हार्ली डेविडसन पर चीफ जस्टिस की फोटू और लेंबोर्गिनी चलाने की मेरी अधूरी ख्वाहिश

जल्द ही इतिहास से ऐसी और तस्वीरें आ जाएंगी लेकिन अपवाद होकर भी ये वाली तस्वीर अमर होगी, पिछले तीन साल में न्यायपालिका की तीन तस्वीरें अमरत्व को प्राप्त कर चुकी हैं

हार्ली डेविडसन पर चीफ जस्टिस की फोटू और लेंबोर्गिनी चलाने की मेरी अधूरी ख्वाहिश

ट्विटर पर इस तस्वीर को देखकर गर्व से सीना 56.2 इंच का हो गया. .2 इंच की बढ़ोतरियां बेपरवाह ख़ुशी देने वाली हैं वैसे ही जैसे इतनी सी तोंद कम हो जाने पर मिलती है. भाव बता रहा है कि हम सभी के भीतर नौजवानी कुलांचे मारती रहती है. बाइक के कद्रदान ही समझ पाएंगे हार्ली डेविडसन पर बैठने की खुशी. इस खुशी को प्राप्त करने के लिए जरूरी नहीं कि बाइक अपनी हो. यह खुशी दूसरे की बाइक पर बैठकर ही महसूस की जाती है. दोस्त की नई बाइक स्टार्ट करने को मिले तो समझिए कि दोस्ती गहरी है. बस ऐसा दोस्त भी हो जिसके पास डेविडसन, जावा और बुलेट हो. बाइक विहीन मित्रता अधूरी मित्रता होती है. 

हार्ली डेविडसन बाइक पर भारत के चीफ जस्टिस बैठे हैं. उनके चेहरे की खुशी भी दोस्त की बाइक पर बैठकर शौक पूरा करने वाली खुशी लगती है. यह तस्वीर ट्विटर पर खूब चल रही है. अनावश्यक टिप्पणी से मामला सीरियस न हो जाए इसलिए बहुत बातें छलक नहीं पा रही हैं. शेयर करने वाले सीमा में हैं. बहुत कुछ कहने की इच्छा रखने वाले लोग कानून के दायरे में हैं. ये तड़प सिर्फ ईर्ष्या के कारण नहीं हो सकती. 

दूसरी तरफ तस्वीर के वायरल होने से अनजान चीफ जस्टिस फ़िलहाल एक क्षणिक सुख का आभास कर रहे हैं. किसी भी प्रकार के भय और लोक-आलोचना के दायरे से बाहर जीवन के इस आनंद को जीते नजर आ रहे हैं. पल भर के लिए ही सही. चंद सेकेंड की यह तस्वीर आगे-पीछे की कोई कहानी नहीं कहती. कई लोगों ने नंबर से पता लगाया है कि बाइक चीफ जस्टिस की नहीं है, किसी और की है. तभी मैंने कहा कि हर कोई मित्र की बाइक पर बैठने की खुशी नहीं जानता है. वही जानता है जिसके पास दोस्त हो और दोस्त के पास बाइक हो.

हम सब अपने न्यायाधीशों को बोरिंग सफेद एंबेसडर कार में ही सिमटे देखते रहे हैं. मुमकिन है कारों का ब्रांड बदल गया हो लेकिन वो भी साधारण ही होंगी. बीएमडब्लू या मर्क नहीं होंगी. सार्वजनिक तौर पर न्यायाधीश लोग अपनी तस्वीरों को लेकर काफी सजग रहते हैं. लेकिन ऐसा नहीं कि उनके भीतर जीवन का रस और रंग नहीं होता है. उनके शौक नहीं होते. खूब पढ़ने से लेकर घूमने और न जाने क्या-क्या. लेकिन वे किसी को पता नहीं चलने देते. यह सही भी है. वरना पता चल जाए कि प्रेमचंद को पसंद करते हैं तो वकील हर दूसरी दलील में प्रेमचंद का नाम लेने लगेगा. 

इसलिए एकाध बार के लिए ऐसे दृश्य गजब का उत्साह पैदा करते हैं. देखने वाला अपने हिसाब से कहने के लिए बाध्य होगा. जल्द ही इतिहास से ऐसी और तस्वीरें आ जाएंगी लेकिन अपवाद होकर भी ये वाली तस्वीर अमर होगी. पिछले तीन साल में न्यायपालिका की तीन तस्वीरें अमरत्व को प्राप्त कर चुकी हैं. जब चार जज लॉन में आ गए प्रेस कॉन्फ्रेंस करने. इन चार में से एक राज्यसभा चले गए और ये तीसरी. इस तस्वीर की अपनी सत्ता है. बेतकल्लुफ होने की सत्ता. सत्ता होने की बेतकल्लुफी. 

बस मास्क पहन लेते तो अच्छा रहता. रुकी हुई बाइक पर हेलमेट पहनने की बात ठीक नहीं. चलाने का प्रमाण नहीं है इसलिए हेलमेट की बात अनुचित है. तस्वीर में जो बाइक है वो लिमिटेड एडिशन है. जब ये चीफ़ जस्टिस की है ही नहीं तो दाम सर्च करना ठीक नहीं लगता. वैसे इसकी कीमत 50 लाख तक हो सकती है. बेहतर है जिसकी है वहीं बताएं. हो सकता है पचास हजार का डिस्काउंट भी मिला हो.

 
एक बार मैंने भी मर्सिडीज की सवारी की थी. दोस्त की नानी की थी. गजब की कार है. जब से मॉडल टाउन में लेंबोर्गिनी वाला गाना सुना हूं तब से इस कार में सवारी की तलब है. किसी दोस्त की दादी के पास हो तो सूचित करें. मुझे मॉडल टाउन अपनी दोस्त से मिलने जाना है!

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