें और नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल के बयान में ख़ास अंतर नहीं है. मुसलमानों के खिलाफ खुल कर नरसंहार की बातें हुई, यहां भगवा रंग के कवर में संविधान की किताब लहराई गई, हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात हुई. यहां स्वामी प्रबोधानंद ने भारत में म्यानमार की तरह क्लिंजिंग की बात कही थी मतलब एक पूरी आबादी का सफाया कर देना. इनके साथक किसकी तस्वीरें नहीं हैं.
आप देख सकते हैं.क्या इन नज़दीकियों की वजह से ठोस कार्रवाई नहीं होती है? अन्न पूर्णा हिन्दू महासभा की सचिव हैं. यहां वे एक समुदाय के बीस लाख लोगों को हथियार उठाकर मार देने की बात करती हैं. इनके खिलाफ कार्रवाई तो दूर, अन्नपूर्णा को मीडिया अपने टीवी डिबेट में बुलाने लगा है. हम इनके भाषण का बहुत छोटा सा हिस्सा सुना रहे हैं. अगर सरकार की मंशा ऐसे बयानों पर काबू पाने की होती तो तुरंत कार्रवाई होती तब कोई क्यों नहीं बोला. क्या यह बयान नूपुर शर्मा के बयान से कम नफरती है? ऐसी सोच के लोगों को गोदी मीडिया डिबेट में बुलाता है. इसे कुछ और नहीं, केवल हेट स्पीच कहते हैं. नफरती भाषण. समाज को दंगों की आग में झोंक देने वाला भाषण.
साध्वी अन्नपूर्णा अलीगढ़ की रहने वाली हैं और पूजा शकुन पांडे के नाम से चर्चित हो चुकी हैं जब इन्होंने 30 जनवरी 2019 के रोज़ ये काम किया था. नकली पिस्तौल से गांधी की तस्वीर पर ठांय कर उनकी हत्या का अभ्यास कर रही हैं. बंदूक की आवाज़ के साथ गुब्बारा फटता है और गांधी जी की तस्वीर से ख़ून बहता है. यही पूजा अब साध्वी अन्नपूर्णा बनकर हिन्दू धर्म की रक्षक बन रही हैं. बच्चों से कापी किताब छोड़ कर हथियार उठाने की बात कर रही हैं उस गांधी जी को मारने के लिए जो जीवन भर खुद को हिन्दू कहते रहे. पूरा इको-सिस्टम है जिसमें कई लोग धर्म और राजनीति की आड़ में नफरती भाषण दे रहे हैं और उन्हें सपोर्ट किया जा रहा है.हरियाणा के पटौदी में एक समुदाय के खिलाफ महापंचायत बुलाई जाती है, हिंसक बातें होती हैं. दिल्ली के जंतर मंतर पर एक समुदाय के खिलाफ हिंसक नारे लगते हैं. इस मामले में गिरफ्तार लोगों को तीन दिनों के भीतर ज़मानत मिल जाती है.
एक वीडियो में दिख रहा है कि मंच पर हिन्दू युवा वाहिनी लिखा है जिसकी स्थापना यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने की है. मंच के पोस्टर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ की और यूपी सरकार के तत्कालीन राज्य मंत्री राजेश्वर सिंह की भी तस्वीर है जिन्हें हिन्दू युवा वाहिनी का मंडल प्रभारी बताया गया है. 19 दिसंबर 2021 की सुबह दक्षिण दिल्ली के बनारसीदास चांदीवाला आडिटोरियम में यह सभा हुई जिसमें सुदर्शन टीवी के प्रमुख संपादक सुरेश चव्हाणके ने भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की शपथ दिलाई. जब इस मामले में जांच हुई तब दिल्ली पुलिस ने कह दिया कि यहां कोई नफरती बातें नहीं कही गई. इस साल 22 अप्रैल की बात है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए एम खान्विलकर की बेंच ने दिल्ली पुलिस की इस जांच पर नाराज़गी जताई और यहां तक कह दिया कि हलफमाना लिखते समय पुलिस ने अपना दिमाग़ लगाया भी है या नहीं. तब दोबारा से इसे देखने के लिए कहा गया. 4 मई को दिल्ली पुलिस यू-टर्न लेती है और FIR दर्ज करती है.
दो समुदायों के बीच शत्रुता फैलाने का मामला दर्ज होता है. या तो कार्रवाई नहीं होती या जानबूझ कर एक्शन में कई साल लगा दिए जाते हैं. 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रचार का एक नारा हुआ करता था, कि देश नहीं झुकने दूंगा. सवाल है कि ये कौन लोग हैं जो देश से ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं. जवाब है, अपने लोग हैं. इसके कई प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रमाण मिल जाएंगे कि सभी एक ही धारा विचारधारा के हैं जिनके आधार पर अपने लोग कहा जा सकता है. इसलिए 15 देशों के सामने शर्मिंदगी के बाद भी सरकार ने नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल के ख़िलाफ़ मामला दर्ज नहीं किया. नूपुर शर्मा के मामले में ही बीजेपी ने साफ कर दिया है कि कार्रवाई का मतलब कानूनी कार्रवाई नही होती. क्या प्रधानमंत्री मानते हैं कि 15 देशों के सामने भारत का सर नहीं झुका? यह सवाल अक्षय कुमार भी उनसे पूछ सकते हैं.
राजकोट में कुछ दिन पहले जो उन्होंने कहा था, क्या अब कह सकेंगे? प्रधानमंत्री बताएं कि नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल, धर्म संसद में नफरती बातें बोलने वाले लोगों के संस्कार में किस हद तक सरदार पटेल हैं, किस हद तक गांधी हैं,हैं भी या नहीं. फिर प्रधानमंत्री इन लोगों के खिलाफ एक्शन क्यों नहीं लेते हैं, बयान क्यों नहीं देते हैं.क्यों नहीं सरकार गोदी मीडिया पर लगाम लगा सकी,जिसके कारण इसी बार नहीं, पहले भी कई बार भारत की बदनामी हुई. 2020 में जब यहां का गोदी मीडिया तब्लीग जमात को लेकर प्रोपेगैंडा चल रहा था तब भी खाड़ी के देशों में लोगों ने नाराज़गी ज़ाहिर की थी और भारत में फैलाए जा रहे इस्लामोफोबिया की निंदा की थी. एक मामला और है.
2015 में नेपाल में भूकंप आया था. विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के मौके पर नेपाल में सोशल मीडिया पर #GoHomeIndianMedia ट्रेंड होने लगा. नेपाल के हज़ारों लोग गोदी मीडिया के ख़िलाफ़ ट्विट करने लगे. नेपाल के लोगों की शिकायत थी कि भारतीय मीडिया के कवरेज में अंध राष्ट्रवाद है,असंवेदनशीलता है.भारतीय पत्रकारों के पूछे जाने वाले सवालों से भी नेपाल में लोग भड़क गए थे लेकिन एक बड़ा कारण था भारत की मदद को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाना मदद के नाम पर अपने नेता का जयजयकार कर रहा है, नेपाल के लोगों के कहने का मतलब था कि किसी को अच्छा नहीं लगेगा कि मदद देकर आप दस गांव में हल्ला करते रहें कि हमने पांच कुर्सी भिजवाई और दो बोरा चीनी. नफरती भाषण से राजनीति पकती है. इसके खिलाफ कुछ नहीं होगा क्योंकि इसकी हांडी गोदी मीडिया के स्टुडियो की रसोई में हर शाम चढ़ाई जाती है. गोदी मीडिया पार्टी है. आप प्रवक्ता निकाल सकते हैं, पार्टी भंग नहीं कर सकते. इनका फिक्स पैटर्न रहा है.इसी के आधार पर एक अनुमान लगा सकता हूं. जल्दी ही सूत्रों के हवाले से खेल शुरू होगा.
भारत के ख़िलाफ साज़िश के टूलकिट का बवंडर खड़ा किया जाएगा. सूत्रों के हवाले से अजब गज़ब दावे होंगे और हिन्दी अखबार और चैनल अपुष्ट दावों को पक्की ख़बर के रूप में जन-जन तक पहुंचा देंगे. और फिर समर्थकों के गुस्से को शांत करने के लिए गिरफ्तारियां होंगी जिन्हें दूसरे ख़ेमे का माना जाता है. काश ऐसा न हो. आपको दिशा रवि का मामला याद दिला रहा हूं. इसे टूलकिट केस के नाम से जाना जाता है. आरोप लगाया गया कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को बदनाम करने के लिए टूलकिट जारी हुआ है. गोदी मीडिया लगाकर 22 साल की दिशा को घेर लिया गया.पूरे देश के सामने उसे भारत का दुश्मन बना दिया गया कि दिशा भारत को बदनाम करना चाहती हैं.इसका कोई टूलकिट बनकर आया है. उस समय किसान आंदोलन चल रहा था और लाल किला हिंसा के बाद दिशा रवि को गिरफ्तार कर लिया जाता है. टूलकिट का इतना बवाल मचाया जाता है कि मंत्री तक टूल किट का भूत खड़ा करने वाला बयान देते हैं लेकिन अदालत में सरकार एक भी सबूत पेश नहीं कर पाती है.एडिशनल सोलिसिटर जनरल ने भी अदालत में माना था कि दिशा रवि के खिलाफ कोई सीधा सबूत नही है.
कोर्ट ने कहा कि सिर्फ़ मौखिक दावे के अलावा मेरे संज्ञान में ऐसा कोई सबूत नहीं लाया गया जो इस दावे की पुष्टि करता हो कि आरोपी या उनके कथित सहसाज़िशकर्ताओं की शैतानी साज़िश के बाद किसी भी भारतीय दूतावास में किसी तरह की कोई हिंसा हुई हो.टूलकिट का प्रोपेगैंडा धवस्त हो गया. टूलकिट के नाम पर सरकार के इतने बड़े वकील को अदालत में कहना पड़ता है कि कोई सबूत नहीं है, बिना सबूत के दिशा रवि गिरफ्तार होती हैं और कई दिनों तक जेल में रहती हैं. दूसरी तरफ नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल के बयानों के कारण भारत की दुनिया भर में नाक कट जाती है, इनके बयानों के सबूत हैं मगर कार्रवाई नहीं होती है. अगर टूलकिट है तो यही है कि अपने लोगों के लिए सारा जहां हमारा. भले ही सारे जहां में हमारा सर झुका दिया जाए. गोदी मीडिया का खेल तब भी आप देख रहे थे, अब भी आप देख रहे थे, आप आगे भी देखते ही रहेंगे.