हिन्दी प्रदेशों के युवाओं में प्रतिभा की कमी नहीं है बस उनमें निखार न आए इसका इंतज़ाम सिस्टम और समाज ने कर रखा है. सैंकड़ों किलोमीटर तक लाइब्रेरी नज़र नहीं आएगी. इसे बीते ज़माने का बताया जाता है. मैं अमरीका के सैन फ़्रांसिस्को में हूं. यहां यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, बर्कले की लाइब्रेरी की रीडिंग रूम की तस्वीर दिखाना चाहता हूं.
यहाँ पढ़ने वाले ज़्यादातर पहली पीढ़ी के छात्र हैं यानि इनके मां बाप ने पहले कभी कालेज का मुंह नहीं देखा. यहां 36 लाइब्रेरी है जिसका इस साल का बजट 461 करोड़ है.
दो रीडिंग रूम की तस्वीर देखिए. छत से लेकर पढ़ने का माहौल देखिए. अगर ये सुविधा आपको मिली होती तो आप न जाने क्या से क्या कर जाते. अपने साथ हो रहे इस धोखे को पहचानिए.
नेताओं ने आपको बर्बाद किया लेकिन आप क्यों बर्बाद हो रहे हैं. लाइब्रेरी की ज़रूरत आपको भी है.
शहर शहर में रीडिंग रूम वाली लाइब्रेरी का धंधा चल पड़ा है जहां एक ग़रीब छात्र पंद्रह सौ से दो हज़ार महीना देकर पढ़ रहा है. अगर हर शहर की यूनिवर्सिटी या कालेज में ऐसी लाइब्रेरी होती तो आज आप हिन्दू मुसलमान की जगह आसमान में उड़ान भर रहे होते.
इस झूठ से दूर रहिए कि आज कल कोई पढ़ता नहीं है. आप अध्ययन कक्का तस्वीरों को देखिए. पूरा हॉल भरा हुआ है. इसलिए आप भी पढ़िए. पांच पांच पन्नों के किताब क्योंकि आपका मुक़ाबला ऐसे गंभीर छात्रों से हैं.
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