वह दुनिया के महानतम पाठकों और पुस्तक प्रेमियों में से एक रहा होगा. उसके जीवन में ऐसा कोई लम्हा किताबों के बग़ैर नहीं गुज़रा होगा. उसका जीवन अपने समय के व्यस्त जीवन में रहा होगा. उस वक्त बिजली तो होगी नहीं, ज़ाहिर है वह दिन के उजाले में पढ़ता होगा. घर में उन किताबों को रखने के लिए कमरे बनवाता होगा, कमरे में आलमारियां रखवाता होगा, गलियारे में भी किताबें रखी रहती होंगी. विदेशों से किताबों के आने का महीनों इंतज़ार करता होगा, उसके मित्रगण तोहफे में किताबें दिया करते होंगे. इतना सब नहीं होता तो आशुतोष मुखर्ज़ी के पास 87,500 किताबों का संग्रह कैसे हो पाता.
कोलकाता स्थित नेशनल लाइब्रेरी में आशुतोष मुखर्ज़ी की किताबों से अलग ही लाइब्रेरी बनी है. नेशनल लाइब्रेरी ने उनकी किताबों के संग्रह को अच्छे से संभाल कर रखा है. वहां जाते ही मैं 19वीं और 20वीं सदी के उन भारतीयों की कल्पना में खो गया जिन्हें किताबें बदल रही थीं. जिन्होंने किताबों को महत्व दिया. मुझे मालूम नहीं कि उस दौरान सार्वजनिक और व्यक्तिगत जीवन में किताबों की भूमिका को लेकर कोई अलग से शोध या किताब है या नहीं मगर क्या यह जानने की बात नहीं है कि आशुतोष मुखर्ज़ी की 87,500 किताबों का संग्रह कैसे बना. उस दौर में उनके अलावा और कौन-कौन रहे जिनके पास इस तादाद में किताबें थीं. उनके साथी-संगी कौन थे, जिनसे किताबों की चर्चा होती होगी, जानकारी मिलती होगी, वे खरीदते होंगे और संभाल कर रखते होंगे.
यहां सबसे पुरानी किताब 1525 की है. मैंने कई भाषाओं की डिक्शनरी देखी. कुछ रंगीन और थ्री डी छपाई वाली किताबें तो अद्भुत थीं. एक तस्वीर भी है, जिसमें भारतीय विषैला सांप फन काढ़े खड़ा है. लगता है किताब के ऊपर बैठा है. एक किताब पर नज़र पड़ी जिस पर ‘हिन्दुत्व' लिखा था. इसके लेखक रामदास गौड़ हैं. उन्होंने यह किताब डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को भेंट की थी. आशुतोष मुखर्जी श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पिता थे. ‘हिन्दुत्व' पलट कर देखा तो इसके भीतर कर्मकांडों की नियमावली लिखी गई है. संग्रह में एक ही किताब के कई-कई संस्करण हैं. अरबियन नाइट्स के 30 संस्करण हैं. ज़्यादातर किताबें कानून की हैं, मगर जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, भौतिकी, गणित, इतिहास, भूगोल, खगोल शास्त्र, अर्थशास्त्र, फाइन आर्ट की किताबें भी हैं.
87,500 किताबों का संग्रह करने वाले आशुतोष मुखर्ज़ी का जीवन उस दौर में काफी व्यस्त रहा होगा. उन्हें गणित से प्यार था. गणित पर कई रिसर्च पेपर लिखा जो प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छपा. 1881 में कैंब्रिज में गणित पर उनका रिसर्च पेपर छपा था. गणित के प्रति इतना प्यार था कि जर्मन और फ्रेंच गणितज्ञों के मूल काम को पढ़ने के लिए दोनों मुल्कों की भाषाएं सीख ली. 1887 में कानून की डिग्री ली और वकालत शुरू कर दी. कोलकाता हाईकोर्ट के जज बने और 1920 में थोड़े समय के लिए मुख्य न्यायाधीश भी. ब्रिटिश भारत के बेहतरीन जजों में उनकी गिनती होती थी. आशुतोष मुखर्ज़ी की किताबें बताती हैं कि उनकी दुनिया कितनी बड़ी थी. जानने के प्रति दिलचस्पी गणित और कानून के अलावा संस्कृत, अंग्रेज़ी, दर्शन शास्त्र, धर्म, इतिहास, साहित्य, समाज-विज्ञान, कानून और विज्ञान की दुनिया में ले गई. क्या कमाल का जीवन रहा होगा आशुतोष मुखर्ज़ी का समय और संसाधन होता तो इस महान पुस्तक प्रेमी के जीवन को किताबों के आस-पास री-क्रिएट करता.
2014 में उनकी 150 वीं जयंती मनाई गई थी. नेशनल लाइब्रेरी ने उन पर स्मारिका छापी है. 1924 में उनका निधन हो गया. स्मारिका के अनुसार आशुतोष मुखर्ज़ी ने कोलकाता यूनिवर्सिटी को काफी बदल दिया. पहले यह संस्था परीक्षा लेने वाली मानी जाती थी, मगर उनके कारण यह यूनिवर्सिटी शिक्षकों के लिए लोकप्रिय होने लगी. 25 साल की उम्र में ही वे कोलकाता यूनिवर्सिटी के सिनेट के सदस्य बन गए.1906 से 1914 तक वाइस चांसलर रहे.
1921 में फिर से वाइस चांसलर बने। 1908 में कोलकाता मैथेमेटिकल सोसायटी की स्थापना की। जब नेशनल लाइब्रेरी को इम्पीरियल लाइब्रेरी कहा जाता था, तब उसकी काउंसिल के सदस्य थे. आशुतोष मुखर्ज़ी को बंगाल टाइगर कहा जाता था. कोलकाता में आशुतोष मुखर्जी के नाम पर सड़क है, कॉलेज है मगर आशुतोष मुखर्जी वहां नहीं हैं, वे उन किताबों के बीच हैं. जिन्हें पढ़ते हुए, जमा करते हुए उन्होंने अपना जीवन जीया. कोलकाता जाएं तो नेशनल लाइब्रेरी ज़रूर जाएं और नेशनल लाइब्रेरी जाएं तो आशुतोष मुखर्जी संग्रह अवश्य ही देखें.
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