कश्मीर घाटी में तीन हफ्तों से प्रदर्शन कर रहे कश्मीरी पंडितों ने कहा है कि अगर 24 घंटे के भीतर उन सभी का तबादला जम्मू नहीं किया गया तो वे घाटी से पलायन करेंगे. आज कुलगाम में अनुसूचित जाति की रजनी बल्ला की हत्या के बाद कश्मीरी पंडितों की बेचैनी और बढ़ गई है. जम्मू के सांबा ज़िले की रहने वाली रजनी कुलगाम के हाई स्कूल में पढ़ाती थीं. गोपालपुरा के हाईस्कूल में आतंकवादियों ने उनकी हत्या कर दी. इस महीने यह सातवीं घटना है जब आतंकवादियों ने टारगेट अटैक किया है. इनमें बडगाम की 35 साल की ऐंकर अमरीना भट्ट भी शामिल हैं.आतंकवादियों ने जम्मू कश्मीर के सिपाही सैफुल्ला क़ादिर की भी उनके घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी. कश्मीर के सभी दलों ने रजनी बल्ला की हत्या की निंदा की है लेकिन बात वहीं पर आकर रुक जाती है कि निंदा ही हो रही है, आतंकवादियों का हौसला रुक नहीं रहा है. घाटी में अलग-अलग सरकारी विभागों में काम करने वाले कश्मीरी पंडितों का कहना है कि वे असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. उन्हें पुनर्वास के नाम पर बलि का बकरा बनाया जा रहा है. जब तक घाटी में हालात सामान्य नहीं होते, तब तक उन्हें जम्मू भेज दिया जाए नहीं तो वे पलायन करेंगे. कश्मीरी पंडित राहुल भट्ट की हत्या के बाद से प्रदर्शन जारी है. राहुल की हत्या के 12 दिनों बाद जब लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने प्रदर्शनकारियों से बात की तब उनका बयान ग़ौर करने लायक है. उन्होंने कहा कि यहां आतंक का इकोसिस्टम इतना फैला हुआ है कि परछांई पर भी भरोसा नहीं कर सकते. यह सुनने के बाद लोगों में असुरक्षा और बढ़ गई. हैदर फिल्म का एक संवाद याद आता है- किसका झूठ, झूठ है. किसके सच में सच नहीं, है कि है नहीं, बस यही सवाल है. और सवाल का जवाब भी सवाल है.
ऐसा कभी नहीं हुआ कि कश्मीरी पंडितों ने घाटी से पलायन करने के लिए अल्टीमेटम दिया हो और ऐसा कभी नहीं हुआ कि पलायन की चेतावनी की ख़बर से गोदी मीडिया ने किनारा कर लिया है. जिस गोदी मीडिया ने कश्मीर फाइल्स पर दिन रात लगाया, लोगों के बीच उबाल पैदा किया, उसके रहते कश्मीरी पंडित इस बात की शिकायत कर रहे हैं कि उनके प्रदर्शन को कवर नहीं किया जा रहा है. ऐसा नहीं है कि घाटी में आतंकवादी मारे नहीं जा रहे हैं, हर दिन एनकाउंटर की भी ख़बरें आती हैं लेकिन इसके बाद भी जिस तरह से आम नागरिकों को चिन्हित कर निशाना बनाया जा रहा है, उससे लोगों में असुरक्षा और बढ़ती जा रही है.
अब बात करते हैं भूसे की. अगर इसी तरह यह संकट जारी रहा तो भूसे के साथ-साथ दूघ भी महंगा होता जाएगा. हरियाणा और पंजाब ने दूसरे राज्यों में भूसा बेचे जाने पर रोक लगा दी है. इस कारण उत्तराखंड में भूसे का दाम तेज़ी से चढ़ने लगा तो वहां की सरकार ने मई के पहले हफ्ते में आदेश जारी किया कि राज्य में पैदा होने वाला भूसा पड़ोस के राज्यों में नहीं बेचा जाएगा, वर्ना मुकदमा होगा. इसी के साथ दूसरे उद्योगों में इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई और भूसे की कालाबाज़ारी पर सख्त कारर्वाई की चेतावनी जारी कर दी गई. मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि यह आदेश 15 दिनों के लिए जारी हुए था. इस बात की आशंका जताई जा रही है कि भूसा महंगा होगा और नहीं मिलेगा तब लोग अपने मवेशियों को खुला छोड़ सकते हैं. इससे दूसरे तरह का संकट पैदा हो जाएगा और फसलों के चर जाने के कारण गांवों में झगड़े बढ़ने लगेंगे. राजस्थान में भी भूसे का भाव 2000 रुपये क्विटंल हो गया है.
30 मई के डाउन टू अर्थ में भागीरथ की एक रिपोर्ट इस संकट की गंभीरता बता रही है. इसमें लिखा है कि भूसे का दाम तीन गुना बढ़ने से मंगतराम ने अपनी डेरी से 28 गायों को बेच दिया है. मनरेसर के मंगतराम का कहना है कि पिछले साल जो भूसा 425 रुपये क्विंटल खरीदा था, इस साल 1500 रुपये क्विंटल खरीदा है. एक गाय को चारा खिलाने पर हर दिन 250 रुपये का खर्चा आ रहा है. डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के अनुसार मंगतराम डेरी फार्म की जगह कुत्ते की फार्मिंग करने की सोचने लगे हैं. विदेशी कुत्तों के बच्चों के दाम अच्छे मिल जाते हैं. पशुपालन और दुग्घ उत्पादन घाटे का सौदा होता जा रहा है. भूसे का दाम बढ़ने से किसानों को घाटा होने लगा है. मंगतराम के गांव के कई किसानों ने गायें बेच दी हैं. 28 मई को प्रधानमंत्री गुजरात में थे, सहकार से समृद्धि कार्यक्रम में. वहां उन्होंने 8 लाख करोड़ के दूध उत्पादन की बात तो की मगर भूसे के संकट का ज़िक्र नहीं है. इस समय पशुपालन सेक्टर किस संकट से गुज़र रहा है, उसकी फिक्र नहीं दिखती.
भारत के छोटे किसान अगर पशुपालन सेक्टर को मज़बूती दे रहे हैं तो भूसे के दाम बढ़ने से उन पर जो तूफान आया है, उसका भी ज़िक्र हो सकता था. पशुपालक लगातार कह रहे हैं कि उनकी कमाई घटती जा रही है. अब अगर भूसा तीन गुना महंगा होगा तब तो गाय रखना ही मुश्किल होता जाएगा. इसका असर दूध के दामों पर भी पड़ने से कोई नहीं रोक सकता. अगर भूसा न खरीद पाने के कारण किसान अपनी गायें हटा रहे हैं या कम दाम में बेचने के लिए मजबूर हो रहे हैं तो यह बहुत बड़ी ख़बर है. इससे तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ ही चरमरा जाएगी. पशुपालन के सहारे ही खेती किसानी का बड़ा हिस्सा सहारा पाता है.
एक ख़बर 27 मई के अमर उजाला में छपी है. बलिया के एक सरकारी स्कूल में भूसा रखने का गोदाम बनाया गया है. एक वीडियो वायरल होने की यह खबर है कि क्लास रूम में भूसा रखे हैं. 19 मई की पत्रिका में लखनऊ से खबर छपी है कि भूसा तीन गुना महंगा हो गया है. बुंदेलखंड में भूसे का संकट विकराल हो गया है इस कारण वहां दूध का भाव 80 रुपये लीटर तक पहुंच सकता है. ज़ाहिर है भूसा महंगा होगा तब इसका असर दूध की कीमतों पर भी पड़ेगा. अभी तक दूध 50-55 रुपये लीटर मिला करता है, लेकिन पत्रिका में छपा है कि 80 रुपये तक पहुंच जाए तो आश्चर्य की बात नहीं. हापुड़ के दुग्ध उत्पादक नईम का कहना है कि वे अभी से 70 रुपये लीटर दूध बेचने लगे हैं. इससे कम में लागत नहीं निकल रही है.
भूसा महंगा होगा तो दूध के दाम को बढ़ने से नहीं रोका जा सकता है. अभी तो पैकेट में मिलने वाला दूघ 60 रुपये लीटर से कम का है, लेकिन इस दबाव को पशुपालक कब तक झेल पाएंगे. उनकी लागत बढ़ेगी और कमाई कम होगी. मार्च और अप्रैल से ही भूसे का संकट दिखने लगा था.आम तौर पर भूसा 500 से 700 रुपये क्विंटल मिल जाता है लेकिन यूपी में यह 1300 से 1500 रुपये क्विंटल हो चुका है. इस कारण सरकारी गौशालाओं के लिए भी संकट हो सकता है. इससे निपटने के लिए ज़िला प्रशासन के अधिकारियों कर्मचारियों को भूसा जमा करने के लक्ष्य दे दिए गए कि इतने क्विंटल भूसा जमा करना है. एक लिखित आदेश में दिखता है कि हर अधिकारी के आगे लिखा है कि कितना क्विंटल भूसा जमा करना है. जब इसकी ख़बरें मीडिया में आने लगी तो आदेश में संशोधन किया गया. कहा गया कि जो दान में भूसा देना चाहे उससे लें. लेकिन जब रेट इतना ज्यादा हो तो कोई किसान भूसा बेचना चाहेगा, दान नहीं करेगा. जिसके पास पशु हैं वह तो दान भी नहीं दे सकता.
21 मई को यूपी के मुख्यमंत्री कार्यालय ने अपने ट्वीट में कहा है कि पशुपालन विभाग के कार्य में व्यापक सुधार की आवश्यकता है. विभाग में शासन स्तर के अधिकारियों को जनपदों के नोडल अधिकारी के रूप में फील्ड में भेजा जाए. जनपदों में जाएं, गो-आश्रय स्थलों में व्यवस्था की पड़ताल करें, भूसा बैंक बनवाएं.
इस सख्ती का यही मतलब है कि अधिकारी फील्ड में जाएं और भूसा बैंक बनवाएं. बात भी सही है कि संकट की ज़िम्मेदारी तो सरकार की है. अधिकार नहीं लगेंगे तो कौन लगेगा. क्या इसलिए कुछ अधिकारियों को दिक्कत हो रही है कि वे अफसर हैं, भूसा कैसे जमा करा सकते हैं. उनका काम नहीं है. ऐसे अधिकारियों को यह सोचना चाहिए कि भूसा गाय के लिए जमा कर रहे हैं और गाय तो माता है. फिर उन्हें लगेगा कि पुण्य का काम है और वे मन से भूसा जमा करेंगे. अगर ऐसा कोई लिखित आदेश भी है तो भी अधिकारियों को खुलकर गर्व से भूसा जमा करना चाहिए.
खेती-किसानी की दुनिया इतनी विशाल है कि दिल्ली में कैद मीडिया को उसका अंदाज़ा नहीं लग पाता कि उसकी संभावना क्या है और संकट क्या है. हम नहीं जानते कि भूसे का दाम तीन गुना महंगा होने से लोग अपने मवेशियों को भर पेट चारा खिला पा रहे हैं या नहीं. उन पर किस तरह का आर्थिक दबाव पड़ रहा है. मध्य प्रदेश में प्याज की खेती करने वाले किसानों को दाम नहीं मिल रहा है. आप भले 20 रुपया किलो प्याज खरीद रहे हैं लेकिन उन्हें एक रुपया किलो का भी भाव नहीं मिल रहा है. उनकी सारी कमाई डूब गई है.
दिल्ली में बीस मिनट की बरसात में कई लोगों को यही याद रहा ट्रैफिक जाम में कई घंटे तक फंसे रहे. कुछ लोगों को यही याद रहेगा कि उनकी कार पर पेड़ गिर गया. कुछ को याद रहेगा कि पेड़ गिरने से बिजली चली गई. किसी को याद नहीं रहेगा कि जलवायु संकट दस्तक देकर बार-बार चेतावनी दे रहा है और लोग भूल जा रहे हैं. नई दिल्ली नगरपालिका के वानिकी के निदेशक कहते हैं कि इतिहास की नई सीमा खींच दी है. अपने बयान में कहा है कि NDMC के इतिहास में ऐसा प्राकृतिक हादसा नहीं हुआ है. यह अच्छा है. इस तरह से अगर हम जलवायु संकट और उसके हादसों को पूर्वी दिल्ली और दक्षिण दिल्ली के इतिहास में बांट दें तो संकटों को याद रखने से दिल्ली मुक्त हो जाएगी. पेड़ों के गिरने के कारण क्या केवल हवा की रफ्तार ही थी, दूसरे कारणों की कोई भूमिका ही नहीं थी, उस ईंट और सीमेंट का इतिहास कहां गया जिसे पेड़ों की जड़ों के चारों तरफ लपेट दिया गया ताकि उनकी जड़ें कमज़ोर होती जाएं. पिछले साल कोलकाता में अंफन तूफान से हज़ारों पेड़ उखड़ गए थे. ज़रूरी नहीं कि तूफान हर शहर और हर नगरपालिका में जाकर बताए कि ऐसा हो सकता है.
इन ख़बरों के बाद अगर आप थोड़ा रिलैक्स होना चाहते हैं तो अखबारों में उन विज्ञापनों को देखा कीजिए जिनमें सरकार की उपलब्धियों के आंकड़े छपा करते हैं. उन्हें पढ़ते हुए लगेगा कि अब कुछ बाकी ही नहीं है, जो लिखा है, जो छपा है, सब हो चुका है. बाकी ये जो खबरें हमने दिखाई मान लीजिए कि किसी ऐसे उपन्यास का हिस्सा है, जिसे इंटरनेशनल पुरस्कार मिलने पर भी प्रधानमंत्री तक ने बधाई नहीं दी है.
दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन 9 जून तक प्रत्यर्पण निदेशालय की हिरासत में रहेंगे और हिरासत में होने के बाद भी मंत्री पद पर रहेंगे. आज दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने साफ-साफ कह दिया कि अगर आरोप में दम होता तो खुद ही एक्शन लेते जैसे पंजाब में स्टिंग आपरेशन के बाद स्वास्त्य मंत्री को हटा दिया गया था लेकिन इस मामले में सत्येंद्र जैन को हटाने का सवाल ही पैदा नहीं होता है.