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This Article is From Sep 16, 2019

रैमॉन मैगसेसे अवार्ड मिलने के बाद रवीश कुमार ने यूं किया दर्शकों का शुक्रिया अदा

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 16, 2019 17:54 pm IST
    • Published On सितंबर 16, 2019 15:29 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 16, 2019 17:54 pm IST

रैमॉन मैगसेसे अवार्ड 2019 के मेडल की तस्वीर आप सभी को समर्पित है. तूफानों से भरे इस दौर में हमारी इस छोटी सी किश्ती को आपने ही थामे रखा. यह पुरस्कार मैं लेकर आया हूं मगर मिला आप दर्शकों और पाठकों को है. मैं किसी औपचारिकता के नाते आप दर्शकों की अहमीयत को रेखांकित नहीं कर रहा हूं. आप हैं ही शानदार, बस इसे एक बार और बोलना चाहता हूं. आप वो हैं जो प्राइम टाइम के लिए, एनडीटीवी के लिए वक्त निकालते हैं. आपकी रूटीन का हिस्सा होता है कि 9 बजेगा तो प्राइम टाइम देखेंगे. जब मैं छुट्टियों में ग़ायब हो जाता हूं तब आप मुझे ढूंढते हैं. मुझे यह बात चमत्कृत करती है कि एक दर्शक कितनी नियमित होता है. वो कभी छुट्टी पर नहीं जाता है. वो मुझे देखना और सुनना चाहता है.

मुझे 25 साल के इस पेशे में यह बात आपके बीच रहकर समझ आई है कि दर्शक या पाठक होना पत्रकार के होने से भी बड़ी ज़िम्मेदारी का काम है. जीवन भर लोगों को सुबह उठकर आदतन आधे अधूरे मन से अख़बार पलटते देखा करता था. कइयों को अख़बार लपेट कर शौच के लिए जाते देखा करता था. कुछ लोगों के लिए अखबार यहां से वहां उठाकर रख देने के बीच कुछ पलट कर देख लेने का माध्यम हो सकता है, रिमोट से एक न्यूज़ चैनल से दूसरे न्यूज़ चैनल बदल कर अपनी बोरियत दूर करने का ज़रिया हो सकता है मगर निश्चित रूप से यह दर्शक या पाठक होना नहीं है. एक अच्छा दर्शक और एक अच्छा पाठक वह है जो अपने अख़बार या न्यूज़ चैनल को लेकर सजग है. वह अपना कीमती समय और मेहनत की कमाई का पैसा यूं ही कभी भी और कुछ भी देखने के लिए नहीं लुटा सकता है. उसे गंभीर होना ही होगा. सोचना ही होगा कि जो ख़बर पढ़ रहा है उसमें पत्रकारिता कितनी है, चाटुकारिता कितनी है.

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अलग-अलग इलाकों में सुबह के वक्त हमने ऐसे पाठक भी देखे हैं. एक अख़बार है और उसमें चार लोग झांक रहे हैं. एक टीवी सेट है और उसे चार लोगों ने घेरे रखा है. मैंने ऐसे दर्शकों और पाठकों को ख़बरों में डूबते हुए देख कर यही समझा है कि मीडिया चाहे तो साहसिक सवालों और पत्रकारिता से नागरिकों में कितना दम भर सकता है. भारत के ज़िंदाबाद लोकतंत्र को और भी ज़िंदाबाद कर सकता है. एक डरा हुआ पत्रकार मरा हुआ नागरिक पैदा करता है. अगर हमारी ख़बरें बिकी होंगी, सरकारों से डरी दुबकी होंगी तो फिर उन पाठकों और दर्शकों के साथ कितना अन्याय है जिसें ख़बरों के नाम पर धोखा दिया जा रहा है. 

यकीनन मनीला में आप सभी याद आते रहे. मैं आप दर्शकों पर ज़रा सा इतराता रहा. जब वहां पत्रकारों ने पूछा कि आप जिन विषयों के कवरेज़ की बात कर रहे हैं उसकी तो रेटिंग नहीं आती होगी. मैं जवाब में यही कहता था कि मेरे दर्शक अलग हैं. मेरे बात में मेरे पर ज़ोर होता है. जैसे आप मुझे अपना मानते हैं, मैं भी आप सभी को अपना हिस्सा मानता हूं. 

इसलिए मैं चाहता हूं कि आप इस पुरस्कार को नज़दीक से भी देखें. ये मेरा नहीं आपका है. 

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