ऐसे माहौल में कैसे काम करेगा अफसर?

मेरी गुजारिश है कि आकाश को सुपर हीरो बनाने वाले इस वीडियो को आप जब देखें तो गाना समाप्त होने तक चुप रहें और गाना जब समाप्त हो जाए तो उसके बाद भी चुप रहें.

ऐसे माहौल में कैसे काम करेगा अफसर?

इंदौर नगर निगम के कर्मचारियों पर बल्ला चलाने के आरोप में जेल बंद आकाश विजयवर्गीय जब बाहर आए तो कहा कि उन्हें पछतावा नहीं है लेकिन अब वे गांधी के रास्ते पर चलेंगे. वैसे गांधी के रास्ते में प्रायश्चित करना भी था. यही क्या कम है कि आज भी लोग गांधी के रास्ते पर चलना चाहते हैं. बस उस रास्ते पर अब गांधी नहीं मिलते हैं. प्रधानमंत्री मोदी पर कांग्रेस ने चौकीदार चौर है का आरोप लगाया तो उन्होंने मैं भी चौकीदार हूं का नारा दिया. इसी से प्रेरित होकर एक गायक ने विधायक आकाश विजयवर्गीय के समर्थन में म्यूज़िक वीडियो लांच किया है. मेरी गुजारिश है कि आकाश को सुपर हीरो बनाने वाले इस वीडियो को आप जब देखें तो गाना समाप्त होने तक चुप रहें और गाना जब समाप्त हो जाए तो उसके बाद भी चुप रहें. चुप रहने से एक लाभ यह होगा कि आप ख़ुद को पहचान पाएंगे, अपने समय को देख पाएंगे. मेरे व्हाट्सएप के इन बाक्स में जब यह गाना आया तो मुझे लगा कि न्यू इंडिया के आकाश से आप दोबारा मिलें. इस गाने में आकाश बल्लेबाज़ ही हैं मगर चौकीदारी करता हुआ बल्लेबाज़ बना है.

आपने ग़ौर किया होगा कि गाने के इस वीडियो से बल्ले से मारने वाली तस्वीर ग़ायब कर दी गई है. इस गाने के ज़रिए स्मृतियों की सफाई हो गई है. जो इस गाने को देखेगा वो मारने वाली तस्वीर भूलने लगेगा. लगेगा कि इंदौर को कोई नायक मिल गया है जो बल्ला लेकर अन्याय मिटाने चल पड़ा है. कानून की देवी जिसकी आंखों पर पट्टी बंधी होती है ताकि वह किसी से भेदभाव न करे, उसकी जगह बल्ला न न्याय का प्रतीक हो जाए. न्यायालय का नाम जल्दी ही बल्लालाय न रख दिया जाए. बल्लालय उस जगह को कहेंगे जहां बल्ले से इंसाफ होगा.

क्या पता लाठी लेकर महिला वन अधिकारी को पीट रहे ये लोग घोषणा कर दें, वीडियो बना दें कि वे इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे थे. इसलिए लाठी लेकर इस महिला अधिकारी को मार रहे थे जो वहां वृक्षा रोपण के लिए गईं थीं. पुलिस ने उन्हें बचाने की कोशिश की तब भी भीड़ मारती रही. हमारी सहयोगी उमा सुधीर ने बताया है कि हमला करने वालों में ज़िला परिषद के उपाध्यक्ष कोनेरू कृष्णा भी थी जो तेलंगाना राष्ट्र समिति के विधायक के भाई हैं. क्या यह पहला वीडियो है, नहीं यह पहला वीडियो नहीं है. इस तरह के वीडियो तो हर दिन आ जाते हैं जिसमें भीड़ किसी अकेले को मार रही होती है, जिसमें भीड़ किसी अधिकारी को मार रही होती है. हमारी नौकरशाही ने अपनी सारी ज़मीन समझौते में ऐसे तत्वों को दे दी है. अनैतिक शक्तियों का विस्तार इतना हो चुका है कि कोई अपना कर्तव्य निभाने जाए भी तो इस तरह की भीड़ हमला कर देगी. अगर आपको लगता है कि इस वीडियो को दुनिया भर में दिखा देने से बहुत फर्क पड़ जाएगा तो अपनी राय ठीक से बना लीजिए. वन अधिकारी सी अनिता ने कहा है कि एसपी और डिएसपी के सामने कृष्णा ने उन्हें धमकी दी थी. कृष्णा ने इस्तीफा दे दिया है और मुख्यमंत्री के पुत्र और तेलंगाना राष्ट्र समिति के कार्यकारी अध्यक्ष ने निंदा कर दी है. निंदा जल्दी हो जाती है. जिस तरह आकाश का बल्ला इंसाफ है उसी तरह निंदा भी इंसाफ है. कोमाराम भीम आसिफाबाद ज़िले की यह घटना है. स्थानीय लोग इसलिए विरोध कर रहे थे क्योंकि इस ज़मीन पर वो अवैध रूप से खेती करते आ रहे थे. 16 लोग गिरफ्तार किए गए हैं.

1975 की इमरजेंसी में बंद होने का अनुभव अलग होगा लेकिन 2019 में भी पत्रकार इमरजेंसी में बंद किए गए लेकिन अस्पताल की इमरजेंसी में. उत्तर प्रदेश में इमरजेंसी लागू नहीं है फिर भी मुरादाबाद के ज़िला अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड के एक कमरे में पत्रकारों को बंद कर दिया गया. कुछ ही दिन पहले बीजेपी के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय ने न्यूज़ 24 के एंकर से पूछा था कि तुम्हारी औकात क्या है. मुरादाबाद में पत्रकारों से इस तरह के आब्जेक्टिव क्वेश्चन नहीं पूछे गए बल्कि उन्हें ज़िला अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड के एक कमरे में बुलाया गया. जब सब पहुंच गए तो बाहर से बंद कर दिया गया. कमरे में बंद करने का आइडिया डीएम राकेश कुमार सिंह से पहले किसी ने नहीं सोचा था. अस्पताल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दौरा हो रहा था. इससे एक लाभ यह हुआ कि पत्रकार मुख्यमंत्री से सवाल नहीं कर पाए. अस्तपाल की खराब व्यवस्था पर पूछे जाने वाले सवाल उसी कमरे में रह गए जहां उन्हें बंद किया गया था. करीब 20 पत्रकार कमरे में बंद कर दिए गए. इतनी प्रेस फ्रीडम के मामले में दुनिया में भारत का स्थान 180 देशों में 140वें नंबर पर है. ज़िलाधिकारी का कहना है कि आरोप निराधार है. क्या पत्रकार अपने बंद कर दिए जाने की खबर बिना आधार के आई मीन निराधार लिख रहे थे.

मुरादाबाद के अखबारों में इस खबर को विस्तार से छापा गया है. हिन्दुस्तान अखबार ने लिखा है कि पत्रकारों को डीएम के निर्देश पर इमरजेंसी वार्ड में बंद कर दिया गया. जब उन्होंने हंगामा किया तो ज़िलाधिकारी फिर लौट कर आए, दरवाज़ा हल्का सा खोला और फिर दरवाज़ा बंद करवाकर चले गए. मुख्यमंत्री के जाने के 15 मिनट बाद दरवाज़ा खोला गया और वे बाहर आ सके.

दैनिक जागरण, अमर उजाला, दैनिक हिन्दुस्तान तीन बड़े अख़बार हैं. इन तीनों के मुरादाबाद संस्करण में कमरे में पत्रकारों के बंद किए जाने की घटना पर खबर लिखी है मगर किसी ने भी उस खबर में यह नहीं लिखा है कि उनका पत्रकार भी कमरे में बंद किया गया था. इस बात को अलग से नोट किया जाना चाहिए. तो क्या कमरे में बंद होने वाले पत्रकारों में इन तीन बड़े अखबारों का प्रतिनिधि नहीं था. अगर था तो उनकी खबरों में यह बात सामने नहीं आ सकी है. हमने इन तीनों के संस्करण का ई संस्करण ही देखा है. खबरों में वीडियो के वायरल होने की बात तो लिखी है मगर यह नहीं लिखा है कि हमारे पत्रकार बंद किए गए. आखिर मुरादाबाद के ज़िला अस्पताल में ऐसी क्या समस्या थी जिसके बारे में प्रशासन नहीं चाहता था कि मुख्यमंत्री को पता चले. फिर उस दौरे का क्या मतलब. दैनिक हिन्दुस्तान ने इस खबर की हेडिंग लगाई है सीएम योगी का निरीक्षण. पत्रकारों को अस्तपाल की इमरजेंसी में किया बंद. संवाददाता का नाम नहीं है. इस अखबार ने भी नहीं लिखा है कि कमरे में उनके संवाददाता को भी बंद किया गया था.

1 जुलाई का ई-संस्करण है मुरादाबाद का. पहली पंक्ति में लिखा है कि 20 से अधिक पत्रकारों और छायाकारों को अस्पताल के आपातकालीन चिकित्सा कक्ष में बंद कर दिया गया. कवरेज से रोके जाने से नाराज़ पत्रकारों ने हंगामा कर दिया.

इन खबरों को पढ़ कर लगा कि बेहद रूटीन की तरह लिया गया है. जिस तरह से इस घटना को लेकर दिल्ली के मीडिया सर्किल या ट्विटर के मीडिया सर्किल में प्रतिक्रिया ज़ाहिर की गई है, मुरादाबाद के अखबारों में इसे अलग तरीके से रखा गया है. तीन बड़े अखबारों की खबरों को पढ़ने के बाद पता नहीं चलता कि किस किस संस्थान के पत्रकार कमरे में बंद किए गए थे. सबमें एक ही बात है कि पत्रकार कमरे में बंद किए गए. दैनिक जागरण ने लिखा है कि मुख्यमंत्री आदित्यनाथ जिला अस्पताल पहुंचे तो पैथ लैब में सफाई कर्मचारी मोनू ने उनके आगमन का वीडियो बनाना शुरू कर दिया. एसएसपी अमित पाठक ने जब कर्मचारी को वीडियो को बनाते देखा तो खुद पर काबू नहीं रख पाए और उसके हाथ से मोबाइल छिन लिया और उसे पैथ लैब के रास्ते तक छोड़ कर आए. अमर उजाला अखबार ने 20 जून के संस्करण में लिखा है कि मुख्यमंत्री 17 मिनट तक अस्तपाल में रहे.

मुख्यमंत्री ने मरीज़ों से दवा खाना के बारे में पूछा. खास बात यह रही कि बातचीत में किसी मरीज़ के पास आयुष्मान कार्ड नहीं मिला. मुख्यमंत्री ने चीफ मेडिकल सुप्रीटेंडेंट डॉ ज्योत्सना पंत से पूछा कि अस्पताल में कितने बेड और डॉक्टर हैं. अखबार लिखता है कि अस्पताल में न्यूरोलोजिस्ट, कार्डियोलोजिस्ट समेत सुपर स्पेशलिस्ट डाक्टर नहीं हैं. इमरजेंसी में स्टाफ ने मुख्यमंत्री के आने से सिर्फ 15 मिनट पहले ही गमले रखे थे. ऐन मौके तक भगवा रंगरोगन जारी रहा. बार्ड ब्वाय कोनों में परफ्यूम छिड़कते नज़र आए. एक महिला सफाई कर्मचारी ने बताया कि पहली बार दास्ताने, मास्क समेत पूरी वर्दी मिली है. निरीक्षण के बाद सब वापस ले लिया जाएगा.

आपको एक बात बताता हूं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ठीक एक साल पहले इसी जुलाई में यानी 9 और 10 जुलाई 2018 को मुरादाबाद दौरे पर थे. कहीं उनका अस्पताल का औचक निरीक्षण न हो जाए इसके लिए पूरी तैयारी कर ली गई. वे ज़िला अस्पताल तो नहीं जा सके लेकिन जब तक मुरादाबाद थे उनके आने की आशंका के कारण सब कुछ फिट फाट कर दिया गया था. सीएम के जाने के एक दिन बाद जब अमर उजाला के संवाददाता ने अस्पताल का हाल जाना तो सब कुछ पुराने ढर्रे पर लौट चुका था. 11 जुलाई 2018 की अमर उजाला की खबर पढ़कर सुनाता हूं जो उनके दौरे के एक दिन बाद की है. तब भी चीफ सुपरीटेंडेंट ज्योत्सना पंत ही थी. मैं अखबार की रिपोर्ट पढ़ रहा हूं.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दो दिवसीय मुरादाबाद दौरे पर ज़िला एवं महिला अस्पताल की जितनी जल्दी व्यवस्थाएं दुरुस्त हुई थीं, उतनी ही जल्दी व्यवस्थाएं चरमरा गईं. मुख्यमंत्री के जाते ही अस्पताल अपने पुराने ढर्रे पर आ गए. मंगलवार को ओपीडी से डाक्टरों के गायब रहने से मरीज़ भटकते रहे. अस्पताल के बरामदों में जगह-जगह सजाए गमले गायब हो गए. रविवार और सोमवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ मुरादाबाद में थे. अस्पतालों के औचक निरीक्षण की आशंका को देखते हुए दोनों ही अस्पतालों में चिकित्सा व्यव्स्थाएं एवं सेवाओं को दुरुस्त किया गया था. साफ सफाई और रंग रोगन के साथ पौधे व फूल के गमले सजाकर अस्पतालों का कायाकल्प किया गया था. डाक्टरों और स्टाफ नर्सों की छुट्टियां निरस्त होने से ओपीडी से लेकर इमरजेंसी और वार्डों में डाक्टर लगातार राउंड पर रहे. इससे मरीज़ों को बड़ी राहत मिली. यह व्यवस्था एक दिन से ज़्यादा नहीं टिक सकी.

सुबह आठ बजे से दोपहर दो बजे तक ओपीडी चलती है. ज़िला अस्पताल की ओपीडी में दो हज़ार से अधिक मरीज़ पहुंचते हैं. मंगलवार को हड्डी एवं फिजिशियन समेत कई ओपीडी कक्षों में डाक्टर अपनी मनमरजी से बैठे. जबकि बाहर मरीज़ों की लाइन लगी रही. मरीज़ों ने बताया कि डाक्टर इमरजेंसी के बहाने ओपीडी से गायब रहे. इमरजेंसी में भी एक डाक्टर की तैनाती रही जबकि सोमवार को पांच डाक्टरों का पैनल ड्यूटी पर था.

अस्पताल परिसर एवं बरामदों में सजाए गमलों की जगह आवारा कुत्ते लेटे नज़र आए. इमरजेंसी में बिछाई नई चादरें बक्सों में पैक हो गईं. गनीमत है कि मुख्यमंत्री अस्पताल नहीं जा सके. मुरादाबाद के अखबारों के अनुसार योगी आदित्यनाथ मई 2017 में भी मुरादाबाद में थे. तब उनके वहां जाने की संभावना को देखते हुए अस्पताल में तैयारी होने लगी थी. मुख्यमंत्री दो दो बार नहीं जा सके लेकिन जब तीसरी बार गए भी तो मात्र 15-20 मिनट के लिए. क्या अस्पताल ने अपनी वास्तविकता मुख्यमंत्री से छिपाने की कोशिश की.

हिन्दुस्तान अखबार में 19 मई 2017 को भी मुरादाबाद के जिला अस्‍पताल की एक खबर छपी  थी. खबरों में कहा गया है कि 21 मई 2017 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मुरादाबाद आने वाले थे. उनके औचक निरीक्षण की संभावना को देखते हुए अस्पताल में तैयारी होने लगी थी. इस बिस्तर पर मरीज़ बिस्तर पर लेटा है. आक्सीज़न मास्क लगा है. ड्रिप चढ़ी हुई है लेकिन ठीक उसके बगल में सीढ़ी लगाकर छत की पुताई हो रही है. यह इमरजेंसी वार्ड ही है. अखबार लिखता है कि मरीज़ पर चूना गिरता रहा लेकिन परिजनों के विरोध के बाद इसे बंद किया गया.

4 जनवरी 2019 की एक और खबर है जो दैनिक हिन्दुस्तान में छपी है. मुरादाबाद के ज़िला महिला अस्पताल की डांस पार्टी का वीडियो सामने आया. 31 दिसंबर की रात को सीरीयस नियो नेटल केयर यूनिट के भीतर डीजे गाने पर नर्स डांस कर रही थीं. नियो नेटल केयर वार्ड में गंभीर रूप से नवजात शिशु रखे जाते हैं. इन्हें नोटिस भी भेजा गया. न्यूज़ एंजेसी एएनआई ने दस दिन पहले अपनी वेबसाइट पर एक छोटी सी रिपोर्ट छापी थी. एएनआई ने लिखा है कि मुरादाबाद ज़िला अस्पताल के एक मरीज़ ने एएनआई को बताया कि सफाई कर्मचारी चादरें नहीं बदलते हैं. मरीज़ों को गंदी और धब्बे वाली चादरों पर सोना पड़ता है. दो तीन दिन बाद ही कमरे की सफाई करते हैं और हर मरीज़ से कमरा साफ करने के पैसे मिलते हैं. ये उस अस्पताल के बारे में मीडिया रिपोर्ट हैं जहां के इमरजेंसी वार्ड में पत्रकारों को बंद किया गया और जिसकी खबरों को उन्हीं पत्रकारों ने सामान्य तरीके से लिखा. चश्मदीद की तरह नहीं कि जब कमरे में बंद किया गया तब वे क्या कर रहे थे. पत्रकार अपनी ही खबर कमज़ोर कर देते हैं. बाकी संस्थाएं तो कमज़ोर कर ही रही हैं.

बहुत कम होता है जब राज्य सरकार अपनी गलती मानती है. बिहार विधानसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने मेडिकल सिस्टम की नाकामी मानी है. बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल मांडे ने विधानसभा में कहा है कि राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक जून 28 तक 720 बच्चे अस्पताल में भर्ती हुए थे. इनमें से 586 बच्चों को इलाज किया गया. 154 बच्चों की मौत हुई. स्वास्थ्य मंत्री ने कहा है कि मृत्यु दर 21 प्रतिशत कम हो गया है. उम्मीद है मंत्री जी यह समझते होंगे कि 21 प्रतिशत मौत की दर बहुत ज़्यादा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि उन्होंने इस मामले में कई स्तरों पर जानने की कोशिश की मगर हर किसी ने अलग अलग कारण बताए.

नीती आयोग की रिपोर्ट थी कि 2020 तक भारत के 21 शहरों में भू जल का भयंकर संकट हो जाएगा. भारत सरकार के जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह सोलंकी ने नीति आयोग की रिपोर्ट को खारिज कर दिया है. लेकिन जल शक्ति मंत्री गजेंद्र शेखावत ने माना कि आधा भारत वाटर स्ट्रेस्ड की श्रेणी में आ चुका है. यानी पानी का गंभीर संकट आधे भारत को चपेट में ले चुका है. मंत्री ने बताया कि 6 मानक हैं जिससे देश के लगभग 256 ज़िले प्रभावित हैं. इन ज़िलों में पानी की समस्या को दूर रखने के लिए अतिरिक्त सचिव स्तर के अधिकारियों की निगरानी में काम होने जा रहा है. प्रधानमंत्री ने देश भर के पंचायत प्रमुखों को पत्र लिखा है कि वे ग्राम सभा की बैठक बुलाएं और पानी बचाने का प्रयास शुरू करवाएं. अभी भी भारत के बड़े हिस्से में सूखा पड़ रहा है. पानी की परेशानी कम नहीं हुई है. मौसम विभाग का कहना है कि यह पिछले पांच साल में सबसे सूखा जून है. इस हफ्ते मानसून औसत से 24 प्रतिशत कम रहा है.

केरल में जून के महीने में मानसून 35 प्रतिशत कम रहा है. मौसम विभाग का कहना है कि केरल में जहां जून में करीब 549 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए वहां अभी तक 355 मिलीमीटर ही हुई हैं. वही मुंबई में जून भर की बारिश सिर्फ दो दिनों में हो गई है. मुंबई और केरल के बीच बारिश में अंतर क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन के कारण आ रहा है. बीएमसी के प्रमुख प्रवीण परदेसी ने मीडिया से कहा है कि क्लाइमेट चेंज का नतीजा है. दो दिनों में पूरे महीने के बराबर बारिश नहीं हुई थी. अभी दो दिनों में 550 मिलीमीटर बारिश हुई है. इतनी बारिश का औसत 20 दिनों का होना चाहिए. इसका मतलब है कि अभी और ऐसी बारिश हो सकती है. प्रवीण परदेसी ने यह भी कहा है कि स्टार्म वाटर सिस्टम इतनी बारिश का पानी निकालने के लिए सक्षम नहीं है. जिस रफ्तार से बरसात हुई है और अगले कुछ दिनों में होने का अनुमान है, मुंबई को अपनी तैयारी बेहतर कर लेनी चाहिए.

हम अगर अब भी जलवायु परिवर्तन को लेकर सामान्य हैं तो इसे हमारी समझदारी को दाद मिलनी चाहिए. सामने खतरा होने के बाद भी हम निश्चिंत हों इससे अच्छी बात क्या हो सकती है. मेक्सिको में एक शहर है ग्वाडा लाहरा, यहां रविवार सुबह बर्फ के गोले गिरने लगे. 20 मिनट के भीतर इस शहर का तापमान 8 डिग्री सेल्सियम कम हो गया. आम तौर पर इस शहर में इस वक्त का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस होता है. समझिए कि गर्मी के दिनों में अचानक सर्दी आ गई. इस तरह की ओलावृष्टि और बारिश पहले कभी नहीं देखी गई है. यह शहर मेक्सिको के जिस राज्य में पड़ता है उसकी गवर्नर ने ट्वीट किया है कि उन्होंने ऐसा कभी नहीं देखा. अगर ये क्लाइमेट चेंज नहीं है तो क्या है. इसी 25 जून को ब्रिटेन के केंट शहर के कुछ इलाकों में आधे महीने में जितनी बरसात होती है उतनी मात्र तीन घंटे में हो गई. कई जगहों पर बाढ़ की चेतावनी दी गई. एक शहर में आधे महीने की बरसात 3 घंटे में होती है तो ब्रिटेन के ही लिंकनशर में दो दिन के भीतर पूरे महीने में जितनी औसत बारिश होती है उससे डबल बारिश हो गई है. यूरोप में बहुत से भारतीय भारत की गमी से परेशान हो कर यूरोप जाते थे मगर अब वहां के लोग भी लू की चपेट में आने लगे हैं.

रवीश कुमार का प्राइम टाइम : जोर-जबरदस्‍ती की ये कैसी सियासत?

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