क्या अमेरिका यूक्रेन को लेकर पुतिन से युद्ध करेगा?

क्या भारत के लोगों को पता है कि यूक्रेन और रूस का विवाद उनकी ज़िंदगी में किस तरह का तूफान लाने वाला है?

यूक्रेन में तनाव है और युद्ध की आशंका ने दुनिया को अस्थिरता से घेर लिया है. युद्ध अपने साथ प्रोपेगैंडा लेकर आता है. इराक युद्ध के समय पश्चिमी देशों का प्रोपेगैंडा सच बनकर छाया हुआ था जिस पर ब्रिटेन की संसद की बनाई चिल्कॉट कमेटी ने बताया था कि इराक पर हमला करने से पहले ब्रिटेन ने अपनी जनता से झूठ बोला था कि सद्दाम हुसैन के पास रसायनिक हथियार हैं. इराक युद्ध में ब्रिटेन  की सेना भेजने वाले तबके प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था लेकिन इस दौरान रणनीति बनाने में हुई गलतियों को लेकर माफी भी मांगी थी. इस संदर्भ में हमें यह देखना ही चाहिए कि कौन सा देश कितना सही बोल रहा है और कितना हंगामा मचा रहा है. इस हंगामे का लाभ कौन उठाने वाला है और क्या करने वाला है. लेकिन हम और आप इससे प्रभावित ज़रूर हैं. आज रायटर समाचार एजेंसी ने ट्वीट किया है कि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत सितंबर 2014 के बाद सबसे अधिक स्तर पर पहुंच गई है. सितंबर 2014 में कच्चे तेल का भाव 99.38 डॉलर प्रति बैरल हो गया था जो सोमवार के दिन 98.87 डॉलर प्रति बैरल हो गया? 

सोचिए पिछले साल सितंबर में जब कच्चे तेल की कीमत 80 डॉलर प्रति बैरल से कम थी तब भारत के लोग 110 रुपये लीटर पेट्रोल भराने के लिए मजबूर किए गए थे, अब जब यह 100 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच रहा है तब क्या भारत के लिए संभव होगा कि पेट्रोल और डीज़ल के दाम बढ़ने को रोका जा सके. 

क्या बाइक सवारों को पता है कि यूक्रेन और रूस का विवाद उनकी ज़िंदगी में किस तरह का तूफान लाने वाला है? इस समय ही भारत के अलग-अलग शहरों में पेट्रोल 95 से 100 रुपये लीटर मिल रहा है जो कि अच्छा खासा महंगा है. यूक्रेन और रूस का तनाव लंबा खिंचा तब पेट्रोल और डीज़ल का दाम कहां तक चला जाएगा? भारत में 4 नवंबर से पेट्रोल और डीज़ल के दाम नहीं बढ़ रहे हैं. पिछले साल के रिकार्ड को देखते हुए कई लोग कहने लगे हैं कि पेट्रोल के दाम में 10 रुपये तक की वृद्धि हो सकती है. पटना में लोग 105 रुपये लीटर पेट्रोल खरीद रहे हैं. देखते-देखते लोगों पर यह दाम थोप ही दिया गया जो 80 रुपये लीटर होने पर सड़कों पर उतर आया करते थे. सात मार्च को आखिरी मतदान है. उस दिन या उसके बाद से पेट्रोल और डीज़ल के दाम बढ़ने लगे तो पहले से ही महंगाई के हमले से घिरी जनता उसकी बमबारी की चपेट में आ जाएगी. सबसे दयनीय स्थिति तो तब होगी जब उसे स्वीकार करना ही पड़ेगा कि अंतर्राष्ट्रीय कारण से दाम बढ़ा है और बढ़ा हुआ दाम भी देना होगा. उसे भूल जाना होगा कि चुनाव के कारण तीन महीने तक दाम नहीं बढ़े थे. महंगाई के सपोर्टरों के लिए अच्छे दिन आने वाले हैं. वे फिर से चौराहों पर 110 रुपये लीटर दाम बताने निकल पड़ेंगे.

इसलिए यूक्रेन से आ रहे युद्ध के वीडियो को वीडियो गेम समझकर मत देखिए. इसका असर आप पर भी पड़ने वाला है. उस तबके पर भी पड़ेगा जो खुद को महंगाई जैसी छोटी चिंताओं से दूर रखता है और जिसे डेढ़ साल से शेयर बाज़ार में उछाल देखकर सोने की आदत हो गई थी. जिसे खुशहाल देखकर बाकी लोग भी शेयर बाज़ार में पैसे लगाने के लिए दौड़ पड़े थे. उन्हें भी चिंता करनी चाहिए. मनी कंट्रोल डॉट कॉम के अनुसार यूक्रेन और रूस के तनाव के कारण 16 फरवरी से अब तक भारतीय निवेशकों के हाथ से नौ लाख करोड़ की संपत्ति निकल गई है. इतना तगड़ा झटका लगा है.

तालाबंदी से पहले 24 जनवरी 2020 को भारत का सेंसेक्स 41,603 पर था. तालाबंदी के बाद 3 अप्रैल 2020 को 27,590 पर आ गया. चार महीने में बाज़ार में 35 प्रतिशत की गिरावट आ गई थी. उसके बाद चढ़ने की रफ्तार शुरू हुई तब यह अक्तूबर 2021 में 61305 पर पहुंच गया. डेढ़ साल के भीतर शेयर बाजार 100 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ गया.

22 सितंबर 2021 की मिंट की एक रिपोर्ट पढ़ रहा था. इसमें लिखा है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के अर्थशास्त्रियों का कहना है, जो खुदरा ग्राहकों को बचत पर निगेटिव रिटर्न मिल रहा था. ऐसे में जब उन्होंने सुना कि शेयर बाज़ार में 10 परसेंट से लेकर 60 परसेंट तक रिटर्न मिल रहा है, ज़ाहिर है लोग बेहतर रिटर्न की तलाश में शेयर बाज़ार का रुख करते ही.  

सेबी की रिपोर्ट के अनुसार 2019-20 तक हर महीने चार लाख डी-मैट खाते खुला करते थे लेकिन 2020-21 में 12 लाख खुलने लगे. तीन गुना अधिक हो गए. यह संख्या और भी बढ़ती चली गई और 2021-22 तक आते आते एक महीने में 26 लाख डी-मैट खाते खुलने लगे. डी-मैट खाते से ही शेयर खरीदे और बेचे जाते हैं. तो इस रफ्तार से लोग अपनी जमा पूंजी लेकर शेयर बाज़ार की तरफ दौड़ लगा रहे थे क्योंकि सब एक दूसरे से सुन रहे थे कि वहां काफी अच्छा रिटर्न मिल रहा है. हमारा सवाल है कि क्या ऐसे लोगों के लिए शेयर बाज़ार के अच्छे दिन चले गए? शेयर बाज़ार वापसी करता है लेकिन कब तक वापसी करेगा, किसी को पता नहीं. अक्टूबर 2021 में सेंसेक्स 60923 पर था, जो 22 फरवरी 2022 को 57000 के आस पास ऊपर नीचे होता रहा. आज भी बाज़ार हज़ार अंक नीचे गिरा लेकिन छह सौ अक सभंल भी गया. आज की गिरावट का संबंध यूक्रेन के मसले से ही था. मनी कंट्रोल ने लिखा है कि यूरोप के बाज़ार से संबंधित भारतीय कंपनियों के शेयरों में दो से चार प्रतिशत की गिरावट देखी गई है. 

दुनिया भर के बाज़ारों में गिरावट जारी है. भारतीय शेयर बाज़ार में तबाही जैसी स्थिति तो नहीं आई है. इसके पहले भी सेंसेक्स कई बार हज़ार अंक नीचे गया है और ऊपर भी आया है लेकिन अगर यूक्रेन और रुस का विवाद लंबा खिंच गया तब भी क्या होगा? निश्चित रुप से कोई नहीं जानता फिर एक अंदाज़ा मिल सकता है कि क्या होने वाला है. 

यूक्रेन और रूस का तनाव भारत पर भी असर डालेगा. लेकिन क्या युद्ध होगा? पश्चिमी देशों में घबराहट है कि पुतिन ने पूर्वी यूक्रेन के दो अलगवादी क्षेत्रों को मान्यता देकर युद्ध का बिगुल बजा दिया है. उन क्षेत्रों में सैनिक भेजने के आदेश से युद्ध की शुरुआत हो चुकी है. लेकिन क्या युद्ध होगा या शुरुआत हो चुकी है? कई हफ्तों से पश्चिमी देश और पश्चिमी मीडिया में हल्ला है कि रूस युद्ध करने जा रहा है. हंगामे के पीछे खेल किसका है, कारोबार किसका है, यह सब भी समझने की कोशिश करनी चाहिए. ट्रंप के समय केवल अमेरिका चीन को चुनौती देता रहता था, अब वह बंद सा हो गया है. बाइडन के आने के बाद अमेरिका ने रूस के साथ मोर्चा खोल लिया है. रूस भी आक्रामक हो गया है, मगर हमला नहीं किया गया है. पुतिन ने कहा कि रूस ने यूक्रेन को आधुनिक राष्ट्र बनाया है लेकिन अमेरिका उसका इस्तेमाल रूस के खिलाफ कर रहा है. 

पुतिन ने अपने भाषण से पहले सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाई. राष्ट्रपति की कुर्सी से बहुत दूर सारे अधिकारी बैठे थे. दुनिया में बहुत से लोग पावर को इसी तरह से समझते हैं और इसी तरह से उसका प्रदर्शन करते हैं. राजा महाराजा की तरह बैठने की यह प्रथा और व्यवस्था कोई नई नहीं है. बहरहाल दूर-दूर बैठे अधिकारियों से पुतिन पूछते रहे कि उनका क्या मत है, दूर-दूर से सब हां-हां करते रहे कि जो हुज़ूर का मत है वही हमारा मत है. अंत में पुतिन ने पूछा कि पूर्वी यूक्रेन के दो क्षेत्रों को अलग राष्ट्र के रूप में मान्यता देने के उनके फैसले से किसी को असहमति है, हाल में  सन्नाटा पसर गया है. किसी की हिम्मत नहीं हुई कि असहमति है. अगर आप इस तरह की संस्कृति से प्रभावित होते हैं तो आप खुद को दूर बिठाए गए और डर डर के हां-हां करते हुए अधिकारियों की जगह रख कर देखें. 

इसके बाद राष्ट्रपति पुतिन राष्ट्र के नाम संबोधन के लिए आए और घंटे भर तक भावुक और आक्रामक भाषण देते रहे. आप दर्शकों के लिए नया नहीं है, आप जानते हैं कि किसी देश को ललकारते हुए नेताओं में कितना जोश भर जाता है. पुतिन के भाषण के तेवरों के आधार पर पश्चिमी देशों ने फिर से युद्ध-युद्ध चिल्लाना शुरू कर दिया कि रूस कभी भी यूक्रेन पर हमला कर सकता है. 

राष्ट्र के नाम संबोधन में पुतिन ने कहा कि जो काम पहले कर देना चाहिए था वह अब किया जा रहा है. रूस पूर्वी यूक्रेन के डोनेत्स्क पिपल्स रिपब्लिक DNR और लुगांस्क पिपल्स रिपब्लिक LPR को संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता देता है और अब इन इलाकों में शांति कायम करना रूस की शांति सेना की जिम्मेदारी है. पुतिन ने कहा कि यूक्रेन कठपुतलियों के इशारे पर चलने वाला एक उपनिवेश भर है. जहां रूसी बोलने वालों को दबाया जाता है. पुतिन ने यूक्रेन की संप्रभुता को काल्पनिक बता दिया. कहा कि यूक्रेन तो 1917 की बोल्शेविक क्रांति के नेता लेनिन की देन है. जिन्होंने अनजाने में गलती से सोवियत संघ में मिलाते हुए यूक्रेन को स्टेटहुड की मान्यता दे दी थी. जो आधुनिक यूक्रेन है वह पूरी तरह से बोल्शेविक दौर के रूस ने बनाया है. कई सारे लेख इस दावे को चुनौती देते हैं. रूस शुरू से आशंका ज़ाहिर करता रहा है कि नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गनाइज़ेशन (NATO) अपनी सदस्यता का विस्तार कर रहा है ताकि वह रूस की सीमाओं को घेर ले. इसलिए रूस अपनी तरफ से यह आवाज़ उठाता रहता है कि यूक्रेन को नाटो का सदस्य नहीं बनाया जाए. अभी तक पश्चिमी देशों ने नहीं बनाया है तो क्या रूस भी अमेरिका की तरह भेड़िया आया... भेड़िया कर रहा है. पुतिन ने कहा कि पश्चिमी देश उसकी इन चिन्ताओं पर थूकते रहे हैं. मास्को की कभी परवाह नहीं की. हम उनके स्डैंड से राज़ी नहीं हैं. पुतिन ने यूक्रेन पर पूर्वी यूक्रेन में नरसंहार मचाने के आरोप लगाते हुए कहा कि यूक्रेन की राजधानी कीव इन क्षेत्रों पर हमला किया है. यूक्रेन ने इस दावे को झूठा बताया है और कहा है कि पुतिन के पास कोई सबूत है तो सामने लाएं. पुतिन ने यह भी कहा है कि यूक्रेन अपना परमाणु हथियार बना सकता है और यह खतरा वास्तविक है. यूक्रेन नाटो की मदद से क्रीमिया को वापस लेना चाहता है. 2014 में रूस ने क्रीमिया को अपने अधिकार में ले लिया था. रूस की संसद में यूक्रेन के दोनों हिस्से के साथ की संधि को मान्यता दे दी गई. पास कर दिया गया. 

सीमाओं का विस्तार इस विवाद के केंद्र में है. क्या रूस अपनी सीमाओं का विस्तार कर रहा है या अमेरिका रूस की सीमा से लगे देशों को नाटो का सदस्य बनाकर अपने टैंक रूस की सीमा पर खड़ी करना चाहता है?  रूस को भड़काने के पीछे अमेरिका का भी हाथ बताया जा रहा है. अमेरिकी जानकारों का ही मानना है कि सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका ने नाटो के सदस्य देशों की संख्या बढ़ानी शुरू कर दी. अमेरिका का यह कदम सही नहीं था. इसके पहले रूस और नाटो के बीच एक संबंध बन रहा था लेकिन नाटो की संख्या बढ़ते बढ़ते 12 से 30 हो जाने से रूस को लगने लगा कि अमेरिका नाटो के बहाने उसकी सीमाओं पर अपनी तैनाती करना चाहता है. मास्को को निशाने पर लेना चाहता है. पुतिन के भाषण के तुरंत बाद अमेरिका के राष्ट्रपति  जो बाइडेन और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जानसन ने यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमीर ज़ेलेन्स्की से बात की. यूक्रेन को सैनिक मदद देने का भरोसा जताया है. राष्ट्र के नाम संबोधन से पहले पुतिन ने भी फ्रांस के राष्ट्रपति मैकरान और जर्मनी के चांसलर ऑल्फ स्कॉल्ज से फोन पर बात की. दोनों देशों ने रूस के कदम पर निराशा जताई है मगर रुस से संबंध बनाए रखने का भरोसा भी दिया है. 

रूस पर प्रतिबंधों का दौर शुरू हो गया है. यूरोपियन यूनियन से लेकर अमेरिका तक ने प्रतिबंधों का ऐलान शुरू कर दिया है. अमेरिका ने पूर्वी यूक्रेन के दोनों नए राज्यों पर प्रतिबंध लगा दिया है. अमेरिकी कंपनियां यहां कारोबार और निवेश नहीं कर सकेंगी. यूरोप के कई देश आने वाले दिनों में रूस पर अलग-अलग तरीके से प्रतिबंध लगाने की बात कर रहे हैं. पुतिन ने अपने भाषण में कहा भी कि पश्चिम देश रूस की सैनिक ताकत से खौफ खा रहे हैं. इस डर से वे यूक्रेन विवाद न भी होता तब भी रूस पर प्रतिबंध लगाते. पुतिन ने अमेरिका पर आरोप लगाया कि वह यूक्रेन चला रहा है और रूस को अस्थिर करना चाहता है. यूक्रेन की मांग पर यूएन की सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाई गई जहां दोनों पक्षों के बीच कहासुनी जैसा माहौल हो गया. चीन ने सभी पक्षों को संयम बरतने की नसीहत देने से अधिक कुछ नहीं कहा. भारत ने भी संयम बरतने की बात कही. रूस सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष है. इस बैठक में उसने अपने फैसले से सदन को अवगत करा दिया. बैठक में यूक्रेन ने कहा कि कुछ दिन पहले तक दुनिया के लोग मिलकर कोविड से लड़ने की बात कर रहे हैं थे, हर किसी की जान बचा रहे थे लेकिन आज दुनिया के सामने एक नया वायरस आ गया है.

चीन ने रूस के कदम की आलोचना नहीं की है और न ही समर्थन दिया है. अमेरिका के विदेश सचिव ने चीन के विदेश मंत्री से फोन पर बात की है. अमेरिकी मीडिया का दावा है कि चीन ने किसी देश का नाम नहीं लिया है लेकिन कहा है कि संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों के अनुसार क्षेत्रीय संप्रभुता का सम्मान किया जाना चाहिए. चीन ने यह भी कहा है कि हर देश की वाजिब समस्या होती है. संयुक्त राष्ट्र में चीन के राजदूत ने कहा है कि चीन कूटनीतिक समाधान का स्वागत करेगा. सभी सवालों को बराबरी के साथ देखा जाना चाहिए. भारत ने कहा है कि सभी पक्षों को संयम बरतते हुए बातचीत से समाधान निकालना चाहिए. यह भी समझने की ज़रूरत है कि यूक्रेन क्यों अभी तक संयम की बात कर रहा था. कई बार अमेरिकी राष्ट्रपति के बयानों से भी दूरी बनाता हुआ दिखाई दे रहा था. अब जाकर यूक्रेन ने मांग की है कि रूस के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगाए जाएं. 

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यह मामला केवल यूक्रेन तक सीमित नहीं है.अगर युद्ध हुआ तो यूरोप में इसके कई मोर्चे खुल जाएंगे. क्या ऐसी स्थिति आ सकती है या अब कोई रास्ता नहीं बचा है. रूस और अमेरिका के बीच तनातनी जारी है.  पहला सवाल- रूस और अमेरिका जो दावे कर रहे हैं, उसमें कितना प्रोपेगैंडा है और कितना सही है? दूसरा- यूक्रेन का क्या स्टैंड है, क्या वह अमरीका के साथ से उत्साहित है? अगर युद्ध हुआ तो यूरोप भर की सुरक्षा कैसे प्रभावित होगी? बहरहाल यूक्रेन में भारत के 18000 से अधिक छात्र रहते हैं. इन्हें अस्थायी तौर पर लौट आने के लिए कहा गया है.