24,212 बलात्कार और यौन हिंसा के मामले इस साल के पहले छह महीने में दर्ज हुए हैं. यह आंकड़ा सुप्रीम कोर्ट में राज्यों के हाईकोर्ट और पुलिस प्रमुखों ने दिया. इसमें बच्चियों, किशोरियों के साथ बच्चे भी हैं लेकिन लड़कियों की संख्या अधिक है. यानी हर दिन बलात्कार और यौन हिंसा के 132 मामले होते हैं. 18 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ. क्या आप इन्हें सांप्रदायिक बना सकते हैं? जो सड़ चुके हैं उनका कुछ नहीं किया जा सकता. जो लोग ऐसी घटना के अपराधियों के मज़हब के सहारे ये खेल खेलते हैं उनका चेहरा कई बार बेनक़ाब हो चुका है.
अनुसूचित जाति और जनजाति की लड़कियों के साथ होने वाली हिंसा को अलग गिना जाता है क्योंकि संविधान और क़ानून मानता है कि उच्च जातियों के दबंग जातिगत घृणा और बदला लेने के लिए ऐसा काम करते रहे हैं. बाक़ी सभी मज़हब और जाति के मर्द एक जैसे होते हैं. आप देखेंगे कि हर जाति और धर्म के मर्द बलात्कार के मामले में पकड़े गए हैं. बलात्कार की हर घटना विभत्स होती है.
हैदराबाद की घटना के बाद आईटी सेल सुबह से ही सक्रिय था. अल्पसंख्यकों के प्रति उसकी घृणा इस वहशी कांड के सहारे फिर बाहर आई. एक डॉक्टर को जला दिया गया. उसके प्रति दिखावे की संवेदनशीलता भी नहीं, राजनीतिक क्रूरता सक्रिय हो गई. शाम को हैदराबाद पुलिस ने बताया कि डॉक्टर को भरोसे में लेकर गैंगरेप करने वालों में चार आरोपी पकड़े गए हैं. मोहम्मद, शिवा, नवीन, चिंताकुंता चेन्नाकेशवुलु. मोहम्म्द 26 साल का है और बाकी 20 साल का.
दरअसल बलात्कार की घटनाओं से हमारा समाज और राजनीतिक समाज दोनों धूर्त हो गया है. उसे सच्चाई पता है लेकिन वह मज़हब का मौक़ा खोज कर इसके बहाने अपना खेल खेलता है. ख़ुद को बचाता है. मज़हब के एंगल के कारण अब बलात्कार के मामलों पर उग्रता और व्यग्रता ज़ाहिर होने लगी है. एक पूरी मशीनरी इसके पीछे लगी है.
झारखंड की राजधानी में मंगलवार को शाम साढ़े छह बजे क़ानून की छात्रा को उठा ले गए. उसके साथ उसका दोस्त था मगर हथियारों से लैस 12 लड़कों ने लड़की को अगवा कर लिया. मुख्यमंत्री के घर से आठ किमी दूर की घटना है. बारह आरोपी पकड़े गए हैं. सभी आरोपी एक ही गाँव के हैं. एक गाँव के बारह लड़कों के बीच इस अपराध की सहमति बनी होगी. बुधवार की अगली सुबह लड़की किसी तरह थाने पहुँची और केस दर्ज कराई. पुलिस ने जिन्हें गिरफ़्तार किया है उनके नाम इस प्रकार हैं. कुलदीप उराँव, सुनील उराँव, राजन उराँव, नवीन उराँव, अमन उराँव, रवि उराँव, रोहित उराँव, ऋषि उराँव, संदीप तिर्के, बसंत कश्यप, अजय मुंडा, सुनील मुंडा.
यह बीमारी है. भारत के मर्द/ लड़के बीमार हैं. उनके मनोविज्ञान की बनावट को समझना होगा. उसका उपचार करना होगा. फाँसी और सख़्त सज़ा का कुछ असर नहीं हुआ. जिस समाज की राजनीतिक भाषा में स्त्री विरोधी हिंसा कूट कूट कर भरी है उसका उपचार ज़रूरी है. लड़कियों को सलाह है कि यहाँ के मर्दों पर किसी भी तरह का भरोसा करने से पहले सावधान रहें. सचेत रहें.
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