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This Article is From Jul 21, 2022

अरावली खा गए माफिया, ज़ुबैर को ज़मानत

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 21, 2022 01:34 am IST
    • Published On जुलाई 21, 2022 01:34 am IST
    • Last Updated On जुलाई 21, 2022 01:34 am IST

क्या आप जानते हैं कि 2017 से लेकर 2020 तक के तीन साल में सीनियर सिटीज़न ने रेल टिकट की सब्सिडी पर सरकार से कितने करोड़ की छूट ली है, और कारपोरेट ने 5 साल में सरकार से कितने करोड़ की टैक्स छूट ली है? इसका जवाब लोकसभा और राज्य सभा में सरकार ने खुद ही दिया है. कोई पांच से छह करोड़ सीनियर सिटीज़न एक साल में रिजर्व क्लास से रेल यात्राएं करते हैं, सरकार उनके टिकट पर सब्सिडी देती है (थी). लोकसभा में रेल मंत्रालय ने बताया है कि सीनियर सीटिज़न के रेल टिकट पर हर साल 1500 करोड़ से लेकर 1650 करोड़ तक की सब्सिडी दी जाती थी, जो अब बंद कर दी गई है. 2017-18 से लेकर 2019-20 के तीन वित्त वर्षों में सीनियर सिटीज़न को कुल 4, 794 करोड़ की सब्सिडी दी गई थी. 

अब आते हैं कारपोरेट ने विभिन्न नियमों के तहत कितने लाख करोड़ की टैक्स छूट ली है. 19 जुलाई को राज्यसभा में वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने बताया कि 5 साल में कारपोरेट ने विभिन्न मदों में कुल 4.5 लाख करोड़ की टैक्स छूट ली है. मंत्री ने कहा कि कारपोरेट का टैक्स माफ नहीं किया जाता है लेकिन यह वह आंकड़ा है जो कारपोरेट विभिन्न नियमों के तहत टैक्स से छूट हासिल करते हैं. 

यही नहीं रेल मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि सीनियर सिटीज़न और खिलाड़ी को रेल टिकटों पर कोई सब्सिडी नहीं दी जाएगी. करोड़ों सीनियर सिटीज़न परेशान रहते थे कि रेल टिकट पर सब्सिडी मिलेगी या नहीं. अब उन्हें जवाब मिल गया है कि नहीं मिलेगी. 

ज़ुबैर की ज़मानत की खबर पर आने से पहले अरावली और यूपी में तबादले के हंगामे की खबर पर बात ज़रूरी है. अरावली का पहाड़ माफिया काटकर खा गए, उनका कुछ नहीं बिगड़ा. अनुभव बताता है कि माफिया का कुछ बिगड़ेगा भी नहीं क्योंकि माफिया शब्द तो एक है लेकिन इसके भीतर प्रशासन, अधिकारी, नेता और न जाने कौन-कौन आता है.अरावली मिट जाएगी मगर माफिया नहीं मिट सकता है. माफिया केवल पहाड़ नहीं काटता बल्कि सिस्टम के भीतर एक ऐसा पहाड़ बना देता है कि उसे काटना असंभव हो जाता है. हरियाणा के डीएसपी सुरेंद्र सिंह बिश्नोई की हत्या के बाद माफिया मिट जाएंगे, इस तरह का भ्रम पालने का कोई ठोस कारण नहीं है.

तबादले का नेटवर्क भी अलग-अलग राज्यों में पहाड़ की तरह मज़बूत हो गया है. बिहार के राजस्व मंत्री ने हाल ही में कहा था कि उनके विभाग पर माफिया का कब्ज़ा हो गया है. उधर यूपी में तबादला नेटवर्क का पहाड़ इतना ऊंचा हो गया है कि योगी सरकार के तीन-तीन मंत्रियों के विभाग पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं. सारे आरोप तबादले को लेकर हैं. मुख्यमंत्री का कार्यालय इन विभागों में करप्शन की जांच करा रहा है तो इनके मंत्री नाराज़गी के बहाने बग़ावत के मीठे बोल बोल रहे हैं.

पांच साल तक संपूर्ण नियंत्रण से शासन करने और भ्रष्टाचार के मिटा देने का दावा करने के बाद भी योगी सरकार के कई विभागों में तबादलों को लेकर विस्फोट हो गया है. जुलाई महीने में यूपी के अखबारों में तबादले की खबरों को एक क्रम में सजाकर देखेंगे तो आपको यकीन हो जाएगा कि तबादला नेटवर्क नहीं मिट सकता है. अमर उजाला ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ के बयान के हवाले से एक हेडलाइन लिखी है कि अपने स्टाफ पर आंख मूंदकर भरोसा न करें मंत्री. खबर में विस्तार से लिखा है कि कैबिनेट की बैठक में मुख्यमंत्री ने कहा है कि मंत्री ईमानदारी और पारदर्शिता से काम करें. हिदायत देना बुरी बात नहीं है, समय-समय पर इसकी ज़रूरत होती है लेकिन दूसरी बार मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ को यह कहना पड़े कि मंत्री अपने स्टाफ पर भरोसा न करें, और राज्यमंत्री को भी बैठक में बुलाएं तो इसका मतलब है कि यूपी की कहानी में केवल बुलडोज़र का भय नहीं है, अगर भय होता तो मंत्री के स्टाफ वह काम तो बिल्कुल नहीं करते जिससे मुख्यमंत्री को कहना पड़ जाए कि मंत्री ही उन पर भरोसा न करें. लेकिन क्या मंत्रियों पर भरोसा किया जा रहा है, इसे समझने के लिए पहले एक हेडलाइन देखें. सात जुलाई के अखबार में छपी है. डिप्टी सीम और स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक का बयान है कि डिप्टी सीएम को पता ही नहीं, सचिव ने कर दिए तबादले. अब यही आरोप जलशक्ति राज्यमंत्री दिनेश खटीक लगा रहे हैं. उनका कहना है कि पैसे लेकर तबादले हो रहे हैं. 

यह आज नहीं बल्कि इस महीने के शुरू से ही दिखने लगा था, जब तबादलों में धांधली की खबरें यूपी के अखबारों में छपने लगी थीं. यह खबर आज की है कि PWD विभाग में तबादले को लेकर धांधली के आरोप में PWD हेड मनोज गुप्ता और चीफ इंजीनियर सहित पांच अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया गया है.18 जुलाई को कैबिनेट मंत्री जितिन प्रसाद के ओएसडी अनिल कुमार पांडे को हटा दिया गया. 

इन खबरों को देखने के बाद आप ही बताईए कौन किस पर भरोसा नहीं करे. मुख्यमंत्री कहते हैं स्टाफ पर भरोसा न करें, मंत्री कहते हैं उन पर भरोसा नहीं किया जा रहा है. इस खेल में राजनीति तो होगी ही लेकिन पर्दा हटाकर देखिए तो तबादलों के नेटवर्क का पहाड़ साफ-साफ नज़र आएगा.

जिस राज्य की राजनीति में धर्म और राष्ट्रवाद की नैतिकता गंगा की तरह पवित्र होने का दावा किया जाता है, उस राज्य में तबादले को लेकर सरकार के भीतर से ही भ्रष्टाचार के आरोप क्यों लग रहे हैं? यह भी अजीब है कि दिनेश खटीक मुख्यमंत्री की जगह गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखते हैं. कायदे से उन्हें अपना इस्तीफा पहले राज्यपाल और मुख्यमंत्री को देना चाहिए था. अमित शाह को इसलिए लिखा कि इस पूरे मामले को दिल्ली बनाम यूपी की लड़ाई के रूप में देखा जाए? देखा भी जा रहा होगा लेकिन यह बात ध्यान में रखने की ज़रूरत है कि जलशक्ति विभाग के कैबिनेट मंत्री स्वतंत्र देव सिंह हैं, जो बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष हैं. दिनेश खटीक इसी विभाग में राज्यमंत्री हैं. अमित शाह को एक पत्र लिखते हैं जिसमें काफी कुछ बताते हैं. 

दिनेश खटीक मेरठ से हस्तिनापुर से चुनकर आते हैं. दोबारा विधायक बने हैं और दोबारा मंत्री भी. दिनेश खटीक ने अपने पत्र में जो आरोप लगाए हैं, उससे काफी कुछ देखने समझने को मिलता है. दिनेश खटीक ने लिखा है कि, ''दलित समाज से होने के कारण जलशक्ति विभाग में उनकी पूछ नहीं है. उनके आदेश पर कोई कार्रवाई नहीं होती और न ही कोई उन्हें बैठक की सूचना देता है. केवल गाड़ी दे देने से राज्यमंत्री का दायित्व पूरा नहीं हो जाता है.'' दिनेश खटीक ने आरोप लगाया है कि उनके विभाग में तबादले में बहुत बड़ा भ्रष्टाचार हुआ है. जब उन्होंने विभाग से पूछा कि किस-किस का तबादला हुआ है तो इसकी जानकारी तक नहीं दी गई. ''प्रमुख सचिव, सिंचाई, अनिल गर्ग को उक्त स्थिति से अवगत कराना चाहा तो उन्होंने मेरी पूरी बात तक नहीं सुनी और फोन काट दिया. यह एक जनप्रतिनिधि का अपमान है. मैं दलित जाति का मंत्री हूं इसलिए विभाग में भेदभाव किया जाता है. जब दलित राज्यमंत्री का कोई अस्तित्व ही नहीं है तो पद से इस्तीफा दे रहा हूं.'' जब इतना लंबा चौड़ा पत्र लिख ही दिया तो फिर मीडिया से बात क्यों नहीं कर रहे हैं.

नमामि गंगे प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार का आरोप सुनकर तो ED के सारे अफसरों को विमान से नहीं तो नाव से ही लखनऊ की तरफ रवाना हो जाना चाहिए और जांच करनी चाहिए. मां गंगा के प्रोजेक्ट में भ्रष्टचार चल रहा है, यह बात स्वयं मंत्री कह रहे हैं. क्या इसके बाद भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिनेश खटीक को मनाकर मंत्री पद पर बनाए रखेंगे या नमामी गंगे प्रोजेक्ट की जांच NIA,ED और CBI में से किसी को सौंप देंगे? दिनेश खटीक का आरोप भले ही उनके विभाग तक सीमित हो लेकिन यूपी के कई विभागों में तबादले को लेकर पैसे के लेन-देन के आरोप लग रहे हैं.

PWD मंत्री जितिन प्रसाद के OSD अनिल कुमार पांडे को तबादले में धांधली के आरोप के बाद हटा दिया गया. यह कैसे हो सकता है कि अनिल कुमार पांडे की गतिविधि की जानकारी कैबिनेट मंत्री जितिन प्रसाद को न हो जबकि वे अनिल कुमार पांडे को UPA के समय से जानते हैं जब वे मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री थे. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 350 इंजीनियरों के तबादले को लेकर हंगामा मचा हुआ है. इसे लेकर इंजीनियर इन चीफ मनोज गुप्ता को सस्पेंड किया गया है. चार अन्य सीनियर अफसरों को भी सस्पेंड किया गया है. ज़ाहिर है योगी सरकार को लग रहा है कि भ्रष्टाचार हुआ होगा तभी इतनी कार्रवाई हुई और जांच हो रही है. क्या तब तक मंत्री जितिन प्रसाद को पद से हटा नहीं देना चाहिए? जब ओएसडी का तबादला हुआ, इंजीनियर इन चीफ संस्पेंड हैं तो मंत्री कैसे अनजान हो सकते हैं. क्या यही बात दूसरे दलों की सरकारों के समय मान ली जाएगी? जितिन प्रसाद के भी दिल्ली में होने की खबर है, पर उन्हें बताना चाहिए कि उनके रहते भ्रष्टाचार हुआ या नहीं, अगर हुआ है तो फिर उन्हें मंत्री क्यों रहना चाहिए. अपने विभाग में तबादले को लेकर जो धांधली हुई है, उसकी नैतिक ज़िम्मेदारी से भी खुद को अलग कैसे कर सकते हैं? क्या ये सारे सवाल वाकई पूछने लायक नहीं हैं?

यूपी के अखबारों में पशुपाल विभाग में 50 करोड़ के घोटाले की खबर छपी है. भास्कर की खबर है कि पशुपालन विभाग में उपकरण और दवाओं की खरीद दो गुनी कीमत पर हुई है. इसकी जांच हो रही है. आज PWD और सिंचाई विभाग के तबादले का बवाल दिल्ली पहुंचा है. लेकिन इसकी शुरूआत हुई थी स्वास्थ्य विभाग के तबादले से. स्वास्थ्य विभाग के तबादले में इतनी धांधली हो गई कि योगी सरकार को अपने ही मुख्य सचिव के निर्देशन में जांच बिठानी पड़ गई. ऐसा लग रहा है कि विभागों से भ्रष्टाचार से अकेले मुख्यमंत्री कार्यालय ही लड़ रहा है. 

12 जुलाई की एक खबर अमर उजाला की है स्वास्थ्य विभाग में तबादले की जांच के लिए मुख्यमंत्री योगी ने कमेटी गठित की. मुख्य सचिव जांच करेंगे. यह खबर 5 जुलाई की है डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री कह रहे हैं कि उन्हें तबादले की जानकारी नहीं थी. कमाल है, बिना मंत्री की जानकारी के तबादले हुए जा रहे हैं. अखबारों में खबरें भरी पड़ी हैं. पीएमएस डॉक्टरों का एसोसिएशन हो या स्वास्थ्य विभाग के तमाम दूसरे संगठन सभी गलत तबादलों के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. कर्मचारियों ने 14 जुलाई को महानिदेशालय का घेराव भी किया था. खुद डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने अपर मुख्य सचिव को पत्र लिखा है जिससे पता चलता है कि तबादला उनकी जानकारी के बगैर हुआ और तबादला नीतियों का पालन नहीं हुआ.

हो सकता है कि यूपी की सरकार में मुख्यमंत्री और मंत्रियों के बीच वर्चस्व की लड़ाई चल रही हो लेकिन इस लड़ाई में तीन तीन बड़े विभाग के मंत्री भी संदेह से परे नहीं होते हैं. क्या वे बताना चाहते हैं कि वे नाम के मंत्री हैं मगर तबादला कोई और कर रहा है, या जब तबादले में धांधली हो रही है तब केवल अधिकारी ज़िम्मेदार हैं, उनकी कोई भूमिका नहीं. यह भी एक बड़ा सवाल है कि हज़ारों लोगों का तबादला हो रहा है, और मंत्री की कोई भूमिका नहीं? बसपा नेता मायावती और सपा नेता अखिलेश यादव ने ट्वीट के ज़रिए राज्यमंत्री दिनेश खटीक के मामले में प्रतिक्रिया दी है. मायावती ने कहा है कि यूपी भाजपा मंत्रिमंडल के भीतर भी दलित मंत्री की उपेक्षा अति निंदनीय और दुर्भाग्यपूर्ण है. समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने ट्वीट किया है कि, उप्र भाजपा सरकार में भ्रष्टाचार और कुशासन की क्रॉनॉलॉजी समझिए- पहले लोक निर्माण विभाग के मंत्रालय में विद्रोह, फिर स्वास्थ्य मंत्रालय में विद्रोह, अब जल शक्ति मंत्रालय में विद्रोह. जनता पूछ रही है, उप्र की भाजपा सरकार ईमानदारी से बताए… अब अगली बारी किसकी है?

सवाल है कि केवल बयानों को लेकर बवाल होगा और वर्चस्व की लड़ाई लड़ी जाएगी या भ्रष्टाचार के आरोपों की स्वतंत्र जांच होगी? मुंबई क्राइम ब्रांच की एंटी एक्सटोर्शन सेल ने नवगठित महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री पद दिलाने के नाम पर 100 करोड़ मांगने वाले एक गिरोह को पकड़ा है. खास बात है कि इस गिरफ्तारी में उस विधायक ने ही अहम भूमिका निभाई ये गिरोह 100 करोड़ में कैबिनेट मंत्री पद दिलाने के लिए जिसके पीछे पड़ा था. पुलिस ने मामले में 4 आरोपियों को गिरफ्तार किया है. इस देश में कुछ भी हो सकता है. सावधान रहा कीजिए.

आज ताबड़ू शहर बंद रहा. स्कूल कालेज, दुकानें सब बंद रहीं. शहर के लोगों ने डीएसपी सुरेंद्र सिंह विश्नोई की हत्या के विरोध में एक मार्च निकाला. दिवंगत विश्नोई के बेटे कनाडा में रहते हैं. उनके आने का इंतज़ार किया जा रहा है. जिसके बाद गुरुवार को हिसार के उनके गांव सारंगपुर में अंतिम संस्कार होगा. 

कल विश्नोई की हत्या के आरोप में डंपर का क्लीनर इक्कर मुठभेड़ के कुछ देर बाद पकड़ा गया, ड्राइवर को भी आज भरतपुर से गिरफ़्तार कर लिया गया. इसके अलावा माइनिंग में शामिल बाकी लोगों की भी तलाश जारी हैं. जहां पर ड्राइवर और क्लीनर दोनों रहते हैं वहां पूरे मोहल्ले के घरों पर ताले पड़े मिले. क्या वहां के लोग भी भाग गए? 

कांग्रेस ने जब हरियाणा के मुख्यमंत्री से इस्तीफा मांगा तब उसके जवाब में गृहमंत्री अनिल विज ने कहा दिया कि 2013 में जब हु्ड्डा मुख्यमंत्री थे बिलकुल इसी प्रकार की घटना हुई थी, उस समय भी पुलिस वाले मारे गए थे. ये सब शुरू तो कांग्रेस के समय से हुआ. मंत्री कह रहे हैं, हमने तो फिर भी उस पर नियंत्रण किया है. क्या वाकई अरावली के खनन पर नियंत्रण हो गया है? 

कांग्रेस के समय हुआ तो अब भी हो गया, तो क्या बात. इस तरह से हर बात इज़ इक्वल टू हो जाती है और जैसा चल रहा है, चलता रहता है. एक बात ठीक से समझने की ज़रूरत है. मुआवज़े के ऐलान से, परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने और डंपर के मालिक और चालक को गिरफ्तार कर लेने से सुरेंद्र सिंह बिश्नोई की हत्या का इंसाफ नहीं हो जाता है, न ही अरावली की निरंतर हत्या का इंसाफ होता है. क्योंकि सुरेंद्र सिंह बिश्नोई की जान इसलिए गई क्योंकि वे देखने गए थे कि वहां माइनिंग तो नहीं हो रही. अरावली दुनिया की सबसे पुरानी पर्वतमाला है,जो दिल्ली से लेकर गुजरात के चंपानेर तक में 692 किलोमीटर में फैली हुई है. 

अप्रैल 2019 में डाउन टू अर्थ ने अरावली को लेकर एक कवर स्टोरी की थी. उसमें अरावली को लेकर काफी जानकारियां मिलेंगी. प्रणय लाल ने लिखा है कि दुनिया के इन सबसे पुराने मोडदार पर्वतों का निर्माण करीब दो अरब साल से गतिमान टेक्टॉनिक प्लेटों और इस दौरान निकले मैग्मा से हुआ है. करोड़ों वर्ष तक अरावली को कोई खतरा नहीं हुआ लेकिन माफिया ने अरावली को काट खाया है. इस कटान के कारण अरावली बहुत तेज़ी से खत्म होती जा रही है. रायसीना हिल्स भी कुछ और नहीं, बल्कि अरावली ही है. दिल्ली और आसपास के विकास ने अरावली को निगल लिया. अरावली ग्रेनाइट की खान है. इसकी रेंज में ग्रेनाइट निकालने का धंधा अनियंत्रित तरीके से चलता आ रहा है.75 करोड़ वर्ष पहले ज्वालामुखी फटा था, जहां आज जोधपुर का महेंद्रगढ़ किला है. जब धरती पर बर्फ की परतें जमी हुई थीं, तब की बात है. मालानी में ज्वालामुखी फटा. और धरती से बर्फ का पिघलना शुरू हुआ. धरती पर बहुकोशिकीय जीवन की शुरूआत होती है. आधुनिक समय में अरावली की भूमिका है. यह पर्वतमाला मानसून के समय बादलों को शिमला और नैनीताल की तरफ भेज देती है. इसके पत्थरों की बनावट पानी के संरक्षण में भी काम आती है. कभी इस इलाके में 40 फीट पर पानी मिलता था लेकिन अब तो 350-400 फीट नीचे जाने पर भी पानी नहीं मिलता है. फिर भी अरावली को लगातार काटा जाता रहता है. अप्रैल 2019 में डाउन टू अर्थ में जितेंद्र और शगुन की रिपोर्ट है कि अब अरावली को बचाना मुश्किल है. 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली में माइनिंग बैन कर दिया था, पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्रालय की अनुमति से ही खनन हो सकता है.  2018 में सुप्रीम कोर्ट की एक कमेटी ने रिपोर्ट दी थी कि अवैध माइनिंग से राजस्थान में 1967 से लेकर 2018 तक अरावली का 25 प्रतिशत हिस्सा गायब हो गया. सुप्रीम कोर्ट के बैन के बाद भी अरावरी का कटान नहीं थमा है. 

किस स्तर पर अरावली को काटा जा रहा है इसका पता 2017 के Comptroller and Auditor General of India (CAG) की रिपोर्ट से चलता है. 2011-12 से लेकर 16-17 के बीच अवैध माइनिंग के 4,072 मामले दर्ज किए गए थे. अवैध रूप से करीब दस लाख टन खनीजों का उत्खनन किया जा चुका है. अलवर ज़िले में अरावली की 31 पहाड़ियां गायब हो चुकी हैं. ये CEC की रिपोर्ट है. 

अगर कोई दावा करे कि अरावली में खनन पर रोक है, माफिया सक्रिय नहीं हैं, तब फिर अरावली को खोजने का काम कीजिए, कि यह पर्वतमाला पहले की तुलना में कितनी बची रह गई है. हम आपको एक होमवर्क देना चाहते हैं. अरावली के इलाके से कितने सांसद आते हैं और इनमें से कितनों ने अरावली को लेकर सवाल पूछे हैं? यह जानकारी आपको जागरूक बना सकती है. 

अरावली को सबने मिलकर मारा है, लेकिन अब भी इसका एक कोना बचा है. एक वीडियो उसके सुंदर कोने का है. 25 नवंबर 2017 के प्राइम टाइम में इसे दिखा चुका हूं, यू ट्यूब पर इस एपिसोड को फिर से देख सकते हैं. उस साल इंडिया हैबिटेट सेंटर में अरावली को लेकर एक प्रदर्शनी लगी थी. इसमें इरा पांडे, प्रदीप कृष्ण और आदित्य आर्या ने अपने काम का प्रदर्शन किया था. क्या आप अरावली को बचाना नहीं चाहेंगे, पर्वतमाला खत्म हो चुकी है, पहाड़ियां बच गई हैं. वो भी कब गायब हो जाएं पता नहीं.

सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद ज़ुबैर को आज कई मामलों में राहत दी है. यूपी सरकार ने ज़ुबैर के मामलों में जांच के लिए दो-दो SIT का गठन किया था, इसे भंग कर दिया है. यूपी सरकार ने कहा कि ज़ुबैर ट्वीट न करे, इसका आदेश जारी हो, सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा आदेश देने से इनकार कर दिया, यानी ज़ुबैर ट्वीट कर सकेंगे. यही नहीं ज़ुबैर को सभी FIR के मामले में गिरफ्तारी से राहत दी गई है. अंतरिम ज़मानत दे दी गई है. 

27 जून को मोहम्मद ज़ुबैर को गिरफ्तार किया गया था. आज के आदेश के बाद ज़ुबैर के जेल से बाहर आने का रास्ता साफ हो गया है. इसके पहले दिल्ली की पटियाला कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने सीतापुर मामले में अंतरिम ज़मानत दे दी थी, लेकिन अब सभी FIR के मामले में अंतरिम ज़मानत मिल गई है. ज़ुबैर की याचिका में इस बात की भी मांग की गई थी कि सभी FIR रद्द कर दी जाएं, लेकिन कोर्ट ने इनकार कर दिया और कहा कि अगर ज़ुबैर चाहें तो इसके लिए दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं. 


फिलहाल सभी मामलों की जांच दिल्ली पुलिस करेगी और ये सभी मामले दिल्ली हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र के दायरे में रहेंगे. ज़ुबैर के ख़िलाफ दिल्ली के अलावा यूपी के हाथरस में दो और,गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, चंदौली, लखीमपुर और सीतापुर में एक-एक FIR दर्ज की गई थी. जब यूपी सरकार के वकील ने कहा कि ज़ुबैर को ट्वीट करने से रोका जाए तब जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि हम ऐसा कैसे कह सकते हैं. यह एक वकील से बहस न करने के लिए कहने जैसा है. हम नहीं कह सकते कि एक पत्रकार न लिखे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह पाया गया है कि दिल्ली पुलिस द्वारा उनकी काफी निरंतर जांच की गई है. हमें उनकी स्वतंत्रता को और रोकने का कोई कारण नहीं दिखता हमारा विचार है कि उन्हें सभी FIR  पर अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए. यह कानून का एक निर्धारित सिद्धांत है कि गिरफ्तारी की शक्ति का संयम से पालन किया जाना चाहिए. वर्तमान मामले में उसे लगातार हिरासत में रखने का कोई औचित्य नहीं है. ज़ुबैर को आज शाम रिहा कर दिया गया.

सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारियों को लेकर कितनी चिन्ता जताई है तब भी फिल्मकार अविनाश दास को गिरफ्तार किया गया. अविनाश ने भी सुप्रीम कोर्ट में ज़मानत की याचिका दायर की हुई है. बुधवार को अहमदाबाद पुलिस ने बताया है कि अविनाश दास ने राष्ट्रीय ध्वज की सही से तस्वीर पोस्ट नहीं की थी. राष्ट्रीय ध्वज के अपमान के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. पुलिस ने बताया कि अविनाश ने गृहमंत्री की ऐसी तस्वीर लगाई है जिससे उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचता है. सुप्रीम कोर्ट ने इतनी बार इन सब बातों पर फैसला दिया, राय दी, चिन्ता जताई तब भी गृह मंत्री की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंच रहा है इसलिए किसी को गिरफ्तार किया जा रहा है. 

एक बहस चलती है,कहीं पहुंचती है, खत्म होती है, फिर वही बहस कहीं और से चलती है और खत्म होती है. जैसे ही लगता है कि अब बहस खत्म हुई, फिर से वही बहस कहीं और से चलती है और खत्म होने का नाम नहीं लेती है.

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