भारतीय राजनीति का गुडमॉर्निकरण 

इस तरह के नवीन-नूतन आइडिया हर दिन लांच होते हैं, जिस पर आप लाइक करते हैं और जिसे लेकर कमेंट बाक्स में भिड़ जाते हैं। ऐसे अनेक आइडिया लांच हो चुके हैं और आप भूल भी चुके हैं। आपका जीवन खास नहीं बदला है।

नई दिल्ली:

हम राजनीति के अजीब दौर में प्रवेश कर चुके हैं। कोई भी नेता कुछ भी आइडिया दे सकता है। चमकदार आइडिया, सुनते ही लाइक करने का मन कर जाए,शेयर करने लग जाए या उसे लेकर कमेंट में लोग भिड़ जाए। कोई सर्वे करने लग जाए। कितने प्रतिशत लोग नोट पर सावरकर की फोटो चाहते हैं और कितने प्रतिशत लोग गणेश लक्ष्मी की। इस तरह के नवीन-नूतन आइडिया हर दिन लांच होते हैं, जिस पर आप लाइक करते हैं और जिसे लेकर कमेंट बाक्स में भिड़ जाते हैं। ऐसे अनेक आइडिया लांच हो चुके हैं और आप भूल भी चुके हैं। आपका जीवन खास नहीं बदला है।

मगर जब भी ऐसा आइडिया आता है, आप दो तीन दिन तक झगड़ते रहते रहें। दरअसल इनका मकसद यही होता है कि आप झगड़ने के बहाने समर्थक बने रहें और इसकी परीक्षा देते रहें। आए दिन नेता नया आइडिया खोज रहे हैं कि डिबेट हो और हेडलाइन छपे।ध्यान से सुनेंगे और देखेंगे तो अलग-अलग दलों के नेता एक ही तरह की भाषा बोलने लगे हैं। पूरा राजनीति गुड मार्निंग मैसेज की तरह हो गई है। उच्च विचारों, प्रेरक विचारों से भरी हुई है। भारत की राजनीति का गुडमार्निकरण हो गया है। बातें तो अच्छी होती हैं मगर काम ज़ीरो? 

व्हाट्स एप में सुप्रभात और गुडमार्निंग मैसेज भेजने वालों का इस देश में अपना ही क्लास है। ये किसी धर्म या जाति के वर्ग से नहीं आते हैं। इनके वर्ग को गुडमार्निग क्लास कहा जा सकता है। सुबह उठते ही ये किसी को अच्छे और प्रेरक विचार भेज कर ही शौच को जाते हैं। इस तरह आपके फोन में अच्छे और प्रेरक विचारों का कचरा जमा होता रहता है। मेरे पास यह जानने का कोई तरीका नहीं है कि इन प्रेरक गुडमार्निग मैसेज से भेजने वाला कितना महान हुआ है। चरित्रवान और सत्यवान हुआ है। मगर अलग अलग मैसेज के अध्ययन से पता चलता है कि भेजने वाले वर्ग में ढोंग की निशानी मिलती है।ठीक इसी तरह आज की राजनीति हो गई है। अच्छे और प्रेरक विचारों वाली। काम सारे अनैतिक होंगे, सीना तान कर झूठ बोले जा रहे हैं, प्रेस कांफ्रेंस नहीं करेंगे मगर हर दिन एक आइडिया लेकर आ जाते हैं जो सुनने में गुडमार्निंग मैसेज की तरह प्रेरक लगे। सुंदर लगे। जैसे हिन्दी में मेडिकल की पढ़ाई हो, संस्कृत में शपथ हो। इनमें बुरा कुछ भी नहीं है मगर ये बातें आपको मूल समस्या से बहुत दूर तो ले ही जाती हैं। 

इस पर लिखा है सही फैसला लेना काबिलियत नहीं है, फैसला लेकर सही साबित करना काबिलियत है, सुप्रभात। यह बात नोटबंदी के संदर्भ में है या तालाबंदी के, पता नहीं लेकिन ध्यान से देखेंगे तो कोरा बकवास है। अब इस पर लिखा है पैसा भले ही शहर में ज़्यादा हो, सुकून और शांति अभी भी गांव में मिलती है।मुझे नहीं पता कि मैसेज भेजने वाला शहर छोड़ कर गांव चला गया है या गांव से कोई शहर न आए, इसलिए यह मैसेज भेज रहा है। मगर सुनकर तो लगेगा वाह कितनी सुंदर बात कह दी।इसलिए तरह-तरह की प्रेरक बातों के नाम पर बकवास बातें आपकी सोच को घेर लेती हैं। अब इसका कोई मतलब नहीं मगर सुनने में ठीक ही लगेगा कि आपकी नियत से ईश्वर प्रसन्न होते हैं और दिखावे से इंसान। सुप्रभात। जो इंसान सबका भला चाहता है, वह इंसान ज़िंदगी में अकेला रह जाता है। सुप्रभात। बताइये एक मैसेज अच्छा बनाने की प्रेरणा देता है तो एक मैसेज कहता है कि आप अच्छा मत बनिए, बनेंगे तो अकेले रह जाएंगे।

यह भी कम बकवास नहीं है मगर पढ़कर लगेगा कि सुबह तो अब हुई, यह मैसेज न आता तो सुबह ही न होती। इस पर लिखा है कि संसार ज़रूरत के नियम पर चलता है। सर्दियों में जिस सूरज का इंतज़ार होता है,उसी सूरज का गर्मियों में तिरस्कार भी होता है। सुप्रभात। आपकी कीमत तब होगी जब आपकी ज़रूरत होगी। सारी दुनिया जीत सकते हैं संस्कार से, और जीता हुआ भी हार सकते हैं अहंकार से। सुप्रभात। पता नहीं जिसने यह मैसेज भेजा है, वह कितना विनम्र हो गया होगा। यह मैसेज तो पक्का आज के राजनेताओं का चरित्र बता रहा है। लिखा है कि जिस समस्या का हल समझ न आए, उसे वक्त और ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए। यकीनन परिणाम सदैव ही अच्छा रहेगा। सुप्रभात। भारत की राजनीति गुडमार्निग मैसेज हो गई है। ठीक इस मैसेज की तरह कि जिस समस्या का हल समझ न आए, उसे वक्त और ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए। यकीनन परिणाम सदैव ही अच्छा रहेगा। सुप्रभात।

इस देश में बड़ी आबादी के लिए 25000 महीना कमाना मुश्किल है, यह एक निम्न मध्यमवर्गीय देश है, इसकी प्रति व्यक्ति सालाना आय बहुत कम है, ज़ाहिर है लोग आर्थिक तंगी में जीते हैं,लेकिन समाज और राजनीति का फ्राड देखिए कि दोनों एक दूसरे को प्रेरक संदेश ठेल रहे हैं। जिसे सुनते ही लगेगा कि इसी आइडिया की कमी थी।भगवान का नाम ले लिया तो गलत भी नहीं कह सकते, विरोधी धर्म विरोधी कहेंगे। इसलिए हर दूसरा नेता अच्छे आइडिया की तरह बात कर रहा है, ये होता तो वो हो जाता। आप जनता नहीं रहे, आप व्हाट्स एप के इनबॉक्स हो चुके हैं जिसमें नेता अपने उच्च विचार ठेल देते हैं और आप फार्वर्ड करने लग जाते हैं। अब कुछ बयान भी देखिए। 

“रविवार को जनता कर्फ्यू के दिन शाम को ठीक पांच बजे हम अपने घर के दरवाज़े पर खड़े होकर या बालकनी में, खिड़कियों के सामने खड़े होकर पांच मिनट तक रविवार को शाम पांच बजे पांच मिनट तक ऐसे लोगों का आभार व्यक्त करें। कैसे करेंगे, ताली बजाकर थाली बजाकर घंटी बजाकर करके, हम उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करेंगे। 

हम देखते हैं कि जो लोग भी व्यापार करते हैं वह अपने यहां लक्ष्मी गणेश जी की मूर्ति लगाकर रखते हैं मेरी केंद्र सरकार से अपील है पीएम से अपील है
हमारी करेंसी पर जो गांधी जी की तस्वीर है वहीं रहनी चाहिए लेकिन उसके साथ साथ करेंसी पर दूसरी तरफ लक्ष्मी गणेश जी की तस्वीर भारतीय करेंसी पर लगाई जाए. अगर एक तरफ गांधी जी की तस्वीर होगी और दूसरी तरफ लक्ष्मी गणेश जी की फोटो होगी तो इससे पूरे देश को उनका आशीर्वाद मिलेगा. कोरोना के समय काम करने वाले डॉक्टरों के साथ क्या हुआ, आप जानते हैं। ताली बजाने के समय लगा कि सारा देश उनके साथ खड़ा है। बाद में वे अपनी सैलरी और वजीफे के लिए संघर्ष करने लगे। कोरोना के ठंडा पड़ते ही कई राज्यों में स्वास्थ्य कर्मी नौकरी से निकाल दिए गए।

मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री ने कहा कि पर्चे पर श्री हरि लिखें। हिन्दी में लिखें। सभी कहेंगे कि अच्छी बात है, लिखना ही चाहिए।श्री हरि और हिन्दी में पर्ची लिखने का समर्थन करने बहुत सारे लोग भी निकल आते हैं जैसे मेडिकल की सारी समस्या की जड़ यही है। मगर उनमें से आधे भी नहीं, एक प्रतिशत भी बोलने नहीं आते, जब देखते हैं कि सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य की क्या हालत है। आपको ही तय करना होगा कि श्री हरि लिखना गुडमार्निंग मैसेज की तरह का सुंदर विचार है या वाकई इससे स्वास्थ्य व्यवस्था में ठोस सुधार होगा। अनुराग द्वारी की पुरानी रिपोर्ट की हम छोटी सी झलक दिखाना चाहते हैं ताकि विचार कर सकें। 

इसी तरह अरविंद केजरीवाल आइडिया लेकर आए कि नोट पर लक्ष्मी गणेश की तस्वीर हो तो पूरे देश को उनका आशीर्वाद मिलेगा। 26 अक्तूबर को इस पर कितनी बहस हुई, होनी भी चाहिए कि क्या राजनीति अब इस स्तर पर आ गई है लेकिन आपने ध्यान दिया होगा कि इसी दिन सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी CMIE का आंकड़ा आया कि भारत में बेरोज़गारी की दर 7.9 प्रतिशत हो गई है। इसी CMIE का सितंबर का डेटा है कि दिल्ली में बेरोज़गारी की दर 9.6 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय औसत से भी ज़्यादा है। इस पर बहस क्यों नहीं होती है, इसलिए नहीं होती है अगर बीजेपी इस पर केजरीवाल से सवाल पूछेगी तो उसे भी कई राज्यों में और देश भर में बेरोज़गारी पर जवाब देना होगा। 

हिन्दू अखबार में छपी यह खबर बहुत पुरानी नहीं है। रिपोर्टर निखिल एम बाबू लिखते हैं कि दिल्ली सरकार के रोज़गार बाज़ार पोर्टल से 12, 588 लोगों को रोज़गार मिला है। जबकि आम आदमी पार्टी के नेता दस लाख लोगों को रोज़गार देने का दावा कर रहे हैं। यह पोर्टल जून 2020 में बनाया गया ता। अखबार लिखता है कि सरकार के पास उन लोगों के नाम या डिटेल नहीं हैं, जिन्हें रोज़गार मिला है। यह ख़बर सूत्रों के हवाले से लिखी गई है।  अखबार ने यह भी लिखा है कि सरकार की प्रतिक्रिया लेने की बहुत कोशिश हुई मगर नहीं मिली। 

2019 में रोज़गार का सवाल उठा तब एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री ने कहा कि पकौड़ा तलना भी तो रोज़गार है।उनकी सरकार के आठ साल बीत जाने के बाद अचानक एक दिन हंगामा मचता है कि 2024 से पहले दस लाख नौकरियां दी जाएंगी कोई सवाल नहीं पूछता है कि अगर दो साल में दस लाख नौकरियां दी जा सकती हैं तो आठ साल में 40 लाख नौकरियां क्यों नहीं दी गईं? 

हाल ही में केंद्र सरकार ने रोज़गार मेला कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें 75000 युवाओं को नियुक्ति पत्र दिया गया।किसी ने यह सवाल नहीं पूछा कि 75,000 युवाओं ने जो परीक्षा पास की है, वो कब हुई थी, उसका फार्म कम निकला था। हम यह सवाल इसलिए पूछ रहे हैं कि 2020-21 के बजट में एलान हुआ कि नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी बनेगी। जो नॉन गज़ेटेड पोस्ट की परीक्षा कराएगी। सूचक पटेल ने जब RTI से पूछा कि NRAने भर्ती के लिए जो नोटिफिकेशन निकाला है, उसकी कॉपी दीजिए तो जवाब आया कि अभी तक कोई नोटिफिकेशन नहीं आया है। ये मार्च 2022 तक की बात है। उस समय तक NRA की वेबसाइट नहीं थी और कोई क्षेत्रीय कार्यालय नहीं बना था।

अगस्त 2022 में राज्य सभा सांसद ने पूछा है कि NRA ने जितनी भर्तियां कराई हैं उसका डिटेल दीजिए तो सरकार ने डिटेल नहीं दिया। जबकि लोकसभा में कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा था कि 2021 के आखिर तक NRA भर्ती परीक्षा लेना शुरू कर देगी। 12 जुलाई 2022 के इंडियन एक्सप्रेस में जितेंद्र सिंह का बयान छपा है कि इस साल के अंत तक NRA परीक्षाओं का आयोजन करेगी। इसलिए हमारा सवाल है कि जिन लोगों को प्रधानमंत्री ने नियुक्ति पत्र दिया है उनकी परीक्षा किस एजेंसी ने कराई, कब रिज़ल्ट आया और कब नियुक्ति पत्र मिला? कहीं ऐसा तो नहीं कि ये लोग बहुत पहले से नौकरी करने लगे थे और अब नियुक्ति पत्र दिया गया है। ये हमारा सवाल है। जवाब आएगा तो अगले कार्यक्रम में लगा देंगे।

इस कार्यक्रम में भाषण देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आठ साल में रोज़गार औऱ स्वरोज़गार अभियानों के तहत लाखों युवाओं को नियुक्ति पत्र मिला है। ये उनके शब्द हैं। स्व रोज़गार वालों को किसने नियुक्ति पत्र दिया? और रोज़गार और स्व रोज़गार की अलग अलग संख्या क्यों नहीं बताई जाती है? ताकि पता चलता कि केंद्र सरकार ने आठ वर्षों में कितने युवाओं को नियुक्ति पत्र दिया है?यह संख्या कहां से आई, लाखों कहां से आ गए, हर चीज़ का प्रचार करने वाली सरकार लाखों युवाओं को नियुक्ति पत्र देने का प्रचार करना भूल गई?

“बीते आठ वर्षों में पहले भी लाखों युवाओं को नियुक्ति पत्र दिए गए हैं लेकिन इस बार हमने तय किया  कि इकट्ठे नियुक्ति पत्र देने की परंपरा भी शुरू की जाए। ताकि departments भी time bound प्रक्रिया पूरा करने  और निर्धारित लक्ष्यों को जल्द से पार करने का एक सामूहिक स्वभाव बने, सामूहिक प्रयास हो।”

जैसे ही आप आर्थिक मुद्दों पर सवाल करने लग जाते हैें, राजनीतिक दलों के लिए मुश्किलें बढ़ जाती हैं।ऐसा नहीं है कि नेता स्कूल, नौकरी की बात नहीं कर रहे हैं मगर सारी बातों के साथ साथ या उनसे भी आगे धर्म की बात चलाई जा रही है। हमने 2018 में प्राइम टाइम में नौकरी सीरीज़ चलाई,कई हफ्ते तक लगातार सरकारी भर्ती परीक्षाओं की बदहाल स्थित पर कार्यक्रम किया, अगर आप उन पुराने एपिसोड को देखेंगे तो पता चलेगा कि केंद्र सरकार कितनी मुश्किल से नियुक्ति पत्र दे रही थी।
स्टाफ सलेक्शन कमिशन की परीक्षाओं के नतीजे निकालने और नियुक्ति पत्र देने को लेकर छात्र प्रदर्शन किया करते थे, राज्यों में भी सरकारी भर्तियों के आयोगों के बाहर प्रदर्शन हो रहे थे और युवा लाठियां खा रहे थे, मगर प्रधानमंत्री अपने बयान में कह रहे हैं कि लाखों युवाओं को नौकरी दी गई। अपने भाषण में इसका भी ज़िक्र कर सकते थे कि कैसे नौकरी दी गई। काश वे उस समय प्राइम टाइम पर नौकरी सीरीज़ देख पाते तो पता चलता कि नौकरी देने के मामले में उनकी सरकार का रिकार्ड वैसा तो बिल्कुल नहीं है जैसा वे दावा कर रहे हैं। इसलिए सबकी नज़र प्राइम टाइम पर है क्योंकि यह उनकी नज़र में चुभता है। 

युवाओं ने भी नौकरी के मुद्दे को नहीं छोड़ा।वोट भले धर्म और नफरत के आधार पर दिया मगर नौकरी के लिए लाठियां भी खाते रहे। उसी धरना प्रदर्शन का सहारा लिया, जिसे वे धर्म की राजनीति के नशे में गलत बताने लगे थे। यह उन्हीं का संघर्ष है कि आज की राजनीति  सरकारी नौकरी की भाषा बोलने लगी औऱ यह हर चुनाव में मुद्दा हो जाता है। 

यही कारण है कि अब जब सरकारी भर्ती का नियुक्ति पत्र बांटा जाता है तब मुख्यमंत्री या उप मुख्यमंत्री मौजूद होते हैं। युवाओं को और देश को इतना तो समझना चाहिए कि आर्थिक मुद्दों पर बात करने से नौकरी मिलती है। भले ही कम मिलती है मगर मिलती है। वरना पकौड़ा तलने को रोज़गार बताकर रोज़गार के सवाल को टाल देने वाले प्रधानमंत्री नियुक्ति पत्र नहीं बांटते। लेकिन धार्मिक मुद्दों पर बात करते रहने से क्या मिलता है? जवाब है,राजनीति खत्म हो जाती है। 


जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विरासत के नाम पर मंदिर परिसरों के विकास को अपने काम का हिस्सा बना रहे हैं, वहां जब पूजा पाठ करते हैं तब उसका गोदी मीडिया लगातार प्रसारण करता है, ज़ाहिर है दूसरे दलों पर भी इसी ज़ुबान में राजनीति की भाषा तलाशने का दबाव पड़ेगा, लेकिन क्या इसके जवाब में यही एक रास्ता बचा है? बार-बार धर्म का नाम लेकर हम आस्था का सतहीकरण करते जा रहे हैं। क्या राजनीति के पास कोई और भाषा नहीं बची है? 

कितने चुनाव हारे, दो दो लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी राहुल गांधी ने धर्म का शार्टकट नहीं लिया। उन्होंने तीन हज़ार किलोमीटर से अधिक की पदयात्रा का लंबा रास्ता चुन लिया है। वह भी तब जब तमाम जानकार सवाल ही कर रहे हैं कि इससे राहुल को कुछ नहीं मिलेगा, वोट नहीं मिलेगा, यह जानते हुए भी कोई नेता इसी वक्त में पदयात्रा किए जा रहे हैं, बल्कि अपनी भाषा को भी बिगड़ने से बचा रहा है। तमाम हमलों के बीच राहुल ने भाषा की शालीनता नहीं छोड़ी है। न ही उन्होंने राजनीतिक हमलों को मैं-मैं में बदला है कि मुझे गाली दी जा रही है, मुझे ये कहा जा रहा है। चाहते तो राहुल अपना रोना रो सकते थे मगर राहुल ने ऐसा नहीं किया। राहुल को भी कोई आइडिया दे सकता था कि आप तमाम जगहों पर देवी देवताओं की तस्वीर लगाने की मांग कर हेडलाइन बटोर सकते हैं।जैसे कह सकते हैं कि भारत में जो भी किताब और कॉपी छपेगी, उसके कवर पर केवल सरस्वती जी की तस्वीर होगी ताकि सबको विद्या मिले।

अगर राहुल गांधी बाकी नेताओं की तरह यह सब करते तो जिस अखबार में उनकी पदयात्रा की खबर तक नहीं छपती है, जिस चैनल में उसे कवर नहीं किया जाता है, वहां भी वे हेडलाइन बन जाते।लेकिन छपने और दिखने का मोह छोड़ कर, आसान तरीका छोड़ कर राहुल गांधी ने इसी दौर में एक मुश्किल रास्ता तो चुना ही है। वे अपनी इस यात्रा में कह रहे हैं कि सारी सरकारी संपत्ति चंद उद्योपतियों के हवाले की जा रही है। मछुआरों के सवाल उठा रहे हैं। किसानों के सवाल उठा रहे हैं। युवाओं के रोजगार की बात कर रहे हैं। आर्थिक मुद्दों पर बात कर रहे हैं और धर्म की राजनीति से देश को आगाह कर रहे हैं। धर्म की राजनीति से देश ही नहीं टूट रहा, राजनीति भी टूट कर बिखर गई है। इसी समय में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने
नरेंद्र मोदी ने राजनीति को धार्मिक उत्सव में बदल दिया है,जिसका जवाब खोजने में केजरीवाल भी उनकी भाषा बोलने लगे हैं। राहुल ने अपनी भाषा को बचाकर रख रहे हैं।

उनकी यात्रा को न तो मीडिया में हेडलाइन मिलती है न सोशल मीडिया के बोद्धिकों में लाइक्स। आप देख सकते हैं कि जितने लोग लक्ष्मी गणेश वाले बयान को लेकर चर्चा कर रहे हैं, उनमें से कितने लोग पदयात्रा की चर्चा करते हैं। क्योंकि आर्थिक मुद्दों की राजनीति वाकई मुश्किल राजनीति है। यह जितना दूसरों को घेरती है, उतना खुद को भी घेरती है। सवाल कांग्रेस की सरकारों से भी होगा कि कितनी नौकरियां दी गई हैं। रोज़गार के कितने अवसर बने हैं। 

आर्थिक मुद्दों की राजनीति मुश्किल राजनीति है, धार्मिक मुद्दों की राजनीति सबको धर्माचार्य बना देती है। राजनीति की सारी जगह धार्मिक बहसों से घिर गई है लेकिन जब भी इससे राजनीति निकलती है, जनता का भला होता दिखता है। आज दिल्ली की राजनीति दो बहुत ज़रूरी मुद्दों को लेकर टकरा गई। और राजनीति को ऐसे ही मुद्दों पर टकराना चाहिए। 2016 से हम प्राइम टाइम में यमुना नदी में बनने वाले इस झाग की तस्वीर दिखा रहे हैं। छठ पर्व के समय इसका ज़िक्र आ जाता है। 2021 में यहां पानी की बौछार की जाने लगी ताकि लोगों को भरमाया जा सके कि झाग दूर हो रहे हैं। 2022 में भी झाग नज़र आ रहे हैं तो बीजेपी के सांसद नाव लेकर झाग में उतर गए ताकि केजरीवाल सरकार को घेर सकें। अरविंद केजरीवाल का दावा है कि 2025 तक यमुना साफ हो जाएगी। इतना साफ कर देंगे कि नदी नहाने लायक हो जाएगी।

मनोज तिवारी को पता होना चाहिए कि दिसंबर 2018 में केंद्र सरकार ने कहा कि यमुना की सफाई नमामि गंगे प्रोजेक्ट का हिस्सा है। तो मनोज तिवारी को सवाल केजरीवाल जी से भी पूछना चाहिए और अपने नेता मोदी जी से भी। 2018 में PIB की रिलीज़ में बताया गया है कि सिवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता के विस्तार के लिए नमामि गंगे के तहत 3,941 करोड़ की 17 योजनाओं को मंज़ूरी दी गई है। इसमें दिल्ली के लिए 2361 करोड़ के 11 प्रोजेक्ट हैं। यूपी के लिए 1347 करोड़ की 3 योजनाओं को मंज़ूर किया गया है।ये प्रोजेक्ट कितने समय में पूरे होंगे इसकी जानकारी उस समय के PIB की रिलीज़ में नहीं मिलती है। लेकिन इस साल मार्च में केंद्र सरकार राज्य सभा कहती है कि यमुना की सफाई के लिए 4,355 करोड़ के 24 प्रोजेक्ट को मंज़ूरी दी गई है। ये सभी प्रोजेक्ट 2023 में पूरे होंगे। 

2018 का यह डिटेल है, हमने पिछले साल के प्राइम टाइम में दिखाया भी था। क्या मनोज तिवारी बताएंगे कि 2023 आने वाला है, यमुना की सफाई को लेकर केंद्र के कितने प्रोजेक्ट पूरे हुए हैं? क्या मनोज तिवारी और बीजेपी के अन्य नेता जानना चाहेंगे कि नमामि गंगे प्रोजेक्ट की समीक्षा करते समय इलाहाबाद हाई कोर्ट ने क्या क्या टिप्पणी की है? यूपी के अखबारों में कोर्ट की टिप्पणियां छपी है कि किस तरह भ्रष्टाचार हुआ है और गंगा साफ भी नहीं हुई है। क्या मनोज तिवारी और बीजेपी के नेता नाव लेकर गंगा में जाना चाहेंगे, प्रधानमंत्री को दिखाना चाहेंगे कि अभी भी सीवेज का पानी गंगा में गिर रहा है?

आज ही दिल्ली के मुख्यमंत्री गाज़ीपुर चले गए। यहां पर कूड़े का पहाड़ बन गया है। दिल्ली में एमसीडी के चुनाव होने हैं तो केजरीवाल ने कहा कि उनकी पार्टी कूड़े को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ेगी। गणेश लक्ष्मी की तस्वीर से कहीं बेहतर है कि राजनीति इन मुद्दों पर हो, नेता इन मुद्दों पर घेरे जाएं। कई दिनों से आम आदमी पार्टी अपने ट्विटर हैंडल से दिल्ली में जमा कूड़े के ढेर के वीडियो जारी कर रही है। हाल ही में केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी का बयान छपा था कि कूड़े के पहाड़ो को हटाने के लिए 8000 करोड़ खर्च होंगे, और पहाड़ों के हटाने से 15000 एकड़ ज़मीन खाली होगी।इसकी मंज़ूरी दी गई है। कूड़े की समस्या आज की तो नहीं है,यह काम पहले क्यों नहीं हुआ?  बजट में इसकी कूड़े के पहाड़ समस्या तो है हीं, ये अपने आप में प्रदूषण बम हैं। अरविंद केजरीवालल गाज़िपुर पहाड़ का दौरा किया। दिल्ली में कूड़े के ऐसे कई पहाड़ है। केजरीवाल के अनुसार इन्हें हटाना  केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी है।

दिल्ली नगर निगम की ज़िम्मेदारी है जहां 15 साल से बीजेपी सत्ता में है। कुल मिलाकर ये पहाड़ नहीं हटे हैं। बीजेपी के सांसद गौतम गंभीर ने भी ट्विट कर दिया कि मैं 2019 से 8 बार ग़ाज़ीपुर पहाड़ पर गया और बार बार बुलाने पर भी मुख्यमंत्री नहीं आये! चुनावी मेंढक आसमां देख कर निकलते हैं, तकलीफ़ देख कर नही #LiarInChiefKejriwal, गौतम गंभीर सांसद हैं एक मुख्यमंत्री को चुनावी मेंढक कह रहे हैं। 
लोकतंत्र में सामान्य बातों के लिए भी यही भाषा बच गई है। दरअसल आप केवल कूड़े का पहाड़ नहीं देख रहे हैं, यह भी देख रहे हैं कि राजनीति की भाषा भी कूड़े के पहाड़ में बदलती जा रही है।प्रधानमंत्री मोदी जब मुख्यमंत्री थे तब भी गुजरात को गाली देने की बात करते थे,छह करोड़ गुजरातियों के अपमान की बात कर भावुकता पैदा करते थे, अब केजरीवाल भी दिल्ली के अपमान की बात करने लगे हैं। 

आज सबसे बड़ा चुनौती है कि राजनीति को मुहावरों, तुकबंदियों औरधार्मिक प्रतीकों से कैसे बचाएं।राजनीति इनसे दूर नहीं रह सकती मगर एक दूरी तो होनी ही चाहिए। कश्मीरी पंडितों को लेकर राजनीति में कितनी भावुकता पैदा की, भावुकता की इस राजनीति ने आज उसी कश्मीरी पंडितों को अकेला कर दिया है। 

धर्म के नाम पर डराना, धमकाना बहुत हो गया। मध्यप्रदेश के खरगोन से यह रिपोर्ट देखेंगे तो समझ आएगा कि अब इसके नाम पर दूसरे तरह का धंधा होने लगा है। यहां एक मामला सामने आया है।बजरंग दल के नेता ने कथित तौर पर मुस्लिम संस्था बनाई, किसानों में मुसलमानों के बस जाने का भय पैदा किया और उनसे सस्ते दामों पर ज़मीन ख़रीद ली।संस्था का कहना है उन्होंने कुछ गलत नहीं किया वो समाज सेवा कर रहे हैं..जब आप यह रिपोर्ट देखेंगे तो समझ जाएंगे कि धर्म के नाम पर भय की राजनीति से आपसे क्या क्या हड़पा जाने वाला है। 

राजनीति का पतन हो रहा है। ज़ाहिर है जनता का भी पतन होगा।धर्म से राजनीति का पतन ही होता है। हैदाराबाद से उमा सुधीर की रिपोर्ट है कि तीन लोग गिरफ्तार हुए हैं।

इन पर आरोप है कि ये लोग कथित रुप से तेलंगाना राष्ट्र समिति के चार विधायकों को पैसे का लोभ दे रहे थे विधायकों को खरीदने आए थे। इसमें फरीदाबाद से सतीश शर्मा नाम का कोई संत है, हैदराबाद का व्यापारी सोमीयाजुलु है और तिरुपति के कोई स्वामी जी हैं। ये लोग इन विधायकों को पैसे का प्रलोभन दे रहे हैं कि TRS छोड़ कर बीजेपी में आ जाएं। TRS के विधायक का आरोप है कि उसे सौ करोड़ देने का वादा किया गया था। एक आरोपी की तस्वीर केंद्रीय मंत्री किशन रेड्डी के साथ सोशल मीडिया पर घूम रही है, मंत्री ने कहा है कि बीजेपी का इसमें कोई रोल नहीं है। यह मुख्यमंत्री का रचा हुआ ड्रामा है। 

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अगर आप नहीं देखना चाहते कोई बात नहीं, हम तो दिखाते ही रहेंगे और बताते भी रहेंगे कि धर्म की राजनीति से न धर्म का भला होता है न राजनीति का। धर्म के नाम पर जनता का इस्तेमाल होता है। अब आप ब्रेक ले सकते हैं।