मंगलवार की रात तक मीडिया को कैबिनेट विस्तार में कुछ ख़ास नहीं मिला। 19 राज्यमंत्रियों के बनाए जाने का औचित्य समझ नहीं आ रहा था। जो चर्चाकार बोलते आ रहे थे कि प्रधानमंत्री का कैबिनेट और पार्टी पर नियंत्रण है; सबको ख़ुश करने का दौर चला गया; मोदी कैबिनेट छोटा रहेगा; अब वही बोलने लगे कि सरकार हमेशा चुनावी मोड में रहती है; यह मंत्रिमंडल नहीं, चुनावी मशीनरी है। मनमोहन सिंह जैसा कैबिनेट लगता है। 78 मंत्री तो उनके यहां भी हुए, जबकि उनकी सरकार की स्थिरता कई दलों पर निर्भर थी। मोदी सरकार की स्थिरता सहयोगी पर निर्भर नहीं है। वह अपने पुराने सहयोगी शिवसेना को भी नाराज़ कर सकती है। इन्हीं हल्की-फुल्की आलोचनाओं के बाद कैबिनेट विस्तार की ख़बर इतनी ठंडी पड़ गई कि शाम का टीवी लगभग इस ख़बर से किनारे हो गया।
तभी ख़बर आती है कि स्मृति ईरानी को मानव संसाधन मंत्रालय से हटा दिया गया है। वह अब कपड़ा मंत्रालय संभालेंगी, जिसे अब तक संतोष गंगवार स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री की हैसियत से संभाल रहे थे। किसी ने कहा, गंगवार ने अच्छा काम किया है, इसलिए उन्हें वित्त मंत्रालय में राज्यमंत्री बना दिया गया है। अगर कोई स्वतंत्र रूप से कपड़ा मंत्रालय में अच्छा काम कर रहा हो तो उससे स्वतंत्र प्रभार लेकर किसी के अंडर भेज देना काम का पुरस्कार है या कुछ और।
स्मृति के हटते ही सोशल मीडिया का विरोधी हिस्सा झूम उठा। इसमें कोई शक नहीं कि स्मृति को लेकर एक तबक़ा खुंदक में रहता है, पार्टी के भीतर भी और पार्टी के बाहर भी। सभी झूमने लगे। पिछले दो साल में स्मृति पार्टी और सरकार की आक्रामक सेनापति बनी हुई थीं। स्मृति की राजनीतिक प्रतिभाओं के गुणगान होते थे, उनके भाषणों की तारीफ होती थी, विरोधी गश खाते थे। संघ स्मृति को अपना प्रतीक मंत्री मानता था। संसद में खड़ी होती थीं तो सोशल मीडिया पर भक्तों को लगता था, स्लॉग ओवर में सचिन तेंदुलकर आए हैं। मंगलवार रात के बाद एक झटके में सारे विश्लेषण बदल गए। स्मृति का कद छोटा कर दिया गया है। उनका काम अच्छा नहीं रहा, इसलिए मोदी ने उन्हें अपनी पसंद सूची से बाहर कर दिया।
जो चर्चाकार जिस कैबिनेट को 'जम्बो' और 'चुनावी मशीनरी' बताकर भी प्रधानमंत्री की खुली आलोचना से बच रहे थे, उन सभी को अब मोदी की तारीफ का मौका मिल गया। ट्वीट करने लगे कि मोदी सिर्फ काम पसंद करते हैं, उनका कोई पसंदीदा नहीं होता है। अगर काम पर इतनी पैनी निगाह है, तो बताइए न सर, दो साल तक वह इस मंत्रालय में क्यों रहीं...? जबकि ईरानी के कई फ़ैसलों की आलोचना हो रही थी और विवाद भी हो रहे थे। दो साल तक तो कभी नहीं लगा कि पार्टी और प्रधानमंत्री, स्मृति ईरानी के प्रदर्शन से ख़ुश नहीं हैं। प्रदर्शन की यह कौन-सी मॉनिटरिंग हुई कि कथित रूप से एक ख़राब मंत्री को हटाने में दो साल लग गए।
जिन चर्चाओं में ब्रांड मोदी कमज़ोर पड़ रहा था, अब उन्हीं चर्चाओं में खिलखिलाने लगा। एक फ़ैसले से कैबिनेट विस्तार के हीरो प्रधानमंत्री बन गए और जो अभी तक कैबिनेट की सबसे बड़ी हीरोइन थीं, उन्हें खलनायिका बना दिया गया। जबकि वही चर्चाकार कभी स्मृति ईरानी का भी गुणगान करते थे, क्योंकि तब वह मानव संसाधन मंत्री थीं और प्रधानमंत्री की विश्वासपात्र। स्मृति ईरानी के लिए भी सबक है। उन्हें फिर से साबित करना होगा कि वह पद के कारण महत्वपूर्ण नहीं है, प्रतिभा के कारण हैं। कप्तान ने सिर्फ बल्लेबाज़ी क्रम में बदलाव किया है।
वर्ना तो इतने राज्यमंत्रियों को लेकर पार्टी के प्रवक्ताओं को भी समझ नहीं आया कि कैसे बचाव करें। लिहाज़ा वे अपनी ही सरकार की पोल खोलने लगे। बोलने लगे कि इतने राज्यमंत्री काम के लिए नहीं, काम के प्रचार के लिए बने हैं। पार्टी ने सरकारी ख़र्चे पर प्रचार गाड़ी रख लिए हैं। कोई ठीक से बचाव नहीं कर पा रहा था। अब सबको नया हथियार मिल गया। मोदी से बढ़कर कोई नहीं। यह कौन-सी नई कार्यशैली है कि सरकारी खर्चे पर प्रचार करने के लिए राज्यमंत्री भरे जा रहे हैं। राज्यमंत्रियों के पास काम क्या होते हैं, यह कोई नहीं बता रहा। वैसे तो यह भी कहा जाता है कि जब काबीना मंत्रियों के पास काम नहीं, तो राज्यमंत्री को पूछ कौन रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने विरोधी और आलोचकों से दो कदम आगे चलते हैं। उनके आलोचकों की एक ख़ूबी है। वे आलोचना में झूमने लगते हैं। तभी मोदी कुछ ऐसा करते हैं कि उन्हें लगता है किसी ने झटका दे दिया। मोदी ने ईरानी का मंत्रालय बदलकर अपनी छाप और साख का कद और ऊंचा कर लिया। कैबिनेट का विस्तार और फेरबदल अब मोदी शैली की मुहर का एक और दस्तावेज़ बताया जा रहा है, जिसके बारे में प्रधानमंत्री ख़ुद मीडिया से कह रहे थे कि यह बदलाव नहीं, विस्तार है। क्यों ऐसा कहा, कौन यह सब पूछे।
अगर स्मृति को ख़राब प्रदर्शन के कारण हटाया गया तो प्रकाश जावड़ेकर को क्यों हटाया गया...? जब वह प्रमोशन पाने वाले एकमात्र कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ले रहे थे, तब काफी प्रशंसा हो रही थी। वैसे आचार-व्यवहार में प्रकाश जी कइयों से बेहतर नेता हैं, मगर जिस पर्यावरण मंत्रालय में उनके बेहतर काम के लिए कैबिनेट मंत्री बनाया गया, वहां से हटाया क्यों गया। दो साल में एक अच्छा मंत्री जब अपनी पकड़ बना लेता है, तो उसे हटाने का फ़ैसला किस आधार पर प्रदर्शन की राजनीति का उदाहरण बन जाता है।
पीयूष गोयल के प्रमोट होने की ख़ूब चर्चा हो रही थी, नहीं हुए। लेकिन जब फेरबदल की ख़बर आई तो उनके विभागों की संख्या बढ़ी हुई थी। यह प्रमोशन की कौन-सी शैली है...? शायद कारपोरेट शैली है। कई बार सैलरी बढ़ जाती है, मगर पद नहीं बदलता है...! रविशंकर प्रसाद से एक मंत्रालय लिया जाना क्या मोदी के कामपसंद, प्रदर्शनपसंद शैली का उदाहरण है...? क्या रविशंकर प्रसाद का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा...? अगर आईटी में काम ठीक नहीं रहा तो क्या मोदी कैबिनेट में काम ठीक न होने पर इनाम में कानून मंत्रालय मिलता है...? अगर प्रधानमंत्री प्रदर्शन को ज़िद्दी धुन की स्तर तक पसंद करते हैं तो अभी तक एक स्थायी कानून मंत्री क्यों नहीं खोज सके...? कानून मंत्रालय का यह हाल किसकी कार्यशैली पर टिप्पणी है...? सदानंद गौड़ा का अगर कानून मंत्री के रूप में काम अच्छा नहीं था तो किस दलील से उन्हें कैबिनेट में रखा गया है...?
ज़ाहिर है, सख़्त सवालों से बचने के लिए मंत्रियों के हिसाब से तर्क गढ़े जा रहे हैं। सब स्मृति ईरानी को लेकर भड़ास निकालने में व्यस्त हो गए। प्रधानमंत्री ने अपनी छवि के लिए अपने सबसे प्यारे मंत्री को दांव पर लगा दिया या वाक़ई वह मंत्री नाकारा थीं, इसका फ़ैसला इतिहास करेगा, क्योंकि वर्तमान स्मृति ईरानी से चिढ़ता है। चिढ़ने की अवस्था में सही मूल्यांकन नहीं होता है। जैसे ही ख़बर आएगी कि स्मृति कहीं की मुख्यमंत्री की उम्मीदवार हैं, फिर से यही चर्चाकार उनकी खूबियां बताने लगेंगे।
मानव संसाधन मंत्रालय से भी बड़ा मंत्रालय है ग्रामीण विकास मंत्रालय। इसके मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह को हटाकर छोटे-से मंत्रालय में भेज दिया गया। इसकी तो कहीं चर्चा भी नहीं...? क्या वीरेंद्र सिंह भी फ़ेल हुए हैं...? फिर कैबिनेट में क्यों हैं...? फिर राजनीतिक मजबूरी की दलील कैसे हवा हो गई...?
अत: हे चर्चाकार पत्रकार, मुझे एक बात बताइए, अगर प्रधानमंत्री सिर्फ काम के आधार पर मूल्यांकन करते हैं तो आपके हिसाब से किसका काम ख़राब है। जिसका काम ख़राब है, वह कैबिनेट से बाहर क्यों नहीं हुआ...? दूसरा विभाग क्या इसलिए दिया गया, ताकि वह फिर से दो साल ख़राब काम करता रहे। कौन-सा विभाग प्रमोशन पाने वालों के लिए होता है, और कौन-सा विभाग डिमोट होने वालों के लिए होता है... 'डू टेल मी डूड...'
दो साल तक नेहालचंद मेघवाल कथित रूप से बलात्कार के आरोपों के बाद भी सरकार में बने रहे और जब हटाए गए तो कहा गया कि इनका प्रदर्शन ख़राब था। तब कहा जाता था कि नेहालचंद वसुंधरा विरोधी हैं, इसलिए मंत्री हैं। क्योंकि 26 मई, 2014 को जब मोदी सरकार के शपथ ग्रहण की तैयारी चल रही थी, तब वसुंधरा राजे ने दिल्ली में सांसदों की एक बैठक बुला ली थी। चर्चाकारों ने कहा कि मोदी को यह बात पसंद नहीं आई, इसलिए नेहालचंद को अचानक बुलाकर शपथ दिलाई गई। अब उनके निकाले जाने पर यही चर्चाकार पत्रकार क्या यह कहेंगे कि इनका काम हो गया तो निकाल दिए गए। चिन्ता मत कीजिए, अब यही पत्रकार अर्जुन मेघवाल को वसुंधरा विरोधी बताने लगे हैं।
हमारी राजनीति यथास्थिति की वाहक है। इसमें नया होने की संभावना कम बची है। इसीलिए लोग तमाम तरह के तर्कों को गढ़ते हैं, ताकि लगे कि कुछ नया हुआ है। कैबिनेट मंत्री बनने के अलग-अलग तर्क होते हैं। मंत्रालयों की अदला-बदली होती है और उसके कई आधार होते हैं। अगर काम ही सिर्फ पैमाना है तो उसका उच्चतम स्तर यह है कि जो काम पर खरा नहीं उतरेगा, वह बाहर हो जाएगा। उसका उच्चतम स्तर यह नहीं है कि जिसका काम ख़राब होगा, उसे दूसरा मंत्रालय मिलेगा।
This Article is From Jul 06, 2016
नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल विस्तार : हे चर्चाकार, आप कन्फ्यूज़ तो नहीं हैं न...?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:जुलाई 06, 2016 09:24 am IST
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Published On जुलाई 06, 2016 09:24 am IST
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Last Updated On जुलाई 06, 2016 09:24 am IST
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