मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक जीवन 1967 से शुरू होता है. 55 साल के राजनीतिक जीवन को आप एक कार्यक्रम में समेट नहीं सकते. राजनेताओं का जीवन केवल विवादित और चर्चित फैसलों का नहीं होता. उनके विशाल राजनीतिक संबंधों में केवल ताकतवर लोग ही नहीं होते बल्कि सबकी नजरों से अनजान वो अपने आधार में कितने प्रकार के संबंधों विकसित करते हैं, जिसके बारे में कई बार भनक तक नहीं होती . नेताजी अपने राजनीतिक जीवन में सात बार सांसद रहे, आठ बार विधायक और तीन बार यूपी के मुख्यमंत्री. राजनीति में तो सभी है मगर अकेले मुलायम सिंह यादव नेताजी कहलाए . नेताजी का संबोधन भी उन्हें विरासत में नहीं मिला बल्कि लगातार राजनीति और जनता के बीच रहकर हासिल किया गया था . इस संबंध को भी समझना बहुत जरूरी है कि गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल से नेता जी का पार्थिव शरीर लखनऊ या दिल्ली के लिए रवाना नहीं हुआ . यहां उन्होंने दशकों विधायक और सांसद के रूप में डेरा जमाया . उस सैफई के लिए निकले जो उनसे कभी छूटा ही नहीं.
यूपी में गाँव से निकलकर बहुत से नेता सत्ता शिखर पर पहुंचे, लेकिन मुलायम सिंह यादव कि सैफई की बात ही अलग थी . मुलायम सिंह यादव कभी सैफई को अलग नहीं कर सके . उनका गाँव ही उनकी राजनीति का मुख्यालय बना रहा . ये सैफई, होली या दिवाली में नहीं आते थे बल्कि सैफई से दिल्ली या लखनऊ जाया करते थे . उनके पार्थिव शरीर को लेकर यह काफिला सैफई ही जा रहा है जहां अंतिम संस्कार किया जाएगा . मुलायम सिंह यादव उन नेताओं में से हैं जिन्होंने हर दौर में अपनी राजनीतिक स्वायत्तता और मिजाज को बचाकर रखा . तब भी जब सत्तर के दशक से कांग्रेस के वर्चस्व से लडने लगते हैं और तब भी जब कॉंग्रेस के साथ साथ नब्बे के दशक से भाजपा के बन रहे वर्चस्व से लड़ने् लग जाते हैं . बेशक पहलवान थे मगर राजनीति राजनीति की तरह की विचारों और विचारधाराओं से की. लेकिन जब राजनीतिक पत्रकारों को उनकी राजनीति समझ नहीं आई तो उसे दंगल और कुश्ती से जोड़ दिया और उनके राजनीतिक कौशल को कमतर करने की कोशिश की गयी .
वो दंगल से निकले राजनेता जरूर थे मगर उनकी राजनीति में केवल दंगल नहीं था . मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक जीवन ऐसा ही रहा है कि ना तो तारीफों से भरा जा सकता है और ना केवल आलोचनाओं से . मुलायम सिंह जिस पृष्ठभूमि से निकल कर आए . स्वाभाविक था कि उन्हें हर चीज के लिए लडना था. लड़ते-लड़ते उनकी आदत लड़ाके की हो गई . आज सैफई एक विकसित गांव माना जाता है . मुलायम सिंह यादव के कारण जितना इटावा को मिला आज वही उम्मीद योगी के नेतृत्व में गोरखपुर को रहती है और मोदी के नेतृत्व में बनारस . लेकिन यूपी में राजधानी लखनऊ पहुंचकर अपने क्षेत्र को केंद्र में रखने की राजनीति ठीक से मुलायम सिंह यादव ने शुरू की . आलोचनाओं की परवाह किए बगैर सैफई और इटावा को तमाम सुविधाओं से भर दिया . अरशद अपने कैमरे दिखा रहे हैं कि सैफई में मेडिकल कॉलेज तक बनवा दिया गया . इलाके का ये मेन अस्पताल है . सैफई को मिले दुलार के कारण रियायती जिले का मुद्दा बना और विरोधियों ने उन्हें खूब घेरा भी . एक समय में सैफई की सड़कों से लखनऊ कोएशिया हुआ करती थी . सैफई का फिल्म महोत्सव विवादित रहा . सत्ता की अय्याशी से जोडा गया लेकिन वही मुलायम सिंह यादव है जो बॉलीवुड के कलाकारों को अपने गाँव में ले आए . राज नीति में जिस पुलिंदा से लड़ते हुए मुलायम सिंह यादव हमेशा दबंग के रूप में दिखाए गए या उनकी जीत का एक रूप भी है कि सारे फिल्म स्टार सैफई में पहुंचकर रात भर कार्यक्रम करते हैं . ये नजरिया भी उतना ही सही है कि प्रदेश की जनता गरीबी में डूबी है और सैफई में महोत्सव चल रहा है . एक हाथ से समाजवाद और एक हाथ से पैसा वाद को साधते हुए मुलायम सिंह यादव ने यूपी की राजनीति को लंबे समय तक प्रभावित किया .
सैफई महोत्सव मुलायम सिंह यादव की राजनीति का एक अहम मोड है . इस महोत्सव में समाजवाद के पैसा वादी हो जाने की छवि मजबूत . इस गाँव के दर्शन सिंह यादव उनके बचपन के दोस्त रहे . पैंतालीस साल तक सफाई गाँव के प्रधान रहे . उनका एक इंटरव्यू पत्रिका अखबार में छपा है जिसमें बताते हैं कि गाँव के ही सोने लाल शाक्य ने बैठक की और सबके सामने कहा कि मुलायम सिंह यादव हमारे हैं उनको चुनाव लडने के लिए हम गाँव वाले एक शाम खाना नहीं खाये . एक शाम खाना नहीं खाने से कोई मर नहीं जाएगा . पर एक दिन खाना छोड़ने से आठ दिनों तक मुलायम की गाड़ी चल जाएगी . जिसपर सभी गाँव वालों ने एकजुट होकर सोनेलाल के प्रस्ताव का समर्थन किया वही हुआ . सैफई ने एक शाम का खाना नहीं खा कर मुलायम का झंडा उठाया तो मुलायम अभी आजीवन सैफई का झंडा थामे रहे मुलायम सिंह यादव इटावा जिले के जिस सैफई में पैदा हुए उस वक्त उस गाँव में प्रधान को छोड़ कर कोई पढा लिखा नहीं था . करहल के जैन इंटर कॉलेज में मुलायम सिंह यादव ने पढाया पाॅलिटिकल साइंस में क्या एक अध्यापक के रूप में लोकप्रिय हुए शिक्षा को लेकर गाँव गाँव में अभियान चलाया . इस उत्साह से ये काम किया कि विधायक चुने जाने से पहले ही नेता जी कहे जाने लगे . ये तस्वीर जितेन्द्र सिंह ने भेजी है . मुलायम सिंह यादव के रिश्तेदार यहाँ जुटे है . सैफई से पहले मुलायम सिंह यादव के परदादा इटौली गाँव में रहा करते थे . इटौली फिरोजाबाद में है . मुलायम सिंह के निधन की खबर आते ही गाँव की महिलाएं शोक व्यक्त करने के लिए जमा होने लगी . इनमें सरोजा देवी भी है जो नब्बे साल की है और रिश्ते में मुलायम सिंह यादव की भाभी लगती है . इस देश की तकदीर का है नाम मुलायम इस देश की ये तकदीर का है नाम मुलायम नौ जवानों से तद्वीर का है नाम मुलायम और जब मिला हमने दिखाया है वतन को खुशाली की तस्वीर का है नाम बुलाया इनका जीवन इतना बढिया रहा कि छोटा बच्चा भी आ जाए भाई नाम से और उनकी पहचान इतनी यादगार इतनी थी कि जो किसी हर आदमी को नाम से बुला ली थी . तुम की लडके हो . इधर आओ क्या काम है तुमको सारी चीजे पूछते थे गाँव में किसी को कोई परेशानी तो नहीं है राजनीतिक जीवन की शुरुआत उन्होंने साइकल से की . 1992 में जब समाजवादी पार्टी का गठन किया तब उसका चुनाव चिन्ह भी साइकल को चुना गया .
साठ के दशक में उनकी चर्चा राममनोहर लोहिया तक पहुंची और उन्होंने प्रदेश में समाजवादी विचारधारा के प्रसार के लिए मुलायम सिंह यादव पर भरोसा जताया . मुलायम सिंह यादव की कोशिशों का भी नतीजा था की यूपी . में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनती . संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय लोकदल, समाजवादी जनता पार्टी, जनता दल से होते हुए उन्होंने समाजवादी पार्टी का गठन किया . उनकी राजनीति को जातिवादी सांचे में समेटा गया . जब उस से भी बात नहीं बनी तो उन्हें मुल्ला मुलायम तो कभी मौलाना मुलायम तक कह दिया गया . तीस अक्टूबर और दो नवंबर उन्नीस सौ नब्बे ये दो महत्वपूर्ण तारीखें है . अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चली है . टाइम्स ऑफ इंडिया में मुलायम सिंह यादव का एक पुराना बयान छपा है कि देश की एकता के लिए गोली चलानी पडती तो सुरक्षाबल चलाते और भी चलता है . 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में अपने फैसले में कहा भी कोर्ट को भरोसा दिया गया था यथा स्थिति बरकरार रहेगी . लेकिन उस भरोसे को तोड़कर मस्जिद का ध्वंस किया गया . बाबरी मस्जिद और इस्लामिक ढांचे का ढहाया जाना कानून के राज का हैरान करने वाला उल्लंघन था . जब मस्जिद तोडी गई तब बीजेपी की सरकार थी . कल्याण से मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने बीजेपी छोड दी और अपनी पार्टी बना ली . मुलायम सिंह यादव ने एक चुनाव में कल्याण सिंह की पार्टी से समझौता कर लिया . विवाद हुआ, ये समझौता लंबा नहीं चला . मुलायम सिंह यादव ने इसके लिए माफी मांगी .
गलत तत्वों से समझौता कर लिया . अब कभी भी बाबरी मस्जिद का ध्वंस करने वालों से राजनीतिक समझौता नहीं करेंगे . उधर कल्याण सिंह बीजेपी में आ गए और मोदी सरकार के समय राज्यपाल बना दिए गए . राजनीति में मुलायम के कदम रखते ही यूपी की राजनीति उन के आसपास घूमती रही और उन्हीं के सामने यूपी की राजनीति ने 2017 में अपनी दिशा बदल ली और मुख्यमंत्री योगी के आसपास घूम रही है . मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए सैफई जा रहे हैं . मुलायम सिंह जी के साथ मेरा नाता बडा विशेष प्रकार का रहा जब हम दोनों मुख्यमंत्री के रूप में मिला करते थे . एक अपनत्व का भाव अनुभव करते थे और मुझे याद है उस दिन मुलायम सिंह जी का वो आशीर्वाद कुछ सलाह के दो शब्द वो आज भी मेरी अमानत है . घोर राजनीतिक विरोधी बातें के बीच भी उन्होंने कहा था मोदी जी सबको साथ लेकर के चलते हैं और इसलिए मुझे पक्का विश्वास है कि वो 2019 में फिर से चुनकर के देश के प्रधानमंत्री बनेंगे . जब तक जीवित रहे जब भी मौका मिला उनके आशीर्वाद मिलते रहे . मैं आज आदरणीय मुलायम सिंह जी को गुजरात की इस धरती से माँ नर्मदा के तट से उनको आदरपूर्वक भावभिनी श्रद्धांजलि देता हूँ . आडवाणी की रथयात्रा के समय मुलायम सिंह यादव की सरकार दबाव में आ गई . उन्होंने दंगों को रोकने के लिए पहली बार देश में पहली बार विशेष शांति दल का गठन किया . इसमें सात बटालियनें बनाई जानी थी . ऐलान किया कि दंगों के लिए एसपी कलेक्टर जिम्मेदार माने जाएंगे और कई जिलों के कलेक्टर और एसपी को हटाया भी गया . सस्पेंड भी किया गया . अयोध्या में गोली कांड को लेकर बहुत कुछ कहा जाता है लेकिन सब कुछ नहीं कर जाता है .
1997 में ये किताब राजकुमार प्रकाशन से छपी मुलायम सिंह यादव पर अभय कुमार दुबे ने लंबा परिचय लिखा है . इसमें अभय लिखते हैं कि मुलायम अजीब स्थिति से घिरे हुए थे . एक हिंदूवादी सांप्रदायिक शक्तियां थी जो मुलायम सिंह के खून की प्यासी बनी हुई थी . तो दूसरी तरफ अपने ही प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह इन सांप्रदायिक शक्तियों के तुष्टिकरण के लिए उनकी जडे खोदने की कोशिश कर रहे थे . जून उन्नीस सौ नब्बे में विश्व हिंदू परिषद में हरिद्वार में मुलायम हटाओ मंदिर बनाओ का प्रस्ताव पास किया . मुलायम को मुल्ला, मीरबाकी, गद्दार, नास्तिक सब कुछ कहा गया . उनके माता पिता तक को गालियाँ दी गई . अभय दुबे लिखते हैं कि विश्वनाथ प्रताप सिंह इन सब स्थितियों से अलग रहकर निरपेक्ष रहकर केवल बयानबाजी करते रहे . बीपी सिंह ने अनुच्छेद दो सौ छप्पन के तहत उन राज्यों को चेतावनी नहीं दी जो अयोध्या में लाखों लोगों की भीड जुटाकर कानून व्यवस्था को खतरे में डाल रहे थे . इसका अभिप्राय बीजेपी शासित राज्यों से है . विश्वनाथ प्रताप सिंह के एक मंत्रिमंडलीय सचिव थे विनोद पांडे .
इन्होंने उनतीस जुलाई उन्नीस सौ नब्बे को हिंदुस्तान टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि अगर विश्वनाथ प्रताप सिंह तेईस जुलाई तक प्रधानमंत्री बने रहे तो अगले तेरह महीने तक कोई नहीं हटा सकता . विनोद पांडे ज्योतिष के तौर पर बोल रहे थे, अयोध्या में कारसेवकों पर जो गोली चली है, उस की परिस्थिति किस तरह से तैयार की गई? किन लोगों की क्या भूमिका थी? विश्वनाथ प्रताप सिंह की क्या भूमिका थी, यह भी जानना चाहिए . क्या वीपीसिंह अपनी गद्दी बचाने के लिए मुलायम सिंह यादव और यूपी को दांव पर लगा रहे थे? पचपन साल के राजनीतिक जीवन की समीक्षा आसान नहीं होती है . भारत के मीडिया पर सब और हितों का पोशाक होने का आरोप यूँ ही नहीं लगता है . इस मीडिया ने पिछडे तबके से आने वाले नेताओं के राजनीतिक कौशल को कभी स्वीकार नहीं किया . इन दलों के जरिए गाँव कस्बों की आवाज ऊपर पहुँची तो वहीं से अनगढ और कुलीन नेता भी आगे आए . जाहिर है उन सभी का कार पर चलना भ्रष्टाचार था और किसी राष्ट्रवादी दल के नेता का उद्योगपति के जहाज में घूमना, राष्ट्रवाद कभी भी मीडिया इनके सामाजिक राजनीतिक योगदान को स्वीकार नहीं करता . रेखांकित नहीं करता . भारतीय राजनीति में अगर काशीराम, शरद यादव, मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, मायावती जैसे नेता नहीं हुए होते तो आज कम संख्या वाली बहुत सारी ऐसी जातियों के नेताओं को कोई मंत्री भी नहीं बनाता. अभी भी वे उपमुख्यमंत्री तक ही पहुँचे हैं . उनके जाने से रिक्तता हुई है . उस प्रकार का संघर्षशील नेतृत्व अब देखने में मिलता नहीं है . और जैसा मैं कहता हूँ कि एक ऐसी पीढी जो कुछ मूल्यों के लिए, नीतियों के लिए, कुछ संघर्षों के लिए जानी जाती थी, हमारे बीच से चली गई है नेताजी इन को . मैं तो हमेशा मुलायम सिंह जी के नाम से ही पुकारता रहा हूँ . वो एक ऐसी आवाज थे जो शायद सुनने को नहीं मिलेगी . समाज में अभी भी ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता है कि जहाँ बीस करोड लोग गरीबी के नीचे हो, जहाँ अभी भी स्वास्थ्य और सेवा के क्षेत्र में बहुत बडी संख्या में लोग वंचित हो तो कुछ सशक्त नेतृत्व की आवश्यकता रहती है . और वैसे भी लोकतंत्र में एक मजबूत नेतृत्व की भी आवश्यकता रहती है ऐसी परिस्थितियों में जब देश चारों तरफ से कई संकटों से भी और कई संघर्षों से गुजर रहा है . मजबूत नेतृत्व हर स्थल पर हर पार्टी में हर विचारधारा में उपस्थित रहे तो वो लोकतंत्र को भी मजबूत करता है . वो देश भर में ज्यादा आंदोलन को आगे बढाया और हमारे तो संबंधी थे . हमारी बेटी है उनको ये घटना याद है जब हम लोग तिलक चाहने, नेताजी बिहार भर के जितने लोग थे सब के लिए अलग अलग इंतजाम करना . अतिथि सरकार उनके मन में पूरा भरा हुआ था . हम लोग करते हैं कि उनकी आत्मा को शांति दे . अखिलेश जी और उनके पूरे परिवार को ताकत मैं मानता हूँ कि वो बहुत संघर्ष वाले बडा बहादुर, आज में उनका कोई परिवार नहीं . कार्यकर्ता परिवार और मैं जब जबलपुर से हार गया तो उन्होंने अपने यहाँ से नाम लिख कर करके देखो लिख करके मुझे राज्यसभा पहुँचाया .
मैं आज जो कुछ भी हूँ उसमें मुलायम सिंह जी का बहुत बडा हाथ है और एक तरह से यूपी का गाँव सेल्स छाना हुआ था . आज यूपी में उनसे बडे कद का कोई नेता नहीं था . आज उनका निधन जो है वो यूपी में बहुत देश के लिए बहुत अपूरणीय क्षति है . एक तरह से मुलायम सिंह नेता जी सही में नेता जी थे . वो लोगों को ही नेता थे और पैरलल मिंट में हम लोग जब रहते थे तीनों तो पूरी पैरलल मिंट जो है वो हम लोग दबा देते थे . उसमें मुलायम सिंह जी एक तरह से रहते थे . एक तरह से हमारे गाँव कोई थे वो मुलायम सिंह जी थे . शरद जी एक एक एक सवाल था कि मुलायम सिंह यादव उन्नीस सौ छियानवे में प्रधानमंत्री बनते बनते रह गए . आपको लगता है उनमें प्रधानमंत्री बनने की क्षमता थी . वो परिस्थिति तो बन गई थी कि उनके प्रधानमंत्री बनने पर लेकिन कुछ ऐसी बातें है जिसको कहना ठीक नहीं मानता . लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि वो पहुँच गए थे वहाँ तक होने वाले थे उनकी जगह गुजरात जिसका कोई है तो गुजरात कहीं जनाधार वाले देते थे नहीं तो प्रधानमंत्री बनते हैं तो गाँव के किसान की जिंदगी का काम करते हैं .
गुप्त रूप से धन देकर राजनीतिक दल को अपने कब्जे में करने वाले उद्योगपतियों के नाम आप नहीं जानते हैं क्योंकि कानून ऐसा बन गया है . मगर लोकतंत्र की सबसे बडी बुराई के रूप में परिवारवाद का पहाडा दिन रात हटाया जाता है ताकि आपका ध्यान उन गु्प्त उद्योगपतियों पर ना जाए जिनकी नीतियों के लिए राजनीति चलती है . अक्टूबर दो हजार सोलह में इस घटना ने हैरान कर दिया . जिस परिवार के दम पर मुलायम सिंह यादव ने राजनीति और राजनीतिक दल को थामे रखा, वह उन्हीं के सामने बिखर गया . शिवपाल सिंह यादव ने अखिलेश के हाथ से माइक छीन ली और कह दिया कि वे अलग पार्टी बनाने वाले थे . बाद में शिवपाल सिंह यादव दो हजार बाईस के चुनाव में अखिलेश के साथ आते हैं . मगर दोनों के रिश्ते कभी सामान्य नहीं हुए . दो हजार सत्रह और दो हजार उन्नीस में समाजवादी पार्टी यूपी में चुनाव हार जाती है . आज मुलायम सिंह यादव को श्रद्धांजलि देने के लिए गृहमंत्री अमित शाह भी पहुंचे . लेकिन अमित शाह ने दो हजार सत्रह के चुनाव के बाद कोटा राजस्थान में किस्सा बताया कि कैसे बाप बेटे को लेकर एक अफवाह फैलाई गई और वो रणनीति उनके कम आ गई . मुँह उसने तो बडे हूॅं बट मुँह डाल दिया .
अखिलेश यादव वो मरा नहीं जी हूँ मगर और सब कर रहे हैं . दस बजे मालूम है और मैं हूँ जल्दी ऐसा करना नहीं चाहिए . मगर एक प्रकार का माहौल काम तो आज के दिन मुलायम सिंह यादव को कई समीक्षाओं में चतुर कहा जा रहा होगा . मगर मुलायम सिंह यादव किस तरह सत्ता के जमे जमाए खिलाडियों की चतुराई के शिकार हुए यह भी बताना चाहिए . मुलायम सिंह यादव अकेले समाजवादी नेता नहीं थे . उनकी पार्टी में जनेश्वर मिश्र का दर्जा उनसे भी बडा था . छोटे लोहिया कहलाते थे . आजम खान का आप नाम ले सकते हैं . जया भादुरी का नाम ले सकते हैं . अमर सिंह भी बहुत करीबी हुए लेकिन दो हजार चौदह के बाद हुए सत्ता परिवर्तन की आंधी में परिवर्तित हो गए . मुलायम ने खुद को पीछे कर बेनीप्रसाद वर्मा को यूपी विधानसभा में नेता विपक्ष बनाए रखा . फूलन देवी को टिकट देना भी कम साहसिक फैसला नहीं था . हम सभी जानते हैं कि फूलन देवी की हत्या किन शक्तियों ने की . आज जब किसी शहीद का पार्थिव शरीर सीमा से उसके गाँव आता है तो ये फैसला मुलायम सिंह यादव का था . उसके पहले सीमा से शहीद की टोपी आती थी . रख प्रधानमंत्री के रूप में मुलायम सिंह यादव का फैसला था की कोई भी सैनिक शहीद होगा तो उसका पार्थिव शरीर सम्मान के साथ घर आएगा . जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक शाहिद के साथ गाँव जाएँगे .
रक्षामंत्री के रूप में उन्होंने सियाचिन के सैनिकों के लिए काम किया . सुखोई विमान की डील उन्हीं के समय हुई जो आज वायुसेना की ताकत का मजबूत आधार है . चीन उनका प्रिय विषय था . लोकसभा में चीन को लेकर हर सरकार को उन्होंने आगाह किया . यूपी के दौर में भी और मोदी सरकार के दौर में भी उनकी राय चीन को लेकर कभी नहीं बदली . इसके बाद भी क्षेत्रीय दलों के नेताओं कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सोच को प्रमुखता नहीं दी गई . उन्हें हमेशा एक गाँव या एक जिले का नेता बताया जाता रहा . दिसंबर दो हजार चौदह में जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत आए तब भी मुलायम सिंह यादव ने उस यात्रा को लेकर संदेह जताए और आगाह किया . नवंबर दो हजार चौदह के हिंदू अखबार में उनका बयान छपा है, जिसमें मुल् मुलायम सिंह यादव कहते हैं कि केंद्र चीन पर भरोसा कर गलती कर रहा है, भरोसा नहीं किया जा सकता . छह अगस्त दो हजार तेरह के दिन लोकसभा में मुलायम सिंह यादव का एक बयान है . उसके बाद दो हजार सत्रह में भी उनका बयान है . पाकिस्तान जैसा हमला करते हैं . पाकिस्तान तो दोस्ती चाहता हूँ, चाहते रहे लेकिन हमारे देश के जवानों पर हमला करके नहीं, पाकिस्तान का नहीं . पाकिस्तान के इसीलिए चीन पूरा का पूरा हमला करने की तैयारी कर रहा है . तो आज करना चाहता हूँ . फिर कह रहा हूँ . लिखा है उसपे कार्यवाही करना चाहता हूँ कि हिंदुस्तान का हमला करेगा और उसने पूरा नक्शा जो बना लिया है आप पता नहीं है बनाया हिमाचल से लेकर ये जो उत्तराखंड भी है पूरा का पूरा . उसने कहा कि ये हमारा हिस्सा है . आपका क्या प्रतिक्रिया हुई को ले जाएंगे हमारे देश सचिन उधर पाकिस्तान दोनों का दोनों हैं . दोनों की कहीं ना कहीं शानदार हो सकती नहीं हो सकती है . विदेश मंत्री बता रहे हैं और फिर प्रधानमंत्री बताए कि देश से इतना सावधान किया गया और सावधान करने के बाद आकर ये क्यों? चीन हमारी हमारी हमारी सीमा पर सुरक्षा क्यों नहीं है? इसलिए आज कह रहा हूँ चीन या पाकिस्तान दोनों हमारी सीमाओं पर घात लगाए जाते हैं . कितने बार हम बोल चुके हैं ये चीज हमारा तो समय पाकिस्तान नहीं है . पाकिस्तान मेरा नहीं जा सकता है अगर वो हमारा एक पाकिस्तान कुछ नहीं कर सकता . हमारे हिंदुस्तान का कमजोर गुस्सा आ रहा है . पाकिस्तान हिन्दुस्तान में तो पाकिस्तान मना रहे निशान हैं . मैं दावा तो नहीं कर सकता कि सामरिक और कूटनीति पर लिखने वाले विद्वानों ने मुलायम सिंह यादव और उनकी चीन नीति पर कभी लिखा नहीं होगा . लेकिन ऐसा कोई लेख मिले तो जरूर पढिएगा मुलायम सिंह यादव खुलकर कहा करते थे कि भारत को दलाई लामा की मदद करनी चाहिए . डोकलाम में चीनी घुसपैठ के समय मुलायम सिंह यादव ने साफ साफ कहा कि भारत को भी सिक्किम और भूटान की बात करनी चाहिए .
समाजवादी पार्टी हमेशा क्षेत्रीय पार्टी के रूप में गिनाई जाती रही मगर उसके नेता के इन बयानों को कभी महत्व नहीं दिया गया . आज देश में बडी बडी कंपनियां खुदरा व्यापार में आ रही हैं . वॉलमॉर्ट नाम की अमरीकी कंपनी के आने पर उन्होंने जो कहा वो भी एक प्रमाण है कि क्षेत्रीय दलों के नेता राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर कितनी साफ समझ रखते थे . भले ही उनकी बातों पर किसी ने तवज्जो नहीं दी . ॅ जो बेरोजगारी है वो इससे बेरोजगारी बढेगी और क्यों बढेगी जो अभी पाँच तो मैंने कहा व्यापार करते हैं हिंदुस्तान का, वो उसके मुकाबले नहीं पाएंगे . ये सही है कि वो कंपनियाँ आएगी या जो ये कंपनी बताइये एक बार बात ये कंपनी पहले संस्था दीजिए, वो अच्छा मालिंग और जब यहाँ के पाँच हो जाएंगे तो मनमानी करेंगे . मुलायम सिंह यादव लगातार अपने सामाजिक राजनीतिक आधार में जोड घटाव करते रहे ताकि वे भाजपा और संघ से लड सके उन्नीस सौ पंचानवे में जब यूपी में मुलायम सिंह यादव की सरकार गिर गई तो बडी संख्या में अति पिछडी जाति के उम्मीदवारों को टिकट दिया और साठ के करीब सवर्णों को भी उनकी पार्टी के ढांचे में दूसरी जातियां ज्यादा दिखने लगी . मायावती इससे पहले मुलायम सिंह यादव रायबरेली में ब्राह्मण सम्मेलन कर चुके थे . इलाहाबाद में काय सम्मेलन में हिस्सा लिया तब भी मुलायम सिंह यादव जातिवादी होने की छवि से पीछा नहीं छुडा सके क्योंकि छवियां कहीं और से बनाई जाती है .
1991 में इटावा से कांशीराम को लोकसभा का उपचुनाव लड़वाते हैं और जीताने के लिए जुट जाते हैं . यूपी की राजनीति में यह बडी घटना साबित होती है . इसके बाद बीजेपी की सरकार सपा का कार्यकर्ताओं के खिलाफ आक्रमक हो जाती है . बडी संख्या में सपा कार्यकर्ताओं पर गुंडा एक्ट लगा दिया जाता है . पार्टी की एक छवि यह भी बना दी जाती है कि गुंडों की पार्टी है . मुलायम सिंह यादव और मायावती के साथ आने का ये प्रयोग भी उन्नीस सौ पंचानवे के गेस्ट हाउस कांड के कारण ध्वस्त हो गया . जिस तरह से किसी ने नहीं सोचा कि कल्याण सिंह और मुलायम सिंह यादव गठबंधन कर सकते हैं उसी तरह से किसी ने नहीं सोचा कि मुलायम सिंह यादव और मायावती एक मंच पर आ सकते हैं . यह गठबंधन जनता ने स्वीकार नहीं किया लेकिन एक राजनीतिक परिवर्तन तो था ही . भले ही कम समय के लिए उन्नीस सौ निन्यानवे में मुलायम सिंह यादव के पास बत्तीस सांसद थे . उन्होंने सोनिया गाँधी को समर्थन देने से मना कर दिया . राजनीति का यह किस्सा भी कम रोचक नहीं काँग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने भी मुलायम सिंह यादव के निधन पर गहरा शोक जताया है . प्रियंका गांधी ने भी शोक जताया है और राहुल गाँधी ने पदयात्रा के बीच में मुलायम सिंह यादव को श्रद्धांजलि दी है . मुलायम सिंह यादव भले ही तीन बार मुख्यमंत्री रहे मगर कभी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके . जसवंत नगर विधानसभा क्षेत्र ने पहली बार उन्हें चुना होगा तो उस पीढी को कुछ तो भरोसा होगा कि नेताजी आगे जाने वाले हैं . मुलायम सिंह यादव की राजनीति की नकल भी की गई और उसकी प्रतिक्रिया में दूसरी राजनीति भी पनप कर सामने आती है .
मुलायम सिंह के राजनीति के कई पहलू आप कह सकते हैं कि अलग थे . उन्होंने कभी लीक पे चल कर के राजनीति नहीं की . हमेशा लीक से हट के राजनीति की और हमेशा अपने दिल की बात सुनी . इसके कई उदाहरण मिलते हैं . सबसे पहली बात तो अपने आपको लोहियावादी कहते रहे . चंद्रशेखर के नजदीक रहे . लेकिन जब प्रधानमंत्री बनने की बारी आई तो उन्होंने विश्वनाथ प्रताप सिंह को समर्थन दे दिया . देवीलाल के मदद से और उन को प्रधानमंत्री बना दिया . यही बात लागू होती है कि हमेशा वो अपने आप को समाजवादी नेता मानते रहे भी और अपने आप को हमेशा वामपंथी दलों के करीब बताते रहे . लेकिन जब राष्ट्रपति का चुनाव हुआ केंद्र में तो लॅाक उम्मीदवार डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम को चुनाव यही नहीं ॅ के साथ होते रहे उसके बाद भी रहे . लेकिन जब केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी और उस उस वक्त जब परमाणु बिल पर हम वोट देने की बात आई तो लेफ्ट ने समर्थन नहीं दिया . समर्थन वापस ले लिया एक तरह से और जो स्पीकर महोदय थे सोमनाथ चटर्जी उनको भी पार्टी से निकाल दिया . लेकिन अमर सिंह के समझाने बुझाने के बाद और अमर सिंह दस जनपथ भी गए और उसके बाद मुलायम सिंह यादव ने मनमोहन सिंह सरकार को परमाणु बिल पर अपना समर्थन दे दिया . सबसे बडा उदाहरण यह देखने को मिलता है कि जब मुलायम सिंह यादव की सरकार 1993 में बनी . उससे पहले उन्नीस सौ नब्बे में अयोध्या का गोली कांड हो चुका था . उसके बाद का इतिहास आपके सामने है बाबरी बची नहीं . लेकिन 1993 में बीजेपी को रोकने के लिए मुलायम सिंह यादव ने बहुजन समाजवादी पार्टी का दामन थामा और समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ी . बीजेपी को महज एक सौ सतहत्तर सीट मिली और समाज और ने मिलकर के सरकार बनाई लेकिन ये सरकार चल नहीं पाई . उसके बाद गेस्ट हाउस का कांड होता है और पूरी दुनिया जानता है . उसके बाद से मुलायम सिंह यादव और मायावती के रिश्ते कभी सामान्य नहीं हुए . हालांकि अखिलेश यादव ने बाद में इस को जोड़ने की कोशिश की लेकिन काशीराम की विरासत को आगे बढाते हुए मायावती उस कांड को भूल नहीं पाई और दोनों के रिश्ते जो है हमेशा छत्तीस के ही रहे . यही थी मुलायम सिंह की राजनीति . जो की आप कह सकते हैं हमेशा लीक से हट के रही और उनको इसलिए भी याद किया जाएगा .
अभय कुमार दुबे ने अपनी एक किताब में लिखा है कि विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री थे जब आडवाणी की रथयात्रा निकलती है . मुलायम सिंह यादव ने आरोप लगाया कि केंद्र की सरकार उनकी मदद नहीं कर रही . राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में केवल राजीव गाँधी और ज्योति बसु ने उनका साथ दिया . उसी इस सिलसिले में मुलायम सिंह यादव पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की कहाँ में बैठ गए और दोनों के बीच काफी लंबी बात हुई . इसी पर अभय कुमार दुबे ने लिखा है कि इसके बाद मुलायम सिंह यादव के भीतर गैरकांग्रेसवाद को लेकर जो झिझक बनी थी वो टूट गई . राजीव गाँधी पर मंदिर परिसर का ताला खुलवाने का आरोप था मगर यहाँ राजीव भाजपा के खिलाफ मुलायम के साथ खडे हो गए . जब देवेगौडा को प्रधानमंत्री के लिए चुना गया . उसके कुछ घंटे पहले तक सीपीएम नेता हरकिशन सिंह सुरजीत प्रधानमंत्री पद के लिए मुलायम सिंह यादव के नाम पर भी विचार कर रहे थे . बाद में कांग्रेस की मदद से मुलायम सिंह यादव यूपी में अपनी सरकार भी बचाते है . यह भी एक तथ्य है तो यहाँ से मुलायम सिंह यादव के साथ भारतीय राजनीति का एक बडा अध्याय प्रस्थान करता है या एक लंबी यात्रा का समापन है . नेताजी अब यूपी की राजनीति में नहीं मगर उनकी राजनीति के कारण बहुत से लोग नेता बनकर अलग अलग दलों में फल फूल रहे हैं, ब्रेक लेते हैं . प्रधानमंत्री मोदी ने लगता है कि अपनी पार्टी के सांसद प्रवेश वर्मा का बयान नहीं सुना . प्रवेश वर्मा ने एक समुदाय के बहिष्कार का ऐलान किया है . कहा है कि मुसलमानों से कोई सामान ना खरीदें . ये बयान उस संविधान का अपमान है जो कहता है कि उसकी हद में सभी नागरिक बराबर है . आप दर्शकों से यही गुजारिश है कि इन बयानों से दूर रहिए . खुद नहीं रह सकते तो अपने बच्चों को दूर रखिये क्योंकि यही वो बयान है जो नौजवानों को दंगाई बना सकते हैं . बाकी आपकी मर्जी और ये दिल्ली के पढे लिखे सांसद है . प्रवेश वर्मा दिल्ली से ये पिछली बार सबसे ज्यादा वोटों से जीते थे .
दिल्ली विश्वविद्यालय से पढने और फिर एमबी करने के बाद भी वो सबका देने से आगे नहीं जा पाए . वो दिलशाद गार्डन में एक कार्यक्रम में बोल रहे थे जहाँ जहाँ आपको दिखाई मैं कहता हूँ अगर इनका दिमाग ठीक करना है, इन की तबियत ठीक करनी है तो एक ही इलाज है वो है संपूर्ण बहिष्कार और मेरे साथ बोलो हम इन का संपूर्ण बहिष्कार करेंगे . हम इनके दुकान रेडियो से कोई सामान नहीं खरीदेंगे . हम इनको कोई मजदूरी नहीं देंगे . आप एक काम कर लेना बस ऍम मामले को तूल पकडता देख दिल्ली पुलिस ने औपचारिक कार्रवाई शुरू कर दी . स्थानीय थाने में धारा एक सौ अट्ठासी के तहत मामला दर्ज किया गया है जिसमें थाने से ही बेल मिल जाती है . आरोप बिना इजाजत रैली करने का है . अब कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने अपने ट्वीट में सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सवाल उठाए हैं . ये बीजेपी सांसद मन से खुलेआम मुसलमानों के पूर्ण बहिष्कार की मांग कर रहे हैं . के लिए इन की जगह जेल में है . मीटिंग सरकारी अनुमति पुलिस की मौजूदगी में हुई . दिल्ली पुलिस कब एक्शन लेगी? मोदी जी कब तक ऐसे ही नफरत फैलाते रहेंगे . ऍम असुद्दीन शेर करते हुए पीएम मोदी को निशाने पर लिया है .
भाजपा का एक सांसद देश की राजधानी में खुली सभा में मुसलमानों के बहिष्कार करने की शपथ ले रहा है . हाँ फॅस के मोहन भागवत ने कहा था कि मुसलमानों में झूठा डर फैलाया जा रहा है . सच तो यही है कि बीजेपी ने मुसलमानों के खिलाफ जंग का आगाज कर दिया है . दिल्ली सीएम और अमित शाह दोनों ने ही चुप्पी साध ली है . दिल्ली में सरकार चला रही आप इस मामले में भी चुप है . और बीजेपी के सूत्र की दलील है कि प्रवेश वर्मा के बयान को हेट सीट नहीं माना जा सकता . जब कभी केंद्र सरकार से जुडे हुए नेता कोई भी कंट्रोवर्शिल स्टेट मिंट देते हैं तो भारतीय जनता पार्टी का ये कहना होता है कि वो फॅस है . लेकिन इस बार बयान जो है वो उनके सांसद ने दिया है . प्रवेश वर्मा का ये पहला बयान नहीं है . इससे पहले भी वो दो बयानों को लेकर विवादों से घिरे रहे हैं . लेकिन दिल्ली पुलिस ने इस बार फिर से धारा एक सौ अट्ठासी के तहत मामला दर्ज किया है . यानी जो आयोजक हैं उनके खिलाफ एफआईआर हुई है . सांसद के खिलाफ नहीं हुई है.